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View Full Version : मनुबेन और महात्मा गांधी का ब्रह्मचर्य



sivach
July 4th, 2013, 05:10 PM
इंडिया टुडे पत्रिका के 17 जून के अंक में मनुबेन की डायरी के कुछ अंश प्रकाशित किये है |


http://media2.intoday.in/aajtak/images/stories/062013/cs-gandhi-1-2_280-1_650_062613052846.jpg

"आभा (बाये) और मनुबेन (दायें) गाँधी के साथ "


महात्मा गांधी की अंतरंग सहयात्री की हाल ही में मिली डायरी बताती है कि ब्रह्मचर्य को लेकर किए गए उनके प्रयोग ने मनुबेन के जीवन को कैसे बदल डाला.

वह भारतीय इतिहास का एक जाना-पहचाना चेहरा है जो आखिरी दो साल में ‘सहारा’ बनकर साये की तरह महात्मा गांधी के साथ रही. फिर भी यह चेहरा लोगों के लिए एक पहेली है. 1946 में सिर्फ 17 वर्ष की आयु में यह महिला महात्मा की पर्सनल असिस्टेंट बनीं और उनकी हत्या होने तक लगातार उनके साथ रही. फिर भी मनुबेन के नाम से मशहूर मृदुला गांधी ने 40 वर्ष की उम्र में अविवाहित रहते हुए दिल्ली में गुमनामी में दम तोड़ा.


1982 में रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में मनुबेन किरदार को सुप्रिया पाठक ने निभाया था. मनुबेन के निधन के चार दशक के बाद उनकी दस डायरियां इंडिया टुडे को देखने को मिलीं. गुजराती में लिखी गई और 2,000 पन्नों में फैली इन डायरियों की शुरुआत 11 अप्रैल, 1943 से होती है. गुजराती विद्वान रिजवान कादरी ने इन डायरियों का विस्तार से अध्ययन किया. इनसे पता चलता है कि अपनी सेक्सुअलिटी के साथ गांधी के प्रयोगों का मनुबेन के मन पर क्या असर पड़ा. इनसे गांधी के संपर्क में रहने वाले लोगों के मन में पनपती ईर्ष्या और क्रोध की भावना भी उजागर होती है. इनमें अधिकतर युवा महिलाएं थीं. डायरियों का लेखन उस समय शुरू हुआ जब गांधी के भाई की पोती मनुबेन पुणे में आगा खां पैलेस में नजरबंद गांधी की पत्नी कस्तूरबा की सेवा करने आई थीं. गांधी और कस्तूरबा को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस पैलेस में नजरबंद रखा गया था. बीमारी के अंतिम दिनों में मनुबेन ने कस्तूरबा की सेवा की. 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने मनुबेन को एक तरफ धकेल कर अपनी 9 एमएम बरेटा पिस्तौल से गांधी पर तीन गोलियां दागी थीं. उसके 22 दिन बाद मनुबेन ने डायरी लिखना बंद कर दिया.

डायरियों में जगह-जगह हाशिये पर गांधी के हस्ताक्षर हैं. इनसे उनके प्रति समर्पित एक लड़की की छवि उभरती है. 28 दिसंबर,1946 को बिहार के श्रीरामपुर में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने लिखा है, ‘‘बापू मेरी माता हैं. वे ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के माध्यम से मुझे ऊंचे मानवीय फलक पर ले जा रहे हैं. ये प्रयोग चरित्र निर्माण के उनके महायज्ञ के अंग हैं. इनके बारे में कोई भी उलटी-सीधी बात सबसे निंदनीय है.’’ इससे नौ दिन पहले ही मनुबेन गांधी के साथ आईं थीं. उस समय 77 वर्षीय गांधी तत्कालीन पूर्वी बंगाल में नोआखली में हुई हत्याओं के बाद अशांत गांवों में घूम रहे थे. गांधी के सचिव प्यारेलाल ने अपनी पुस्तक महात्मा गांधी: द लास्ट फेज में इस बात की पुष्टि करते हुए लिखा है, ‘‘उन्होंने उसके लिए वह सब कुछ किया जो एक मां अपनी बेटी के लिए करती है. उसकी पढ़ाई, उसके भोजन, पोशाक, आराम और नींद हर बात का वे ख्याल रखते थे. करीब से देख-रेख और मार्गदर्शन के लिए गांधी उसे अपने ही बिस्तर पर सुलाते थे. मन से मासूम किसी लड़की को अपनी मां के साथ सोने में कभी शर्म नहीं आती.’’ मनुबेन गांधी की प्रमुख निजी सेविका थीं. वे मालिश और नहलाने से लेकर उनका खाना पकाने तक सारे काम करती थीं.
इन डायरियों में डॉ. सुशीला नय्यर जैसी महात्मा गांधी की महिला सहयोगियों के जीवन का भी विस्तार से वर्णन है. प्यारेलाल की बहन सुशीला गांधी की निजी चिकित्सक थीं जो बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनीं. उनके अलावा पंजाबी मुस्लिम महिला बीबी अम्तुस्सलाम भी इन महिलाओं में शामिल थीं. ब्रह्मचर्य के महात्मा के प्रयोगों में शामिल रहीं महिलाओं के बीच जबरदस्त जलन की झलक भी इन डायरियों में मौजूद है. मनुबेन ने 24 फरवरी, 1947 को बिहार के हेमचर में अपनी डायरी में दर्ज किया, ‘‘आज बापू ने अम्तुस्सलाम बेन को एक कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे जाहिर होता है कि ब्रह्मचर्य के प्रयोग उनके साथ शुरू न होने से वे कुछ नाराज हैं.’’

