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View Full Version : Captains don't abandon their ships



deshi-jat
December 16th, 2011, 05:58 AM
Below is the story about an Indian captain who went down with his ship during the 1971 war, the only Indian captain to go down with his vessel.

जब महेंद्रनाथ मुल्ला ने जल समाधि ली

रेहान फ़ज़ल, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली, गुरुवार, 15 दिसंबर, 2011 को 12:39 IST तक के समाचार


1971 में हर जगह वाहवाही लूटने के बावजूद कम से कम एक मौक़ा ऐसा आया जब पाकिस्तानी नौसेना भारतीय नौसेना पर भारी पड़ी.

नौसेना को अंदाज़ा था कि युद्ध शुरू होने पर पाकिस्तानी पनडुब्बियाँ मुंबई बंदरगाह को अपना निशाना बनाएंगी. इसलिए उन्होंने तय किया कि लड़ाई शुरू होने से पहले सारे नौसेना फ़्लीट को मुंबई से बाहर ले जाया जाए.

जब दो और तीन दिसंबर की रात को नौसेना के पोत मुंबई छोड़ रहे थे तो उन्हें यह अंदाज़ा ही नहीं था कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस हंगोर ठीक उनके नीचे उन्होंने डुबा देने के लिए तैयार खड़ी थी. उस पनडुब्बी में तैनात लेफ़्टिनेंट कमांडर और बाद मे रियर एडमिरल बने तसनीम अहमद याद करते हैं, "पूरा का पूरा भारतीय फ़्लीट हमारे सिर के ऊपर से गुज़रा और हम हाथ मलते रह गए क्योंकि हमारे पास हमला करने के आदेश नहीं थे क्योंकि युद्ध औपचारिक रूप से शुरू नहीं हुआ था. कंट्रोल रूम में कई लोगों ने टॉरपीडो फ़ायर करने के लिए बहुत ज़ोर डाला लेकिन हमने उनकी बात सुनी नहीं. हमला करना युद्ध शुरू करने जैसा होता. मैं उस समय मात्र लेफ़्टिनेंट कमांडर था. मैं अपनी तरफ़ से तो लड़ाई शुरू नहीं कर सकता था."

पाकिस्तानी पनडुब्बी उसी इलाक़े में घूमती रही. इस बीच गई और उसे ठीक करने के लिए उसे समुद्र की सतह पर आना पड़ा. 36 घंटों की लगातार मशक्कत के बाद पनडुब्बी ठीक कर ली गई. लेकिन उसकी ओर से भेजे संदेशों से भारतीय नौसेना को यह अंदाज़ा हो गया कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी दीव के तट के आसपास घूम रही है. नौसेना मुख्यालय ने आदेश दिया कि भारतीय जल सीमा में घूम रही इस पनडुब्बी को तुरंत नष्ट किया जाए और इसके लिए एंटी सबमरीन फ़्रिगेट आईएनएस खुखरी और कृपाण को लगाया गया. दोनों पोत अपने मिशन पर आठ दिसंबर को मुंबई से चले और नौ दिसंबर की सुबह होने तक उस इलाक़े में पहुँच गए जहाँ पाकिस्तानी पनडुब्बी के होने का संदेह था. टोह लेने की लंबी दूरी की अपनी क्षमता के कारण हंगोर को पहले ही खुखरी और कृपाण के होने का पता चल गया. यह दोनों पोत ज़िग ज़ैग तरीक़े से पाकिस्तानी पनडुब्बी की खोज कर रहे थे. हंगोर ने उनके नज़दीक आने का इंतज़ार किया. पहला टॉरपीडो उसने कृपाण पर चलाया. लेकिन टॉरपीडो उसके नीचे से गुज़र गया और फटा ही नहीं.

