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View Full Version : जितना अनुशासित उतना शोषित !



RavinderSura
June 3rd, 2015, 10:05 PM
जितना अनुशासित उतना शोषित !


फौजी का और बक्से का बड़ा मेल हैं | जब एक जवान फौज में भर्ती होता है तो उसे एक बक्सा दे दिया जाता हैं जिसे वह अपनी सारी नौकरी में साथ रखता है | जब रिटायर होता हैं तो उस बक्से को साथ ले आता हैं , तो कई फौजी खुद बक्से में आते हैं ! जितनी कठिन नौकरी फौज की है ऐसी दूसरी कोई नहीं फिर भी फौजी कोई हड़ताल नहीं करते ! जबकि सिविल के जितने भी महकमे हैं सबमे कर्मचारी यूनियन हैं , किसी कर्मचारी के साथ थोड़ा सा कुछ हो जाए तो सब कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते हैं जबकि फौजी ऐसा कुछ नहीं कर सकता , अगर करने की भी कोशिश की तो कोर्ट मार्शल , देशद्रोही करार दे दिया जाए ! फौजी ऐसी ऐसी जगह पोस्टिंग काटता हैं जो कि एक सिविलियन अपनी सारी उम्र में नहीं देख पाता | फौजी के लिए सबसे बड़ी समस्या अपने परिवार से दूर रहना हैं , सिविल महकमे के किसी कर्मचारी का यदि उसके घर से 60 km दूर तबादला हो जाए तो वह बेचैन हो उठता हैं , नेताओं के चक्कर काटने शुरू कर देता हैं | 40 साल से फ़ौजियों का वन रैंक वन पेंशन का मसला लटका पड़ा हैं , नेता फौजी को कुछ देने से पहले तिजौरी को देख रहे हैं ! सिविलियन का यदि ऐसा कोई मसला लटका हुआ होता तो कब की हड़ताल हो जाती धरने प्रदर्शन शुरू हो जाते और उसके समाधान के लिए नेताओं की भी हौड़ लग जाती | बड़े ताज्जुब की बात हैं कि ये नेता फ़ौजियों की बैरक में जा कर फोटो खींचा उसका प्रचार ऐसे करेंगे जैसे कि इनसे बड़ा फौजी का हिमायती कोई नहीं और जब फौजी का कोई मसला हो तो उसके समाधान के लिए समय मांगते हैं ! देश के दो ही सच्चे कमाऊ पूत हैं जवान और किसान और दोनों ही की समस्याओं के निपटारे के लिए सरकारों को समय चाहिए इनके सिवा किसी ओर की कोई समस्या हो चंद मिनटों में ही निपटारा हो जाता हैं ! लगता हैं इन नेताओं ने मन ही मन में सोच रखा हैं कि ' मर जवान मर किसान मत कर हमें परेशान ' | कहते हैं कि दूध देने वाली गाय की तो लात भी खाई जाए पर यहाँ तो उल्टा हैं ये नेता इस दूध देने वाली गाय (जवान और किसान) को दुह भी रहे हैं और इसकी लात भी बांध रखी हैं !


फौजी का ऐसा हाल सिर्फ हमारे देश में ही नहीं सब जगह ही यह हाल हैं | फेसबूक पर ही दो साल पहले एक ग्रुप में मेरी एक रोमानिया के लड़के से बातचीत हो गई पता लगा के वह रोमानिया की फौज में सिपाही के पद पर हैं | मैंने उससे उसका वेतन पूछा तो उसने बताया कि 300 यूरो मिलते हैं | उसकी भी वेतन को लेकर शिकायत थी पर जब उसने अपना घर मुझे दिखाया तो मैं हैरान हो गया , वैसा रहन सहन और घर हमारा जवान अपनी सारी उम्र में नहीं देख पाता | अभी कुछ महीने पहले मैंने उसकी ट्रक के साथ फोटो देखी जिस पर उसने लिख रखा था ' ऑन यूरोप टूर ' मैंने सोचा शायद फौज के ही काम से होगा | मैंने उससे पूछा कि क्या किसी फौजी अभियान पर हैं ? तो उसने बताया कि मैंने फौज की नौकरी छोड़ दी , मैंने कारण पूछा तो बोला कि आगे पूरी जिंदगी पड़ी हैं , 300 यूरो में क्या कर लूँगा , अब ट्रक चला रहा हूँ 1000 यूरो महीना कमा रहा हूँ |