2010 में दिल्ली में राष्ट्रीय अभिलेखागार में मिलीं इन डायरियों में यह भी लिखा है कि 47 वर्ष की आयु में भी प्यारेलाल मनुबेन से शादी करने को लालायित थे और सुशीला इसके लिए दबाव डाल रही थीं. 2 फरवरी, 1947 को बिहार के दशधरिया में आखिरकार मनुबेन को लिखना ही पड़ा, ‘‘मैं प्यारेलालजी को अपने बड़े भाई की तरह मानती हूं, इसके अलावा कुछ भी नहीं. जिस दिन मैं अपने गुरु, अपने बड़े भाई या अपने दादा से शादी करने का फैसला कर लूंगी, उस दिन उनसे विवाह कर लूंगी. इस बारे में मुझ पर और दबाव मत डालना.’’

मनुबेन की टिप्पणियों से ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर गांधी के अनुयायियों में बढ़ते असंतोष की झलक भी मिलती है. 31 जनवरी, 1947 को बिहार के नवग्राम में दर्ज प्रविष्टि में मनुबेन ने घनिष्ठ अनुयायी किशोरलाल मशरूवाला के गांधी को लिखे पत्र का उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने मनु को ‘‘माया’’ बताते हुए महात्मा से उसके चंगुल से मुक्त होने का आग्रह किया था. इस पर गांधी का जवाब था: ‘‘तुम जो चाहे करो लेकिन इस प्रयोग के बारे में मेरी आस्था अटल है.’’ मनुबेन और गांधी जब बंगाल में नोआखली की यात्रा कर रहे थे तब उनके दो सचिव आर.पी. परशुराम और निर्मल कुमार बोस गांधी के आचरण से नाराज होकर उनका साथ छोड़ गए थे. यही निर्मल कुमार बोस बाद में भारत की ऐंथ्रोपोलॉजिकल सोसायटी के डायरेक्टर बने. सरदार वल्लभभाई पटेल ने 25 जनवरी, 1947 को लिखे एक पत्र में गांधी से कहा था कि वे यह प्रयोग रोक दें. पटेल ने इसे गांधी की ‘भयंकर भूल’ बताया था जिससे उनके अनुयायियों को ‘गहरी पीड़ा’ होती थी. यह पत्र राष्ट्रीय अभिलेखागार में सरदार पटेल के दस्तावेजों में शामिल है. महात्मा ने मनुबेन के मन पर कितनी गहरी छाप छोड़ी थी, इसकी जबरदस्त झलक 19 अगस्त,1955 को जवाहर लाल नेहरू के नाम लिखे गए मोरारजी देसाई के पत्र से मिलती है. मनुबेन एक ‘‘अज्ञात रोग’’ के इलाज के लिए बॉम्बे हॉस्पिटल में भर्ती थीं. वहां अगस्त में उनसे मिलने के बाद मोरारजी देसाई ने लिखा: ‘‘मनु की समस्या शरीर से अधिक मन की है. लगता है, वे जीवन से हार गई हैं और सभी प्रकार की दवाओं से उन्हें एलर्जी हो गई है.’’

30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिरला हाउस में शाम 5:17 बजे जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा को गोली मारी, उस समय मनुबेन के अलावा आभाबेन गांधी भी महात्मा की बगल में थीं. आभा उनके भतीजे कनु गांधी की पत्नी थीं. अगले दिन मनुबेन ने लिखा, ‘‘जब चिता की लपटें बापू की देह को निगल रही थीं, मैं अंतिम संस्कार के बाद बहुत देर तक वहां बैठी रहना चाहती थी. सरदार पटेल ने मुझे ढाढस बंधाया और अपने घर ले गए. मेरे लिए वह सब अकल्पनीय था. दो दिन पहले तक बापू हमारे साथ थे. कल तक कम-से-कम उनका शरीर तो था और आज मैं एकदम अकेली हूं. मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है.’’

उसके बाद डायरी में अगली और अंतिम प्रविष्टि 21 फरवरी, 1948 की है, जब मनुबेन दिल्ली से ट्रेन में बैठकर भावनगर के निकट महुवा के लिए रवाना हुईं. इसमें उन्होंने लिखा, ‘‘आज मैंने दिल्ली छोड़ दी.’’ मनुबेन ने गांधी के निधन के बाद पांच पुस्तकें लिखीं. इनमें से एक लास्ट ग्लिम्प्सिज ऑफ बापू में उन्होंने लिखा, ‘‘काका (गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास) ने मुझे चेताया कि अपनी डायरी में लिखी गई बातें किसी को न बताऊं और महत्वपूर्ण पत्रों में लिखी गई बातों की जानकारी भी न दूं. उन्होंने कहा था, तुम अभी बहुत छोटी हो पर तुम्हारे पास बहुत कीमती साहित्य है और तुम अभी परिपक्व भी नहीं हो.’’