3000 मीटर से निशाना

यह टॉरपीडो 3000 मीटर की दूरी से फ़ायर किया गया था. भारतीय पोतों को अब हंगोर की स्थिति का अंदाज़ा हो गया था. हंगोर के पास विकल्प थे कि वह वहाँ से भागने की कोशिश करे या दूसरा टॉरपीडो फ़ायर करे. उसने दूसरा विकल्प चुना. तसनीम अहमद याद करते हैं, "मैंने हाई स्पीड पर टर्न अराउंड करके खुखरी पर पीछे से फ़ायर किया. डेढ़ मिनट की रन थी और मेरा टॉरपीडो खुखरी की मैगज़ीन के नीचे जा कर एक्सप्लोड हुआ और दो या तीन मिनट के भीतर जहाज़ डूबना शुरू हो गया." खुखरी में परंपरा थी कि रात आठ बजकर 45 मिनट के समाचार सभी इकट्ठा होकर एक साथ सुना करते थे ताकि उन्हें पता रहे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है. समाचार शुरू हुए, 'यह आकाशवाणी है, अब आप अशोक बाजपेई से समाचार...' समाचार शब्द पूरा नहीं हुआ था कि पहले टारपीडो ने खुखरी को हिट किया. कैप्टेन मुल्ला अपनी कुर्सी से गिर गए और उनका सिर लोहे से टकराया और उनके सिर से ख़ून बहने लगा. दूसरा धमाका होते ही पूरे पोत की बत्ती चली गई. कैप्टेन मुल्ला ने मनु शर्मा को आदेश दिया कि वह पता लगाएं कि क्या हो रहा है.

मनु ने देखा कि खुखरी में दो छेद हो चुके थे और उसमें तेज़ी से पानी भर रहा था. उसके फ़नेल से लपटें निकल रही थीं. उधर सब लेफ़्टिनेंट समीर काँति बसु भाग कर ब्रिज पर पहुँचे. उस समय कैप्टेन मुल्ला चीफ़ योमेन से कह रहे थे कि वह पश्चिमी नौसेना कमान के प्रमुख को सिग्नल भेजें कि खुखरी पर हमला हुआ है. बसु इससे पहले कि कुछ समझ पाते कि क्या हो रहा है पानी उनके घुटनों तक पहुँच गया था. लोग जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रहे थे. खुखरी का ब्रिज समुद्री सतह से चौथी मंज़िल पर था. लेकिन मिनट भर से कम समय में ब्रिज और समुद्र का स्तर बराबर हो चुका था.

कैप्टेन मुल्ला ने बसु की तरफ़ देखा और कहा, 'बच्चू नीचे उतरो.' बसु पोत के फ़ौलाद की सुरक्षा छोड़ कर अरब सागर की भयानक लहरों के बीच कूद गए. समुद्र का पानी बर्फ़ से भी ज़्यादा ठंडा था और समुद्र में पाँच-छह फ़ीट ऊँची लहरें उठ रही थीं.

मुल्ला ने जहाज़ छोड़ने से इनकार किया


उधर मनु शर्मा और लेफ़्टिनेंट कुंदनमल भी ब्रिज पर कैप्टेन मुल्ला के साथ थे. मुल्ला ने उनको ब्रिज से नीचे धक्का दिया. उन्होंने उनको भी साथ लाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. जब मनु शर्मा ने समुद्र में छलांग लगाई तो पूरे पानी में आग लगी हुई थी और उन्हे सुरक्षित बचने के लिए आग के नीचे से तैरना पड़ा. थोड़ी दूर जाकर मनु ने देखा कि खुखरी का अगला हिस्सा 80 डिग्री को कोण बनाते हुए लगभग सीधा हो गया है. पूरे पोत मे आग लगी हुई है और कैप्टेन मुल्ला अपनी सीट पर बैठे रेलिंग पकड़े हुए हैं और उनके हाथ में अब भी जली हुई सिगरेट है.
जब अंतत: खुखरी डूबा तो बहुत ज़बरदस्त सक्शन प्रभाव हुआ और वह अपने साथ कैप्टेन मुल्ला समेत सैकड़ों नाविकों और मलबे को नीचे ले गया. चारों तरफ़ मदद के लिए शोर मचा हुआ था लेकिन जब खुखरी आँखों से ओझल हुआ तो शोर कुछ देर के लिए थम सा गया. बचने वालों की आँखे जल रही थीं. समुद्र में तेल फैला होने के कारण लोग उल्टियाँ कर रहे थे.
खुखरी के डूबने के 40 मिनट बाद लेफ़्टिनेंट बसु को कुछ दूरी पर कुछ रोशनी दिखाई दी. उन्होंने उसकी तरफ़ तैरना शुरू कर दिया. जब वह उसके पास पहुँचे तो उन्होंनें पाया कि वह एक लाइफ़ राफ़्ट थी जिसमें 20 लोग बैठ सकते थे. एक-एक कर 29 लोग उन 20 लोगों की क्षमता वाली राफ़्ट पर चढ़े. उस समय रात के दस बज चुके थे. अब उम्मीद थी कि शायद ज़िंदगी बच जाए. राफ़्ट हवा और लहरों के साथ हिचकोले खाती रही. भाग्यवश राफ़्ट पर पीने का पानी और खाने के लिए चॉकलेट्स और बिस्कुट थे.


