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View Full Version : Rajasthani kavita



SALURAM
November 8th, 2012, 01:08 AM
चलता चालो भायां जद तक गोड्डा चालै


भार उठायाँ सरसी जद तक मोड्डा चालै


पतनी चंडी मिलै तो घर रण बण जावै


ठीकर चालै, मूसळ चालै, लोड्डा चालै


सात बजै रै बाद सा'ब री मैफिल महे


रांडां चालै, दारू चालै, सोड्डा चालै

पैल्याँ तो बै घणा नमित अर सीधा हा


कुर्सी जद स्यूं मिलगी, कोड्डा कोड्डा चालै


अयियां चालै संसद जयियाँ हाइवे पर


दिन महे ढाबा और रात नै अड्डा चालै


ख़ूब तरक्की हुई देस महे "अलबेला"


साची बात करण आलां पर ठुड्डा चाल

vikasJAT
November 8th, 2012, 06:19 AM
kavita bot badiya bhai SALURAM..............thodi bot samajh aayi.......ho sake to Haryanavi me iska anuvaad kar diye.........

SALURAM
November 10th, 2012, 09:27 AM
संकट म्ह है हिन्दुस्तान
अब कस कै बांध लंगोटो
अर हाथ म्ह ले ले घोटो
बाबा बजरंगी हनुमान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान
म्हे शरण मैं आया थारी
थे हरल्यो विपदा म्हारी
बळ दिखलाओ बलवान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान
दीमक बण कै चाट रिया है देस नै खादीधारी
रक्षक ही भक्षक बण बैठ्या, बाड़ खेत नै खारी
राजा, मन्त्री, दरबारी
सगळा ही भ्रष्टाचारी
सब का सब बे-ईमान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान
देर करो मत हनुमत अब थे, बेगा बेगा आओ
स्विस बंकां म्ह पड़ी संजीवन, थे भारत म्ह ल्याओ
गास्यां तेरा गुणगान
अर मानांगा एहसान
दुःखभंजक दयानिधान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान

SALURAM
November 23rd, 2012, 09:14 AM
अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले
चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।
बीजळी को पंखो चाले, गूंज रयो जण भोरो
बैठी रेल में गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।।
चला चला रे ।।
डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे खेत
ढांडा की तो टोली भागे,उड़े रेत ही रेत ।।
चला चला रे ।।
बड़ी जोर को चाले अंजन,देवे ज़ोर की सीटी
डब्बा डब्बा घूम रयो टोप वारो टी टी ।।
चला चला रे ।।
जयपुर से जद गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं बैठी थी सूधी
असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं पड़ गयी उँधी ।।
चला चला रे ।।

SALURAM
November 23rd, 2012, 09:41 AM
म्हारा दादोसा
जद तक
दादोसा हा
घर में डर हो
दादोसा रै गेडियै रो।
गेडियै रो ज्यादा
पण दादोसा रो कम
डर लागतो म्हानै।
दादोसा
घर री
नान्ही मोटी जिन्सा
अर खबरां माथै
पारखी निजर राखता
बां री जूनी
मोतिया उतरियोडी
आंख्यां सूं पड़तख
कीं नीं सूझतो
पण हीयै री आंखियां सूं
स्सौ कीं देखता
म्हारा दादोसा ।
घर जित्ती ई
परबीती री चिंता
अखबार भोळावंतो
बा नै हरमेस
अर बै आखै दिन
चींतता घर आयां बिच्चै
जगती री चिंतावां नै ।
अखबार समूळो बांचता
विज्ञापन तक टांचता
भूंडा विज्ञापन
अर फिल्मी पान्नां
हाथ नीं लागण देंवता
म्हां टाबरा रै
फाड़ च्यार पुड़द कर ’ र
राख लेंवता सिराणै नीचे
जीमती बरियां
गऊ ग्रास राखण तांईं
कीं पान्ना देंवता दादीसा नै
जीमती बरियां
इंयां ई करण सारू।
टाबरो पढल्यो दो आंक !
पढ्योड़ो-सीख्योड़ो ई काम आवै !!
इण रट रै बिचाळै
खुद पढता आखो दिन
पढता- पढता ई
गया परा दूर म्हा सूं
पण आज भी घर में
दादोसा री बातां रो डर है
डर है भोळावण रो !
आज भी म्हे टाबर
विज्ञापन अर फिल्मी पानां
टाळ ’ र बांचां अखबार
कै बकसी दादोसा !
दादोसा कोनीं आज
फगत गेडियो है
एक कूंट धरियो
आज डर नी है
गेडियै रो ।

SALURAM
November 25th, 2012, 05:31 AM
सहर लुंटतो सदा तूं देस करतो सरद्द, कहर नर
पड़ी थारी कमाई
उज्यागर झाल खग जैतहर आभरण, अम्मर अकबर
तणी फ़ौज आई
वीकहर सींह घर मार करतो वसूं |
अभंग अर व्रन्द तौ सीस आया
लाग गयणांग भुज तोल खग लंकाळ
जाग हो जाग कालियाण जाया
गोल भर सबळ नर प्रकट अर गाहणा
अरबखां आवियो लाग असमाण
निवारो नींद कमधज अबै निडर नर
प्रबल हुय जैतहर दाखवो पाण
जुडै जमराण घमसाण मातौ जठै
साज सुरताण धड़ बीच समरौ
आप री जका थह न दी भड अवर नै
आप री जिकी थह रयौ अमरो |

SALURAM
November 29th, 2012, 09:22 AM
कठै गया बे गाँव आपणा ?
कठै गया बे गाँव आपणा कठै गयी बे रीत ।
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत ||
दुःख दर्द की टेम घडी में काम आपस मै आता।
मिनख सूं मिनख जुड्या रहता, जियां जनम जनम नाता ।
तीज -त्योंहार पर गाया जाता ,कठै गया बे गीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत ||(1)
गुवाड़- आंगन बैठ्या करता, सुख-दुःख की बतियाता।
बैठ एक थाली में सगळा ,बाँट-चुंट कर खाता ।
महफ़िल में मनवारां करता , कठै गया बे मीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत ||(2)
कम पीसो हो सुख ज्यादा हो, उण जीवन रा सार मै।
छल -कपट,धोखाधड़ी, कोनी होती व्यवहार मै।
परदेश में पाती लिखता , कठै गयी बा प्रीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत ||(3)

कठै = कहाँ, बे = वे, मिनख = मनुष्य, टेम घडी = समय,
गुवाड़ = चौक, सगळा = सब