बापू: माय मदर नाम से अपने 68 पन्नों के संस्मरण में भी मनुबेन ने गांधी के साथ उनकी सेक्सुअलिटी के प्रयोगों में शामिल रहने के बावजूद उनके बारे में अपनी भावनाओं का कहीं उल्लेख नहीं किया. पुस्तक के 15 अध्यायों में से एक में मनुबेन ने लिखा है कि उनके पुणे जाने के 10 महीने के भीतर कस्तूरबा की मृत्यु हो गई. उसके बाद बापू ने मौन व्रत धारण कर लिया और वे सिर्फ लिखकर ही अपनी बात कहते थे. कुछ ही दिन बाद उन्हें बापू से एक बहुत ही मार्मिक नोट मिला, जिसमें उन्होंने उन्हें राजकोट जाकर अपनी पढ़ाई फिर शुरू करने की सलाह दी थी. इस अध्याय में मनुबेन ने लिखा, ‘‘उस दिन से बापू मेरी माता बन गए.’’

किशोरी मनुबेन ने कराची में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी जहां उनके पिता, गांधी के भतीजे जयसुखलाल सिंधिया स्टीम नैविगेशन कंपनी में काम करते थे. पुणे आने से कुछ दिन पहले ही मनु ने अपनी मां को खोया था इसलिए उन्हें भी मां रूपी सहारे की जरूरत थी.

मनुबेन ने अपने जीवन के अंतिम साल एकदम अकेले काटे. गांधी की हत्या के बाद करीब 21 वर्ष तक वे गुजरात में भावनगर के निकट महुवा में रहीं. वे बच्चों का एक स्कूल चलाती थीं और महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने भगिनी समाज की स्थापना भी की थी. जीवन के अंतिम चरण में मनुबेन की एक सहयोगी भानुबेन लाहिड़ी भी स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की थीं. समाज की 22 महिला सदस्यों में से एक लाहिड़ी को याद है कि गांधी ने मनु के जीवन पर कितना गहरा असर डाला था. उनका कहना है कि एक बार जब मनुबेन ने अपने एक गरीब अनुयायी के विवाह के लिए उनसे चुनरी ली तो बोल पड़ीं, ‘‘मैं तो खुद को मीरा बाई मानती हूं जो सिर्फ अपने ‘यामलो (कृष्ण) के लिए जीती रही.’’

मनोविश्लेषक और स्कॉलर सुधीर कक्कड़ इन डायरियों के बारे में कहते हैं, ‘‘इन प्रयोगों के दौरान महात्मा गांधी अपनी भावनाओं पर इतने अधिक केंद्रित हो गए थे कि मुझे लगता है कि उन्होंने इन प्रयोगों में शामिल महिलाओं पर उनके प्रभाव को अनदेखा करने का फैसला लिया होगा. विभिन्न महिलाओं के बीच जलन की लपटें उठने के अलावा हमें नहीं मालूम कि इन प्रयोगों ने उनमें से हर महिला के मन पर कोई प्रभाव डाला था या नहीं.’’

अब मनुबेन की डायरियां मिलने से हम कम से कम यह अंदाजा तो लगा ही सकते हैं कि महात्मा ने अपनी इन सहयोगियों के मन पर किस तरह की छाप छोड़ी थी या इन प्रयोगों का उन पर क्या असर हुआ था.


मधुबेन की डायरियां कैसे जगजाहिर हुईं

1. 1969 मनुबेन के निधन तक उनकी डायरियां में महुवा में उनके पास थीं. उन्होंने अपने पिता जयसुखलाल से कहा था कि डायरियां उनकी बहन संयुक्ताबेन की बेटी मीना जैन को सौंप दी जाएं.

2. मुंबई निवासी मीना जैन ने उन्हें मध्य प्रदेश में रीवा में अपने पारिवारिक बंगले में रखने का फैसला किया.

3. 2010 में मीना की बचपन की सहेली वर्षा दास जो उस समय दिल्ली में राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय की निदेशक थीं, मीना के अनुरोध पर रीवा गईं और डायरियां दिल्ली लाकर राष्ट्रीय अभिलेखागार में जमा करवा दीं.

और भी... http://aajtak.intoday.in/story/mahatma-gandhi-and-mnuben-the-untold-story-1-734362.html

sivach
July 4th, 2013, 05:23 PM
10 नवंबर, 1943
आगा खां पैलेस, पुणे
एनिमिया के शिकार बापू आज सुशीलाबेन के साथ नहाते समय बेहोश हो गए. फिर सुशीलाबेन ने एक हाथ से बापू को पकड़ा और दूसरे हाथ से कपड़े पहने और फिर उन्हें बाहर लेकर आईं.

21 दिसम्बर 1946
श्रीरामपुर, बिहार
आज रात जब बापू, सुशीलाबेन और मैं एक ही पलंग पर सो रहे थे तो उन्होंने मुझे गले से लगाया और प्यार से थपथपाया. उन्होंने बड़े ही प्यार से मुझे सुला दिया. उन्होंने लंबे समय बाद मेरा आलिंगन किया था. फिर बापू ने अपने साथ सोने के बावजूद (यौन इच्छाओं के मामले में) मासूम बनी रहने के लिए मेरी प्रशंसा की. लेकिन दूसरी लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हुआ. वीना, कंचन और लीलावती (गांधी की अन्य महिला सहयोगी) ने मुझसे कहा था कि वे उनके (गांधी के) साथ नहीं सो पाएंगी.

