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View Full Version : What are The Puran's?



rajpaldular
August 17th, 2012, 01:41 PM
पुराण क्या है ?

सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्मा ने सर्वप्रथम स्वयं जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की, उसे पुराण के नाम से जाना जाता है। इस धर्मग्रंथ में लगभग एक अरब श्लोक हैं। यह बृहत् धर्मग्रंथ पुराण, देवलोक में आज भी मौजूद है। मानवता के हितार्थ महान संत कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने एक अरब श्लोकों वाले इस बृहत् पुराण को केवल चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया। इसके बाद उन्होंने एक बार फिर इस पुराण को अठारह खण्डों में विभक्त किया, जिन्हें अठारह पुराणों के रूप में जाना जाता है। ये पुराण इस प्रकार हैं :

1. ब्रह्म पुराण 2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. शिव पुराण
5. भागवत पुराण
6. भविष्य पुराण
7. नारद पुराण
8. मार्कण्डेय पुराण
9. अग्नि पुराण
10. ब्रह्मवैवर्त पुराण
11. लिंग पुराण
12. वराह पुराण
13. स्कंद पुराण
14. वामन पुराण
15. कूर्म पुराण
16. मत्स्य पुराण
17. गरुड़ पुराण
18. ब्रह्माण्ड पुराण

पुराण शब्द का शाब्दिक अर्थ है पुराना, लेकिन प्राचीनतम होने के बाद भी पुराण और उनकी शिक्षाएँ पुरानी नहीं हुई हैं, बल्कि आज के सन्दर्भ में उनका महत्त्व और बढ़ गया है। ये पुराण श्वांस के रूप में मनुष्य की जीवन-धड़कन बन गए हैं। ये शाश्वत हैं, सत्य हैं और धर्म हैं। मनुष्य जीवन इन्हीं पुराणों पर आधारित है।

पुराण प्राचीनतम धर्मग्रंथ होने के साथ-साथ ज्ञान, विवेक, बुद्धि और दिव्य प्रकाश का खज़ाना हैं। इनमें हमें प्राचीनतम् धर्म, चिंतन, इतिहास, समाज शास्त्र, राजनीति और अन्य अनेक विषयों का विस्तृत विवेचन पढ़ने को मिलता है। इनमें ब्रह्माण्ड (सर्ग) की रचना, क्रमिक विनाश और पुनर्रचना (प्रतिसर्ग), अनेक युगों (मन्वन्तर), सूर्य वंश और चन्द्र वंश का इतिहास और वंशावली का विशद वर्णन मिलता है। ये पुराण के साथ बदलते जीवन की विभिन्न अवस्थाओं व पक्षों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं जो वैदिक सभ्यता और सनातन धर्म को प्रदीप्त करते हैं। ये हमारी जीवनशैली और विचारधारा पर भी विशेष प्रभाव डालते हैं। गागर में सागर भर देना अच्छे रचनाकार की पहचान होती है। किसी रचनाकार ने अठारह पुराणों के सार को एक ही श्लोक में व्यक्त कर दिया गया है:


परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीड़नम्। अष्टादश पुराणानि व्यासस्य वचन।।

अर्थात्, व्यास मुनि ने अठारह पुराणों में दो ही बातें मुख्यत: कही हैं, परोपकार करना संसार का सबसे बड़ा पुण्य है और किसी को पीड़ा पहुँचाना सबसे बड़ा पाप है। जहाँ तक शिव पुराण का संबंध है, इसमें भगवान् शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं। सभी पुराणों में शिव पुराण को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होने का दर्जा प्राप्त है। इसमें भगवान् शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है।


http://a3.sphotos.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-ash4/s480x480/402007_4037041477886_1823020565_n.jpg (http://www.facebook.com/photo.php?fbid=4037041477886&set=a.1863147051884.266523.1037199797&type=1&relevant_count=1&ref=nf)

AbhikRana
August 17th, 2012, 10:00 PM
Rajpal ji,

Thank you so much for bringing us closer to our rich heritage. In the hustle and bustle of our rat race, we tend to be unaware of the vast holy literature which contains the solutions to all the problems that we face. I look forward to more such posts from you.

I AM PROUD TO BE A HINDU!

Warm regards,

Abhik

tarzon
August 17th, 2012, 10:05 PM
Puranas are the Mythical Hindu Gods stories....

As in the past the common people were unable to understand the meaning of Vedas and UpNishads so our great Hindu scholars has written down the Puranas so that the common people should also understand the teachings of Vedas and UpNishads.

dndeswal
August 17th, 2012, 10:48 PM
.
राजपाल जी, यह सब आपने एक वेबसाइट से लेकर यहां चिपका दिया है। पता नहीं किस अकलमंद ने यह लेख लिखा है ! पुराण कहां और कौन से देवलोक में रखे हैं ? वेदव्यास जी उनको कैसे इस धरती पर उठा कर लाए होंगे?

सच पूछो तो ये सब पुराण झूठ का एक पुलिंदा हैं । ये सब न तो प्राचीन हैं, न ही इनकी रचना ब्रह्मा ने की है और न ही इनमें एक अरब श्लोक हैं । पता है एक अरब कितना होता है ? - एक के आगे नौ शून्य (1000000000) यानि एक बिलियन !

एक श्लोक में दो लाइन होती हैं । इस लिहाज से एक पेज में हम औसतन दस श्लोक (या बीस लाइन) लिख सकते हैं । अगर एक मोटी सी किताब में (मान लीजिये) 500 पेज हों तो उसमें पांच हजार श्लोक ही लिखे जा सकते हैं । इस लिहाज से एक अरब श्लोक लिखने के लिए ऐसी-ऐसी बीस लाख किताबें चाहियें ! तो क्या ब्रह्मा जी ने यह पूरी बीस लाख मोटी किताबों की लाइब्रेरी बनाई थी और कहीं देवलोक में छुपा के रख दी? और अगर वेदव्यास जी ने इनको चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया होगा (जैसा कि लिखा है) तो इसके लिए कम से कम आठ सौ किताबें चाहियें (500 पेज वाली मोटी किताब). 800 को 18 (पुराण) से भाग करें तो लगभग 44.4 आता है। 44.4 x 500 होते हैं - 22200. तो क्या एक पुराण में 22200 पेज हैं? बताओ तो भला वे आजकल कौन सी दुकान पर मिलते हैं?

