phoolkumar
November 12th, 2013, 10:54 PM
दिल (मन) की सत्ता:
जब आदमी तैयार नहीं होता, दिल हुकूमत जमा लेता है,
तैयारी के शोशे दिखा के, सस्ते में ही तुमको पटा लेता है|
उबलते पानी के बुलबुलों सी बयार होती है इसकी,
वास्तविकता को छूते ही, चुपके से खुद को दुबका लेता है||
तराजू के पलड़ों सा बरताव इसका,
भारी को ताड़, उस संग हो लेता है|
दिमाग से यारी गांठे तो, बदतमीजी चरम पर होती है|
दिमाग को कब दे जाए धोखा, जब जग-हंसाई होती है|
दिल और दिमाग के बीच आत्मा का रहना बहुत जरूरी है,
नहीं तो समझ लो, दिल के हाथों तुम्हारा ढहना लाजिमी है|
दिल को चढ़ने दो ना दिमाग पे, इंसानियत सब खो जाती है,
दबंगों की महफ़िल में फिर, सिर्फ अय्यासी ही रह जाती है|
यूँ तो यह नाजुक होता है, पर बच्चे सा चंचल होता है,
इसका बने जो अंधभक्त, फिर वो बच्चे ज्यूँ ही रोता है|
आत्मा सर्वोपरि रखो, इच्छाशक्ति मजबूत बनाने को,
सोधी बनने की जरूरत, मन की चंचलता मिटाने को|
इन चारों का रिश्ता, कुछ यूँ होता आया,
दिल-दिमाग तभी सधें, जब इच्छाशक्ति को मजबूत पाया|
इच्छाशक्ति मजबूत पाने को, आत्मा की शुद्धि जरूरी है,
और आत्मा शुद्ध होगी तब, जब दिल-दिमाग में दूरी है|
आत्मा जागृत है तो सोधी (होश) है, सोधी है तो नियंत्रण में जोश (वासना) है,
जोश पे अंकुश है होश का तो, दिल-दिमाग खामोश है|
दिल-दिमाग खामोश है तो एकाग्रता बढ़ती जाए,
और एकाग्रता जो बढ़ी तो, इंसान डरों के पार जाए|
इस सांचे से कुछ हिले तो, दिल कब्बड्डी करता है,
'फुल्ले भगत' चुप हो जा अब, दिल तेरा उछलता है|
Author: Phool Kumar Malik
जब आदमी तैयार नहीं होता, दिल हुकूमत जमा लेता है,
तैयारी के शोशे दिखा के, सस्ते में ही तुमको पटा लेता है|
उबलते पानी के बुलबुलों सी बयार होती है इसकी,
वास्तविकता को छूते ही, चुपके से खुद को दुबका लेता है||
तराजू के पलड़ों सा बरताव इसका,
भारी को ताड़, उस संग हो लेता है|
दिमाग से यारी गांठे तो, बदतमीजी चरम पर होती है|
दिमाग को कब दे जाए धोखा, जब जग-हंसाई होती है|
दिल और दिमाग के बीच आत्मा का रहना बहुत जरूरी है,
नहीं तो समझ लो, दिल के हाथों तुम्हारा ढहना लाजिमी है|
दिल को चढ़ने दो ना दिमाग पे, इंसानियत सब खो जाती है,
दबंगों की महफ़िल में फिर, सिर्फ अय्यासी ही रह जाती है|
यूँ तो यह नाजुक होता है, पर बच्चे सा चंचल होता है,
इसका बने जो अंधभक्त, फिर वो बच्चे ज्यूँ ही रोता है|
आत्मा सर्वोपरि रखो, इच्छाशक्ति मजबूत बनाने को,
सोधी बनने की जरूरत, मन की चंचलता मिटाने को|
इन चारों का रिश्ता, कुछ यूँ होता आया,
दिल-दिमाग तभी सधें, जब इच्छाशक्ति को मजबूत पाया|
इच्छाशक्ति मजबूत पाने को, आत्मा की शुद्धि जरूरी है,
और आत्मा शुद्ध होगी तब, जब दिल-दिमाग में दूरी है|
आत्मा जागृत है तो सोधी (होश) है, सोधी है तो नियंत्रण में जोश (वासना) है,
जोश पे अंकुश है होश का तो, दिल-दिमाग खामोश है|
दिल-दिमाग खामोश है तो एकाग्रता बढ़ती जाए,
और एकाग्रता जो बढ़ी तो, इंसान डरों के पार जाए|
इस सांचे से कुछ हिले तो, दिल कब्बड्डी करता है,
'फुल्ले भगत' चुप हो जा अब, दिल तेरा उछलता है|
Author: Phool Kumar Malik