1 जनवरी, 1947
कथुरी, बिहार
सुशीलाबेन मुझे अपने भाई प्यारेलाल से शादी करने के लिए कह रही हैं. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं उनके भाई से शादी कर लूं तो ही वे नर्स बनने में मेरी मदद करेंगी. लेकिन मैंने उन्हें साफ मना कर दिया और सारी बात बापू को बता दी. बापू ने मुझसे कहा कि सुशीला अपने होश में नहीं है. उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले तक वह उनके सामने निर्वस्त्र नहाती थी और उनके साथ सोया भी करती थी. लेकिन अब उन्हें (गांधी को) मेरा सहारा लेना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मैं हर स्थिति में निष्कलंक हूं और धीरज बनाए रखूं (ब्रह्मचर्य के मामले में).

2 फरवरी, 1947
दशधरिया, बिहार
बापू ने सुबह की प्रार्थना के दौरान अपने अनुयायियों को बताया कि वे मेरे साथ ब्रह्मचर्य के प्रयोग कर रहे हैं. फिर उन्होंने मुझे समझाया कि सबके सामने यह बात क्यों कही. मुझे बहुत राहत महसूस हुई क्योंकि अब लोगों की जुबान पर ताले लग जाएंगे. मैंने अपने आप से कहा कि अब मुझे किसी की भी परवाह नहीं है. दुनिया को जो कहना है वह कहती रहे.
‘‘प्यारेलालजी मेरे प्यार में दीवाने हैं’’

28 दिसंबर, 1946
श्रीरामपुर, बिहार
सुशीलाबेन ने आज मुझसे पूछा कि मैं बापू के साथ क्यों सो रही थी और कहा कि मुझे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. उन्होंने मुझसे अपने भाई प्यारेलाल के साथ विवाह के प्रस्ताव पर फिर से विचार करने को भी कहा और मैंने कह दिया कि मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है, और इस बारे में वे आइंदा फिर कभी बात न करें. मैंने उन्हें बता दिया कि मुझे बापूजी पर पूरा भरोसा है और मैं उन्हें अपनी मां की तरह मानती हूं.

1 जनवरी, 1947
श्रीरामपुर, बिहार
प्यारेलाल जी मेरे प्रेम में दीवाने हैं और मुझ पर शादी करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, लेकिन मैं कतई तैयार नहीं हूं क्योंकि उम्र, ज्ञान, शिक्षा और नैन-नक्श में भी वे मेरे लायक नहीं हैं. जब मैंने यह बात बापू को बताई तो उन्होंने कहा कि प्यारेलाल सबसे ज्यादा मेरे गुणों के प्रशंसक हैं. बापू ने कहा कि प्यारेलाल ने उनसे भी कहा था कि मैं बहुत गुणी हूं.

31 जनवरी, 1947
नवग्राम, बिहार
ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर विवाद गंभीर रूप अख्तियार करता जा रहा है. मुझे संदेह है कि इसके पीछे (अफवाहें फैलाने के) अम्तुस्सलामबेन, सुशीलाबेन और कनुभाई (गांधी के भतीजे) का हाथ था. मैंने जब बापू से यह बात कही तो वे मुझसे सहमत होते हुए कहने लगे कि पता नहीं, सुशीला को इतनी जलन क्यों हो रही है? असल में कल जब सुशीलाबेन मुझसे इस बारे में बात कर रही थीं तो मुझे लगा कि वे पूरा जोर लगाकर चिल्ला रही थीं. बापू ने मुझसे कहा कि अगर मैं इस प्रयोग में बेदाग निकल आई तो मेरा चरित्र आसमान चूमने लगेगा, मुझे जीवन में एक बड़ा सबक मिलेगा और मेरे सिर पर मंडराते विवादों के सारे बादल छंट जाएंगे. बापू का कहना था कि यह उनके ब्रह्मचर्य का यज्ञ है और मैं उसका पवित्र हिस्सा हूं. उन्होंने कहा कि ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उन्हें शुद्ध रखे, उन्हें सत्य का साथ देने की शक्ति दे और निर्भय बनाए. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर सब हमारा साथ छोड़ जाएं, तब भी ईश्वर के आशीर्वाद से हम यह प्रयोग सफलतापूर्वक करेंगे और फिर इस महापरीक्षा के बारे में सारी दुनिया को बताएंगे.

2 फरवरी, 1947
अमीषापाड़ा, बिहार
आज बापू ने मेरी डायरी देखी और मुझसे कहा कि मैं इसका ध्यान रखूं ताकि यह अनजान लोगों के हाथों में न पड़ जाए क्योंकि वे इसमें लिखी बातों का गलत उपयोग कर सकते हैं, हालांकि ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बारे में हमें कुछ छिपाना नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर अचानक उनकी मृत्यु हो जाए तो भी यह डायरी समाज को सच बताने में बहुत सहायक होगी. उन्होंने कहा कि यह डायरी मेरे लिए भी बहुत उपयोगी साबित होगी.
और फिर बापू ने मुझसे कहा कि अगर मुझे कोई आपत्ति न हो तो डायरी की कुछ ताजा प्रविष्टियां प्यारेलालजी को दिखा दूं ताकि वे उसकी भाषा सुधार दें और तथ्यों को क्रमवार ढंग से लगा दें. हालांकि मैंने साफ मना कर दिया क्योंकि मुझे लगा कि अगर प्यारेलाल ने इस डायरी को देख लिया तो इसकी सारी बातें उनकी बहन सुशीलाबेन तक जरूर पहुंच जाएंगी और उससे आपसी वैमनस्य में और इजाफा ही होगा.