ये सब पुराण आज से दो-अढ़ाई हजार वर्ष पहले लिखे गए थे जब बौद्ध धर्म अपने चर्मोत्कर्ष पर था। अपनी रोजी-रोटी सुरक्षित करने के लिए पाखंडी ब्राह्मणों ने इन पुराणों की रचना की और खूब प्रचार किया । इन्हीं में लिखा है कि धरती शेषनाग के फन पर टिकी है, शूद्र और नारी को वेद मत पढ़ने दो, सूरज पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, हनुमान बंदर था, गणेश का मुंह हाथी का था, हर की पौड़ी पर अस्थियां बहाने से मरे हुए आदमी को मोक्ष मिलता है, अमावस और पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने से पुण्य मिलता है - और भी पता नहीं कितने झूठ लिखे हैं ।

फिलहाल इतना ही ।.

swaich
August 17th, 2012, 10:54 PM
Puranas are the Mythical Hindu Gods stories....

As in the past the common people were unable to understand the meaning of Vedas and UpNishads so our great Hindu scholars has written down the Puranas so that the common people should also understand the teachings of Vedas and UpNishads.

Et tu... :)

tarzon
August 17th, 2012, 10:58 PM
Sir,

You've total misconception about Purans. You have just seen the materialistic things of Purans.

Puranas also convey the teaching of Vedas and Upnishad just need to read the Purans more carefully.

As Puranas were meant for the common people so they were written in stories form so that commoner should find it interesting.


.
राजपाल जी, यह सब आपने एक वेबसाइट से लेकर यहां चिपका दिया है। पता नहीं किस अकलमंद ने यह लेख लिखा है ! पुराण कहां और कौन से देवलोक में रखे हैं ? वेदव्यास जी उनको कैसे इस धरती पर उठा कर लाए होंगे?

सच पूछो तो ये सब पुराण झूठ का एक पुलिंदा हैं । ये सब न तो प्राचीन हैं, न ही इनकी रचना ब्रह्मा ने की है और न ही इनमें एक अरब श्लोक हैं । पता है एक अरब कितना होता है ? - एक के आगे नौ शून्य (1000000000) यानि एक बिलियन !

एक श्लोक में दो लाइन होती हैं । इस लिहाज से एक पेज में हम औसतन दस श्लोक (या बीस लाइन) लिख सकते हैं । अगर एक मोटी सी किताब में (मान लीजिये) 500 पेज हों तो उसमें पांच हजार श्लोक ही लिखे जा सकते हैं । इस लिहाज से एक अरब श्लोक लिखने के लिए ऐसी-ऐसी बीस लाख किताबें चाहियें ! तो क्या ब्रह्मा जी ने यह पूरी बीस लाख मोटी किताबों की लाइब्रेरी बनाई थी और कहीं देवलोक में छुपा के रख दी? और अगर वेदव्यास जी ने इनको चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया होगा (जैसा कि लिखा है) तो इसके लिए कम से कम आठ सौ किताबें चाहियें (500 पेज वाली मोटी किताब). 800 को 18 (पुराण) से भाग करें तो लगभग 44.4 आता है। 44.4 x 500 होते हैं - 22200. तो क्या एक पुराण में 22200 पेज हैं? बताओ तो भला वे आजकल कौन सी दुकान पर मिलते हैं?

ये सब पुराण आज से दो-अढ़ाई वर्ष पहले लिखे गए थे जब बौद्ध धर्म अपने चर्मोत्कर्ष पर था। अपनी रोजी-रोटी सुरक्षित करने के लिए पाखंडी ब्राह्मणों ने इन पुराणों की रचना की और खूब प्रचार किया । इन्हीं में लिखा है कि धरती शेषनाग के फन पर टिकी है, शूद्र और नारी को वेद मत पढ़ने दो, सूरज पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, हनुमान बंदर था, गणेश का मुंह हाथी का था, हर की पौड़ी पर अस्थियां बहाने से मरे हुए आदमी को मोक्ष मिलता है, अमावस और पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने से पुण्य मिलता है - और भी पता नहीं कितने झूठ लिखे हैं ।

फिलहाल इतना ही ।.

tarzon
August 17th, 2012, 11:17 PM
bahisaab short hand mai nahi full form mai likho:tongue:


Et tu... :)

dndeswal
August 17th, 2012, 11:22 PM
Sir,

You've totally misconception about Purans. You have just seen the materialistic things of Purans.

Puranas also convey the teaching of Vedas and Upnishad just need to read the Purans more carefully.

As Puranas were meant for the common people so they were written in stories form so that commoner should find it interesting.

Have you studied a tiny portion of any of these Puranas? Have you studied some Sanskrit (the language of these Puranas? Can you quote some interesting story from one of these 18 Puranas? I can quote many uninteresting stories from these. I have studied
Sanskrit in my college life and know the hollowness of these satanic books which are responsible for creating hatred in Hindu society and downfall of our ancient culture, resulting in invasion of Muslim invaders and moreover, wilfully embracing Islam and Christianity by a large section of our fellow brethren in recent past.

.

tarzon
August 17th, 2012, 11:27 PM
If you'll take the wrong meaning then it's not the problem of the book, It's the problem of your understanding.

Reading and understanding are two different aspect. Try to understand the teaching rather then counting the word as it is.

Puranas are not considered as primary scriptures in Hinduism. Puranas are secondary, it is meant for general masses who couldnt understand Vedic Scriptures.Puranas consists of Stories which teaches morals.


http://www.indhistory.com/vedas-upanishads-puranas.html


The Puranas contain the essence of the
Vedas. They were written to impress the teachings of the Vedas onto the
masses and to generate devotion to God in them. They have five
characteristics: history, cosmology (with symbolical illustrations of
philosophical principles), secondary creation, genealogy of kings, and
Manvantaras (the period of Manu's rule consisting of 71 celestial
yugas).
The Puranas were meant, not for the
scholars, but for ordinary people who could not understand high
philosophy and could not study the Vedas. There is an emphasis on the
worship of Brahma (the creator), Vishnu (the preserver), Shiva (the
destroyer), Surya (the Sun God), Ganesha (the elephant headed god known
to be the remover of obstructions ), and Shakti (the goddess). All the
Puranas belong to the class of Suhrit-Sammitas, or the Friendly
Treatises, while the Vedas are called Prabhu-Sammitas or Commanding
Treatises with great authority.

