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View Full Version : जाति प्रथा भारत वर्ष की हकीकत



HawaSinghSangwan
December 5th, 2012, 12:52 PM
जाति प्रथा भारत वर्ष की हकीकत
(मंडल आयोग की रिपोर्ट का चेप्टर-4 तथा पेज नंबर 19 से 22 तक के आधार पर)
-हवासिंह सांगवान, पूर्व कमांडेंट, मो. नं. 94160-56145
ष्टड्डह्यह्लद्गह्य ड्डह्म्द्ग ह्लद्धद्ग ड्ढह्वद्बद्यस्रद्बठ्ठद्द ड्ढह्म्द्बष्द्मह्य शद्घ ॥द्बठ्ठस्रह्व ह्यशष्द्बड्डद्य ह्यह्लह्म्ह्वष्ह्लह्वह्म्द्ग अर्थात जातियां हिंदू सामाजिक ढ़ांचे रूपी इमारत की ईंटे हैं।ऋगवेद के सूत्र 10/९0 में चतुर वर्ण का उल्लेख किया गया है, जिसमें ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण का जन्म हुआ, दोनों हाथों से क्षत्रिय का, जांघों से वैश्य का तथा दोनों पैरों से शूद्र का जन्म हुआ। यही चतुर वर्ण जातियों का जन्मदाता है क्योंके वर्ण के आधार पर ही जातियों का वर्गीकरण हुआ या यूं कहें कि सभी जातियों को चार समूहों में बांट दिया गया, लेकिन इस व्यवस्था में महत्वपूर्ण बात यह है कि ब्राह्मण वर्ण में केवल एक ही जाति ब्राह्मण है, जबकि दूसरे वर्णों में सात हजार से अधिक जातियां हैं। इस व्यवस्था का मूल उद्देश्य ब्राह्मण जाति को श्रेष्ठ स्थान दिलाना था। वर्ण व्यवस्था को न्यायोचित ठहराने के लिए कहा जाता है कि यह वर्ण पहले कर्म के आधार पर बनाए गए थे। यह एक कोरी मनोवैज्ञानिक दलील है क्योंकि वर्ण बनाए जाने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि हमारे से अनेकों देश जो सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक तौर पर अधिक संपन्न होते हुए भी उनमें इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं अर्थात् यही प्रथा हमारे पिछड़ेपन का कारण भी है।
हिंदू धर्म शास्त्र वर्ण व्यवस्था के तहत ही जातियों का गान करते हैं। महाभारत शास्त्र के अनुसार जब एकलव्य नाम के एक जनजातीय बालक ने गुरू द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या में शिक्षा लेनी चाही तो उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया कि वह क्षत्रिय नहीं है, बल्कि जनजातीय अर्थात शूद्र वर्ण का है। इस पर बालक एकलव्य ने गुरू द्रोणाचार्य को मन ही मन अपना गुरू मान लिया और उसकी प्रतिमा स्थापित करके उसी के आशीर्वाद से अपना अभ्यास शुरू कर दिया और वह एक दिन धनुर्विद्या में इतना निपुण हो गया कि कुत्ते की आवाज की तरफ उसने अपने बाण छोड़े और कुत्ते के पूरे मुंह को बाणों से बींध दिया, जिससे उसका भौंकना बंद हो गया। इतिफाक से जब द्रोणाचार्य अचानक उधर से गुजरे तो उन्होंने मालूम किया कि यह धनुषधारी कौन था। इस पर एकलव्य प्रकट हुआ और उसने गुरू द्रोणाचार्य को गुरू दक्षिणा देनी चाही तो इसके बदले में गुरू द्रोणाचार्य ने उसके दायें हाथ के अंगूठे को गुरू दक्षिणा के रूप में ले लिया। इससे स्पष्ट है कि उस संत के दिल में शूद्रो के प्रति गहरी नफरत थी और उसने आशीर्वाद देने की बजाय निर्ममता से एकलव्य का अंग-भंग कर दिया। यह था जातिवाद का एक घिनौना प्रदर्शन।
