raka
December 5th, 2014, 09:17 PM
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" तुम अगर बिछड़े रहो तो चंद कतरे ही फकत
तुम अगर मिल जाओ तो बिफरा हुआ तूफान हो "
हमारे देश मे जाति आधार पर जनगणना आखिरी बार 1931 मे हुई थी | उस वक़्त भारत मे जाटों की आबादी इस प्रकार थी -1) पंजाब - 73% , 2) राजस्थान - 12% , 3) यू.पी - 9.2% , 4) जम्मू कश्मीर - 2% , 5) बलोचिस्तान - 1.2% , 6) एनडबल्यूएफ़पी (NWFP)-1% , 7) बॉम्बे प्रेसीडेंसी - 0.7% , 8) दिल्ली - 0.6% , 9) सीपी & बार - 0.3% , 10) अजमेर & मारवाड़ - 0.3%
जिसमे हिन्दू जाट - 47% , सिख जाट - 20% , मुस्लिम जाट - 33%
कुछ लोग जिनकी आबादी देश मे मुट्ठी भर हैं वह लोग जाट व अन्य दूसरी किसान व दलित जातियों को धर्म के नाम पर बाँट कर उनके साथ भेड़ बकरियों की तरह बर्ताव करते हुए अपने स्वार्थो के लिए इस्तेमाल किया करते | चौधरी छोटूराम शहरी लोगो की इस चाल को भली भांति समझ गए थे इसलिए उन्होने अलग-अलग पंथो धर्मो मे बंटे जाटों को एक किया , उनको उनकी शक्ति का एहसास दिलाया | जाटिज्म का नारा सबसे पहले चौधरी छोटूराम ने दिया था | सन 1929 मे अखिल भारतीय जाट महासभा के आगरा अधिवेशन मे चौधरी छोटूराम ने पहली बार कहा था " राज करेगा जाट " | पंजाब एसम्ब्ली मे इस बात पर काफी हल्ला हुआ | चौधरी छोटूराम ने इस पर जवाब देते हुए कहा था की लोकतन्त्र का सिद्धांत हैं की " जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी " और मैंने जिस सभा मे यह बात कही थी वाहा 25-30 हजार लोगो की भीड़ थी जिसमे 90% जाट थे | पंजाब मे 73% जाटों के साथ साथ चौधरी छोटूराम ने दलित व दूसरी किसान जातियों के हितों का भी पूरा ख्याल रखा | चौधरी छोटूराम ने कृषक जातियों को लेकर अजगर ( अहीर जाट गूजर राजपूत ) का निर्माण किया | चौधरी छोटूराम की असली ताकत अजगर थे | चौधरी छोटूराम ने बड़ी सफलता के साथ किसान व जातिगत आधार पर राजनीति की , ये दोनों एक ही धुरी के बड़े और छोटे चक्र हैं | इसी नीति को आगे चल कर चौधरी देवी लाल ने भी अपनाया , उन्होने महा-अजगर का पुनः निर्माण किया (मुसलमान - अहीर जाट गूजर राजपूत ) और जिसके दम पर केंद्र की सत्ता तक गए |
पंजाब मे चौधरी छोटूराम ने सर सिकंदर हयात खान और बाद मे सर खिजर तिवाना के साथ हिन्दू - मुस्लिम जाट किसानो कि एकता को मजबूत बनाए रखा | यह एकता इतनी मजबूत थी कि जिन्नाह को पंजाब मे पैर जमाने मुश्किल हो रखे थे | एक बार तो जिन्नाह को एक मुस्लिम जाट विधायक ने टका सा जवाब दे दिया था कि पहले हम जाट हैं और बाद मे मुस्लिम और हम जाटों का नेता हैं चौधरी छोटूराम | चौधरी छोटूराम कि मुस्लिम जाटों से यह एकता हिन्दुओ के ठेकेदारों को सुहा नहीं रही थी , जिसकी जलन मे हिन्दुओ के अखबार चौधरी छोटूराम को हिटलर छोटूखान लिख कर उन्हे अपमानित करने कि कोशिश करते |