अगले दिन सुबह क़रीब 10 बजे उन्होंने अपने ऊपर एक हवाई जहाज़ को उड़ते देखा. उन्होंने अपनी कमीज़ें हिला कर और लाल रॉकेट फ़्लेयर्स फ़ायर कर उसका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की. लेकिन जहाज़ वापस चला गया. थोड़ी देर बाद दो और विमान आते दिखाई दिए. सब लेफ़्टिनेंट बसु और अहलुवालिया ने फिर वही ड्रिल दोहराई. इस बार विमान ने उनको देख लिया. लेकिन वह वापस चला गया. थोड़ी देर बाद उन्हें क्षितिज पर पानी के जहाज़ के तीन मस्तूल दिखाई दिए. यह जहाज़ आईएनएस कछाल था जिसे कैप्टेन ज़ाडू कमांड कर रहे थे. एक-एक कर सभी नाविकों को जहाज़ पर चढ़ाया गया. बचने वालों की संख्या थी 64. सभी को गर्म कंबल और गरमा-गरम चाय दी गई. इन लोगों ने पूरे 14 घंटे खुले आसमान में समुद्री लहरों को बीच बिताए थे. लेकिन इस बीच एक घायल नाविक टॉमस की मौत हो गई. उसके पार्थिव शरीर के तिरंगे में लिपटा कर उसे समुद्र में ही दफ़ना दिया गया. कुल मिला कर भारत के 174 नाविक और 18 अधिकारी इस ऑपरेशन में मारे गए.अगले कई दिनों तक भारतीय नौसेना हंगोर की तलाश में जुटी रही. हंगोर पर सवार एक नाविक के अनुसार भारतीय नौसेना ने हंगोर पर 156 डेप्थ चार्ज हमले किए, लेकिन यह पनडुब्बी इन सबसे बचते हुए 16 दिसंबर को सुरक्षित कराची पहुँची.


दोनों कमांडरों को वीरता पदक


इस मुक़ाबले में दोनों कमांडरों को उनके देश का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार मिला. कैप्टेन महेंद्रनाथ मुल्ला ने नौसेना की सर्वोच्च परंपरा का निर्वाह करते हुए अपना जहाज़ नहीं छोड़ा और जल समाधि ली. उनकी इस वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया. तसनीम अहमद को खुखरी को डुबाने के लिए पाकिस्तान की तरफ़ से सितार-ए-जुर्रत से सम्मानित किया गया. दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहला मौक़ा था, जब किसी पनडुब्बी ने किसी पोत को डुबोया था.


Source: http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2011/12/111215_1971_khukri_rf.shtml

anilsangwan
December 16th, 2011, 06:09 AM
Impressive, bhai. Pakistani hamesha se chhup ke waar karte rahe hain !!!

cooljat
December 16th, 2011, 09:38 AM
.

Sad but true .. Salute to martyrs !

Arvindc
December 16th, 2011, 02:45 PM
The article certainly is providing either incomplete or wrong story. Reporting it for deletion.

The Mahavir chakar cannot be awarded merely for suicide that too with stupidity.

Arvindc
December 16th, 2011, 03:09 PM
Read: http://orbat.com/site/history/current_week_open/KHUKRI.pdf

JSRana
December 16th, 2011, 03:12 PM
The article certainly is providing either incomplete or wrong story. Reporting it for deletion.

The Mahavir chakar cannot be awarded merely for suicide that too with stupidity.

भाई अरविन्द ये सच्ची घटना है और अगर आप को फिर भी यकीन नहीं तो महा वीर चक्र पुरुस्कार विजेताओं की सूची देखें तो उसमें कैप्टेन महेंदर नाथ मुल्ला का नाम ६४ वें स्थान पर पाएंगे |

धन्यवाद् सहित |

http://www.facebook.com/note.php?note_id=64666060017

64. Naval Hero Captain Mahendra Nath Mulla Maha Vir Chakra 1971 Indo Pak War

Arvindc
December 16th, 2011, 06:01 PM
भाई अरविन्द ये सच्ची घटना है और अगर आप को फिर भी यकीन नहीं तो महा वीर चक्र पुरुस्कार विजेताओं की सूची देखें तो उसमें कैप्टेन महेंदर नाथ मुल्ला का नाम ६४ वें स्थान पर पाएंगे |

धन्यवाद् सहित |

http://www.facebook.com/note.php?note_id=64666060017

64. Naval Hero Captain Mahendra Nath Mulla Maha Vir Chakra 1971 Indo Pak War

Yeah, unfortunately, more or less it seems to be. What an irony, it is hard for me to believe, but it seems to be true. It just reminds of the gallantry awards for those who lost their life in the parliament attack. I don't want to express my feelings here, least a "true soldier" (who might have been awarded a gallantry award) gets disrespected.