फौज की नौकरी चाहे कितनी ही कठिन हो पर हम किसान कमेरो के लगभग हर घर में फौजी मिलेगा और लगभग हर कुनबे में एक शहीद जरूर मिलेगा | हम सदियों से इस देश की सेवा करते आ रहे हैं चाहे वह खेत हो या सीमा पर हमने यह कभी नहीं कहा कि हमे भारतीय होने पर शर्म महसूस होती थी या हैं | भारतीय होने पर शर्म सिर्फ उसी को महसूस हो सकती हैं जिसका या जिसके परिवार का देश सेवा में कोई योगदान ना रहा हो , जिसके कुनबे में कोई फौजी बक्से में ना आया हो ! फौज की नौकरी चाहे कितनी ही कठिन हो पर फौज में बंदे को बंदा बना कर भेजते हैं , अनुशासन क्या होता हैं सीखा कर भेजते हैं | पर इस देश में उल्टा काम हैं जो जितना अनुशासित हैं वह उतना ही शोषित हैं ! एक सिविलियन में सबसे बड़ी कमी अनुशासन की ही होती हैं जो कि भ्रष्टाचार की पहली सीढ़ी हैं | मेरा मानना हैं कि हर नागरिक के लिए कम से कम 5 साल फौज की नौकरी अनिवार्य होनी चाहिए जिससे वो बंदा बन सके , लोग अनुशासन में भी रहना सीख जाएंगे और इससे भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी | कुछ लोग जिन्हें भारतीय होने पर शर्म महसूस होती थी या हैं उन्हे भी बक्से की एहमियत का अंदाजा हो जाएगा और फिर इससे जो उन्हें भारतीय होने पर शर्म महसूस होती थी या हैं वह भी नहीं होगी |


' जय योद्धेय '

maddhan1979
June 23rd, 2015, 08:35 PM
जितना अनुशासित उतना शोषित !


फौजी का और बक्से का बड़ा मेल हैं | जब एक जवान फौज में भर्ती होता है तो उसे एक बक्सा दे दिया जाता हैं जिसे वह अपनी सारी नौकरी में साथ रखता है | जब रिटायर होता हैं तो उस बक्से को साथ ले आता हैं , तो कई फौजी खुद बक्से में आते हैं ! जितनी कठिन नौकरी फौज की है ऐसी दूसरी कोई नहीं फिर भी फौजी कोई हड़ताल नहीं करते ! जबकि सिविल के जितने भी महकमे हैं सबमे कर्मचारी यूनियन हैं , किसी कर्मचारी के साथ थोड़ा सा कुछ हो जाए तो सब कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते हैं जबकि फौजी ऐसा कुछ नहीं कर सकता , अगर करने की भी कोशिश की तो कोर्ट मार्शल , देशद्रोही करार दे दिया जाए ! फौजी ऐसी ऐसी जगह पोस्टिंग काटता हैं जो कि एक सिविलियन अपनी सारी उम्र में नहीं देख पाता | फौजी के लिए सबसे बड़ी समस्या अपने परिवार से दूर रहना हैं , सिविल महकमे के किसी कर्मचारी का यदि उसके घर से 60 km दूर तबादला हो जाए तो वह बेचैन हो उठता हैं , नेताओं के चक्कर काटने शुरू कर देता हैं | 40 साल से फ़ौजियों का वन रैंक वन पेंशन का मसला लटका पड़ा हैं , नेता फौजी को कुछ देने से पहले तिजौरी को देख रहे हैं ! सिविलियन का यदि ऐसा कोई मसला लटका हुआ होता तो कब की हड़ताल हो जाती धरने प्रदर्शन शुरू हो जाते और उसके समाधान के लिए नेताओं की भी हौड़ लग जाती | बड़े ताज्जुब की बात हैं कि ये नेता फ़ौजियों की बैरक में जा कर फोटो खींचा उसका प्रचार ऐसे करेंगे जैसे कि इनसे बड़ा फौजी का हिमायती कोई नहीं और जब फौजी का कोई मसला हो तो उसके समाधान के लिए समय मांगते हैं ! देश के दो ही सच्चे कमाऊ पूत हैं जवान और किसान और दोनों ही की समस्याओं के निपटारे के लिए सरकारों को समय चाहिए इनके सिवा किसी ओर की कोई समस्या हो चंद मिनटों में ही निपटारा हो जाता हैं ! लगता हैं इन नेताओं ने मन ही मन में सोच रखा हैं कि ' मर जवान मर किसान मत कर हमें परेशान ' | कहते हैं कि दूध देने वाली गाय की तो लात भी खाई जाए पर यहाँ तो उल्टा हैं ये नेता इस दूध देने वाली गाय (जवान और किसान) को दुह भी रहे हैं और इसकी लात भी बांध रखी हैं !