7 फरवरी, 1947
प्रसादपुर, बिहार
ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर माहौल लगातार गर्माता ही जा रहा है. अमृतलाल ठक्कर (गांधी और गोपालकृष्ण गोखले के साथ जुड़े रहे समाजसेवी) आज आए और अपने साथ बहुत सारी डाक लाए जो इस मुद्दे पर बहुत ‘‘गर्म’’ थी. और इन पत्रों को पढ़कर मैं हिल गई.

24 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहार
आज मैं बहुत दुखी थी. लेकिन बापू ने कहा कि वे मेरे चेहरे पर मुस्कान दौड़ते देखना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी जगह अगर कोई और होता तो इस मुद्दे पर किशोरलाल मशरूवाला, सरदार पटेल और देवदास गांधी के तीखे पत्र पढ़कर लगभग पागल जैसा हो जाता. लेकिन उन्हें इस सबसे बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ा. एक और बात. आज बापू ने अम्तुस्सलामबेन को एक बहुत कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे जाहिर होता है कि वे इस बात से नाराज हैं कि ब्रह्मचर्य के उनके प्रयोग उनके साथ शुरू नहीं हुए. उन्होंने लिखा कि इस बारे में उनके लिए खेद करना वाकई शर्म की बात है. उन्होंने अम्तुस्सलामबेन से कहा कि अगर वे समझ सकें तो वे समझना चाहते हैं कि आखिर वे कहना क्या चाहती हैं? बापू ने उन्हें लिखा कि यह शुद्धि का यज्ञ है.

26 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहार
आज जब अम्तुस्सलाम बेन ने मुझसे प्यारेलाल से शादी करने को कहा तो मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने कह दिया कि अगर उन्हें उनकी इतनी चिंता है तो वे स्वयं उनसे शादी क्यों नहीं कर लेतीं? मैंने उनसे कह दिया कि ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग उनके साथ शुरू हुए थे और अब अखबारों में मेरे फोटो छपते देखकर उन्हें मुझसे जलन होती है और मेरी लोकप्रियता उन्हें अच्छी नहीं लगती.

18 मार्च, 1947
मसौढ़ी, बिहार
आज बापू ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात का खुलासा किया. मैंने उनसे पूछा कि क्या सुशीलाबेन भी उनके साथ निर्वस्त्र सो चुकी है क्योंकि मैंने जब उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे प्रयोगों का कभी भी हिस्सा नहीं बनी और उनके साथ कभी निर्वस्त्र नहीं सोई. बापू ने कहा कि सुशीला सच नहीं कह रही क्योंकि वह बारडोली (1939 में जब पहली बार वे बतौर फिजीशियन उनके साथ जुड़ी थीं) के अलावा आगा खां पैलेस (पुणे) में उनके साथ सो चुकी थी. बापू ने बताया कि वह उनकी मौजूदगी में स्नान भी कर चुकी है. फिर बापू ने कहा कि जब सारी बातें मुझे पता ही हैं तो मैं यह सब क्यों पूछ रही हूं? बापू ने कहा कि सुशीला बहुत दुखी थी और उसका दिमाग अस्थिर था और इसलिए वे नहीं चाहते थे कि वह इस सब पर कोई सफाई दे.
‘‘मैंने बापू से आग्रह किया कि मुझे अलग सोने दें’’

25 फरवरी, 1947
हेमचर, बिहार
बापू ने बापा (अमृतलाल ठक्कर को सभी ठक्कर बापा कहते थे) से कहा कि ब्रह्मचर्य धर्म के पांच नियमों में से एक है और वे उसकी परीक्षा को पास करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह उनकी आत्मशुद्धि का यज्ञ है और वे इसे सिर्फ इसलिए नहीं रोक सकते क्योंकि जनभावनाएं पूरी तरह इसके खिलाफ हैं. इस पर बापा ने कहा कि ब्रह्मचर्य की उनकी परिभाषा आम आदमी की परिभाषा से एकदम अलग है और पूछा कि अगर मुस्लिम लीग को इसकी भनक भी लग गई और उसने इस बारे में लांछन लगाए तो क्या होगा? बापू ने जवाब दिया कि किसी के डर से वे अपने धर्म को कतई नहीं छोड़ेंगे और उन्होंने बिरला (उद्योगपति और जाने-माने गांधीवादी जी.डी. बिरला) को भी यह बता दिया था कि अगर प्रयोग के दौरान उनका मन अशुद्ध रहा तो वे पाखंडी कहलाएंगे और वे तकलीफदेह मौत को प्राप्त होंगे. बापू ने बापा से कहा कि अगर वल्लभभाई (पटेल) या किशोर भाई (मशरूवाला) भी उनका साथ छोड़ देंगे तो भी वे अपने प्रयोग जारी रखेंगे.

