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View Full Version : जाट बनाम परिवारवाद।



abhisheklakda
March 1st, 2014, 02:07 PM
पता नही भाई जाट कौम को क्या हो गया?? कंहा भटक गयी है ये कौम?? कंहा गयी जाटोँ की वो धमक जिससे सरकारेँ हिल जाया करती थी?? कडै गया वो जोश, जो दूसरोँ के होश खो दिया करै था??
अरै जाट भाईयोँ कम से कम अपने मुद्दोँ के प्रति तो जागरुक हो जाओ।कम तै कम अपने साथ व अपनी कौम के साथ तो अन्याय ना होवण दो।
दो तीन दिन पहलै सुप्रीम कॉर्ट नै कहा कि हम मदरसोँ के फतवोँ पर रोक नहीँ लगा सकते। अगर इस कोर्ट तै को बुझ्झै कि यू म्हारी खाप नैँ कंगारू कोर्ट, तालिबानी क्यूंकर बतावै।
इसका सूधा सा जवाब है कि जाटोँ मेँ अपनी कौम के लिए प्यार नी है। वर्ना किसमैँ हिम्मत थी जो 7-8 राज्योँ मेँ बसे जाटोँ की संस्कृति , सभ्यता पर ऐसी टिप्पणी कर सकेँ। पर करे क्या म्हारे जाट नेताओँ के पास आरक्षण के सिवाय कोई और मुद्दा कोन्या।
पिछले साल मुरादाबाद मेँ एक गुर्जर लड़की की हत्या हो गयी थी गुर्जरोँ नेँ जगह जगह सड़क जाम कर दी, गुर्जर नेताओँ नेँ संसद मैँ भी cbi जांच की मांग की, और उनकी बात मानी गयी।
पर उन्हीँ दिनोँ मुंबई मेँ प्रीती राठी नाम की एक जाट लड़की के ऊपर तेजाब डालकर मार दिया गया। पर किसी भी जाट नेँ उसके लिए इंसाफ की मांग नहीँ की, और जाट नेताओँ की तो बात ही छोड दो।
ऐसा ही मुद्दा कैप्टन सौरभ कालिया का है। आखिर कब मिलेगा इस शहीद को इंसाफ?? मैँ अपने जाट भाईयोँ से पूछता हूँ कि वे इतने क्यूँ भटक गये है?? क्यूँ अपने जाट नेताओँ पर कंट्रोल नहीँ है? आखिर कब तक जाट कौम को ये नकली नेता पागल बनाते रहेंगे??
अब तो जाग जाओँ, और दिखा दो इन सरकारोँ को, इन अदालतोँ को, कि इनकी जाट विरोधी नीति अब नहीँ चलेगी।
चौधरी अभिषेक लाकड़ा

abhisheklakda
March 13th, 2014, 05:15 PM
राम राम जाट भाइयोँ।इस लेख मेँ जाट राजनीति के बारे मेँ बात करूंगा। मेरा आपसे निवेदन है कि आप इसे पूरा पढ़ेँ और अपने सुझाव जरूर देँ। जैसा कि आप सब जानते हैँ कि जाट प्राचीन काल से ही स्वतंत्र विचारोँ वाले और लोकतांत्रिकरहे हैं। जब पूरा भारत गुलामी की बेड़ियो मे जकड़ा हुआ था तब भी जाटोँ की स्वतंत्रता मेँ कोई सीधा हस्तक्षेपनही था, चाहे वो मुगलो का शासन ही क्योँ ना रहा हो।परन्तु आज के जाट समाज को देखकर कोई ये नहीँ कह सकता कि हम लोकतांत्रिक रह हो। आप जरा सोचिए कि अगर सर छोटू राम जी अपने किसी सगे संबंद्धि को अपना राजनी उत्तराधिकार सौँप कर जाते तो मुझेनही लगता कि उनके सगे संबंद्धि से सफल कोई राजनीतिज्ञ होता।अगर चौ. चरण सिँह लोकदल का भार चौ. देवीलाल को न सौंपकर अपने पुत्र अजीत सिँह को सौँप देतेतो इसमेँ कोई शक की बात नहीँ कि अजित सिँह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होते।पर इन दोनोँ महापुरुषोँ ने ऐसा नहीँ किया। अगर ये ऐसा करते तो हरयाणा मेँ बंसीलाल, देवीलाल जैसेजाट नेता मुख्यमंत्री ना होते।