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View Full Version : बदल गयी प्रेम की परिभाषा



navdeepkhatkar
February 22nd, 2012, 09:07 AM
बदल गयी देखो वो रस्मे .............. बदल गयी हैं वो कसमें
ना अब वो अल्फाज़ रहे ........... ... ना दिल के वो जज़्बात रहे
ना आँखों की वो शर्म रही ............. ना मन में अब वो मर्म रही
रोज़ बदल रही हैं बाहें गोरी ........... रोज़ हो रही है सीना ज़ोरी
रोज़ अब लग रहा बाज़ार है भइया .......रोज़ बिक रहा सामान है भइया
खेल है यह सब पैसों का ...............मोल नही यहाँ अब मेरे जैसे प्रेमी का
अकेला था ,अकेला ही रह जाऊँगा, तनिक भी नही गम इस बात का……….. क्या होगा मेरे बाद तेरा, मुझे तो डर है बस इस बात का

दिल तोड़कर जाने वाले सुन ले बस मेरी इतनी सी बात .....
हर कोई नही यहाँ मेरी तरह प्रेम का पुजारी ......

प्यार पर है आज "लोभ", "धन" और "वासना" भारी.......... आज ‘ मेरी’ है तो कल ‘तेरी’ भी बारी !!

jksangwan
February 22nd, 2012, 09:36 AM
बदल गयी देखो वो रस्मे .............. बदल गयी हैं वो कसमें
ना अब वो अल्फाज़ रहे ........... ... ना दिल के वो जज़्बात रहे
ना आँखों की वो शर्म रही ............. ना मन में अब वो मर्म रही
रोज़ बदल रही हैं बाहें गोरी ........... रोज़ हो रही है सीना ज़ोरी
रोज़ अब लग रहा बाज़ार है भइया .......रोज़ बिक रहा सामान है भइया
खेल है यह सब पैसों का ...............मोल नही यहाँ अब मेरे जैसे प्रेमी का
अकेला था ,अकेला ही रह जाऊँगा, तनिक भी नही गम इस बात का……….. क्या होगा मेरे बाद तेरा, मुझे तो डर है बस इस बात का

दिल तोड़कर जाने वाले सुन ले बस मेरी इतनी सी बात .....
हर कोई नही यहाँ मेरी तरह प्रेम का पुजारी ......

प्यार पर है आज "लोभ", "धन" और "वासना" भारी.......... आज ‘ मेरी’ है तो कल ‘तेरी’ भी बारी !!
If it is your original creation,then you are a great poet,otherwise who have created it. Poem is great.

navdeepkhatkar
February 22nd, 2012, 10:15 AM
If it is your original creation,then you are a great poet,otherwise who have created it. Poem is great.


Sangwan bhai .. this is not my creation .... if i m not wrong one of my collegue Abhishek has written it ...

SumitJattan
February 24th, 2012, 12:38 AM
Navdeep bhai honesty is a an integral part of Jat culture and you proved it ..... kudos from my side and people become more materialistic and money become the only parameter of one's success and failure and more or less being loved.

DrRajpalSingh
February 24th, 2012, 02:12 AM
बदल गयी देखो वो रस्मे .............. बदल गयी हैं वो कसमें
ना अब वो अल्फाज़ रहे ........... ... ना दिल के वो जज़्बात रहे
ना आँखों की वो शर्म रही ............. ना मन में अब वो मर्म रही
रोज़ बदल रही हैं बाहें गोरी ........... रोज़ हो रही है सीना ज़ोरी
रोज़ अब लग रहा बाज़ार है भइया .......रोज़ बिक रहा सामान है भइया
खेल है यह सब पैसों का ...............मोल नही यहाँ अब मेरे जैसे प्रेमी का
अकेला था ,अकेला ही रह जाऊँगा, तनिक भी नही गम इस बात का……….. क्या होगा मेरे बाद तेरा, मुझे तो डर है बस इस बात का

दिल तोड़कर जाने वाले सुन ले बस मेरी इतनी सी बात .....
हर कोई नही यहाँ मेरी तरह प्रेम का पुजारी ......

प्यार पर है आज "लोभ", "धन" और "वासना" भारी.......... आज ‘ मेरी’ है तो कल ‘तेरी’ भी बारी !!

Excellent piece of poetry.

navdeepkhatkar
February 24th, 2012, 08:18 AM
Navdeep bhai honesty is a an integral part of Jat culture and you proved it ..... kudos from my side and people become more materialistic and money become the only parameter of one's success and failure and more or less being loved.

Thnx Sumit bhai .... i didn't mention hi sname in the very first post itself as i was not sure about the writer,then i tried to google it , i didnt find any thing , so i thought the that it may be written by the person who send me the above poem .