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View Full Version : खिलौने अवश्य खरीदे और हाँ, खरीदते मोल-भाव न &



SALURAM
November 7th, 2012, 04:43 PM
अगर खुदको भारतीय और अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हो तोइस दीपावली पर कुम्हारों द्वारा बनाये जा रहे भारतीयपरम्परा के मिटटी के दिये और उनके बनाये गए मिट्टी केखिलौने अवश्य खरीदे और हाँ, खरीदते समय किसी प्रकारका मोल-भाव न करेनहीं तो तब आप के आगे आने वाली पीढ़ी को यह दीपखिलौने बनाने वाले नहीं दिखेंगेइस काम में काफी श्रम लगता है और मुनाफा कम है लेकिनइनमे भारतीय परम्परा को ज़िंदा रखने का जूनून है..इस जुनूनमें आप भी अपने भारतीय होने की भूमिका अवश्य निभायेंदीवाली में मिट्टी के दीप अवश्य जलाएँ ...क्योकि आप चीनसे बनी लड़ी खरीदने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे...चीनका सामान कम खरीदे जिससे आप भारत केगरीबो द्वारा बनाये गए सामान खरीदने का पैसा बचा सकेमिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी के पाने, खील-बताशे, झाड़ू,रंगोली, रंगीन पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभावकरना???जब हम टाटा-बिरला-अंबानी-भारती के किसी भी उत्पाद मेंमोलभाव नहीं करते (कर ही नहीं सकते), तो दीपावली केसमय चार पैसे कमाने की उम्मीद में बैठे इन रेहड़ी-खोमचे-ठेलेवालों से "कठोर मोलभाव" करना एक प्रकार का अन्यायही है…"अब वक़्त बदलेगा क्यूंकि अब हम बदलेंगे....इतिहास पढ़ते सब है हम नया इतिहास लिखेंगे.

navdeepkhatkar
November 7th, 2012, 04:51 PM
अगर खुदको भारतीय और अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हो तोइस दीपावली पर कुम्हारों द्वारा बनाये जा रहे भारतीयपरम्परा के मिटटी के दिये और उनके बनाये गए मिट्टी केखिलौने अवश्य खरीदे और हाँ, खरीदते समय किसी प्रकारका मोल-भाव न करेनहीं तो तब आप के आगे आने वाली पीढ़ी को यह दीपखिलौने बनाने वाले नहीं दिखेंगेइस काम में काफी श्रम लगता है और मुनाफा कम है लेकिनइनमे भारतीय परम्परा को ज़िंदा रखने का जूनून है..इस जुनूनमें आप भी अपने भारतीय होने की भूमिका अवश्य निभायेंदीवाली में मिट्टी के दीप अवश्य जलाएँ ...क्योकि आप चीनसे बनी लड़ी खरीदने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे...चीनका सामान कम खरीदे जिससे आप भारत केगरीबो द्वारा बनाये गए सामान खरीदने का पैसा बचा सकेमिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी के पाने, खील-बताशे, झाड़ू,रंगोली, रंगीन पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभावकरना???जब हम टाटा-बिरला-अंबानी-भारती के किसी भी उत्पाद मेंमोलभाव नहीं करते (कर ही नहीं सकते), तो दीपावली केसमय चार पैसे कमाने की उम्मीद में बैठे इन रेहड़ी-खोमचे-ठेलेवालों से "कठोर मोलभाव" करना एक प्रकार का अन्यायही है…"अब वक़्त बदलेगा क्यूंकि अब हम बदलेंगे....इतिहास पढ़ते सब है हम नया इतिहास लिखेंगे.

Quite a valid point ..