धर्मग्रंथ रामायण में लिखा है कि उत्तराखंड में एक दलित शंबुक नाम के बालक ने 12 वर्ष तक एक पेड़ पर उल्टा लटककर तपस्या की तो उसी समय वहां एक ब्राह्मण बालक का देहांत हो गया, जिसका पिताजी जीवित था। इस घटना का इल्जाम शंबुक पर लगाया गया कि उसने दलित होते हुए तपस्या की, जिस कारण ब्राह्मण बालक का देहांत हो गया। इस बात की शिकायत ब्राह्मण बालक के साथियों ने मर्यादा पुरूषोत्तम राम से की, जिन्होंने वहां जाकर उस शूद्र बालक शंबुक की गर्दन धड़ से अलग कर दी। यह था मर्यादा पुरूष राम का दलितों के प्रति व्यवहार और अंधविश्वास भी।
धर्मशास्त्र गीता में भगवान श्रीेकृष्ण कहते हैं कि यह चार प्रकार की वर्ण व्यवस्था उन्होंने ही योग्यता एवं काम के आधार पर तैयार की थी, लेकिन लोगों ने महाभारत में कृष्ण जी के द्वारा क्षत्रिय का कार्य करते हुए सुदर्शन चक्र चलाया लेकिन लोगों ने उन्हें अहीर अथवा यादव जाति का माना तथा गाय चराने वाले एक ग्वाले का दर्जा ही दिया। कुछ प्राचीन मुस्लिम लेखकों ने उन्हें शूद्र जाति का जाट माना है। क्या यह संभव नहीं था कि जिन्होंने स्वयं वर्ण व्यवस्था की रचना की और महान क्षत्रिय कार्य किया, फिर भी उनको क्षत्रिय तथा ब्राह्मण का दर्जा नहीं दिया गया क्योंकि वे जाति के यादव थे।
मद्रास राज्य(तमिलनाडू) में ताड़ी निकालने वालों को ब्राह्मण जाति की शाखा माना गया, लेकिन ब्राह्मणों से बात करने के लिए उन्हें 24 कदम दूर रहने को कहा गया। नायक जाति के लोगों को, जोकि खेतीहर किसान हैं, नमूदरी ब्राह्मण के पैर छूने का अधिकार नहीं था। केवल दूर से ही बात कर सकते थे। तायन जाति के लोगों को ब्राह्मणों से 36 कदम दूर से बात करने को कहा गया, लेकिन इससे भी बढक़र पुलायन जाति के लोगों को ब्राह्मण से 96 कदम दूर से बात करने को कहा गया। वहीं दूसरी ओर तायन जाति के लोगों को नायक जाति के लोगों से 12 कदम दूर से बात करने को कहा गया। इस प्रकार इस वर्ण व्यवस्था ने एक इंसान को दूसरे इंसान से बिल्कुल अलग कर दिया।
महाराष्ट्र में महार जाति के लोगों को रास्ते पर कहीं भी थूकने की मनाही थी और इसके लिए उनको अपने गले में कोई बर्तन टांगकर रखना पड़ता था। यदि रास्ते में किसी ब्राह्मण का आना होता तो उन्हें अपने पद्चिन्हों को मिटाने के लिए उन्हें अपनी कमर से झाडू बांधकर रखनी पड़ती थी। किसी भी दलित की ब्राह्मण पर छाया पडऩा अपराध था। यह सब वर्ण व्यवस्था की करामात थी।
तीनीविली जिले में पुरादा समूह के लोगों को दिन के समय बाहर निकलने का अधिकार नहीं था क्योंकि उनके देखने से ही वातावरण को दूषित होना समझा जाता था। इसीलिए इन बेचारों को सारे कार्य रात में ही करने पड़ते थे अर्थात् उनको सूर्य के दर्शन करने का भी अधिकार नहीं था।
मैसूर राज्य में दलित और छोटी जातियों की औरतों को अपनी छाती ढंकने का अधिकार नहीं था और न ही वे उच्च जातियों की स्त्रियों के समान बाल संवार सकती थीं और न ही सुनहरी गोटेदार किनारी लगे कपड़ों को पहन सकती थी। यह था इंसान का इंसान के प्रति धर्म।
इतिहास में चाणक्य उर्फ कौटिल्य की बड़ी प्रशंसा की जाती है। लेकिन उनके द्वारा बनाए गए कानून पूरी तरह जातिवादी थे क्योंकि सभी ब्राह्मणों को करमुक्त कर दिया गया था। क्षत्रियों को तीन प्रतिशत कर, वैश्य को चार प्रतिशत तथा शूद्रों को पांच प्रतिशत कर के रूप में देना पड़ता था। अर्थात् सबसे गरीब शूद्र को सबसे अधिक कर देना पड़ता था। यही थी चाणक्य की न्याय प्रणाली।