अजित सिँह UP के मुख्यमंत्री होते। महेन्द्र सिँह टिकैत जैसा महान नेता ना होते। क्योँकि इनके पुत्र पुत्रियाँ ही नेता होते।पर उन्होनेँ ऐसा नहीँ किया क्योँकि उ जाट जाती से प्यार था और वे सच्चे सिपाही थे जाट कौम के। हर एकजाट को अपना सगा संबद्धि मा थे। उनको प्यार था हम सब से।परन्तु आज के जाट नेताओँ को तो देखिए वे अपने बच्चोँ के सिवाय किसी को अपना नहीँ मान केवल अपने स्वार्थ को सिद्ध करते है। और अपने स्वार्थ के लिए पुरी जाट जाति के हितोँ को बली चढ़ा देते है। जाट के नाम पर छलते ह पूरे जाट समाज को।मैँ पूछना चाहता हूँ इन समाज के ठेकेदारोँ से कि तुम हमे अपना मानते भी हो या नहीँ ।क्या तुम्हे कोई जाट योग्य नजर नहीँ आता।मित्रोँ हमारे देश मे तीन जाट पार्टियाँ है INLD, RLD, अकाली दल । ये तीनोँ हि पार्टियाँ जाट के नाम पर voteपाती है । पर जाटोँ के लिए इन पार्टियोँ ने कुछ नहीँ किया केवल जाटोँ के नाम पर सत्ता का सुख भोगते रहे।पूरी जाट जाती की भावना से खिलवाड़ करते रहे।मैँ पूछना चाहता हूँ कि चौ. देवीलाल को अपने पुत्र के अलावा कोई और जाट नजर नही आया मुख्यमंत्री बनाके लिए। ये चौ. देवीलाल ही थे जिन्होने मुलायम को मुख्यमंत्री बनवा कर UP मेँ जाट राजनीति का अन्त करदिया। अब मान्यवर चौटाला जी है जो अपने बेटोँ और पौत्रोँ के राजनीतिक भविष्य को चमकाने मे लगे हुए है।इनको जाटोँ से कोई लेना देना नहीँ है।प्रकाश सिंह बादल भी ऐसे ही है वे चाहते तो और जाट नेताओँ को भी आगे ला सकते थे। पर पुत्र मोह ?और अजित सिँह कि तो छोड़ ही दे उनको तो लालच इतना है कि किसी प्रकार आशा ही छोड़ दो।जितना ये नेता दोषी है उससे ज्यादा हम खुद दोषी है जो इनके पिछलग्गु बने हुए है। और पूरी जाट जाति को गर्त मे ले जा रहे है।भावनावोँ मे राजनीतिक विवेक खो दिया। अगर कोई नयी पीढ़ी का जाट नेता उभरता भी है तो उसकी टाँग खीँचने मे पूरी ऊर्जा लगा देते है।पूरा जाट समाज राजनीतिक दासता मे जकड़ा हुआ है। एसे मे मुझे नहीँ लगता कि कोई भी जाटोँ को लोकतांत्रिकहेगा।पर मैँ इतना जरूर कहना चांहूगा कि जिस जाट जाति का इतिहास इतना गौरवशाली रहा है उसको धूमिल ना होने दे।ताश को छोड अपने समाज के बारे मे सोचे।हमेँ नया इतिहास लिखना है। सर छोटूराम,चौ. चरण सिँह जैसे नेता बनाने है।जाटोँ मे प्रतिभा की कोई कमी नहीँ है प राजनीतिक दासता छोड़ना होगा।इन परिवारोँ के पीछे भागने से कुछ नहीँ होगा।आखिर मे मैँ बस इतना कहूगा कि मेरे युवा जाट भाईयोँ जागोँ।हम जाट है, और जाट कुछ भी कर सकता है। जिस प्रकार राजा जवाहर सिँह ने कम उम्र मेँ अपनेपहले अभियान मे दिल्ली को रौँद दिया था उसी प्रकार से हमे भी अपनी नेतृत्व शक्ति को पहचानते हुएनया इतिहास रचना है।धन्यवाद्चौ. अभिषेक लाकड़ा

Amits2272
March 26th, 2014, 12:38 PM
Bhai inke alawa option bhi to nahi h koi,up me to bilkul b nahi.agar inke piche na lage to kiske lage? Fir bilkul hi zero ho jayege.