जैसी हिन्दू - मुस्लिम किसानो कि एकता पंजाब मे थी वैसी ही एकता बंगाल मे कृषक प्रजा पार्टी के फजलूल हक बनाए हये थे | वाइसरोय के कहने से फजलूल हक जिन्नाह की मुस्लिम लीग मे शामिल हो गए परंतु कुछ दिनो बाद ही वे मुस्लिम लीग से अलग हो गए | 1941 मे मुस्लिम लीग से अलग हो कर फजलूल हक़ कोग्रेस के सहयोग से सरकार बनाना चाहते थे परंतु काँग्रेस ने शर्त रखी कि सरकार बनते ही वे पहला फैसला जेल मे बंद क्रांतिकारियों कि रिहाई का लेंगे | इस पर फजलूल हक ने कहा कि कृषक प्रजा पार्टी सबसे पहला फैसला किसानो के हक मे लेगी | कॉंग्रेस से बात सिरे न चढ़ने पर फजलूल हक ने डॉक्टर श्यामा प्रशाद मुखर्जी के साथ मिल कर सरकार बनाई | सरकार मे श्यामा प्रशाद मुखर्जी वित्त मंत्री बने | फजलूल हक़ ने अपनी वकालत डॉक्टर श्यामा प्रशाद मुखर्जी के पिता कलकत्ता के नामी वकील सर आशुतोष के सहायक के रूप मे शुरू की थी | वित्त मंत्री श्यामा प्रशाद मुखर्जी अक्सर सीएम फजलूल हक़ को अपने साथ हिन्दू महासभा की कार्यकारी मीटिंग मे ले जाते थे | ये वहीं श्यामा प्रशाद मुखर्जी जिन्होने आज़ादी के बाद गोलवलकर के कहने पर काँग्रेस से अलग हो कर जन संघ पार्टी का गठन किया |
1947 मे मुस्लिम लीग और आरएसएस ने अपनी गतिविधिया तेज कर दी थी | दोनों संगठनो ने अपनी अपनी निजी सेनाए बनानी शुरू कर दी थी | खुफिया विभाग की रिपोर्ट के आधार पर पंजाब के प्रीमिएर सर खिजर तिवाना ने 24 जनवरी 1947 को दोनों संगठनो पर प्रतिबंध लगा दिया था | इन दोनों संगठनो की पकड़ सिर्फ शहरी लोगो तक थी | देहात मे इन लोगो का ज्यादा असर नहीं था यहीं कारण था की देश के लगभग हर प्रान्त मे देहात के लोगो की सरकारे थी | यह बात इन शहरी लोगो के संगठनो को बरदास्त नहीं हो रही थी और इन दोनों ही संगठनो ने लोगो को धर्म के नाम पर भड़काना शुरू कर दिया | ये दोनों संगठन पंजाब व बंगाल के लोगो को धर्म के नाम से भड़काने मे सफल रहे और अगस्त 1947 मे देश का पंजाब व बंगाल दो जगह से बंटवारा हुआ | देश आज़ाद होने के बाद एक बार फिर से आरएसएस पर देश के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने प्रतिबंध लगाया | 1947 का बंटवारा देश का या पंजाब का बंटवारा नहीं था असल मे यह जाटों का धर्म के नाम पर बंटवारा था , पंजाब के 73% जाटों की ताकत का बंटवारा था | चौधरी छोटूराम की विचारधारा का बंटवारा था | ये धर्मों के ठेकेदार कभी नहीं चाहते की जाट एक हो , जाटों को इनकी ताकत का एहसास हो इसलिए ये लोग हमें धर्म की बूटी सुंघाए रखना चाहते हैं | चौधरी छोटूराम इनकी चालों को भली भांति समझते थे | चौधरी छोटूराम खून के रिश्ते को ज्यादा महत्व देते थे , उनका कहना था " एक आदमी दिन मे चाहे तो तीन बार अपना धर्म बदल सकता हैं , परंतु वह अपनी जाति नहीं बदल सकता " | आज भी जाट चाहे किसी धर्म मे हो वह अपनी जाति से ही जाना जाता हैं | चौधरी छोटूराम ने कहा था " हमने माना की मजहब जान हैं इंसान की , इसी के दम से कायम कुछ शान हैं इंसान की , रंग-ए-क़ौमियत मगर इससे बदल सकता नहीं , खून आबाई रग ओ तन से निकल सकता नहीं " (आबाई - पूर्वज) , उनके कहने का अर्थ साफ था की जितने धर्म बदल लो परंतु तुम्हारी रगों से पूर्वजों का खून नहीं निकल सकता |