लेखक : सातवीं शताब्दी में सिंध के आलौर रियायत पर सियासी राय मोर गौत्र के जाट का राज्य था। लेकिन चच नाम के ब्राह्मण ने षड्यंत्र के तहत उसका राज्य हथिया लिया और जिस प्रकार की पाबंदियों का ऊपर वर्णन किया गया है, ऐसी पाबंदियां जाटों पर लगाई गईं तथा चचनामे में जाटों को चांडाल जाति लिखा है।
(अन्य धर्मशास्त्रों के अनुसार)
मनुस्मृति(100) : पृथ्वी पर जो है, वह सब ब्राह्मण का है। मनुस्मृति(101) : दूसरे लोग ब्राह्मणों की दया के कारण पदार्थों का भोग करते हैं। मनुस्मृति(127) : ब्राह्मण तीनों वर्णों से बलपूर्वक धन छीन सकता है। मनुस्मृति(165-66) : जान-बूझकर क्रोध से भी ब्राह्मण को तिनके से जो मारता है, तो 21 जन्मों तक वह बिल्ली की योनि में जन्म लेता है। मनुस्मृति(64) : अछूत जातियों के छूने पर स्नान करना चाहिए। मनुस्मृति(8, 21 व 22) : ब्राह्मण चाहे अयोग्य भी हो, उसे न्यायाधीश बनाना चाहिए। मनुस्मृति(8, 267) : यदि कोई ब्राह्ण को दुर्वचन कहेगा तो भी वह मृत्यु का अधिकारी है। मनुस्मृति 270) : यदि कोई ब्राह्मण पर आक्षेप करे तो उसकी जीभ काटकर दंड दें। शतपथ ब्राह्मण : यदि किसी की भी हत्या होती है, तो वास्तविक हत्या ब्राह्मण की मानी जाएगी। यदि कोई ब्राह्मण शूद्र की हत्या करता है तो वह किसी बिल्ली, चूहे, मेंढक, छिपकली, उल्लू व कौए के समान मानी जाएगी। किसी राजा को ब्राह्मण को सजा देने का अधिकार नहीं है। ब्राह्मण की हत्या से बड़ा कोई अपराध नहीं है। गौतम धर्म सूत्र : यदि शूद्र किसी वेद को सुन ले तो उसके कान में पिछला हुआ सीसा या लाख भर देनी चाहिए। बृहद्हरित स्मृति : बौद्ध भिक्षु तथा मुंडे हुए सिर वालों को देखने की मनाही है।
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HawaSinghSangwan
December 5th, 2012, 12:52 PM
सत्यार्थ प्रकाश(पेज नंबर 20, 53, 54, 60, 76 तथा 184) स्वामी दयानंद को एक महान समाज सुधारक माना गया है और उन्होंने मूर्ति पूजा का खंडन करके एक महान कार्य किया। लेकिन वर्ण व्यवस्था से वे भी अपना पीछा नहीं छुड़वा पाए। उन्होंने दलितों को जनेऊ पहनने तथा वेद सुनने का अधिकार तो दिया, लेकिन उनसे पका हुआ भोजन लेने से मना किया। पुनर्विवाह के बारे में उन्होंने लिखा है कि ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय की लडक़ी विधवा हो जाती है और उसका संयोग नहीं हुआ है तो उसका पुनर्विवाह कर देना चाहिए, अन्यथा नहीं। लेकिन शूद्र संयोग होने पर भी बेटी का पुनर्विवाह कर सकता है। स्वामी जी ने संत कबीर, गुरू नानक जी तथा संत रामदास की बुराई करने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
पुस्तक मुसलमानों की सियासत ( लेखक इलियास आजमी, पूर्व सांसद) : जब 1946 के अंत में यह स्पष्ट हो गया था कि अंग्रेज भारत छोडऩे वाले हैं, तो देश के 15 राज्यों के कांग्रेस कमेटियों ने भारत का प्रथम प्रधानमंत्री चुनने के लिए सरदार पटेल का समर्थन किया, लेकिन पंडित नेहरू, गांधी व दूसरे उच्च जातियों के लोग किसी दलित या पिछड़ी जाति का प्रधानमंत्री बनाने के हक में नहीं थे। इसलिए पंडित नेहरू ने एक चाल चली कि कांगे्रस के अध्यक्ष श्री अब्दुल कलाम आजाद से जबरन त्यागपत्र लिया गया तथा इसी प्रकार देश के सभी 15 राज्यों