Bahadursaroha
March 26th, 2014, 03:07 PM
राम राम जाट भाइयोँ।इस लेख मेँ जाट राजनीति के बारे मेँ बात करूंगा। मेरा आपसे निवेदन है कि आप इसे पूरा पढ़ेँ और अपने सुझाव जरूर देँ। जैसा कि आप सब जानते हैँ कि जाट प्राचीन काल से ही स्वतंत्र विचारोँ वाले और लोकतांत्रिकरहे हैं। जब पूरा भारत गुलामी की बेड़ियो मे जकड़ा हुआ था तब भी जाटोँ की स्वतंत्रता मेँ कोई सीधा हस्तक्षेपनही था, चाहे वो मुगलो का शासन ही क्योँ ना रहा हो।परन्तु आज के जाट समाज को देखकर कोई ये नहीँ कह सकता कि हम लोकतांत्रिक रह हो। आप जरा सोचिए कि अगर सर छोटू राम जी अपने किसी सगे संबंद्धि को अपना राजनी उत्तराधिकार सौँप कर जाते तो मुझेनही लगता कि उनके सगे संबंद्धि से सफल कोई राजनीतिज्ञ होता।अगर चौ. चरण सिँह लोकदल का भार चौ. देवीलाल को न सौंपकर अपने पुत्र अजीत सिँह को सौँप देतेतो इसमेँ कोई शक की बात नहीँ कि अजित सिँह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होते।पर इन दोनोँ महापुरुषोँ ने ऐसा नहीँ किया। अगर ये ऐसा करते तो हरयाणा मेँ बंसीलाल, देवीलाल जैसेजाट नेता मुख्यमंत्री ना होते।अजित सिँह UP के मुख्यमंत्री होते। महेन्द्र सिँह टिकैत जैसा महान नेता ना होते। क्योँकि इनके पुत्र पुत्रियाँ ही नेता होते।पर उन्होनेँ ऐसा नहीँ किया क्योँकि उ जाट जाती से प्यार था और वे सच्चे सिपाही थे जाट कौम के। हर एकजाट को अपना सगा संबद्धि मा थे। उनको प्यार था हम सब से।परन्तु आज के जाट नेताओँ को तो देखिए वे अपने बच्चोँ के सिवाय किसी को अपना नहीँ मान केवल अपने स्वार्थ को सिद्ध करते है। और अपने स्वार्थ के लिए पुरी जाट जाति के हितोँ को बली चढ़ा देते है। जाट के नाम पर छलते ह पूरे जाट समाज को।मैँ पूछना चाहता हूँ इन समाज के ठेकेदारोँ से कि तुम हमे अपना मानते भी हो या नहीँ ।क्या तुम्हे कोई जाट योग्य नजर नहीँ आता।मित्रोँ हमारे देश मे तीन जाट पार्टियाँ है INLD, RLD, अकाली दल । ये तीनोँ हि पार्टियाँ जाट के नाम पर voteपाती है । पर जाटोँ के लिए इन पार्टियोँ ने कुछ नहीँ किया केवल जाटोँ के नाम पर सत्ता का सुख भोगते रहे।पूरी जाट जाती की भावना से खिलवाड़ करते रहे।मैँ पूछना चाहता हूँ कि चौ. देवीलाल को अपने पुत्र के अलावा कोई और जाट नजर नही आया मुख्यमंत्री बनाके लिए। ये चौ. देवीलाल ही थे जिन्होने मुलायम को मुख्यमंत्री बनवा कर UP मेँ जाट राजनीति का अन्त करदिया। अब मान्यवर चौटाला जी है जो अपने बेटोँ और पौत्रोँ के राजनीतिक भविष्य को चमकाने मे लगे हुए है।इनको जाटोँ से कोई लेना देना नहीँ है।प्रकाश सिंह बादल भी ऐसे ही है वे चाहते तो और जाट नेताओँ को भी आगे ला सकते थे। पर पुत्र मोह ?और अजित सिँह कि तो छोड़ ही दे उनको तो लालच इतना है कि किसी प्रकार आशा ही छोड़ दो।