फौजी का ऐसा हाल सिर्फ हमारे देश में ही नहीं सब जगह ही यह हाल हैं | फेसबूक पर ही दो साल पहले एक ग्रुप में मेरी एक रोमानिया के लड़के से बातचीत हो गई पता लगा के वह रोमानिया की फौज में सिपाही के पद पर हैं | मैंने उससे उसका वेतन पूछा तो उसने बताया कि 300 यूरो मिलते हैं | उसकी भी वेतन को लेकर शिकायत थी पर जब उसने अपना घर मुझे दिखाया तो मैं हैरान हो गया , वैसा रहन सहन और घर हमारा जवान अपनी सारी उम्र में नहीं देख पाता | अभी कुछ महीने पहले मैंने उसकी ट्रक के साथ फोटो देखी जिस पर उसने लिख रखा था ' ऑन यूरोप टूर ' मैंने सोचा शायद फौज के ही काम से होगा | मैंने उससे पूछा कि क्या किसी फौजी अभियान पर हैं ? तो उसने बताया कि मैंने फौज की नौकरी छोड़ दी , मैंने कारण पूछा तो बोला कि आगे पूरी जिंदगी पड़ी हैं , 300 यूरो में क्या कर लूँगा , अब ट्रक चला रहा हूँ 1000 यूरो महीना कमा रहा हूँ |


फौज की नौकरी चाहे कितनी ही कठिन हो पर हम किसान कमेरो के लगभग हर घर में फौजी मिलेगा और लगभग हर कुनबे में एक शहीद जरूर मिलेगा | हम सदियों से इस देश की सेवा करते आ रहे हैं चाहे वह खेत हो या सीमा पर हमने यह कभी नहीं कहा कि हमे भारतीय होने पर शर्म महसूस होती थी या हैं | भारतीय होने पर शर्म सिर्फ उसी को महसूस हो सकती हैं जिसका या जिसके परिवार का देश सेवा में कोई योगदान ना रहा हो , जिसके कुनबे में कोई फौजी बक्से में ना आया हो ! फौज की नौकरी चाहे कितनी ही कठिन हो पर फौज में बंदे को बंदा बना कर भेजते हैं , अनुशासन क्या होता हैं सीखा कर भेजते हैं | पर इस देश में उल्टा काम हैं जो जितना अनुशासित हैं वह उतना ही शोषित हैं ! एक सिविलियन में सबसे बड़ी कमी अनुशासन की ही होती हैं जो कि भ्रष्टाचार की पहली सीढ़ी हैं | मेरा मानना हैं कि हर नागरिक के लिए कम से कम 5 साल फौज की नौकरी अनिवार्य होनी चाहिए जिससे वो बंदा बन सके , लोग अनुशासन में भी रहना सीख जाएंगे और इससे भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी | कुछ लोग जिन्हें भारतीय होने पर शर्म महसूस होती थी या हैं उन्हे भी बक्से की एहमियत का अंदाजा हो जाएगा और फिर इससे जो उन्हें भारतीय होने पर शर्म महसूस होती थी या हैं वह भी नहीं होगी |


' जय योद्धेय '

Seems So. Long history, things will not change until and unless correct people are at correct positions and decision and execution structures are changed.