के कांग्रेस अध्यक्षो से भी त्यागपत्र लिया गया। लेकिन बंबई प्रदेश के तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष श्री नरीमान, जो पारसी थे, ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से इंकार किया तो उन्हें इतना अपमानित किया गया कि उन्हें आत्महत्या करनी पड़ी(बंबई में इनकी याद में नरीमन प्वायंट है, जहां पर 26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तानी उग्रवादियों ने हमला बोला था)। इस प्रकार सभी राज्यों में पंडित नेहरू ने ब्राह्मण जाति से कांग्रेस के अध्यक्ष तैनात कर दिए और देश आजाद होने पर उन्हीं अध्यक्षों को भारत का पहला आम चुनाव(1952) होने तक मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिए गए। देश का विभाजन होने पर जितने भी मुस्लिम अधिकारी पाकिस्तान गए, उनके स्थान पर ब्राह्मण जाति से अधिकारी नियुक्त करने के लिए अपने सजातीय मुख्यमंत्रियों को गोपनीय पत्र लिखा। इसी प्रकार आजाद भारत में पंडित नेहरू ने जाति प्रथा को और मजबूत कर दिया।
लेखक : यह जाति प्रथा भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों, जैसे कि मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, मणीपुर व अरूणाचल, जो सभी जनजाति बाहुल्य है, को भी प्रभावित किए बगैर नहीं रह सकी। इन राज्यों में आज तक कभी छूआछूत नहीं रही, लेकिन जातीय प्रथा पूर्णरूप से उभरकर सामने आई, जैसे कि मिजो जाति के लोगों ने रियांग जाति के लोगों को मिजोरम से पूर्णतया भगा दिया और वे आज त्रिपुरा में शरणार्थी जीवन बिता रहे हैं। इसी प्रकार में चकमा और बोम जातियां सुरक्षा बलों के संरक्षण में जी रही हैं। मणीपुर में वर्तमान में 34 उग्रवादी संगठन हिंदू और ईसाई जातीय आधार पर काम कर रहे हैं। नागालैंड की नागा जाति को एक नस्ल कहा जाता है, लेकिन इनमें भी 16 जातियां हैं, जिनको उनके पहनावे से पहचाना जा सकता है। इसी प्रकार अरूणाचल में 150 से अधिक जनजातियां हैं। मेघालय राज्य में खासी और जयंती जातियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आज भी हमारे पूरे देश में जाति प्रथा कायम है और पूरे भारत वर्ष में कोई भी ऐसी जाति नहीं है, जिसका अपना जातीय संगठन न हो। पूरे देश में जाति के आधार पर स्कूल, कॉलेज, धर्मशालाएं व अन्य संस्थाएं बनी हुई हैं, जिनके समारोह में नेता लोग मुख्यातिथि के तौर पर सम्मिलित होकर इस प्रथा को और भी बलशाली बना रहे हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां जातीय आधार पर टिकट बांटती हैं और मंत्री बनाती हैं। कुछ लोगों को गलतफहमी है कि प्रेम विवाह से जातीय प्रथा समाप्त हो जाएगी। हमें याद रखना चाहिए कि हजारों साल पहले सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की बेटी कार्नेलिया उर्फ हेलन चंद्रगुप्त मौर्य से प्रेमविवाह किया था और उसके बाद भी प्रेम विवाह होते रहे हैंं। भारतीय संविधान बनने के समय दबे कुचले लोगों का सामाजिक स्तर उठाने के लिए इन्हीं चार वर्णों के लोगों को चार समूहों में बांट दिया गया, जैसे कि अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा और सामान्य अर्थात उच्च जाति। लेकिन जाति प्रथा अपने पूरे शवाब पर आज भी भारतवर्ष में कायम हैं और रहेंगी।
---समाप्त---

