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View Full Version : दलित-हरिजन-जाट और खाप:



phoolkumar
January 10th, 2015, 01:40 PM
दलित-हरिजन-जाट और खाप:


ऐसा टाइटल रखने का उद्देश्य: जाट और दलित के बीच अंटी पड़ी अलगाव की खाई को पाटना| हरियाणा में जो जाट बनाम एंटी-जाट का एक अंतहीन अखाड़ा बना खड़ा है, उसके घटकों को नरम करना और और दलित और जाट को सोचने की राह पर डालना कि क्या जाट वाकई ऐसे हैं कि दलित तक उनके खिलाफ एंटी-जाट लॉबी में जा बैठते हैं?


भूमिका: आज एक पोस्ट पढ़ी जिसपे एक दलित भाई दलितों को सम्बोधित करते हुए बता रहे थे कि उनको "हरिजन" कहा जाना कितना आपत्तिजनक है| इस पर उस भाई ने जब इस प्रथा का पूर्वी व् दक्षिणी भारत में पाये जाने का हवाला दिया तो मैंने उसको कहा कि आपको साथ ही यह भी बताना चाहिए कि यह प्रथा उत्तरी भारत में क्यों नहीं पाई जाती| और जब साथ ही उसको बताया कि उत्तरी भारत में इसके ना पाये जाने या कभी जड़ ना जमा पाने की वजह हैं "जाट और खाप" तो वो भाई पूर्णत: सहमत नजर आया| यह लेख उस भाई से हुई वार्ता के आदान-प्रदान का विस्तार है|


आगे बढ़ने से पहले "हरिजन" की परिभाषा: पूर्वी व् दक्षिण भारत में "देवदासी अथवा धार्मिक वेश्या" नाम की प्रथा है जिसके तहत मंदिरों-धार्मिक स्थलों में पुजारियों व् पुजारियों के विशिष्ट अतिथियों की सेवा-सुश्रुषा के लिए "दलित लड़कियों" को अधिग्रहित किया जाता रहा है| और आंध्र-प्रदेश व् तमिलनाडु जैसे राज्यों में तो कानूनी प्रतिबंध के बाद यह प्रथा आज भी जारी है| क्योंकि इन औरतों को ताउम्र "धार्मिक-वेश्या" बनके काटनी होती है या होती थी, इसलिए इनसे हुई औलादों के पिता इन बच्चों को अपना नाम नहीं देते थे| तो ऐसे में इनको एक सांत्वनाजनक नाम देने के लिए यह तर्क देते हुए कि क्योंकि यह भगवान यानी हरि के दूतों की सेवा करने से पैदा हुए हैं, इसलिए इनका नाम "हरिजन" होगा| और ऐसे धर्म वालों ने इनको "हरिजन" यानी हरि यानी भगवान की औलाद" कहना शुरू कर दिया| यह धर्म और भगवान के नाम पर नीच-कर्म को ढकने का एक उदाहरण कहा जा सकता है, जो कि धर्म की नकारात्मकता की प्रकाष्ठा का उच्चतम स्तर भी कहा जा सकता है| और दलितों को "हरिजन" शब्द बारे सावधान करने वाला भाई भी यही परिभाषा बताता है|


यह उत्तरी भारत में जाटों और खापों की वजह से ही क्यों नहीं पाई जाती:


1) जहां-जहां तक खापों का प्रभाव है वहाँ-वहाँ किसी भी मंदिर या धर्मस्थल में सार्वजनिक स्तर पर कोई देवदासी नहीं पाई जाती|


2) जाटों और खापों की इसी जटिलता और दृढ़ता की वजह से इनको "एंटी-ब्राह्मण" बोला जाना| क्योंकि इन्होनें धर्म के नाम पर कभी भी किसी भी उल-जुलूल बात को ना कभी सहन किया और ना ही स्वीकार किया| यह ऐतिहासिक गौरव की बात है, जो ना जानता हो जान ले|