आरएसएस आज भी सिर्फ शहरी लोगो तक सीमित हैं , हमारे जो लोग इस सगठन मे हैं वे भी वहीं हैं जो शहरो मे जा कर बस गए हैं | असल मे इस संगठन के आका जिनकी आबादी देश मे मुश्किल से 3% होगी नहीं चाहते की हमारे लोग होश मे आए , इसलिए हमारे लोगो को धर्म की बूटी सुंघाए रखते हैं | कभी ये लोग हमे धर्म के नाम पर लड़ाते हैं तो कभी जात के नाम पर | जाट- दलित के झगड़े , जाट-गूजर के झगड़े , जाट-राजपूत के झगड़े , जाट-मुस्लिम के झगड़े सबने खूब सुने होंगे परंतु शायद ही कभी यह सुना हो की ब्राह्मण-दलित झगड़ा हुआ हो , ब्राह्मण या किसी कृषक जाति का झगड़ा हुआ हो | हमारा कोई भी नेता ऊपर उठता हैं तो यह लोग उस पर जाति का ठप्पा लगा कर उसे वही रोक देते हैं , जैसे की यह तो दलितों का नेता हैं , यादवों का नेता हैं , जाटों का नेता हैं या क्षत्रियों का नेता हैं आदि परंतु यह शायद ही कभी सुनने मे आता हो की यह तो ब्राह्मणों का नेता हैं !
यह लोग हमारे लोगो को बदनाम करने मे कोई कसर नहीं छोडते | कुछ हमारे ही लोग इनकी बातों मे बहक कर इनके शंख की तरह बजते रहते हैं | कुछ दिन पहले एक भाई ने बताया की उसने दिल्ली मे एक युवा जाट मीट की थी , उस मीट मे एक आरएसएस का कोई पदाधिकारी भी आया हुआ था | वो संघ का पदाधिकारी कहने लगा की छोटूराम अंग्रेज़ो का पिट्ठू था , सर की उपाधि ली हुई थी , मुसलमानो से मिला हुआ था | आजकल ऐसे भटके हुए बहके हुए और भी कई भाई मिल जाएंगे जो बिना कुछ सोचे समझे संघ के शंख का काम कर रहे हैं | ऐसे मूर्ख यह कभी नहीं सोचते की इन संघियों को चौधरी छोटूराम के सर की उपाधि लेने से तकलीफ होती हैं , इनको श्यामा प्रशाद मुखर्जी के पिता सर आशुतोष की सर की उपाधि कभी नजर नहीं आती ? इन संघियों को चौधरी छोटूराम का मुस्लिमो के प्रति प्रेम तो नजर आ जाता हैं परंतु इनको श्यामा प्रशाद मुखर्जी का फजलूल हक के प्रति प्रेम कभी नजर नहीं आता ? हमे मुस्लिमो के प्रति भड़काते हैं इनका वीर सावरकर पंजाब मे सर सिकंदर हयात खान से क्यों मिलने आया था ? कुछ संघी जाट दुष्प्रचार करते हैं की चौधरी छोटूराम अंग्रेज़ो से मिले हुए थे उन्होने कभी आज़ादी नहीं मांगी , ऐसा ये बहके हुए लोग संघी आकाओं के बातों मे आ कर बोलते हैं | चौधरी छोटूराम से एक बार किसी पत्रकार ने पूछा था की आपको आज़ादी नहीं चाहिए ? इस पर चौधरी छोटूराम का जवाब था " हमे भी आज़ादी चाहिए परंतु उस आज़ादी से पहले मैं अपने लोगो को इस काबिल तो कर लूँ की उन्हे आज़ादी के मायने पता हों , नहीं तो आज ये गोरे बनिए हम पर राज कर रहे हैं आज़ादी के बाद काले बनिए हम पर राज करेंगे " | यहीं बात शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने भी कई बार दोहराई थी | इन दोनों ने जैसा कहा था आज़ादी के बाद बिलकुल वैसा ही हुआ , आज़ादी के बाद से देश की सत्ता इन 5-6% काले बनियों के इर्द गिर्द ही रहीं हैं | किसानों ने इक्का दुक्का प्रयास किए भी परंतु उनके प्रयास इन षड्यंत्रकारियों ने असफल कर दिये |
