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View Full Version : सुन ओ छोङ के जाने वाली (दामिनी )



sivach
December 29th, 2012, 01:44 PM
सुन ओ छोड के जाने वाली
लौट के फिर ना आने वाली

गम -ए- हयात का मिटा गई
हम सबको तु रुला गई

याद आयेगा वो मजंर घिनौना
पङेगा हमको बार-बार रोना

तुमने भोगा वो भोगे ना कोई
यहाँ है सबकी आत्मा सोई

ना आना फिर से इस देश में बहना
यहाँ पर है भेडियों का रहना

तेरे कातिल है अभी जिन्दा
तु क्योँ उड गई बनके परिन्दा

ओ छोङ के हमको जाने वाली
आँखो मेँ है हम सबके लाली

दे भगवान तेरी आत्मा को शाँति
ये रुह एक रुह के लिये यही दुआँ मांगती. . . . . . . :(:(:(

sivach
December 29th, 2012, 04:52 PM
माँ मुझे डर लगता है, बहुत डर लगता है।।

सूरज की रोशनी आग सी लगती है
पानी की बूंदे भी तेज़ाब सी लगती है ।
माँ हवा में भी ज़हर घुला लगता है
माँ मुझे छुपा ले, बहुत डर लगता है।।

माँ याद है वो कांच की गुडिया जो बचपन में टूटी थी
माँ कुछ ऐसे ही आज मैं टूट गयी हूँ ।
मेरी गलती कुछ भी ना थी माँ
फिरभी खुद से रूठ गयी हूँ ।।

माँ बचपन में टीचर की गन्दी नज़रो से डर लगता था
पड़ोस के चाचा के नापाक इरादों से डर लगता था
माँ वो नुक्कड़ के लडको की बेख़ौफ़ बातों से डर लगता था
और अब बॉस के वहशी इशारों से डर लगता है

माँ मुझे छुपा ले, बहुत डर लगता है।।

माँ तुझे याद है तेरे आँगन में चिड़िया सी फुदक रही थी
ठोकर खाकर मैं ज़मीन पर गिर पड़ी थी
दो बूंद खून की देखकर माँ तू भी रो पड़ी थी ।।

माँ तुमने तो मुझे फूलों की तरह पाला था
उन दरिंदों का आखिर मैं क्या बिगाड़ा था।।

क्यों वो मुझको इस तरह से मसल के चले गये
बेदर्द मेरी रूह को कुचल के चले गए ।।

माँ तू तो कहती थी अपनी गुडिया को दुल्हन बनायेगी
मेरे इस जीवन को खुशियों से सजायेंगी
माँ क्या वो दिन ज़िन्दगी कभी ना लायेगी
माँ क्या अब तेरे घर बारात ना आयेगी।।

माँ खोया है जो मैंने क्या फिर से कभी ना पाऊँगी
माँ सांस तो ले रही हूँ क्या जी पाऊँगी।।

माँ घूरते है सब अलग ही नज़रों से
माँ मुझे उन नज़रों से छुपा ले
माँ बहुत डर लगता है
मुझे आँचल में छुपा ले।।