If you'll say the Purans are crap that means simultaneously you are saying Vedas are also crap. As Puranas just convey the teaching of Vedas in simplest form.




Have you studied a tiny portion of any of these Puranas? Have you studied some Sanskrit (the language of these Puranas? Can you quote some interesting story from one of these 18 Puranas? I can quote many uninteresting stories from these. I have studied
Sanskrit in my college life and know the hollowness of these satanic books which are responsible for creating hatred in Hindu society and downfall of our ancient culture, resulting in invasion of Muslim invaders and moreover, wilfully embracing Islam and Christianity by a large section of our fellow brethren in recent past.

.

raka
August 17th, 2012, 11:28 PM
.
राजपाल जी, यह सब आपने एक वेबसाइट से लेकर यहां चिपका दिया है। पता नहीं किस अकलमंद ने यह लेख लिखा है ! पुराण कहां और कौन से देवलोक में रखे हैं ? वेदव्यास जी उनको कैसे इस धरती पर उठा कर लाए होंगे?

सच पूछो तो ये सब पुराण झूठ का एक पुलिंदा हैं । ये सब न तो प्राचीन हैं, न ही इनकी रचना ब्रह्मा ने की है और न ही इनमें एक अरब श्लोक हैं । पता है एक अरब कितना होता है ? - एक के आगे नौ शून्य (1000000000) यानि एक बिलियन !

एक श्लोक में दो लाइन होती हैं । इस लिहाज से एक पेज में हम औसतन दस श्लोक (या बीस लाइन) लिख सकते हैं । अगर एक मोटी सी किताब में (मान लीजिये) 500 पेज हों तो उसमें पांच हजार श्लोक ही लिखे जा सकते हैं । इस लिहाज से एक अरब श्लोक लिखने के लिए ऐसी-ऐसी बीस लाख किताबें चाहियें ! तो क्या ब्रह्मा जी ने यह पूरी बीस लाख मोटी किताबों की लाइब्रेरी बनाई थी और कहीं देवलोक में छुपा के रख दी? और अगर वेदव्यास जी ने इनको चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया होगा (जैसा कि लिखा है) तो इसके लिए कम से कम आठ सौ किताबें चाहियें (500 पेज वाली मोटी किताब). 800 को 18 (पुराण) से भाग करें तो लगभग 44.4 आता है। 44.4 x 500 होते हैं - 22200. तो क्या एक पुराण में 22200 पेज हैं? बताओ तो भला वे आजकल कौन सी दुकान पर मिलते हैं?

ये सब पुराण आज से दो-अढ़ाई वर्ष पहले लिखे गए थे जब बौद्ध धर्म अपने चर्मोत्कर्ष पर था। अपनी रोजी-रोटी सुरक्षित करने के लिए पाखंडी ब्राह्मणों ने इन पुराणों की रचना की और खूब प्रचार किया । इन्हीं में लिखा है कि धरती शेषनाग के फन पर टिकी है, शूद्र और नारी को वेद मत पढ़ने दो, सूरज पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, हनुमान बंदर था, गणेश का मुंह हाथी का था, हर की पौड़ी पर अस्थियां बहाने से मरे हुए आदमी को मोक्ष मिलता है, अमावस और पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने से पुण्य मिलता है - और भी पता नहीं कितने झूठ लिखे हैं ।

फिलहाल इतना ही ।.
देसवाल साहब न्यू मत करो ना त इनके सदमा लाग जागा :)

drkarminder
August 18th, 2012, 12:30 AM
ये ब्रह्मा,विष्णु...कित रह से ये....हमने आज तक नहीं फेटे....जहाँ तक science पहुची ह..इन सब का कोई असितितव नहीं ह..ये सब पुराने टाइम में लोगों के बनाये हुए काल्पनिक चरित्र हैं जब सभ्यता इतनी विकसित नहीं थी और लोग अन्धविश्वासी थे..लोग अपने को सांत्वना देने के लिए एक काल्पनिक चरित्र बना लेते थे जो उनके अनुसार उनकी मदद करता था.और समय के साथ ये चरित्र भगवान् बन गए.. हर एक जो चीज़ आज इस दुनिया में है उसका science के पास explanation है...और अगर आज explanation नहीं है तो इसकी केवल एक वजह है की science अब भी उतनी विकसित नहीं हुई है...

for example :
superstition: mata(chicken pox) ka rog ek baar mata ke darshan karne per door ho jata hai..

scientific fact: chicken pox disease antigen causes abtibody production in our body as defence mechanism that give life long immunity to this disease..so next time when body is exposed to this antigen,its deactivated by antibodies. hence a man who had chickenpox in life,never gets this disease for rest of life..he gets life long immunity after first exposure to this disease.

ab mata ek artificial character(GOD) ban gayi jo rog bhagati hai..isi tarah har cheez bani hai..

i dont believe in GOD i just believe in faith..

dndeswal
August 18th, 2012, 12:51 AM
http://www.indhistory.com/vedas-upanishads-puranas.html


The Puranas contain the essence of the
Vedas. They were written to impress the teachings of the Vedas onto the
The Puranas were meant, not for the
scholars, but for ordinary people who could not understand high
philosophy and could not study the Vedas. ....
[B]If you'll say the Purans are crap that means simultaneously you are saying Vedas are also crap. As Puranas just convey the teaching of Vedas in simplest form.


No Vivek, not at all. These 18 Puranas have nothing to do with Vedas. Nor do they explain Vedic ideas or Vedic meaning to ordinary people. These 18 Puranas were written by a group of selfish, half-literate Brahmins solely to befool the illiterate, common masses. Vedas are more simple and easy to understand.

And these type of websites lead us nowhere !