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" तुम अगर बिछड़े रहो तो चंद कतरे ही फकत
तुम अगर मिल जाओ तो बिफरा हुआ तूफान हो "
हमारे देश मे जाति आधार पर जनगणना आखिरी बार 1931 मे हुई थी | उस वक़्त भारत मे जाटों की आबादी इस प्रकार थी -1) पंजाब - 73% , 2) राजस्थान - 12% , 3) यू.पी - 9.2% , 4) जम्मू कश्मीर - 2% , 5) बलोचिस्तान - 1.2% , 6) एनडबल्यूएफ़पी (NWFP)-1% , 7) बॉम्बे प्रेसीडेंसी - 0.7% , 8) दिल्ली - 0.6% , 9) सीपी & बार - 0.3% , 10) अजमेर & मारवाड़ - 0.3%
जिसमे हिन्दू जाट - 47% , सिख जाट - 20% , मुस्लिम जाट - 33%
कुछ लोग जिनकी आबादी देश मे मुट्ठी भर हैं वह लोग जाट व अन्य दूसरी किसान व दलित जातियों को धर्म के नाम पर बाँट कर उनके साथ भेड़ बकरियों की तरह बर्ताव करते हुए अपने स्वार्थो के लिए इस्तेमाल किया करते | चौधरी छोटूराम शहरी लोगो की इस चाल को भली भांति समझ गए थे इसलिए उन्होने अलग-अलग पंथो धर्मो मे बंटे जाटों को एक किया , उनको उनकी शक्ति का एहसास दिलाया | जाटिज्म का नारा सबसे पहले चौधरी छोटूराम ने दिया था | सन 1929 मे अखिल भारतीय जाट महासभा के आगरा अधिवेशन मे चौधरी छोटूराम ने पहली बार कहा था " राज करेगा जाट " | पंजाब एसम्ब्ली मे इस बात पर काफी हल्ला हुआ | चौधरी छोटूराम ने इस पर जवाब देते हुए कहा था की लोकतन्त्र का सिद्धांत हैं की " जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी " और मैंने जिस सभा मे यह बात कही थी वाहा 25-30 हजार लोगो की भीड़ थी जिसमे 90% जाट थे | पंजाब मे 73% जाटों के साथ साथ चौधरी छोटूराम ने दलित व दूसरी किसान जातियों के हितों का भी पूरा ख्याल रखा | चौधरी छोटूराम ने कृषक जातियों को लेकर अजगर ( अहीर जाट गूजर राजपूत ) का निर्माण किया | चौधरी छोटूराम की असली ताकत अजगर थे | चौधरी छोटूराम ने बड़ी सफलता के साथ किसान व जातिगत आधार पर राजनीति की , ये दोनों एक ही धुरी के बड़े और छोटे चक्र हैं | इसी नीति को आगे चल कर चौधरी देवी लाल ने भी अपनाया , उन्होने महा-अजगर का पुनः निर्माण किया (मुसलमान - अहीर जाट गूजर राजपूत ) और जिसके दम पर केंद्र की सत्ता तक गए |
पंजाब मे चौधरी छोटूराम ने सर सिकंदर हयात खान और बाद मे सर खिजर तिवाना के साथ हिन्दू - मुस्लिम जाट किसानो कि एकता को मजबूत बनाए रखा | यह एकता इतनी मजबूत थी कि जिन्नाह को पंजाब मे पैर जमाने मुश्किल हो रखे थे | एक बार तो जिन्नाह को एक मुस्लिम जाट विधायक ने टका सा जवाब दे दिया था कि पहले हम जाट हैं और बाद मे मुस्लिम और हम जाटों का नेता हैं चौधरी छोटूराम | चौधरी छोटूराम कि मुस्लिम जाटों से यह एकता हिन्दुओ के ठेकेदारों को सुहा नहीं रही थी , जिसकी जलन मे हिन्दुओ के अखबार चौधरी छोटूराम को हिटलर छोटूखान लिख कर उन्हे अपमानित करने कि कोशिश करते |
