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RavinderSura
March 5th, 2014, 05:02 PM
राष्ट्रीय पुरस्कारों में भी दलितों और पिछड़ों के साथ भेदभाव : सांगवान
अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष पूर्व कमांडेंट हवासिंह सांगवान ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि राष्ट्रीय पुरस्कारों में भी शुरू से ही भेदभाव होता आया है। एक बार पूर्व महामहिम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद अपनी सरकारी गाड़ी से हैदराबाद से विजयवाड़ा जा रहे थे तो रास्ते में उनको कुछ तकलीफ हो गई, जिस कारण उन्हें वहां एक क्लिनिक में एक नर्स से टीका लगवाना पड़ा और दवाई लेनी पड़ी। जब उसी वर्ष उनके सामने राष्ट्रीय पुरस्कारों की सूची उनके हस्ताक्षरों के लिए आई तो उन्होंने उस नर्स का नाम मालूम करके अपने हाथ से पदम श्री पुरस्कार के लिए जोड़ दिया। उस नर्स का नाम तेजरस था।
इस प्रकार हम देखते हैं कि देश का सबसे बड़ा सिविल पुरस्कार भारत रत्न आज तक 12 प्रतिशत उच्च जातियों को 98 प्रतिशत दिए गए हैं, जिसमें एक उच्च जाति के नाम 90 प्रतिशत से अधिक भारत रत्न दिए गए हैं, जबकि देश की 88 प्रतिशत दलित, पिछड़ा और आदिवासी कमाऊ वर्ग का खाता लगभग खाली है। डॉ. अंबेडकर को भारत रत्न देना एक राजनीतिक मजबूरी थी। यहां तक कि आसाम के तत्कालीन मुख्यमंत्री बरदलोई को भी भारत रत्न दे दिया गया, जबकि उनको आसाम से बाहर कोई नहीं जानता। ऐसे लोगों को भारत का रत्न कैसे कहा जा सकता है? विख्यात पत्रकार व लेखक कुलदीप नैयर ने बड़ा सच लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने पर राष्टीय पुरस्कारों का पूर्णतया भगवाकरण कर दिया गया। इस प्रकार के पुरस्कार देने से पहले मीडिया के कुछ लोगों द्वारा ऐसे लोगों के लिए भूमि तैयार की जाती है और उसका नाम उछलने के बाद उसको पुरस्कार दे दिया जाता है। जिस प्रकार क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को पहले मीडिया ने क्रिकेट का भगवान करार दिया, फिर उसके बाद उन्हें भारत रत्न दे दिया गया। ये कार्य बड़ी सोची-समझी चाल के तहत किए जाते हैं, जिस आम आदमी के लिए समझना कठिन ही नहीं, बल्कि असंभव है। इस विषय में सूचना अधिकार के तहत बहुत ही सनसनीखेज मामले सामने आए हैं।