जितना ये नेता दोषी है उससे ज्यादा हम खुद दोषी है जो इनके पिछलग्गु बने हुए है। और पूरी जाट जाति को गर्त मे ले जा रहे है।भावनावोँ मे राजनीतिक विवेक खो दिया। अगर कोई नयी पीढ़ी का जाट नेता उभरता भी है तो उसकी टाँग खीँचने मे पूरी ऊर्जा लगा देते है।पूरा जाट समाज राजनीतिक दासता मे जकड़ा हुआ है। एसे मे मुझे नहीँ लगता कि कोई भी जाटोँ को लोकतांत्रिकहेगा।पर मैँ इतना जरूर कहना चांहूगा कि जिस जाट जाति का इतिहास इतना गौरवशाली रहा है उसको धूमिल ना होने दे।ताश को छोड अपने समाज के बारे मे सोचे।हमेँ नया इतिहास लिखना है। सर छोटूराम,चौ. चरण सिँह जैसे नेता बनाने है।जाटोँ मे प्रतिभा की कोई कमी नहीँ है प राजनीतिक दासता छोड़ना होगा।इन परिवारोँ के पीछे भागने से कुछ नहीँ होगा।आखिर मे मैँ बस इतना कहूगा कि मेरे युवा जाट भाईयोँ जागोँ।हम जाट है, और जाट कुछ भी कर सकता है। जिस प्रकार राजा जवाहर सिँह ने कम उम्र मेँ अपनेपहले अभियान मे दिल्ली को रौँद दिया था उसी प्रकार से हमे भी अपनी नेतृत्व शक्ति को पहचानते हुएनया इतिहास रचना है।धन्यवाद्चौ. अभिषेक लाकड़ा


भाई नेताओं का टोटा आग्या
अगर एसा होता तो म्आरी सडको मे गड्ढे ना होते,यूवा सडको पे ना होते, लोग हमे या दुनिया अपने बच्चे को मरने वाले ना कहते I B S Saroha

Bahadursaroha
March 26th, 2014, 03:10 PM
भाई नेताओं
म्आरे हाथ पेर काट दिये I
B S Saroha

Bahadursaroha
March 26th, 2014, 03:16 PM
राम राम जाट भाइयोँ।इस लेख मेँ जाट राजनीति के बारे मेँ बात करूंगा। मेरा आपसे निवेदन है कि आप इसे पूरा पढ़ेँ और अपने सुझाव जरूर देँ। जैसा कि आप सब जानते हैँ कि जाट प्राचीन काल से ही स्वतंत्र विचारोँ वाले और लोकतांत्रिकरहे हैं। जब पूरा भारत गुलामी की बेड़ियो मे जकड़ा हुआ था तब भी जाटोँ की स्वतंत्रता मेँ कोई सीधा हस्तक्षेपनही था, चाहे वो मुगलो का शासन ही क्योँ ना रहा हो।परन्तु आज के जाट समाज को देखकर कोई ये नहीँ कह सकता कि हम लोकतांत्रिक रह हो। आप जरा सोचिए कि अगर सर छोटू राम जी अपने किसी सगे संबंद्धि को अपना राजनी उत्तराधिकार सौँप कर जाते तो मुझेनही लगता कि उनके सगे संबंद्धि से सफल कोई राजनीतिज्ञ होता।अगर चौ. चरण सिँह लोकदल का भार चौ. देवीलाल को न सौंपकर अपने पुत्र अजीत सिँह को सौँप देतेतो इसमेँ कोई शक की बात नहीँ कि अजित सिँह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होते।पर इन दोनोँ महापुरुषोँ ने ऐसा नहीँ किया। अगर ये ऐसा करते तो हरयाणा मेँ बंसीलाल, देवीलाल जैसेजाट नेता मुख्यमंत्री ना होते।अजित सिँह UP के मुख्यमंत्री होते। महेन्द्र सिँह टिकैत जैसा महान नेता ना होते। क्योँकि इनके पुत्र पुत्रियाँ ही नेता होते।