जैसी हिन्दू - मुस्लिम किसानो कि एकता पंजाब मे थी वैसी ही एकता बंगाल मे कृषक प्रजा पार्टी के फजलूल हक बनाए हये थे | वाइसरोय के कहने से फजलूल हक जिन्नाह की मुस्लिम लीग मे शामिल हो गए परंतु कुछ दिनो बाद ही वे मुस्लिम लीग से अलग हो गए | 1941 मे मुस्लिम लीग से अलग हो कर फजलूल हक़ कोग्रेस के सहयोग से सरकार बनाना चाहते थे परंतु काँग्रेस ने शर्त रखी कि सरकार बनते ही वे पहला फैसला जेल मे बंद क्रांतिकारियों कि रिहाई का लेंगे | इस पर फजलूल हक ने कहा कि कृषक प्रजा पार्टी सबसे पहला फैसला किसानो के हक मे लेगी | कॉंग्रेस से बात सिरे न चढ़ने पर फजलूल हक ने डॉक्टर श्यामा प्रशाद मुखर्जी के साथ मिल कर सरकार बनाई | सरकार मे श्यामा प्रशाद मुखर्जी वित्त मंत्री बने | फजलूल हक़ ने अपनी वकालत डॉक्टर श्यामा प्रशाद मुखर्जी के पिता कलकत्ता के नामी वकील सर आशुतोष के सहायक के रूप मे शुरू की थी | वित्त मंत्री श्यामा प्रशाद मुखर्जी अक्सर सीएम फजलूल हक़ को अपने साथ हिन्दू महासभा की कार्यकारी मीटिंग मे ले जाते थे | ये वहीं श्यामा प्रशाद मुखर्जी जिन्होने आज़ादी के बाद गोलवलकर के कहने पर काँग्रेस से अलग हो कर जन संघ पार्टी का गठन किया |
1947 मे मुस्लिम लीग और आरएसएस ने अपनी गतिविधिया तेज कर दी थी | दोनों संगठनो ने अपनी अपनी निजी सेनाए बनानी शुरू कर दी थी | खुफिया विभाग की रिपोर्ट के आधार पर पंजाब के प्रीमिएर सर खिजर तिवाना ने 24 जनवरी 1947 को दोनों संगठनो पर प्रतिबंध लगा दिया था | इन दोनों संगठनो की पकड़ सिर्फ शहरी लोगो तक थी | देहात मे इन लोगो का ज्यादा असर नहीं था यहीं कारण था की देश के लगभग हर प्रान्त मे देहात के लोगो की सरकारे थी | यह बात इन शहरी लोगो के संगठनो को बरदास्त नहीं हो रही थी और इन दोनों ही संगठनो ने लोगो को धर्म के नाम पर भड़काना शुरू कर दिया | ये दोनों संगठन पंजाब व बंगाल के लोगो को धर्म के नाम से भड़काने मे सफल रहे और अगस्त 1947 मे देश का पंजाब व बंगाल दो जगह से बंटवारा हुआ | देश आज़ाद होने के बाद एक बार फिर से आरएसएस पर देश के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने प्रतिबंध लगाया | 1947 का बंटवारा देश का या पंजाब का बंटवारा नहीं था असल मे यह जाटों का धर्म के नाम पर बंटवारा था , पंजाब के 73% जाटों की ताकत का बंटवारा था | चौधरी छोटूराम की विचारधारा का बंटवारा था | ये धर्मों के ठेकेदार कभी नहीं चाहते की जाट एक हो , जाटों को इनकी ताकत का एहसास हो इसलिए ये लोग हमें धर्म की बूटी सुंघाए रखना चाहते हैं | चौधरी छोटूराम इनकी चालों को भली भांति समझते थे | चौधरी छोटूराम खून के रिश्ते को ज्यादा महत्व देते थे , उनका कहना था " एक आदमी दिन मे चाहे तो तीन बार अपना धर्म बदल सकता हैं , परंतु वह अपनी जाति नहीं बदल सकता " | आज भी जाट चाहे किसी धर्म मे हो वह अपनी जाति से ही जाना जाता हैं | चौधरी छोटूराम ने कहा था " हमने माना की मजहब जान हैं इंसान की , इसी के दम से कायम कुछ शान हैं इंसान की , रंग-ए-क़ौमियत मगर इससे बदल सकता नहीं , खून आबाई रग ओ तन से निकल सकता नहीं " (आबाई - पूर्वज) , उनके कहने का अर्थ साफ था की जितने धर्म बदल लो परंतु तुम्हारी रगों से पूर्वजों का खून नहीं निकल सकता |
