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View Full Version : राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा - एक परिचय



ashokpaul
December 6th, 2017, 03:08 PM
आर्य निर्माण - राष्ट्र निर्माण


राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा- परिकल्पना 2003
राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा- प्रारंभ 2004
राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा- विस्तार 2004-2007
राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा- पंजीकरण 2007
राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा- आचार्य गुरूकुल प्रारंभ 2007


हजारों मत पंथों अर्थात तथाकथित धर्मों में अपना देश बिखरा हुआ था। मुसलमानों की 700 से अधिक वर्षों की गुलामी से हम अंग्रेजों की गुलामी में आ गये और दो सौ वर्ष उनके गुलाम रहे। 1857 में स्वाधीनता के लिए लड़कर हम हार गये, तो कंपनी की गुलामी से इंग्लैंड की महारानी के गुलाम हो गये। तब ऋषि दयानंद ने आकर स्वराज्य का मूलमंत्र भारतीयों को दिया और हमने आगे बढ़ने का संकल्प लिया। इस संकल्प के परिणामस्वरूप 1947 में देश आजाद हुआ जिसमें देश के बहुत से क्रांतिकारियों, बलिदानियों के साथ-साथ महात्मा गांधी जैसे देशभक्तों का भी विशेष योगदान था। आचार्य परमदेव ने कहा कि 1883 में ऋषि दयानंद के बलिदान के बाद आर्यों ने वेदमत को प्रचारित प्रसारित करने का अनर्थक प्रयास किया। इस दिशा में कार्य करते हुए स्वामी श्रद्घानंद जैसे लोगों ने लाखों उन हिंदुओं को पुन: शुद्घ किया जो किसी कारण से मुसलमान या ईसाई बन गये। बहुत से गुरूकुल, डी.ए.बी. संस्थान और आर्य समाज स्थापित किये गये, परंतु फिर भी आर्य समाज का आंदोलन धीमा पड़ गया। आर्य समाज कई गुटों में बंट गया, आर्य समाज पर सिद्घांतहीन लोगों ने कब्जा कर लिया। ऐसी परिस्थितियों में आर्य निर्माण का मिशन शिथिल पड़ गया। आज हमें महर्षि के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए फिर प्राणपण से कार्य करने की आवश्यकता है, और इसीलिए राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा स्थापित की गयी।

आज देश पर संकट मंडरा रहा है। हम केवल धार्मिक क्रिया कलापों तक अपने आपको सीमित न करें, बल्कि इससे आगे बढ़कर देश और समाज के लिए भी कुछ करने का संकल्प लें। हम प्रत्येक राष्ट्रभक्त, वेदभक्त और प्रत्येक देशवासी का आह्वान करते हैं कि आओ संगठित होकर देश को फिर आर्य बनावें और राष्ट्र बचावें। यह हमारा सबका पुनीत सांझा कार्य है। यह राष्ट्र आर्यवर्त था, जब आर्य ही नही होंगे तो आगे क्या होगा? इसलिए आओ हम सब एकजुट होकर संकल्प लें कि एक भी व्यक्ति जो 18 वर्ष से ऊपर का हो गया हो, उसे इस देश में बिना वेद विद्या के नही रहने देंगे। निर्धन, धनवान, शिक्षित, अशिक्षित, उच्च पद, निम्न पद, किसान, व्यापारी, मजदूर, मालिक किसी भी मतपंथ का क्यों न हो और किसी भी जाति कुल का क्यों न हो उन्हें यह वेद विद्या अवश्य सिखलाएंगे, इसमें कोई भेदभाव नही करेंगे, इस विद्या को प्राप्त करने का अधिकार सभी को है। इस देश में हमारा जन्म हुआ है, इसके अन्न जल, मिट्टी आदि संसाधनों से हमारा लालन पालन होता है तो सर्वप्रथम इसे ही आर्यवर्त्त बनाने की प्राथमिकता नियत है। हिंदू इस वेदविद्या के रक्षक, पोषक और धारक रहे हैं, इसलिए इनको वेद विद्या युक्त करना भी हमारा प्राथमिक कर्त्तव्य है। ऋषि दयानंद के सच्चे अनुयायी ईर्ष्या, द्वेष, फूट और स्वार्थ को भुलाकर इस महान कार्य में जुट जाएं, और लोगों को संगठित कर राष्ट्र निर्माण के कार्य में योगदान दें।