The link the I pasted in the previous post has much better analysis on the incident. One can specifically note the following para:

"What was not revealed at the time was that Khukri, despite the known presence of Pakistani submarines, did not undertake evasive action and was sailing a straight course. No reason other than careless has been adduced to date."

Link: http://orbat.com/site/history/current_week_open/KHUKRI.pdf

urmiladuhan
December 16th, 2011, 06:05 PM
Below is the story about an Indian captain who went down with his ship during the 1971 war, the only Indian captain to go down with his vessel.

जब महेंद्रनाथ मुल्ला ने जल समाधि ली

रेहान फ़ज़ल, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली, गुरुवार, 15 दिसंबर, 2011 को 12:39 IST तक के समाचार


1971 में हर जगह वाहवाही लूटने के बावजूद कम से कम एक मौक़ा ऐसा आया जब पाकिस्तानी नौसेना भारतीय नौसेना पर भारी पड़ी.

नौसेना को अंदाज़ा था कि युद्ध शुरू होने पर पाकिस्तानी पनडुब्बियाँ मुंबई बंदरगाह को अपना निशाना बनाएंगी. इसलिए उन्होंने तय किया कि लड़ाई शुरू होने से पहले सारे नौसेना फ़्लीट को मुंबई से बाहर ले जाया जाए.

जब दो और तीन दिसंबर की रात को नौसेना के पोत मुंबई छोड़ रहे थे तो उन्हें यह अंदाज़ा ही नहीं था कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस हंगोर ठीक उनके नीचे उन्होंने डुबा देने के लिए तैयार खड़ी थी. उस पनडुब्बी में तैनात लेफ़्टिनेंट कमांडर और बाद मे रियर एडमिरल बने तसनीम अहमद याद करते हैं, "पूरा का पूरा भारतीय फ़्लीट हमारे सिर के ऊपर से गुज़रा और हम हाथ मलते रह गए क्योंकि हमारे पास हमला करने के आदेश नहीं थे क्योंकि युद्ध औपचारिक रूप से शुरू नहीं हुआ था. कंट्रोल रूम में कई लोगों ने टॉरपीडो फ़ायर करने के लिए बहुत ज़ोर डाला लेकिन हमने उनकी बात सुनी नहीं. हमला करना युद्ध शुरू करने जैसा होता. मैं उस समय मात्र लेफ़्टिनेंट कमांडर था. मैं अपनी तरफ़ से तो लड़ाई शुरू नहीं कर सकता था."

पाकिस्तानी पनडुब्बी उसी इलाक़े में घूमती रही. इस बीच गई और उसे ठीक करने के लिए उसे समुद्र की सतह पर आना पड़ा. 36 घंटों की लगातार मशक्कत के बाद पनडुब्बी ठीक कर ली गई. लेकिन उसकी ओर से भेजे संदेशों से भारतीय नौसेना को यह अंदाज़ा हो गया कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी दीव के तट के आसपास घूम रही है. नौसेना मुख्यालय ने आदेश दिया कि भारतीय जल सीमा में घूम रही इस पनडुब्बी को तुरंत नष्ट किया जाए और इसके लिए एंटी सबमरीन फ़्रिगेट आईएनएस खुखरी और कृपाण को लगाया गया. दोनों पोत अपने मिशन पर आठ दिसंबर को मुंबई से चले और नौ दिसंबर की सुबह होने तक उस इलाक़े में पहुँच गए जहाँ पाकिस्तानी पनडुब्बी के होने का संदेह था. टोह लेने की लंबी दूरी की अपनी क्षमता के कारण हंगोर को पहले ही खुखरी और कृपाण के होने का पता चल गया. यह दोनों पोत ज़िग ज़ैग तरीक़े से पाकिस्तानी पनडुब्बी की खोज कर रहे थे. हंगोर ने उनके नज़दीक आने का इंतज़ार किया. पहला टॉरपीडो उसने कृपाण पर चलाया. लेकिन टॉरपीडो उसके नीचे से गुज़र गया और फटा ही नहीं.