देसवाल साहब न्यू मत करो ना त इनके सदमा लाग जागा :)


लागै सै तै लागण दे राकेश । म्हारी कौम में भी अन्धविश्वासी लोगां का कोए तोड़ा ना - एकाध लाख नहीं, करोड़ां में सैं जो इन पुराणां पै विश्वास करकै हर साल हरद्वार जावैं सैं कावड़ ल्यावण !

.

kapdal
August 18th, 2012, 01:33 AM
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राजपाल जी, यह सब आपने एक वेबसाइट से लेकर यहां चिपका दिया है। पता नहीं किस अकलमंद ने यह लेख लिखा है ! पुराण कहां और कौन से देवलोक में रखे हैं ? वेदव्यास जी उनको कैसे इस धरती पर उठा कर लाए होंगे?

सच पूछो तो ये सब पुराण झूठ का एक पुलिंदा हैं । ये सब न तो प्राचीन हैं, न ही इनकी रचना ब्रह्मा ने की है और न ही इनमें एक अरब श्लोक हैं । पता है एक अरब कितना होता है ? - एक के आगे नौ शून्य (1000000000) यानि एक बिलियन !

एक श्लोक में दो लाइन होती हैं । इस लिहाज से एक पेज में हम औसतन दस श्लोक (या बीस लाइन) लिख सकते हैं । अगर एक मोटी सी किताब में (मान लीजिये) 500 पेज हों तो उसमें पांच हजार श्लोक ही लिखे जा सकते हैं । इस लिहाज से एक अरब श्लोक लिखने के लिए ऐसी-ऐसी बीस लाख किताबें चाहियें ! तो क्या ब्रह्मा जी ने यह पूरी बीस लाख मोटी किताबों की लाइब्रेरी बनाई थी और कहीं देवलोक में छुपा के रख दी? और अगर वेदव्यास जी ने इनको चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया होगा (जैसा कि लिखा है) तो इसके लिए कम से कम आठ सौ किताबें चाहियें (500 पेज वाली मोटी किताब). 800 को 18 (पुराण) से भाग करें तो लगभग 44.4 आता है। 44.4 x 500 होते हैं - 22200. तो क्या एक पुराण में 22200 पेज हैं? बताओ तो भला वे आजकल कौन सी दुकान पर मिलते हैं?

ये सब पुराण आज से दो-अढ़ाई वर्ष पहले लिखे गए थे जब बौद्ध धर्म अपने चर्मोत्कर्ष पर था। अपनी रोजी-रोटी सुरक्षित करने के लिए पाखंडी ब्राह्मणों ने इन पुराणों की रचना की और खूब प्रचार किया । इन्हीं में लिखा है कि धरती शेषनाग के फन पर टिकी है, शूद्र और नारी को वेद मत पढ़ने दो, सूरज पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, हनुमान बंदर था, गणेश का मुंह हाथी का था, हर की पौड़ी पर अस्थियां बहाने से मरे हुए आदमी को मोक्ष मिलता है, अमावस और पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने से पुण्य मिलता है - और भी पता नहीं कितने झूठ लिखे हैं ।

फिलहाल इतना ही ।.

एक दम लोजिकल अनैलिसिस

deshi-jat
August 18th, 2012, 02:06 AM
Deswal ji,

A little correction.....दो-अढ़ाई हज़ार वर्ष......... would be more appropriate


.

.....ये सब पुराण आज से दो-अढ़ाई वर्ष पहले लिखे गए थे जब बौद्ध धर्म अपने चर्मोत्कर्ष पर था। अपनी रोजी-रोटी सुरक्षित करने के लिए पाखंडी ब्राह्मणों ने इन पुराणों की रचना की और खूब प्रचार किया । इन्हीं में लिखा है कि धरती शेषनाग के फन पर टिकी है, शूद्र और नारी को वेद मत पढ़ने दो, सूरज पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, हनुमान बंदर था, गणेश का मुंह हाथी का था, हर की पौड़ी पर अस्थियां बहाने से मरे हुए आदमी को मोक्ष मिलता है, अमावस और पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने से पुण्य मिलता है - और भी पता नहीं कितने झूठ लिखे हैं ।

फिलहाल इतना ही ।.

deependra
August 18th, 2012, 04:15 AM
Bhai Vivek,
Purans have nothing to do with Vedas and their teachings. They are not that old and just 2 to 2 and half thousands old as mentioned by Deswal uncle ji.
In fact, they are the reason behind ThagVidya and poplila in our country. I have read some excerpts of few Purans and you will find the stuff in them which you can't even read in the presence of others. Better not to comment further but they are all absurd books and have no relation with our Vedic Literature.
They were not written by Ved Vyas but some BopeDev authored them.

AbhikRana
August 18th, 2012, 06:25 AM
Well Rajpal ji,

It seems the response to this thread has not been encouraging.

No matter what, I am still thankful to you for your effort.

Also with regard to a particular reply by a particular member, it seems people do not want to let go a single opportunity to take potshots. It seems more like a game of one - upmanship.

Being the oldest and richest religion, I am proud to be a part of it. Though I do not get time to read the holy scriptures, I would like to read them sooner than later. At the same time, whether their views agree with mine or not, I admire and appreciate the fact that at least some of the members here have made the efforts to read through the holy scriptures.

Rgds,

Abhik

पुराण क्या है ?

सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्मा ने सर्वप्रथम स्वयं जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की, उसे पुराण के नाम से जाना जाता है। इस धर्मग्रंथ में लगभग एक अरब श्लोक हैं। यह बृहत् धर्मग्रंथ पुराण, देवलोक में आज भी मौजूद है। मानवता के हितार्थ महान संत कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने एक अरब श्लोकों वाले इस बृहत् पुराण को केवल चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया। इसके बाद उन्होंने एक बार फिर इस पुराण को अठारह खण्डों में विभक्त किया, जिन्हें अठारह पुराणों के रूप में जाना जाता है। ये पुराण इस प्रकार हैं :

1. ब्रह्म पुराण 2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. शिव पुराण
5. भागवत पुराण
6. भविष्य पुराण
7. नारद पुराण
8. मार्कण्डेय पुराण
9. अग्नि पुराण
10. ब्रह्मवैवर्त पुराण
11. लिंग पुराण
12. वराह पुराण
13. स्कंद पुराण
14. वामन पुराण
15. कूर्म पुराण
16. मत्स्य पुराण
17. गरुड़ पुराण
18. ब्रह्माण्ड पुराण