rekhasmriti
December 5th, 2012, 01:53 PM
Arjun was favorite of Dronacharaya , Dron was afraid that Eklavya in skills better than Arjun . Thus he had asked Eklavya to amputate his thumb so that no one can ever compete with Arjun his favorite student . So this is entirely as selfish human thing not caste thing as per my views .

Now Shambhuk Story : This is the first time I have heard same . Thanks for sharing it . I have found something related to same : The story is considered to be of dubious origin : http://en.wikipedia.org/wiki/Shambuka
Again it may be my perception , however as per the story Shambhuk stated that motive of his Tapasya was to acquire status of god , which as per Lord Ram was not justified .
Aise to Ravan was of Brahmin origin was also killed by Rama . Brahmin hatya is a sin thus Lord Rama was cursed .

I am not sure about Shambhuk story , as no such story mentioned in the Ramayan version I have read . However Dron-Eklavya episode was entirely Biasness of Guru towards his favorite disciple .

Casteism can not be taken out of Hindus .

कुछ लोगों को गलतफहमी है कि प्रेम विवाह से जातीय प्रथा समाप्त हो जाएगी। हमें याद रखना चाहिए कि हजारों साल पहले सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की बेटी कार्नेलिया उर्फ हेलन चंद्रगुप्त मौर्य से प्रेमविवाह किया था और उसके बाद भी प्रेम विवाह होते रहे हैंं

Indeed in Agreement : Once a gal get married -she is known by her husband name / caste / religion . So intercaste marriages would not solve the purpose

sivach
December 5th, 2012, 06:09 PM
जब तक इस देश में "फूट डालो और राज करो" की नीति के द्वारा शासन किया जाता रहेगा तब तक जाति समाप्त नहीं होगी। अतीत में भी कहीं ना कहीं कुछ बुध्दिमान लोगो ने राज करने के लिए ही जाति प्रथा शुरू की होगी। धर्म ग्रंधो (मनुस्मृति, पुराण आदि) में बहुत से तर्क एवं कुतर्क दिए है जाति प्रथा के बारे, जिनके बारे में आप ऊपर पढ़ ही चुके है। वैसे इन ग्रंथो में लिखी गयी ज्यादातर बाते सत्य से परे है। मेरा ये मानना है कि जाति की उत्पत्ति ना तो ब्रह्माजी ने की ना ही कर्म के आधार पर हुयी ये तो बस समाज को बांट कर राज करने की नीति का परिणाम है।

आज भी नयी नयी जातियों का निर्माण किया जा रहा है हमारी सरकारों द्वारा। ये सिर्फ इसलिए किया जा रहा है ताकि सत्ता पर काबिज रहा जा सके। बंगाली, मराठी, पंजाबी, बिहारी, उड़िया, मद्रासी, असमी , नागा आदि आदि ये भी एक प्रकार की जाति ही है। जो कि 20 वी एवं 21 वी सदी में ही पैदा की गयी है सत्ताधारियों द्वारा। पिछड़े, अतिपिछड़े, bpl, apl आदि नई जातियो की खोज जारी है सरकार के कुछ अतिविशिष्ट लोग इस काम में लगे हुए है।