2 मार्च, 1947
हेमचर, बिहार
आज बापू को बापा का एक गुप्त पत्र मिला. उन्होंने इसे मुझे पढऩे को दिया. यह पत्र दिल को इतना छू लेने वाला था कि मैंने बापू से आग्रह किया कि बापा को संतुष्ट करने के लिए आज से मुझे अलग सोने की अनुमति दें. जब मैंने बापा को अपने इस फैसले के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि बापू और मुझसे बात करने के बाद उन्हें प्रयोग के उद्देश्य के बारे में एकदम संतोष हो गया था लेकिन अलग सोने और प्रयोग समाप्त करने का मेरा फैसला पूरी तरह सही था. उसके बाद बापा ने किशोरलाल मशरूवाला और देवदास गांधी को पत्र लिखकर सूचित किया कि वह अध्याय अब खत्म हो गया है.
‘‘बापू सिर्फ मेरे लिए मां समान थे’’

18 जनवरी, 1947
बिरला हाउस, दिल्ली
बापू ने कहा कि उन्होंने लंबे समय बाद मेरी डायरी को पढ़ा और बहुत ही अच्छा महसूस किया. वे बोले कि मेरी परीक्षा खत्म हुई और उनके जीवन में मेरी जैसी जहीन लड़की कभी नहीं आई और यही वजह थी कि वे खुद को सिर्फ मेरी मां कहते थे. बापू ने कहा: ‘‘आभा या सुशीला, प्यारेलाल या कनु, मैं किसी की परवाह क्यों करूं? वह लड़की (आभा) मुझे बेवकूफ बना रही है बल्कि सच यह है कि वह खुद को ठग रही है. इस महान यज्ञ में मैं तुम्हारे अभूतपूर्व योगदान का हृदय से आदर करता हूं.’’ बापू ने फिर मुझसे कहा, ‘‘तुम्हारी सिर्फ यही भूल है कि तुमने अपना शरीर नष्ट कर लिया है. शारीरिक थकान से ज्यादा तुम्हारी शंकालु प्रवृत्ति तुम्हें खा रही है. मैं खुद को तभी विजेता मानूंगा जब तुम अभी जैसी 70 वर्ष की दिखती हो, उसकी बजाए 17 बरस की दिखो.’’

sivach
July 4th, 2013, 05:25 PM
2 अक्टूबर, 1947
बिरला हाउस, दिल्ली
आज बापू का जन्मदिन था. मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि या तो उन्हें इस दावानल (विभाजन के दंगों की आग जिसे गांधीजी बुझाना चाहते थे) में विजयी बना दे या उन्हें अपने पास बुला ले. बापू ने बहुत जोर लगाया, लेकिन मैं उनकी पीड़ा और नहीं देख सकती. हे ईश्वर! आखिर तू कब तक बापू की परीक्षा लेता रहेगा? मैं रात को सोते या जागते हुए यही प्रार्थना करती हूं कि यह अंतिम सद्कार्य (सांप्रदायिक दंगे समाप्त कराने का) बापू के हाथों संपन्न हो जाए.

14 नवंबर, 1947
बिरला हाउस, दिल्ली
मैं कई दिनों से बुरी तरह अशांत हूं. बापू ने जब यह देखा तो कहा कि अपने मन की बात कह दो. उन्होंने कहा कि मैं कइयों का पितामह और पिता हूं और सिर्फ तुम्हारी माता हूं. मैंने बापू को बताया कि इन दिनों आभा मुझसे बहुत बेरुखी से पेश आ रही है. यही वजह है. बापू ने कहा कि उन्हें खुशी हुई कि मैंने मन की बात उन्हें बता दी लेकिन अगर न बताती तो भी वे मेरे मन की अवस्था समझ सकते थे. उन्होंने कहा कि मैं अंतिम क्षण तक उनके साथ रहूंगी पर आभा संग ऐसा नहीं होगा. इसलिए वह जो चाहे उसे करने दो. उन्होंने मुझे बधाई दी कि मैंने न सिर्फ उनकी बल्कि औरों की भी पूरी निष्ठा से सेवा की है.

18 नवंबर, 1947,
बिरला हाउस, दिल्ली
आज जब मैं बापू को स्नान करवा रही थी तो वे मुझ पर बहुत नाराज हुए क्योंकि मैंने उनके साथ शाम को घूमना बंद कर दिया था. उन्होंने बहुत कड़वे शब्दों का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा, ‘‘जब तुम जीते जी मेरी बात नहीं मानतीं तो मेरे मरने के बाद क्या करोगी? क्या तुम मेरे मरने का इंतजार कर रही हो?’’ यह शब्द सुनकर मैं सन्न रह गई और जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.



और भी... http://aajtak.intoday.in/story/bapu-was-a-mother-to-me-and-me-only-1-734364.html

cooljat
July 4th, 2013, 06:31 PM
Saala Tharki Buddha ... Desh ka baap ban gaya !!
77 years pedophile .. fooling innocent young ladies in the name of "Brahmcharya" !!
DISGUSTING!! :mad:

sanjeev_balyan
July 4th, 2013, 09:52 PM
Saala Tharki Buddha ... Desh ka baap ban gaya !!
77 years pedophile .. fooling innocent young ladies in the name of "Brahmcharya" !!
DISGUSTING!! :mad:

yes, why he had not done this experiment in his thirties / forties.

Sunil2011
July 4th, 2013, 10:20 PM
साला यो गाँधी इस देश का सबसे बड़ा गंध (गाँधी) था इसके साले के घने दिन पहलम ही गोली बिठवा हो थी

rajpaldular
July 5th, 2013, 09:34 AM
साला यो गाँधी इस देश का सबसे बड़ा गंध (गाँधी) था इसके साले के घने दिन पहलम ही गोली बिठवा हो थी


saala tharki buddha ... Desh ka baap ban gaya !!
77 years pedophile .. Fooling innocent young ladies in the name of "brahmcharya" !!
Disgusting!! :mad:


well said friends. 100% agreed.

cooljat
July 5th, 2013, 03:54 PM
.