पुराण शब्द का शाब्दिक अर्थ है पुराना, लेकिन प्राचीनतम होने के बाद भी पुराण और उनकी शिक्षाएँ पुरानी नहीं हुई हैं, बल्कि आज के सन्दर्भ में उनका महत्त्व और बढ़ गया है। ये पुराण श्वांस के रूप में मनुष्य की जीवन-धड़कन बन गए हैं। ये शाश्वत हैं, सत्य हैं और धर्म हैं। मनुष्य जीवन इन्हीं पुराणों पर आधारित है।

पुराण प्राचीनतम धर्मग्रंथ होने के साथ-साथ ज्ञान, विवेक, बुद्धि और दिव्य प्रकाश का खज़ाना हैं। इनमें हमें प्राचीनतम् धर्म, चिंतन, इतिहास, समाज शास्त्र, राजनीति और अन्य अनेक विषयों का विस्तृत विवेचन पढ़ने को मिलता है। इनमें ब्रह्माण्ड (सर्ग) की रचना, क्रमिक विनाश और पुनर्रचना (प्रतिसर्ग), अनेक युगों (मन्वन्तर), सूर्य वंश और चन्द्र वंश का इतिहास और वंशावली का विशद वर्णन मिलता है। ये पुराण के साथ बदलते जीवन की विभिन्न अवस्थाओं व पक्षों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं जो वैदिक सभ्यता और सनातन धर्म को प्रदीप्त करते हैं। ये हमारी जीवनशैली और विचारधारा पर भी विशेष प्रभाव डालते हैं। गागर में सागर भर देना अच्छे रचनाकार की पहचान होती है। किसी रचनाकार ने अठारह पुराणों के सार को एक ही श्लोक में व्यक्त कर दिया गया है:


परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीड़नम्। अष्टादश पुराणानि व्यासस्य वचन।।

अर्थात्, व्यास मुनि ने अठारह पुराणों में दो ही बातें मुख्यत: कही हैं, परोपकार करना संसार का सबसे बड़ा पुण्य है और किसी को पीड़ा पहुँचाना सबसे बड़ा पाप है। जहाँ तक शिव पुराण का संबंध है, इसमें भगवान् शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं। सभी पुराणों में शिव पुराण को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होने का दर्जा प्राप्त है। इसमें भगवान् शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है।




http://a3.sphotos.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-ash4/s480x480/402007_4037041477886_1823020565_n.jpg (http://www.facebook.com/photo.php?fbid=4037041477886&set=a.1863147051884.266523.1037199797&type=1&relevant_count=1&ref=nf)

deshi-jat
August 18th, 2012, 07:52 AM
भाई डाक्टर, आपका उदाहरण किमै समझ मै ना बैठ्या. फेर तो यो खांसी, ज़ुखाम, बुखार बी एक बार होए पाछे, पूरी जिंदगी नहीं होणा चाहिए. अक किमै गलत कही? इनके एंटीज़न-एंटीबड़ी नै कुण नाट ज्या सै बता?


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for example :
superstition: mata(chicken pox) ka rog ek baar mata ke darshan karne per door ho jata hai..

scientific fact: chicken pox disease antigen causes abtibody production in our body as defence mechanism that give life long immunity to this disease..so next time when body is exposed to this antigen,its deactivated by antibodies. hence a man who had chickenpox in life,never gets this disease for rest of life..he gets life long immunity after first exposure to this disease.

..

drkarminder
August 18th, 2012, 09:44 AM
भाई डाक्टर, आपका उदाहरण किमै समझ मै ना बैठ्या. फेर तो यो खांसी, ज़ुखाम, बुखार बी एक बार होए पाछे, पूरी जिंदगी नहीं होणा चाहिए. अक किमै गलत कही? इनके एंटीज़न-एंटीबड़ी नै कुण नाट ज्या सै बता?Bhai khansi.jukam,bukhar r not disease...there r syptoms..jaise chickenpox mein bhi bukhar aata hai..Every disease produce antibodies bt fr very short period,after the diseas is over they disappear from blood or aapkke wo rog dubara ho sake se life mein kade bi..bt chickenpox is d disease that produce antibodies that stay lifelong in blood..to ek baar apka chickenpox ho gaya to pher zindagi mein kade na ho...zabardasti karoge to bhi na ho..
Ab uske piche andhwiswas ye tha ki ek baar mata ke darshan karlo pher yo rog kade na ho..Ye to bas ek udharan hai..aise bahut se aadambar hai,aaj bi or bahut se padhe likhe logon mein bhi..
Scientists are nw searching the GOD paticles nd r very close to it that wt created mass nd hw mass and gravity combine go produce weight...nd what is matter..

rajpaldular
August 18th, 2012, 11:27 AM
श्री अभिक राणा जी ! धर्म में किसी की रूचि रही ही नहीं. मुझे बहुत दुःख से लिखना पड़ रहा है कि जब सनातन (हिन्दू) धर्म ही नहीं बचेगा तो तो जाट भी नहीं बचेंगे.


दयानंद देसवाल जी ! ये १८ पुराण मेरे तो लिखे हुए हैं नहीं, कॉपी पेस्ट भी है तो क्या हुआ?
मैं देखना चाहता था कि सनातन धर्म में किसकी कितनी रूचि है? मेरा जो उद्देश्य था वो मेरा पूरा हो गया.






Well Rajpal ji,

It seems the response to this thread has not been encouraging.

No matter what, I am still thankful to you for your effort.

Also with regard to a particular reply by a particular member, it seems people do not want to let go a single opportunity to take potshots. It seems more like a game of one - upmanship.

Being the oldest and richest religion, I am proud to be a part of it. Though I do not get time to read the holy scriptures, I would like to read them sooner than later. At the same time, whether their views agree with mine or not, I admire and appreciate the fact that at least some of the members here have made the efforts to read through the holy scriptures.