आरएसएस आज भी सिर्फ शहरी लोगो तक सीमित हैं , हमारे जो लोग इस सगठन मे हैं वे भी वहीं हैं जो शहरो मे जा कर बस गए हैं | असल मे इस संगठन के आका जिनकी आबादी देश मे मुश्किल से 3% होगी नहीं चाहते की हमारे लोग होश मे आए , इसलिए हमारे लोगो को धर्म की बूटी सुंघाए रखते हैं | कभी ये लोग हमे धर्म के नाम पर लड़ाते हैं तो कभी जात के नाम पर | जाट- दलित के झगड़े , जाट-गूजर के झगड़े , जाट-राजपूत के झगड़े , जाट-मुस्लिम के झगड़े सबने खूब सुने होंगे परंतु शायद ही कभी यह सुना हो की ब्राह्मण-दलित झगड़ा हुआ हो , ब्राह्मण या किसी कृषक जाति का झगड़ा हुआ हो | हमारा कोई भी नेता ऊपर उठता हैं तो यह लोग उस पर जाति का ठप्पा लगा कर उसे वही रोक देते हैं , जैसे की यह तो दलितों का नेता हैं , यादवों का नेता हैं , जाटों का नेता हैं या क्षत्रियों का नेता हैं आदि परंतु यह शायद ही कभी सुनने मे आता हो की यह तो ब्राह्मणों का नेता हैं !
यह लोग हमारे लोगो को बदनाम करने मे कोई कसर नहीं छोडते | कुछ हमारे ही लोग इनकी बातों मे बहक कर इनके शंख की तरह बजते रहते हैं | कुछ दिन पहले एक भाई ने बताया की उसने दिल्ली मे एक युवा जाट मीट की थी , उस मीट मे एक आरएसएस का कोई पदाधिकारी भी आया हुआ था | वो संघ का पदाधिकारी कहने लगा की छोटूराम अंग्रेज़ो का पिट्ठू था , सर की उपाधि ली हुई थी , मुसलमानो से मिला हुआ था | आजकल ऐसे भटके हुए बहके हुए और भी कई भाई मिल जाएंगे जो बिना कुछ सोचे समझे संघ के शंख का काम कर रहे हैं | ऐसे मूर्ख यह कभी नहीं सोचते की इन संघियों को चौधरी छोटूराम के सर की उपाधि लेने से तकलीफ होती हैं , इनको श्यामा प्रशाद मुखर्जी के पिता सर आशुतोष की सर की उपाधि कभी नजर नहीं आती ? इन संघियों को चौधरी छोटूराम का मुस्लिमो के प्रति प्रेम तो नजर आ जाता हैं परंतु इनको श्यामा प्रशाद मुखर्जी का फजलूल हक के प्रति प्रेम कभी नजर नहीं आता ? हमे मुस्लिमो के प्रति भड़काते हैं इनका वीर सावरकर पंजाब मे सर सिकंदर हयात खान से क्यों मिलने आया था ? कुछ संघी जाट दुष्प्रचार करते हैं की चौधरी छोटूराम अंग्रेज़ो से मिले हुए थे उन्होने कभी आज़ादी नहीं मांगी , ऐसा ये बहके हुए लोग संघी आकाओं के बातों मे आ कर बोलते हैं | चौधरी छोटूराम से एक बार किसी पत्रकार ने पूछा था की आपको आज़ादी नहीं चाहिए ? इस पर चौधरी छोटूराम का जवाब था " हमे भी आज़ादी चाहिए परंतु उस आज़ादी से पहले मैं अपने लोगो को इस काबिल तो कर लूँ की उन्हे आज़ादी के मायने पता हों , नहीं तो आज ये गोरे बनिए हम पर राज कर रहे हैं आज़ादी के बाद काले बनिए हम पर राज करेंगे " | यहीं बात शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने भी कई बार दोहराई थी | इन दोनों ने जैसा कहा था आज़ादी के बाद बिलकुल वैसा ही हुआ , आज़ादी के बाद से देश की सत्ता इन 5-6% काले बनियों के इर्द गिर्द ही रहीं हैं | किसानों ने इक्का दुक्का प्रयास किए भी परंतु उनके प्रयास इन षड्यंत्रकारियों ने असफल कर दिये |
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