Mishti
November 7th, 2012, 06:19 PM
अगर खुदको भारतीय और अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हो तोइस दीपावली पर कुम्हारों द्वारा बनाये जा रहे भारतीयपरम्परा के मिटटी के दिये और उनके बनाये गए मिट्टी केखिलौने अवश्य खरीदे और हाँ, खरीदते समय किसी प्रकारका मोल-भाव न करेनहीं तो तब आप के आगे आने वाली पीढ़ी को यह दीपखिलौने बनाने वाले नहीं दिखेंगे इस काम में काफी श्रम लगता है और मुनाफा कम है लेकिनइनमे भारतीय परम्परा को ज़िंदा रखने का जूनून है..इस जुनूनमें आप भी अपने भारतीय होने की भूमिका अवश्य निभायेंदीवाली में मिट्टी के दीप अवश्य जलाएँ ...क्योकि आप चीनसे बनी लड़ी खरीदने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे...चीनका सामान कम खरीदे जिससे आप भारत केगरीबो द्वारा बनाये गए सामान खरीदने का पैसा बचा सकेमिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी के पाने, खील-बताशे, झाड़ू,रंगोली, रंगीन पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभावकरना???जब हम टाटा-बिरला-अंबानी-भारती के किसी भी उत्पाद मेंमोलभाव नहीं करते (कर ही नहीं सकते), तो दीपावली केसमय चार पैसे कमाने की उम्मीद में बैठे इन रेहड़ी-खोमचे-ठेलेवालों से "कठोर मोलभाव" करना एक प्रकार का अन्यायही है…"अब वक़्त बदलेगा क्यूंकि अब हम बदलेंगे....इतिहास पढ़ते सब है हम नया इतिहास लिखेंगे.

घणी बढ़िया बात लिख्गे सालुरामजी

JSRana
November 7th, 2012, 07:01 PM
बहुत ही सराहनीय कदम है सल्लुरम जी । सच में ही हम सब अपनी वो परम्परा भूलते जा रहे हैं जब दीपावली पर सिर्फ मिटटी के दीपक या कुल्हिया में मोमबत्ती जला कर काम चल जाया करता था । ना कोई धुवा ना कोई शोर पर उमंग और ख़ुशी ईतनी कि नींद आनी बंद हो जाती थी । दीपावली जाने के बाद ऐसी बैचैनी जैसे किसी ने कुछ छीन लिया हो ।


अब तो जैसे जैसे दीपावली पास आती है डर लगने लगता है कहीं कोई अनहोनी ( जैसे आग लगना, लड़ाई झगडा, एक्सीडेंट या जहरीली मिठाई खा लेना ) ना हो जाए । दीपावली ठीक ठाक निकल जाए तो बड़ा सकून सा मिलता है ।


हो सकता है ईस मुहीम से वो दिन फिर से लौट कर आयें ।

SALURAM
November 8th, 2012, 11:34 PM
आखिर क्या मिलती है खुशी तुम्हें, पटाखे जलाने मे
मर जाते है बच्चे कई सेकड़ों इन्हे बनाने मे
सुख-सोभाग्य जो चाहते हे लाना हमेशा अपने घरो मे
जरा भी विचार नहीं उन्हे आज घर बारूद खरीद कर लाने मे
आखिर मिलती क्या है खुशी तुम्हें, ऐसे धमाके बजाने मे
बच्चे-बूढ़े-जीव-जन्तु, सभी हे तंग इस हंगामे मे
व्यस्त थे जो वर्ष भर, प्रदूषण पर भाषण दे भीड़ जुटाने मे
वही अग्रणी हो जाते है, इन्हे जला प्रदूषण फेलाने मे
आखिर ऐसी भी क्या मिलती है खुशी तुम्हें, यू ही धुआ
उड़ाने मे
सम्मपन हो, फर्ज जानो, क्या रखा हे झूठी शान दिखाने मे
बूझ कर भी हो मजबूर तुम, रुपया एक दान का लगाने मे
जरा भी तुम्हें शरम नहीं आती, रकम हजारो की धुआ बनाने
मे
आखिर क्या मिलती है खुशी तुम्हें, पटाखे जलाने मे
नहीं है समझदारी, स्वास्थ्य-समय-अर्थ को व्यर्थ बहाने
मे
दीप जलाकर, मीठा खाकर, दान कर पुण्य कमाने मे
ढूंढनी है तो ऐसे ढूंढो, खुशी दीपावली मनाने मे
ढूंढनी है तो ऐसे ढूंढो, खुशी दीपावली मनाने म

desijat
November 8th, 2012, 11:58 PM
आखिर क्या मिलती है खुशी तुम्हें, पटाखे जलाने मे
मर जाते है बच्चे कई सेकड़ों इन्हे बनाने मेम

