PDA

View Full Version : "हरियाणे सी सोधी नहीं"



phoolkumar
March 2nd, 2013, 03:04 PM
"हरियाणे सी सोधी नहीं"

बिहार देख्या बंगाल देख्या, अर देख्या असाम-उड़ीसा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

पह्ल्म झटक गाम म्हारे, मानवता सदा तैं सर बैठा रेह,
वासना-द्वेष कम हो मन म्ह, गाम-गोत का इह्सा सुवा रे|
लग ज्या जिस्कै अयन्सानत फळ ज्या, इह्सी ब्यदा लोह-लाठ सी रे,
गाँधी गेल सुवा कें भी तजुर्बा कर लेंदा, फेर भी बेटी बाजी||
आडै सारा गाम बेटी-बाहण मान्नै, उसपै कोए नीह रिस्सया|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

हिन्दू संस्कृति म्ह धर्मधारी को मास खाणा मुहाल नहीं,
बकरे-मुर्गे सब चट कर ज्यां इस्पै किसे-का ख्याल नहीं|
एक प्रतिशत इह्सा नि पाणा जो सच्चे हिन्दू-प्रण पुगा दे,
म्हारे गाम्मा म्ह भाईचारे-सद्भाव की इह्सी-ए ऊँची प्रकाष्ठा||
पुगावणिया पंचाती कुहावै, नहीं तो झटका फट्बिजणे सा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

पंचाती शब्द पै रोळआ ना मचाइयो अर भों-किसे नैं पंचाती ना लाइयो,
खरपतवार सारै होंदी आई, पर सच्चा पंचाती माणस उपरला लाइयो|
एंडी के हम रुखाळए नहीं, सुद्धे-सुच्चे नैं भर ल्यां कोळी म्ह,
ठाकुर-अम्मा का रोब फ़ाब्बै नहीं, राह ला दयां द्य्न-धोळी म्ह||
जाट-दलित खांदा पा ज्या एक थाळी म्ह, सै किते और मजन इह्सा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

मोहम्मद गौरी तें ले आज-लग, साल 50 को इह्से गए नीह,
ज्यब हरियाणे की धरती पै, नई नश्ल का हुआ आगमन नहीं|
ईतणे झक-झोळए त्यर कें, संस्कृति म्हारी आज भी रुळी नहीं,
फेर भी राह-चाल्दे बरडा दें अक आड़े सभ्यता-संस्कृति नहीं||
यु तै बड्डा सै ज्यगरा म्हारा, नहीं तै कूण पाँ ठुणक जा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

ठा हूड गाम म्हारयां पै, सुगळए बोल्लां की फ़ौज चढ़ा रेह,
सै इह्सी सीळी धरती किते की, जो ईतणा माणस समा ले|
मुगल-पठान-पंजाबी चहे पूरबी-पाहड़ी सब आडै बस रेह,
चैन तैं जियो अर जीण द्यो, इह्सा प्रण तो बम्बई का भी ना रे||
फुल्ले-भगत खाप्पां की धरती पै, माणस टोह ले चाहे स्यगार सा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||
बिहार देख्या बंगाल देख्या, अर देख्या असाम-उड़ीसा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||