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View Full Version : समाज में कुछ मूल्य-मान्यताएं चन्दन के वृक&



phoolkumar
October 20th, 2013, 05:54 PM
समाज में कुछ मूल्य-मान्यताएं चन्दन के वृक्ष की भांति होते हैं, जिसपे चाहे जितने सांप लिपटे रहें, लेकिन चन्दन अपनी शीतलता नहीं छोड़ता:

मीडिया वाले इस बात को समझें कि व्यापारिक फायदों के लिए समाज के उन मूल्यों और मान्यताओं से खिलवाड़ ना करें जो समाज में चन्दन के पेड़ की शीतलता की भांति सदा परिहार्य हैं। मीडिया समाज के युवा को जितनी चाहे चकाचौंध, आधुनिकता और खुलेपन के अपरिभाषित विकल्प परोशें, लेकिन कुछ मूल्य और मान्यताएं समाज का वो स्वर्ण-स्तम्भी चन्दन होती हैं जिसपे चाहे लाख सर्प लिपटें पर उनकी उपयोगिता समाज में अमर रहती है। और जब-जब समाज को चारित्रिक, केन्द्रित, इन्द्रिय-नियंत्रित, शांति-प्रिय किरदार चाहिए होंगे, तब-तब समाज को और मीडिया वालो आपको भी इन्हीं मूल्यों और मान्यताओं पर वापिस आते रहना होगा। और इससे भी समझ नहीं आता है तो इसी से समझ लो कि बाजार में कोई प्रोडक्ट कितना चलेगा वो प्रोडक्ट की गुणवत्ता पर निर्धारित होता है, उसकी पैकेजिंग पर नहीं। पैकेजिंग एक बार के लिए तो आकर्षित कर लेगी पर बार-बार नहीं।

ऐसे ही हरियाणवी समाज में समगोत्र-समगाँव में विवाह से बचने के सिद्दांत भी यही चन्दन हैं, इनपे आप कितने ही सर्प लपेट लेना आप इनका पर्याय नहीं ला सकते।

और जो समाज समगोत्र प्रेमविवाह के मामले में लड़की को मामा का गोत्र दिलवा के गोत्र बदल के उनका विवाह करने को खुलापन मान खुद को बुद्धिमान होने का दंभ भरते हैं तो वो ये ना भूलें कि आपने एक समस्या के समाधान हेतु दो नई बुराइयाँ समाज को परोश दी| एक आपने लड़की को मामा का गोत्र दिलवाया यानी लड़की की माँ का, तो इसमें पहले से विवादित रिश्ते की दूरी कैसे बढ़ी, रहा तो माँ का ही? दूसरा ऐसे समाज वाले साफ़ दिखाते हैं कि उनके यहाँ माँ यानी स्त्री के गोत्र की कोई अहमियत नहीं, कोई आदर नहीं अन्यथा वो लड़के का भी तो गोत्र बदल सकते थे, जो कि कभी नहीं देखा गया| सो हो गई ना एक समस्या का समाधान ढूढने के चक्कर में दो समस्याएँ खड़ी?

इसलिए हरियाणा की माता-पिता के गोत्र में शादी ना करने की मान्यता सम्पूर्णत: gender-equality पे टिकी है। और ऐसे ही समगाँव में विवाह ना करने का concept भी gender-equality पे टिका हुआ है, इसलिए हम हरियाणवियों को ऐसे अध्याय पढ़ाने से पहले हमारी सभ्यता संस्कृति पढ़ लोगे तो तुम्हारी हम पर बड़ी मेहरबानी होगी और हम तुम्हारी इन gender-equality पे बेकार की heavy-doses से बच जायेंगे।
और हरियाणवी युवा- युवती भी अगर gender-equality को ले के इन चीजों को देखना चाहता है तो उम्मीद करता हूँ कि आपको यह वृतांत कम-से-कम हमारे यहाँ के गोत्र और गाँव के concept को gedner-equality के angle से समझने में सहायक सिद्ध होगा| धन्यवाद!

Phool Kumar Malik

bipindahiya
October 20th, 2013, 07:04 PM
Well said sahab, i think values,ethos and culture are in blood they r inborn things .The only thing is modern parents should promulgate such values in their kids that they can judge their own betterment as well as uphold the dignity of theirs loved ones.Its just like that everybody know to respect their parents, how to celebrate diwali,importance of marriage,difference between day nd night as no where is this written.

shekharjat
October 20th, 2013, 10:04 PM
phool bhai sahab ,apke vichaar bade badiya hai........humm sab ko modern hona chaiye parr apne sanskaro ke saath parr bhaiji.......abb hum apni hi jaddo ko katt rahe hai...jiss pedh ki jadd hi nahi bachegi wo kaise pahale phule ga...........

mai app apne chote behan bhaiyo ko ye sabb batage to wo apko .......medieval period mentality wale ka tag de denge.........

bhavishye bahut andakaar mai hai.......hum logo ki takat media aur MNCS ke samne kuch bhi nhi hai........

app kaise logo ko samjhao ge......unhe coool hone se jayada matlab hai naa ki sanskaro sai........durbhagye vash modern hona abb....nangpana phelane ho gaya hai
abb logo ko mata pita ke perr choone mai sharm aa rahi hai..........
agar aap kisi se batao ki apki hobby reading hai to wo esse dekhte hai jaise 302 ka kaidi ho.......