3000 मीटर से निशाना

यह टॉरपीडो 3000 मीटर की दूरी से फ़ायर किया गया था. भारतीय पोतों को अब हंगोर की स्थिति का अंदाज़ा हो गया था. हंगोर के पास विकल्प थे कि वह वहाँ से भागने की कोशिश करे या दूसरा टॉरपीडो फ़ायर करे. उसने दूसरा विकल्प चुना. तसनीम अहमद याद करते हैं, "मैंने हाई स्पीड पर टर्न अराउंड करके खुखरी पर पीछे से फ़ायर किया. डेढ़ मिनट की रन थी और मेरा टॉरपीडो खुखरी की मैगज़ीन के नीचे जा कर एक्सप्लोड हुआ और दो या तीन मिनट के भीतर जहाज़ डूबना शुरू हो गया." खुखरी में परंपरा थी कि रात आठ बजकर 45 मिनट के समाचार सभी इकट्ठा होकर एक साथ सुना करते थे ताकि उन्हें पता रहे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है. समाचार शुरू हुए, 'यह आकाशवाणी है, अब आप अशोक बाजपेई से समाचार...' समाचार शब्द पूरा नहीं हुआ था कि पहले टारपीडो ने खुखरी को हिट किया. कैप्टेन मुल्ला अपनी कुर्सी से गिर गए और उनका सिर लोहे से टकराया और उनके सिर से ख़ून बहने लगा. दूसरा धमाका होते ही पूरे पोत की बत्ती चली गई. कैप्टेन मुल्ला ने मनु शर्मा को आदेश दिया कि वह पता लगाएं कि क्या हो रहा है.

मनु ने देखा कि खुखरी में दो छेद हो चुके थे और उसमें तेज़ी से पानी भर रहा था. उसके फ़नेल से लपटें निकल रही थीं. उधर सब लेफ़्टिनेंट समीर काँति बसु भाग कर ब्रिज पर पहुँचे. उस समय कैप्टेन मुल्ला चीफ़ योमेन से कह रहे थे कि वह पश्चिमी नौसेना कमान के प्रमुख को सिग्नल भेजें कि खुखरी पर हमला हुआ है. बसु इससे पहले कि कुछ समझ पाते कि क्या हो रहा है पानी उनके घुटनों तक पहुँच गया था. लोग जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रहे थे. खुखरी का ब्रिज समुद्री सतह से चौथी मंज़िल पर था. लेकिन मिनट भर से कम समय में ब्रिज और समुद्र का स्तर बराबर हो चुका था.

कैप्टेन मुल्ला ने बसु की तरफ़ देखा और कहा, 'बच्चू नीचे उतरो.' बसु पोत के फ़ौलाद की सुरक्षा छोड़ कर अरब सागर की भयानक लहरों के बीच कूद गए. समुद्र का पानी बर्फ़ से भी ज़्यादा ठंडा था और समुद्र में पाँच-छह फ़ीट ऊँची लहरें उठ रही थीं.

मुल्ला ने जहाज़ छोड़ने से इनकार किया


उधर मनु शर्मा और लेफ़्टिनेंट कुंदनमल भी ब्रिज पर कैप्टेन मुल्ला के साथ थे. मुल्ला ने उनको ब्रिज से नीचे धक्का दिया. उन्होंने उनको भी साथ लाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. जब मनु शर्मा ने समुद्र में छलांग लगाई तो पूरे पानी में आग लगी हुई थी और उन्हे सुरक्षित बचने के लिए आग के नीचे से तैरना पड़ा. थोड़ी दूर जाकर मनु ने देखा कि खुखरी का अगला हिस्सा 80 डिग्री को कोण बनाते हुए लगभग सीधा हो गया है. पूरे पोत मे आग लगी हुई है और कैप्टेन मुल्ला अपनी सीट पर बैठे रेलिंग पकड़े हुए हैं और उनके हाथ में अब भी जली हुई सिगरेट है.
जब अंतत: खुखरी डूबा तो बहुत ज़बरदस्त सक्शन प्रभाव हुआ और वह अपने साथ कैप्टेन मुल्ला समेत सैकड़ों नाविकों और मलबे को नीचे ले गया. चारों तरफ़ मदद के लिए शोर मचा हुआ था लेकिन जब खुखरी आँखों से ओझल हुआ तो शोर कुछ देर के लिए थम सा गया. बचने वालों की आँखे जल रही थीं. समुद्र में तेल फैला होने के कारण लोग उल्टियाँ कर रहे थे.
खुखरी के डूबने के 40 मिनट बाद लेफ़्टिनेंट बसु को कुछ दूरी पर कुछ रोशनी दिखाई दी. उन्होंने उसकी तरफ़ तैरना शुरू कर दिया. जब वह उसके पास पहुँचे तो उन्होंनें पाया कि वह एक लाइफ़ राफ़्ट थी जिसमें 20 लोग बैठ सकते थे. एक-एक कर 29 लोग उन 20 लोगों की क्षमता वाली राफ़्ट पर चढ़े. उस समय रात के दस बज चुके थे. अब उम्मीद थी कि शायद ज़िंदगी बच जाए. राफ़्ट हवा और लहरों के साथ हिचकोले खाती रही. भाग्यवश राफ़्ट पर पीने का पानी और खाने के लिए चॉकलेट्स और बिस्कुट थे.