पर उन्होनेँ ऐसा नहीँ किया क्योँकि उ जाट जाती से प्यार था और वे सच्चे सिपाही थे जाट कौम के। हर एकजाट को अपना सगा संबद्धि मा थे। उनको प्यार था हम सब से।परन्तु आज के जाट नेताओँ को तो देखिए वे अपने बच्चोँ के सिवाय किसी को अपना नहीँ मान केवल अपने स्वार्थ को सिद्ध करते है। और अपने स्वार्थ के लिए पुरी जाट जाति के हितोँ को बली चढ़ा देते है। जाट के नाम पर छलते ह पूरे जाट समाज को।मैँ पूछना चाहता हूँ इन समाज के ठेकेदारोँ से कि तुम हमे अपना मानते भी हो या नहीँ ।क्या तुम्हे कोई जाट योग्य नजर नहीँ आता।मित्रोँ हमारे देश मे तीन जाट पार्टियाँ है INLD, RLD, अकाली दल । ये तीनोँ हि पार्टियाँ जाट के नाम पर voteपाती है । पर जाटोँ के लिए इन पार्टियोँ ने कुछ नहीँ किया केवल जाटोँ के नाम पर सत्ता का सुख भोगते रहे।पूरी जाट जाती की भावना से खिलवाड़ करते रहे।मैँ पूछना चाहता हूँ कि चौ. देवीलाल को अपने पुत्र के अलावा कोई और जाट नजर नही आया मुख्यमंत्री बनाके लिए। ये चौ. देवीलाल ही थे जिन्होने मुलायम को मुख्यमंत्री बनवा कर UP मेँ जाट राजनीति का अन्त करदिया। अब मान्यवर चौटाला जी है जो अपने बेटोँ और पौत्रोँ के राजनीतिक भविष्य को चमकाने मे लगे हुए है।इनको जाटोँ से कोई लेना देना नहीँ है।प्रकाश सिंह बादल भी ऐसे ही है वे चाहते तो और जाट नेताओँ को भी आगे ला सकते थे। पर पुत्र मोह ?और अजित सिँह कि तो छोड़ ही दे उनको तो लालच इतना है कि किसी प्रकार आशा ही छोड़ दो।जितना ये नेता दोषी है उससे ज्यादा हम खुद दोषी है जो इनके पिछलग्गु बने हुए है। और पूरी जाट जाति को गर्त मे ले जा रहे है।भावनावोँ मे राजनीतिक विवेक खो दिया। अगर कोई नयी पीढ़ी का जाट नेता उभरता भी है तो उसकी टाँग खीँचने मे पूरी ऊर्जा लगा देते है।पूरा जाट समाज राजनीतिक दासता मे जकड़ा हुआ है। एसे मे मुझे नहीँ लगता कि कोई भी जाटोँ को लोकतांत्रिकहेगा।पर मैँ इतना जरूर कहना चांहूगा कि जिस जाट जाति का इतिहास इतना गौरवशाली रहा है उसको धूमिल ना होने दे।ताश को छोड अपने समाज के बारे मे सोचे।हमेँ नया इतिहास लिखना है। सर छोटूराम,चौ. चरण सिँह जैसे नेता बनाने है।जाटोँ मे प्रतिभा की कोई कमी नहीँ है प राजनीतिक दासता छोड़ना होगा।इन परिवारोँ के पीछे भागने से कुछ नहीँ होगा।आखिर मे मैँ बस इतना कहूगा कि मेरे युवा जाट भाईयोँ जागोँ।हम जाट है, और जाट कुछ भी कर सकता है। जिस प्रकार राजा जवाहर सिँह ने कम उम्र मेँ अपनेपहले अभियान मे दिल्ली को रौँद दिया था उसी प्रकार से हमे भी अपनी नेतृत्व शक्ति को पहचानते हुएनया इतिहास रचना है।धन्यवाद्चौ. अभिषेक लाकड़ा


भाई नेताओं का टोटा आग्या
अगर एसा होता तो म्आरी सडको मे गड्ढे ना होते,यूवा सडको पे ना होते, लोग हमे या दुनिया अपने बच्चे को मरने वाले ना कहते I B S Saroha