Rgds,

Abhik

deshi-jat
August 18th, 2012, 11:33 AM
How come? Influenza/flu/common cold (ज़ुखाम) is a viral infectious disease and same is the smallpox. Even school text books state so. Now one produces lifelong immunity and other didn’t. Why so much disparity?



Bhai khansi.jukam,bukhar r not disease...there r syptoms..jaise chickenpox mein bhi bukhar aata hai..Every disease produce antibodies bt fr very short period,after the diseas is over they disappear from blood or aapkke wo rog dubara ho sake se life mein kade bi..bt chickenpox is d disease that produce antibodies that stay lifelong in blood..to ek baar apka chickenpox ho gaya to pher zindagi mein kade na ho...zabardasti karoge to bhi na ho..
Ab uske piche andhwiswas ye tha ki ek baar mata ke darshan karlo pher yo rog kade na ho..Ye to bas ek udharan hai..aise bahut se aadambar hai,aaj bi or bahut se padhe likhe logon mein bhi..
Scientists are nw searching the GOD paticles nd r very close to it that wt created mass nd hw mass and gravity combine go produce weight...

singhvp
August 18th, 2012, 12:58 PM
न्यू तै राजपाल जी नै भी बेरा सै अक ये पुराण-वुरान सब पोप लीला सै जो पाखंडी पण्डे पुजरियाँ नै फैला राखी सै I पर भाई या पोप लीला आज की सिद्धांतहीन राजनीती को जिंदा रखने के लिए बहुत जरूरी है I इसलिए क्यों किसी के पेट पर लात मारो सो, सच क्यों ना मान लेते उसनै जो राजपाल जी झूठ-साच छाप रे सें I उनकी भी कोई राजनैतिक मजबूरी हो सकती है I बाकी यो तो सबने बेरा सै कि ये सब अंधविश्वास और मनघडंत कहानियाँ हैं जो वैज्ञानिक तर्क, सृष्टि सृज़न और मानवीय विकास की विभिन्न परतों के एतिहासिक साक्ष्यों से मेल नहीं खाती I पर जिस सफाई और रफ़्तार से राजपाल जी और उनके कुछ सहयोगी धर्म का प्रयोग राजनैतिक प्रयोजन से इस जाटलैंड नामक मंच के द्वारा कर रहे हैं उसका कोई सानी नहीं I Goebbels अगर जिंदा होता तो वो भी इनको अपना गुरु मान लेता I

राजपाल जी अगर आपके पास पुराणों की कोई सोफ्ट-कॉपी पड़ी हो तो circulate कर देना I

rajpaldular
August 18th, 2012, 01:08 PM
न्यू तै राजपाल जी नै भी बेरा सै अक ये पुराण-वुरान सब पोप लीला सै जो पाखंडी पण्डे पुजरियाँ नै फैला राखी सै I पर भाई या पोप लीला आज की सिद्धांतहीन राजनीती को जिंदा रखने के लिए बहुत जरूरी है I इसलिए क्यों किसी के पेट पर लात मारो सो, सच क्यों ना मान लेते उसनै जो राजपाल जी झूठ-साच छाप रे सें I उनकी भी कोई राजनैतिक मजबूरी हो सकती है I बाकी यो तो सबने बेरा सै कि ये सब अंधविश्वास और मनघडंत कहानियाँ हैं जो वैज्ञानिक तर्क, सृष्टि सृज़न और मानवीय विकास की विभिन्न परतों के एतिहासिक साक्ष्यों से मेल नहीं खाती I पर जिस सफाई और रफ़्तार से राजपाल जी और उनके कुछ सहयोगी धर्म का प्रयोग राजनैतिक प्रयोजन से इस जाटलैंड नामक मंच के द्वारा कर रहे हैं उसका कोई सानी नहीं I Goebbels अगर जिंदा होता तो वो भी इनके अपना गुरु मान लेता I

राजपाल जी अगर आपके पास पुराणों की कोई सोफ्ट-कॉपी पड़ी हो तो circulate कर देना I



हा हा हा हा !!!!!!!!!
बहुत बढ़िया..
विजय पाल सिंह जी ! अभी तो मैं ऑफिस से निकल रहा हूँ. सोमवार अथवा मंगलवार को मिलेंगे.

drkarminder
August 18th, 2012, 04:31 PM
krishan if i will start describing the disease here..it will not good as the thread topic is not disease or health..its about vedas nd purans..if u want any clarification..give me ur mail id ..i will mail u..or u can come to health section..we can discuss there..

puneetlakra
August 18th, 2012, 08:35 PM
I completely agree with Deshwal ji,
Lets look it in another way , If we accecpts that puran's have one billion shalok,then

1000000000(one billion)x 2 =2000000000 ( total no of lines)because each shalok contains two lines
1000000000(shloks)x 30 seconds ( if we write one shalok then we take almost 30 seconds of time)
30000000000 seconds total time to write all shloks with out taking any rest
30000000000/3600 ( one hour have 3600 seconds)
8333333.3 hours , lets change it in no. of days
8333333.3/24, and we get
347222.22 no days , again change it in years and we get
347222.22/365 days = 951.29 yrs
How it is possible to write 951 yrs without taking rest, certainly not logical even you can say not possible
And imagine the weight of all books having 2000000000 (lines),
If 20 lines on one page (one side ) ,
Total no. of pages used is ,
2000000000/20x2( written on both sides)
50000000 ( total no. pages)
50000000/500 ( A4 size paper bundle have 2.3 kg wt.)but the ancient page may be heavier then this example
100000 no bundles and the wt. of all is
100000x2.3 kg
230 tonnes who carried this weight , it again impossible thing , how maharishi Vedvyash ji carry all puran's to earth




.
राजपाल जी, यह सब आपने एक वेबसाइट से लेकर यहां चिपका दिया है। पता नहीं किस अकलमंद ने यह लेख लिखा है ! पुराण कहां और कौन से देवलोक में रखे हैं ? वेदव्यास जी उनको कैसे इस धरती पर उठा कर लाए होंगे?

सच पूछो तो ये सब पुराण झूठ का एक पुलिंदा हैं । ये सब न तो प्राचीन हैं, न ही इनकी रचना ब्रह्मा ने की है और न ही इनमें एक अरब श्लोक हैं । पता है एक अरब कितना होता है ? - एक के आगे नौ शून्य (1000000000) यानि एक बिलियन !