Salu bhai, wo bache bhukhe na mare islie naukri kar ke 2 paise banate hai. Ab agar aapke khilono wale logic pe jaye to hume patakhe bhi khoob kharidne chaiye taaki bacho ko, jo wo patakhe banate hai unhe uska sahi mulya mile.

deependra
November 9th, 2012, 02:37 AM
भाई सालूराम, बहुत बहुत धन्यवाद इस धागे को शुरू करने के लिए। मैंने अभी कुछ दिन पहले राजीव दीक्षित के आयुर्वेद पर कुछ व्याख्यान सुने थे।
वो कहते हैं कि मिटटी की हांडी में पकाए हुए भोजन में एक प्रेसेंट भी सूक्ष्म पोषक तत्व(micro-nutrients) कम नहीं होते।कांसा और पीतल के बर्तनों से पकाए भोजन में भी ये नब्बे प्रतिशत तक सुरक्षित रहते हैं। परन्तु एलुमीनियुम के बर्तनों में ये सुक्ष्म तत्व केवल 13% ही रह जाते हैं। मिटटी का अपना ही वैज्ञानिक महत्व है, क्योंकि ये सुक्ष्म पोषक तत्वों की खान है। खैर विषयांतर ना करते हुए मै भी सबसे ये ही अनुरोध करूँगा की मिटटी के दिए और अन्य स्थानीय लोगो के द्वारा ही बनाई गयी चीजें खरीदे। प्रकाश के इस पर्व पर सबको खुशियाँ बाँटें ...
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना,
अँधेरा धरा पर कहीं रह ना जाए।।

SALURAM
November 12th, 2012, 06:34 PM
दोस्तों कल दीपावली है सभी मिठाई कपड़ों के साथ पठाके
भी चलाएंगे , कम से कम अपने बच्चों और छोटे भाई-
बहनों को सुरक्षित रख पठाके चलायें ताकि कोई
हादसा जन्म न ले......सुरक्षित दीपाली मनाएं ,
माता लक्ष्मी की पूजा कर उन्हें मनाये............इस
दीपोत्सव पर आपको यही शुभकामनायें...........!

DrRajpalSingh
November 12th, 2012, 07:52 PM
दोस्तों कल दीपावली है सभी मिठाई कपड़ों के साथ पठाके
भी चलाएंगे , कम से कम अपने बच्चों और छोटे भाई-
बहनों को सुरक्षित रख पठाके चलायें ताकि कोई
हादसा जन्म न ले......सुरक्षित दीपाली मनाएं ,
माता लक्ष्मी की पूजा कर उन्हें मनाये............इस
दीपोत्सव पर आपको यही शुभकामनायें...........!

Wonderful idea.

Jats on the one hand are said to be non believers in idol worship and believers in the teachings of Swami Dayanand Sarswati and on the other hand they are advised by you to worship Luxmi!

SALURAM
November 15th, 2012, 02:49 PM
दीपोँ की रोशनी मेँ धुँधला सा गया.......
वो मन खुशी मेँ भी झुँझला सा गया.......
रोशन तो हमारे घर थे खूबसूरत सजावटोँ से......
वीरान थे उनके घर खुले आसमाँ के सायोँ से........
हमने तो खाये पकवान चुन चुन कर......
उन्हेँ तो शायद एक टुकड़ा भी ना मिला होगा घरोँ पर.......
हमने पहने कपड़े नये नये उस पर्व पर........
वो "भाई-बहन" तब भी लपेटे थे चिथड़ा तन पर.......!!

DrRajpalSingh
November 15th, 2012, 04:35 PM
दीपोँ की रोशनी मेँ धुँधला सा गया.......
वो मन खुशी मेँ भी झुँझला सा गया.......
रोशन तो हमारे घर थे खूबसूरत सजावटोँ से......
वीरान थे उनके घर खुले आसमाँ के सायोँ से........
हमने तो खाये पकवान चुन चुन कर......
उन्हेँ तो शायद एक टुकड़ा भी ना मिला होगा घरोँ पर.......
हमने पहने कपड़े नये नये उस पर्व पर........
वो "भाई-बहन" तब भी लपेटे थे चिथड़ा तन पर.......!!

That is why the policy if all inclusive development is the need of the hour, otherwise the wedge between haves and have nots cannot be bridged.