3) जाटों ने बुद्ध के जमाने से ही बौद्ध धर्म अपना लिया था; जिसकी ऐवज में जाटों के पुरखों ने इतिहास में अपने वंश तक खत्म होने के कगार पर पहुँचने वाली कुर्बानियां दी हैं| विख्यात इतिहासविद सर के. डी. यादव द्वारा लिखित "गठवाला जाटों को मलिक की उपाधि कैसे मिली" किस्से के ब्यान में लिखा है कि कैसे सिर्फ 9000 गठवाला जाट यौद्धेयों ने 100000 "देवदासी" विचारधारा समर्थक सेना को सिर्फ 1500 यौद्धेय खो के काट मारा था और अपने धर्म और स्वछँदता की इनसे कैसे रक्षा की थी| और ऐसे कभी भी "देवदासी" जैसी गरक चीजों का समर्थन करने वाली बातों को कभी भी खापलैंड पे हवा नहीं लेने दी (आज की जाट युवा पीढ़ी जाने कि आपके पुरखे कितने दूरदर्शी और लोगों की छुपी मंशाओं को भाँपने वाले होते थे)|


तो दलित भाइयों को अब इस बात पर सोचना चाहिए कि बेशक जाटों से आपके कारोबारी मनमुटाव भी होते होंगे, जातीय मनमुटाव भी होते होंगे लेकिन "चमार आधा जाट होता है" जैसी एक-दूसरे को जोड़ने वाली कहावतें आपको जाट और चमार के पुराने गठजोड़ का प्रतीक आप दोनों के ही बीच मिलेंगी, कहीं और नहीं| और अगर आज आप एक "देवदासी" मुक्त समाज में रह रहे हैं (व्यक्तिगत अथवा पर्दे के पीछे के नाजायज संबंधों से इंकार नहीं, वो तो धरती के किसी भी कौन में चले जाओ हर जगह मिलेंगे) तो यह सिर्फ जाटों और खापों की ही बदौलत है| मैं यह नहीं कहता कि आप जाट या खाप के गलत पहलु को अनदेखा कर दें, परन्तु इनकी वजह से जो अनदेखे सकारात्मक पहलु (जैसे कि यह देवदासी वाला) आप नहीं देख पाते, उनको भी देखें और समझें कि क्या जाट आपके वाकई में इतने बड़े दुश्मन या घृणा के पात्र हैं जितने कि आपको एंटी-जाट लॉबी में खड़ा कर आपको आपकी आजीविका के प्राचीनतम माध्यम जाट समाज से दूर खड़ा कर देने वाले? आखिर हरियाणा में जाट बनाम एंटी-जाट का पत्ता आप तो नहीं चलाते परन्तु इसके सबसे बड़े शिकार तो सिर्फ आप और जाट ही बनते हैं|


आप एक पहलु पर और भी सोचें कि पूरे भारत में अगर दलित और स्वर्ण के बीच गरीबी की खाई सबसे कम पाई जाती है तो वो सिर्फ खापलैंड के इलाकों में| हालाँकि कि ऐसा कह के मैं यह नहीं कहता कि यह आदर्श स्थिति है, वाकई नहीं है, परन्तु उनसे बेहतर जरूर है जहां जाट और खाप नहीं|


आपने खूब फिल्मों में भी देखा होगा और भारत को घूम के भी देखा होगा, कि जैसी कारोबारी रिश्ते में सम्बोधन की जो "सीरी-साझी" कहने की प्रथा है जाट और खाप एरिया में है ऐसी और कहीं नहीं| दूसरी जगहों नौकर-मालिक/ठाकुर के तहत दलित और स्वर्ण के रिश्ते पाये जाते हैं| हालाँकि यहां भी मैं अपवादों से इंकार नहीं करता परन्तु हरियाणा में सर्वमान्य तौर पर नौकर-मालिक नहीं अपितु "सीरी-साझी" यानी सुख-दुःख का पार्टनर वाली भाषा और सभ्यता खेतों में काम करने वाले जाट और दलित के बीच इस्तेमाल की जाती रही है| हम सामान्यत आपस में "सीरी-साझी" की ही भाषा प्रयोग करते हैं, और जो हरियाणा का रहने वाला दलित व् जाट होगा वो इस बात से सहमत भी होगा|


अंत में जाट समाज भी अपने पुरखों और खून के मूल चरित्र को समझे और समझे कि धर्म और जातीय प्रतिष्ठा के नाम पर किसी से द्वेष रखना, या ऐसे बहकावों में आ के आपकी सदियों पुरानी कारोबारी मित्रता की जातियों से छिंटक जाना, आपके समाजों को दिशाहीन व् अर्थहीन बना सकता है|