एक श्लोक में दो लाइन होती हैं । इस लिहाज से एक पेज में हम औसतन दस श्लोक (या बीस लाइन) लिख सकते हैं । अगर एक मोटी सी किताब में (मान लीजिये) 500 पेज हों तो उसमें पांच हजार श्लोक ही लिखे जा सकते हैं । इस लिहाज से एक अरब श्लोक लिखने के लिए ऐसी-ऐसी बीस लाख किताबें चाहियें ! तो क्या ब्रह्मा जी ने यह पूरी बीस लाख मोटी किताबों की लाइब्रेरी बनाई थी और कहीं देवलोक में छुपा के रख दी? और अगर वेदव्यास जी ने इनको चार लाख श्लोकों में सम्पादित किया होगा (जैसा कि लिखा है) तो इसके लिए कम से कम आठ सौ किताबें चाहियें (500 पेज वाली मोटी किताब). 800 को 18 (पुराण) से भाग करें तो लगभग 44.4 आता है। 44.4 x 500 होते हैं - 22200. तो क्या एक पुराण में 22200 पेज हैं? बताओ तो भला वे आजकल कौन सी दुकान पर मिलते हैं?

ये सब पुराण आज से दो-अढ़ाई हजार वर्ष पहले लिखे गए थे जब बौद्ध धर्म अपने चर्मोत्कर्ष पर था। अपनी रोजी-रोटी सुरक्षित करने के लिए पाखंडी ब्राह्मणों ने इन पुराणों की रचना की और खूब प्रचार किया । इन्हीं में लिखा है कि धरती शेषनाग के फन पर टिकी है, शूद्र और नारी को वेद मत पढ़ने दो, सूरज पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, हनुमान बंदर था, गणेश का मुंह हाथी का था, हर की पौड़ी पर अस्थियां बहाने से मरे हुए आदमी को मोक्ष मिलता है, अमावस और पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने से पुण्य मिलता है - और भी पता नहीं कितने झूठ लिखे हैं ।

फिलहाल इतना ही ।.

jaisingh318
August 18th, 2012, 10:04 PM
Lakra bhai..............hissab ka challa pad diya or dekhe jayge :)

dndeswal
August 18th, 2012, 11:45 PM
यहां यह बता दूं कि शिवपुराण और भागवत पुराण थोड़े लम्बे हैं और गरुड़ पुराण और मत्स्य पुराण की लंबाई बहुत कम ही है । कुल मिलाकर, अगर मोटे अक्षरों में छपाई की जाए, तो इन सारे 18 पुराणों में चार-पांच हजार से ज्यादा पेज नहीं हैं । यह बात इनके मूल पाठ की है यानि Original version (Sanskrit text only). आजकल संस्कृत पाठ के साथ इनका हिन्दी अनुवाद भी लिखा होता है और साथ ही लंबी-चौड़ी टीका टिप्पणी भी हिन्दी में होती है, इसलिये एक किताब बड़ी मोटी नजर आती है ।

अगर हिन्दी अनुवाद के साथ देखें तो इन सारे 18 पुराणों में ज्यादा से ज्यादा बारह-तेरह हजार पेज होंगे - बस ! जिनको शक है वे किसी लाइब्रेरी में देख लें (अगर मिले तो)। नहीं तो इनको कुछ भोंदू पंडित ही घर में रखते हैं और किसी को दिखाते भी नहीं ! ऐसे भोंदू पंडित ही हमें बहकाते हैं कि महाभारत को घर में मत रखो, घर में कलह हो जायेगा । वैसे कौन सा कम हो रहा है? जब महाभारत का एक छोटा सा चैप्टर या अध्याय (गीता) घर में रखते हो तो पूरी किताब रखने से कौन सा अशुभ काम हो जायेगा?

एक पंडितजी शिवपुराण की कथा सुना रहे थे और कई सारे भक्तजन सुन रहे थे । कथा कुछ यूं थी -

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शिवजी और पार्वती के ब्याह में सारे देवी-देवताओं को बुलाया गया। बारी-बारी सब देवताओं की पूजा की गई। जब कई देवताओं की पूजा हो चुकी तो यज्ञकर्ता को अपनी भूल मालूम हुई कि गणेश पूजा तो हुई ही नहीं जो कि विवाह के अवसर पर सबसे पहले होनी चाहिये थी। फिर गणेश जी को पूजास्थल पर बिठाया और उनसे क्षमाप्रार्थना करके उनकी पूजा शुरू की......
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जब पंडित जी ने यह गणेशपूजा वाली बात शुरू की तो तो एक जाटराम (जो कथा सुन रहा था) उठा और पंडित से पूछने लगा - पंडितजी, हमने तो सुना है कि गणेश शिवजी का बेटा था । फिर बाप के ब्याह में बेटा कहां से आ गया?

पंडितजी के पास कोई जवाब नहीं ! झुंझलाकर बोला - देवताओं के विषय में कोई शंका नहीं करनी चाहिये।

शंका क्यूं नहीं करनी चाहिये? जो बात तर्क पर खरी नहीं उतरती उसे स्वीकार मत करो चाहे वह किसी भी किताब में क्यों न लिखी हो।

अब खुद ही सोच लो कि ये 18 पुराण झूठ के पुलिंदे हैं या और कुछ और?

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tarzon
August 19th, 2012, 10:16 AM
Sir,

Half-truth is more dangerous than falsehood. I can bet nobody here ever read any single complete puran but still they are opposing here by just reading some excerpts.

Puranas have everything to do with Vedas and I never seen any household which organize the path of Puranas in their house. So here is no question that Brahmin written them for selfish reason because Purans are also not so popular in household.


No Vivek, not at all. These 18 Puranas have nothing to do with Vedas. Nor do they explain Vedic ideas or Vedic meaning to ordinary people. These 18 Puranas were written by a group of selfish, half-literate Brahmins solely to befool the illiterate, common masses. Vedas are more simple and easy to understand.

And these type of websites lead us nowhere !

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tarzon
August 19th, 2012, 10:17 AM
Have you read any complete Puran???