HawaSinghSangwan
February 6th, 2013, 04:30 PM
हमारे समाज को एक रूढ़ीवादी खोल में रखने का सदियों से प्रयास हेाता रहा है और यदि कोई इस खोल से एक ऊंगली भी बाहर निकालने की कोशिश करता है, तो दूसरे समाज के लोगों के अतिरिक्त खुद हमारे समाज के लोग उठ खड़े होते हैं, क्योंकि उनकी सोच आज तक जो उन्होंने सुना तथा पढ़ा, उसी पर टिकी हुई है क्योंकि ऐसे लोगों ने इस खोल से निकलने का कभी प्रयास ही नहीं किया। अभी कुछ दिन पहले मैंने एक लेख जाति प्रथा भारतवर्ष की हकीकत नाम से लिखा, जो पूर्णतया मंडल कमीशन की रिपोर्ट पर आधारित है, लेकिन इस लेख को पढऩे पर हिसार से एक जाट भाई का फोन आया कि मैंने लेख में रामायण पर आधारित जो बात कही है, वह गलत है, कहीं रामायण में नहीं है। मैंने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि जिस रिपोर्ट के आधार पर मैंने लेख लिखा है, वह सरकारी रिपोर्ट है, जिसे सरकार स्वीकृत कर चुकी है और इस हकीकत को हमें स्वीकार करना चाहिए। दूसरा, यह घटना बाल्मीकी रामायण में दर्ज है, लेकिन यह जाट भाई जिद करता रहा और मानने को तैयार नहीं, इसलिए मैं मंडल कमीशन की रिपोर्ट, जो केंद्र सरकार ने प्रथम जनवरी, 1979 को गठित किया तथा इसने अपनी रिपोर्ट 31 दिसंबर, 1980 को भारत सरकार को सौंपी, जिसे 13 अगस्त, 1990 को भारत सरकार ने स्वीकार किया अर्थात यह एक सरकारी रिपोर्ट है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। इस रिपोर्ट के आधार पर इसके चौथा अध्याय हू-ब-हू नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं। सभी मित्र इसे ध्यानपूर्वक पढऩे का कष्ट करें |
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HawaSinghSangwan
February 6th, 2013, 04:34 PM
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HawaSinghSangwan
February 6th, 2013, 04:35 PM
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swaich
February 6th, 2013, 11:21 PM
Arjun was favorite of Dronacharaya , Dron was afraid that Eklavya in skills better than Arjun . Thus he had asked Eklavya to amputate his thumb so that no one can ever compete with Arjun his favorite student . So this is entirely as selfish human thing not caste thing as per my views .



Rekha, there's a clear caste angle in Mahabharat. Drona was teaching other kids too apart from Arjun. He didnt teach Eklavya as he was a Bheel, a tribal.

At the other end, we had Karn, who was refused tutoring by a teacher because he was proved to be a Kshatriya and the teacher was biased against Kshatriyas.

Fateh
February 7th, 2013, 06:24 AM
Division of society or people based on many thing like area, village, family, profession, physical features, ability, qualification position, rank, power, resources and countless other factors, had been taking place and will take place in future also, but varun based on profession seems to be more logical and true, even today people are known by their profession and probably till Budh, these varuns were not based on birth and could be changed based on profession of the individual, Caste system came later, as per history available, jats, yadavas, gujars, malies etc had same profession including soldiering, they are from same background and so called chhaterias, Rajput is not caste like other caste, it is a class in that people from soldiering communities joined and later on these brahamins seperated and high lighted them as a seperate class of chhaterias, Yes brahamins did divide and exploited the society because probably mently batter and vise people, they kept education in their hands and thus could control the society and used other people for their good, though, earlier at some stage there may not be much difference in ability of various people in the society but profession and experience must have helped the so called brahamins to be more vise. Look, division in society is natural and existing in all societies every where in the world by different names and it is going to stay, even God has not created two real brothers/sisters similar, Mandal commission report can also be wrong.

bsbana
February 7th, 2013, 12:41 PM
Varna system is absurd. Brahmins tried to categorize different and unrelated tribes into 4 varna. It doesn't seem to have any scientific or rational basis. These days many Brahmins look similar to Dalits (prob. because of mixing, hypergamous marriages), so racial basis of varna is absurd, not to mention Mongoloid and Negorids are not taken into account in Varna System. Varna system is neither universal, not found outside subcontinent.
Even Varna based on profession is absurd, lot of new professions evolve because of scientific and technological advancement. So a static division of society on basis of profession is ridiculous.
Only reasonable explanation of Varna can be temperament, even that can be made subject of controversy, so no need to waste a lot of time in determining Varna, lot of countries did perform batter than India without knowing and taking care about Varna.