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View Full Version : स्वामी कल्याण देव



sanjeev_balyan
July 14th, 2012, 10:08 PM
पश्चिमी उत्तर परदेश के जाट बाहुलय छेत्र मे स्वामी कल्याण देव ने सिखसा के छेत्र बहुत बड़ा योगदान दिया



तीन सदी के युगदृष्टा शिक्षा ऋषि ब्रह्मलीन स्वामी कल्याणदेव महाराज ने जीवनभर शुकदेव आश्रम का भोजन ग्रहण नहीं किया और न ही रिक्शा में बैठे। वह गरीब घरों से भिक्षा में मांग कर लाई गई रोटी ही खाते थे। स्वामी जी ने 129 वर्ष की आयु में 300 से अधिक शिक्षा केन्द्रों की स्थापना कर रिकार्ड कायम किया।
निष्काम कर्मयोगी तप त्याग और सेवा की साक्षात मूर्ति स्वामी कल्याणदेव महाराज का जन्म सन् 1876 में जिला बागपत के गांव कोताना में ननिहाल में हुआ था। उनका पालन पोषण मुजफ्फरनगर के गांव मुंडभर में हुआ। सन् 1900 में मुनि की रेती ऋषिकेश में गुरुदेव स्वामी पूर्णानंद ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दी। अपने 129 वर्ष के जीवनकाल में उन्होंने सौ वर्ष जनसेवा में गुजारे। स्वामी जी गांव-गांव में पैदल घूमते थे। उन्होंने करीब 300 शिक्षण संस्थाओं के साथ-साथ कृषि केन्द्रों, गऊशालाओं, वृद्ध आश्रम, चिकित्सालय आदि का निर्माण कराकर समाजसेवा में अपनी उत्कृष्ट छाप छोड़ी। ब्रह्मलीन स्वामी कल्याणदेव महाराज के शिष्य एवं उनके उत्तराधिकारी स्वामी ओमानंद महाराज ने बताया कि स्वामी कल्याणदेव को उनके सामाजिक कार्यो के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी ने 20 मार्च 1982 में पदमश्री से सम्मानित किया। इसके बाद 17 अगस्त 1994 को गुलजारी नंदा फाउंडेशन की ओर से तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें नैतिक पुरस्कार से सम्मानित किया। बाद में 30 मार्च 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने पद्मभूषण से सम्मानित किया। इसके बाद चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के दीक्षांत समारोह में उन्हें 23 जून 2002 को तत्कालीन राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री ने साहित्य वारिधि डीलिट की उपाधि प्रदान की।
ओमानंद महाराज ने बताया कि स्वामी कल्याणदेव महाराज ने जीवन भर शुकदेव आश्रम शुक्रताल में खाना नहीं खाया। वे पांच घरों से रोटी की भिक्षा लेकर एक रोटी गाय को, दूसरी रोटी कुत्ते को खिलाते थे, तीसरी रोटी पक्षियों के लिए छत पर डालते थे, बची दो रोटियों को वह पानी में भिगोकर खाते थे। गुड़ व मट्ठे का अधिक प्रयोग करते थे। एक बार संस्कृत विद्यालय के एक विद्यार्थी से उन्होंने आश्रम में रहते हुए दो रुपये देकर दूध लाने को कहा, तो विद्यार्थी ने गऊशाला से दूध लाकर दे दिया। उन्होंने तुरन्त ही दस रुपये दान पात्र में डलवाये।
स्वामी जी अपने जीवन में कभी भी रिक्शा में नहीं बैठे। उनका तर्क था कि रिक्शा मानव चालित है। इसमें आदमी आदमी को खींचता है। यह एक पाप है। वे लखनऊ व दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जाकर पैदल ही चला करते थे। स्वामी जी की दीर्घायु का राज उनका जीवन भर पैदल चलना था। वे शुक्रताल से मुजफ्फरनगर, हरिद्वार पैदल ही जाया करते थे।
स्वामी कल्याणदेव महाराज ने महात्मा गांधी के साथ स्वाधीनता संग्राम में भी भूमिका निभाई। सन 1915 में अहमदाबाद साबरमती आश्रम में स्वामी कल्याणदेव महाराज की पहली भेंट राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से हुई। उनसे देश सेवा की प्रेरणा लेकर गांव-गांव नंगे पैर पैदल चलकर ग्रामोत्थान के कार्य से जुड़े रहे।

sanjeev_balyan
July 14th, 2012, 11:31 PM
he was a brhamin, and died on 14 july 2004 at the age of 128 years