Bhai Vivek,
Purans have nothing to do with Vedas and their teachings. They are not that old and just 2 to 2 and half thousands old as mentioned by Deswal uncle ji.
In fact, they are the reason behind ThagVidya and poplila in our country. I have read some excerpts of few Purans and you will find the stuff in them which you can't even read in the presence of others. Better not to comment further but they are all absurd books and have no relation with our Vedic Literature.
They were not written by Ved Vyas but some BopeDev authored them.

deependra
August 19th, 2012, 12:30 PM
Have you read any complete Puran???
No offence, but did you even read excerpts?? I can give you couple of examples to prove that they are nothing but a bundle of untrue stories.

tarzon
August 19th, 2012, 01:01 PM
Yes I've read such excerpts as well. But Is those excerpts define the complete Puran? Who is claiming here they are true stories??? Off-course they are mythical stories. But you are just reading the some sentences which match with your views and ignoring the whole Purans which also convey lots of teaching and morals and truth of life. Every story reflect a message and teaching and there are 1000's of message and teaching in purans. You need to focus on teaching rather then focusing that Ganesha have head of Elephant and Lord Brhama has said this and that.


No offence, but did you even read excerpts?? I can give you couple of examples to prove that they are nothing but a bundle of untrue stories.

vicky84
August 19th, 2012, 01:25 PM
न्यू तै राजपाल जी नै भी बेरा सै अक ये पुराण-वुरान सब पोप लीला सै जो पाखंडी पण्डे पुजरियाँ नै फैला राखी सै I पर भाई या पोप लीला आज की सिद्धांतहीन राजनीती को जिंदा रखने के लिए बहुत जरूरी है I इसलिए क्यों किसी के पेट पर लात मारो सो, सच क्यों ना मान लेते उसनै जो राजपाल जी झूठ-साच छाप रे सें I उनकी भी कोई राजनैतिक मजबूरी हो सकती है I बाकी यो तो सबने बेरा सै कि ये सब अंधविश्वास और मनघडंत कहानियाँ हैं जो वैज्ञानिक तर्क, सृष्टि सृज़न और मानवीय विकास की विभिन्न परतों के एतिहासिक साक्ष्यों से मेल नहीं खाती I पर जिस सफाई और रफ़्तार से राजपाल जी और उनके कुछ सहयोगी धर्म का प्रयोग राजनैतिक प्रयोजन से इस जाटलैंड नामक मंच के द्वारा कर रहे हैं उसका कोई सानी नहीं I Goebbels अगर जिंदा होता तो वो भी इनको अपना गुरु मान लेता I

राजपाल जी अगर आपके पास पुराणों की कोई सोफ्ट-कॉपी पड़ी हो तो circulate कर देना I

Waise isme bhi koi aascharaye nahi hai ki bharat mei log kisi bhi thug ki baaton pe asaani se vishvaas kar lete hain. Sai Baba se lekar pata nahi kaun kaun fuddu bana gaya logon ko aur paisa loot gaya. Lekin logon ki ankhein nahi khulti. Abhi Nirmal Baba ke baad Radhe Maa ka bhi pata chala hai.

राधे मां के दर हाजिरी लगाते हैं ये जाने-माने सेलीब्रिटी


नई दिल्ली. अजीबो-गरीब उपाय बताकर लोगों का दुख दूर करने का दावा करने वाले निर्मलजीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा के बाद राधे मां की चर्चा जोरों पर है। इन्हें दुर्गा का अवतार बताया जा रहा है। ये न तो कुछ बोलती हैं और न कोई प्रवचन देती हैं, लेकिन इनकी नजरों का कायल हर कोई है।पंजाब के होशियापुर की रहने वाली इस महिला के आयोजनों में लाखों लोग शरीक होते हैं। शहर भर में बड़े-बड़े बैनर पोस्टर लगाकर इनका प्रचार किया जाता है। इनके भक्तों की सूची बड़े-बड़े सेलीब्रिटी का नाम आता है। इनमें पॉप सिंहगदलेर मेंहदी, भोजपुरी फिल्मों के शहंशाह मनोज तिवारी, टीवी कलाकार डॉली बिन्द्रा, गायक हंसराज हंस, एड गुरू प्रहलाद कक्कड़ और ऑल इंडिया एंटी टेररिस्ट फ्रंट के अध्यक्ष एमएस बिट्टा आदि है।राधे मां के लिए बड़े शहरों में जागरण का आयोजन किया जाता है। यहां फ्री लंगर का आयोजन होता है। बड़े-बड़े गायक इनकी श्रद्धा में भक्ति संगीत प्रस्तुत करते हैं। इनमें भजन सम्राट अनूप जलोटा, विनोद अग्रवाल, अरविंदर सिंह, शार्दुल सिंकदर, मास्टर सलीम, पन्ना गिल, लखबीर सिंह लख्खा, अनुराधा पौडवाल, रूप कुमार राठौड़, नरेंद्र चंचल आदि का नाम प्रमुख है।

नई दिल्ली. निर्मल बाबा के नुस्खों को कौन नहीं जानता, लेकिन राधे मां का अंदाज जुदा है। वह ना तो कुछ बोलती हैं, ना ही कोई उपाय बताती। कथित रूप से हमेशा चुप रहने वाली यह महिला अपने भक्तों को अधिकांशत: रेड रोज देती हैं। भक्तों की ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए सर पर हाथ फेरती हैं।

भक्ति संगीत की धुन पर थिरकती राधे मां कभी-कभी रौद्र रूप भी दिखाती हैं। उनके भक्तों का मानना है कि उनमें देवी का वास है। रौद्र रूप धारण करते ही तेजी से नाचने लगती हैं। लोगों को पैर से मारकर आशीर्वाद देती हैं। पर एक निजी न्यूज चैनल ने दावा किया है कि उनके पास राधे मां की बोलती हुई वीडियो फुटेज है।

आपकी राय: सुधि पाठकों, राधे मां पर भी निर्मल बाबा की तरह उंगली उठाई जा रही है। धीरे-धीरे विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं। 21वीं सदी में क्या इस तरह चमत्कार स्वीकार्य किए जा सकते हैं।


http://www.youtube.com/watch?v=yztOxiW0mmk&feature=player_embedded