But was there something more complex than a pious plea for chastity at play in Gandhi's beliefs, preachings and even his unusual personal practices (which included, alongside his famed chastity, sleeping naked next to nubile, naked women to test his restraint)? In the course of researching my new book on Gandhi, going through a hundred volumes of his complete works and many tomes of eye-witness material, details became apparent which add up to a more bizarre sexual history.

Much of this material was known during his lifetime, but was distorted or suppressed after his death during the process of elevating Gandhi into the "Father of the Nation" Was the Mahatma, in fact, as the pre-independence prime minister of the Indian state of Travancore called him, "a most dangerous, semi-repressed sex maniac"?

http://www.independent.co.uk/arts-entertainment/books/features/thrill-of-the-chaste-the-truth-about-gandhis-sex-life-1937411.html

narenderkharb
July 6th, 2013, 10:19 AM
Saala Tharki Buddha ... Desh ka baap ban gaya !!
77 years pedophile .. fooling innocent young ladies in the name of "Brahmcharya" !!
DISGUSTING!! :mad:


Rather a soft appraisal of this hypocrite.......Former Prime Minister of Tranvancore in fact defined him more precisely

"a most dangerous, semi-repressed sex maniac" which is quite evident if we read manu"s diary critically

ravinderjeet
July 6th, 2013, 01:12 PM
में ते बालकपन तें-ए इह बुड्ढे की लान्गड़ खीन्च्या करदा ,पर लोग इहने बाप बनाए हांडे सें । ऊँ ते इह ताहीं यु रास्ट्रपिता की उपाधि किहे सोच समझ के-ए दी होगी ,आगले ने इह के कुकरमां का बेरा होगा । के बेरा इन्द्रा( मेमुना बेगम खान ) के भी गांधी इह ने न्यू-ए धिन्ग्ताने लुवा दिया हो ।

sivach
July 7th, 2013, 02:08 PM
मनुबेन की डायरी के दो हजार पन्नों में अभी ऐसा और बहुत कुछ होगा जो इस तथाकथित महात्मा के व्यक्तित्व के बारे में सही जानकारी देगा|

एक सत्तर साल का बुढ्ढा अपनी कमेच्क्षाओ की पूर्ति के लिये एक सत्रह साल की लड़की के साथ निर्वस्त्र होकर सोने को ब्रहमचर्य का पालन बता कर एक अबोध लड़की को ही नहीं अपितु पूरी दुनिया को भी गलत सन्देश दिया| इतिहासकारों ने जिस व्यक्ति के हर शब्द में महानता की कहानियां लिखी बड़ा आश्चर्य होता है कि उन इतिहासकारों को इतना (और ना जाने कितने होंगे) बड़ा घटिया कृत्य नज़र ही नहीं आया|

ऐसा प्रतीत होता है जैसे हिंदू धर्म के संचालको ने कई प्रतीकों के जीवन को इस प्रकार गढा कि वो भगवान हो गए कुछ इसी तरह से आधुनिक समय में लोगो पर राज करने के लिये कांग्रेस ने मोहन दास करमचंद के जीवन को लोगो के सामने पेश किया |

गाँधी की जिस अहिंसा पर चलने की नीति की बड़े बड़े लोग प्रशंसा करते नहीं थकते वो जनता के सहयोग के बिना कुछ भी नहीं | बिना जनता के सहयोग के कोई भी आन्दोलन सफल नहीं हो सकता | जिसका ताज़ा उदाहरण है अन्ना हजारे का आंदोलन |

DrRajpalSingh
July 7th, 2013, 09:14 PM
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गाँधी की जिस अहिंसा पर चलने की नीति की बड़े बड़े लोग प्रशंसा करते नहीं थकते वो जनता के सहयोग के बिना कुछ भी नहीं | बिना जनता के सहयोग के कोई भी आन्दोलन सफल नहीं हो सकता | जिसका ताज़ा उदाहरण है अन्ना हजारे का आंदोलन |

You are right to conclude that without the wholehearted cooperation of the people no movement can succeed to attain the set goal.

In spite of his personal failings and shortcomings, the credit for turning the Indian freedom movement led by the Congress into mass movement goes to Lokmanya Tilak whom M.K Gandhi succeeded after 1920.

Gandhiji's theories like Non violence [Ahimsa], Satyagraha, Upwas etc. carried a mass appeal that is why people from common strata of society to elites took his words and acts as sacrament and without caring for the consequent results jumped into the freedom movement and ultimately the British had to decide to go sooner than later from India.

The attainment of freedom by India, no doubt, resulted due to so many other factors in addition to Gandhiji's contribution. But the experiments that Gandhiji did put in use like Ahimsa and Satyagraha later on became tools for use for other nations to wage their anti-imperialism and anti-apartheid movements world over. That is why many Asian, African and Latin American nations since 1947 onwards in the last century became free from the clutches of British imperialism in particular and European domination in general.

Moreover, the sudden demise of M.K Gandhi after India won freedom, immortalised him consciously or unconsciously, in the memory of all freedom lovers across the world, who continue to derive inspiration from peaceful method of Indian freedom movement even now !