अगले दिन सुबह क़रीब 10 बजे उन्होंने अपने ऊपर एक हवाई जहाज़ को उड़ते देखा. उन्होंने अपनी कमीज़ें हिला कर और लाल रॉकेट फ़्लेयर्स फ़ायर कर उसका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की. लेकिन जहाज़ वापस चला गया. थोड़ी देर बाद दो और विमान आते दिखाई दिए. सब लेफ़्टिनेंट बसु और अहलुवालिया ने फिर वही ड्रिल दोहराई. इस बार विमान ने उनको देख लिया. लेकिन वह वापस चला गया. थोड़ी देर बाद उन्हें क्षितिज पर पानी के जहाज़ के तीन मस्तूल दिखाई दिए. यह जहाज़ आईएनएस कछाल था जिसे कैप्टेन ज़ाडू कमांड कर रहे थे. एक-एक कर सभी नाविकों को जहाज़ पर चढ़ाया गया. बचने वालों की संख्या थी 64. सभी को गर्म कंबल और गरमा-गरम चाय दी गई. इन लोगों ने पूरे 14 घंटे खुले आसमान में समुद्री लहरों को बीच बिताए थे. लेकिन इस बीच एक घायल नाविक टॉमस की मौत हो गई. उसके पार्थिव शरीर के तिरंगे में लिपटा कर उसे समुद्र में ही दफ़ना दिया गया. कुल मिला कर भारत के 174 नाविक और 18 अधिकारी इस ऑपरेशन में मारे गए.अगले कई दिनों तक भारतीय नौसेना हंगोर की तलाश में जुटी रही. हंगोर पर सवार एक नाविक के अनुसार भारतीय नौसेना ने हंगोर पर 156 डेप्थ चार्ज हमले किए, लेकिन यह पनडुब्बी इन सबसे बचते हुए 16 दिसंबर को सुरक्षित कराची पहुँची.


दोनों कमांडरों को वीरता पदक


इस मुक़ाबले में दोनों कमांडरों को उनके देश का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार मिला. कैप्टेन महेंद्रनाथ मुल्ला ने नौसेना की सर्वोच्च परंपरा का निर्वाह करते हुए अपना जहाज़ नहीं छोड़ा और जल समाधि ली. उनकी इस वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया. तसनीम अहमद को खुखरी को डुबाने के लिए पाकिस्तान की तरफ़ से सितार-ए-जुर्रत से सम्मानित किया गया. दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहला मौक़ा था, जब किसी पनडुब्बी ने किसी पोत को डुबोया था.


Source: http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2011/12/111215_1971_khukri_rf.shtml




Regarding cigarette : it is amazing how a person fending for life in deep waters noticed such a minute thing that too from a far away distance.

Regarding eatables: it is a real comfort to get such nice eatables in such harsh, life threatening conditions!

Arvindc
December 16th, 2011, 06:14 PM
Impressive, bhai. Pakistani hamesha se chhup ke waar karte rahe hain !!!

Well in this case they really deserve praise. They really were the winners. They managed to reach home safely despite all the efforts of an entire Indian fleet in hunting and destroying it.

From the link:

"How significant was the sinking of the Khukri? For one, it prevented the western fleet from launching a third debilitating missile attack on Karachi. All fleet assets were instead thrown into Operation Falcon, the unsuccessful hunt for the Hangor which lasted till the war ended."

"An immediate consequence of the sinking was the hotly opposed decision by the commander of the Mysore task group to abandon its attack on Gwader. Other ships’ captains tried to persuade the Flag to press on to Gwader; but of course it was his decision to make. There was considerable internal criticism within the Navy of the decision. Yet, who can say what would have happened if Mysore had pressed on."