Notwithstanding his many sided failures and weaknesses in other fields and personal life, this is the real contribution of Mahatma Gandhi as a political leader of mass appeal which the world recognises.

sivach
July 8th, 2013, 06:29 PM
Moreover, the sudden demise of M.K Gandhi after India won freedom, immortalised him consciously or unconsciously, in the memory of all freedom lovers across the world, who continue to derive inspiration from peaceful method of Indian freedom movement even now !


मोहनदास करमचंद गाँधी को महात्मा गाँधी बनाने में असली योगदान है नाथू राम गोडसे का | यदि गाँधी अपनी आयु पूरी होने पर मरते तो आज उनका भी लगभग वही हश्र होता जो पकिस्तान में जिन्ना का हुआ है | नाथू राम गोडसे ने गाँधी को मार कर बहुत गलत किया उसने गोली मारकर गाँधी महानायक (Hero) बना दिया | गाँधी और नेहरु देश का बटवारा तो कर ही चुके थे और इस से ज्यादा नुक्सान देश को क्या पंहुचा सकते थे? गाँधी जिन्दा रहता तो इस तरह ना पूजा जाता |

ताकत अंहिंसा और उपवास में नहीं होती, लोगो के समूह में होती है | दिल्ली में जंतर मंतर पर रोज कई लोग उपवास कर रहे है उनकी कोई सुनवाई नहीं करता है | कई सालो तक कुछ लोगो ने UPSC दिल्ली के गेट पर क्षेत्रीय भाषाओ में परीक्षा के लिये क्रमिक उपवास किया और सरकार के कान पर जूँ भी नहीं रेंगी और ये ही बात जब राजनीतिक नेताओ ने उठाई तो मान ली गयी |

DrRajpalSingh
July 8th, 2013, 06:51 PM
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ताकत अंहिंसा और उपवास में नहीं होती, लोगो के समूह में होती है | दिल्ली में जंतर मंतर पर रोज कई लोग उपवास कर रहे है उनकी कोई सुनवाई नहीं करता है | कई सालो तक कुछ लोगो ने UPSC दिल्ली के गेट पर क्षेत्रीय भाषाओ में परीक्षा के लिये क्रमिक उपवास किया और सरकार के कान पर जूँ भी नहीं रेंगी और ये ही बात जब राजनीतिक नेताओ ने उठाई तो मान ली गयी |

This shows the admittance of the power of people.

The fact that the politicians had to take up the demand raised

by a number of people in peaceful manner shows that none can overlook

the popular demand for too long.

sivach
July 8th, 2013, 07:18 PM
This shows the admittance of the power of people.

The fact that the politicians had to take up the demand raised

by a number of people in peaceful manner shows that none can overlook

the popular demand for too long.


यही तो पहले भी कहा था मैंने कि गाँधी ने अकेले ऐसा कुछ नहीं किया जिस के कारण उसको महान व्यक्तित्व माना जाये | देश की जनता की ताकत थी जिसने आजादी दिलाई | उन वीरो की शहादत जिन्होंने अंग्रेजो को चैन से सोने नहीं दिया | गाँधी में तो तमाम उम्र सत्ता की भूख दिखाई देती है | बहुत ही अंहकारी व्यक्ति था गाँधी, जो अपनी औलाद से भी सामंजस्य नहीं बना सका और इसी अहंकार की वजह से ही देश का बटवारा हुआ |

DrRajpalSingh
July 9th, 2013, 07:09 AM
यही तो पहले भी कहा था मैंने कि गाँधी ने अकेले ऐसा कुछ नहीं किया जिस के कारण उसको महान व्यक्तित्व माना जाये | देश की जनता की ताकत थी जिसने आजादी दिलाई | उन वीरो की शहादत जिन्होंने अंग्रेजो को चैन से सोने नहीं दिया | गाँधी में तो तमाम उम्र सत्ता की भूख दिखाई देती है | बहुत ही अंहकारी व्यक्ति था गाँधी, जो अपनी औलाद से भी सामंजस्य नहीं बना सका और इसी अहंकार की वजह से ही देश का बटवारा हुआ |

Friend,

You are right to say that the freedom of the country was achieved due to cummulative sacrifices and sufferings of so many patriots.

In addition to the objective conditions after the end of the World War II, the emergence of USA and USSR as superpowers and diminishing of the power of Britain as world power, shattered military and economic strength of Britain, the INA onslaught on the eastern borders of India and subsequent trial of the Azad Hind Fauj personnels, revolt in Indian Navy, the outbreak of communal frenzy, failure of the government machinery to control them, the visible division in the armed forces on communal lines after the outbreak of communal rites in various parts of the country, British inability to bring additional forces from their own country to supplement their supporting Indian forces and to substitute the rebellious Indian elements in the Armed forces by bringing in forces from their home country etc. etc. were some of the causes that forced the British to go lock stock and barrel in 1947.

For creating these conditions, which forced the British to free India, the contribution of so many known and unknown martyrs is as much genuine as claimed by the leadership of those times or to say the sacrifices of the formers brought about this much sought after day when we breathed in the free air in the comity of nations of the world on 15th August, 1947.

Several people including M K Gandhi, S.C.Bose and many other leaders of the day, channelised the popular will of the Indians towards the goal of attainment of freedom and no single man or party can be credited solely for attainment of freedom for India.

Thanks.