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View Full Version : Democratic Feudalism



raka
July 27th, 2018, 02:34 PM
“ Democratic Feudalism अर्थात लोकतांत्रिक सामंतीवाद “


आज कहने को बेशक लोकतांत्रिक व्यवस्था है पर देखा जाए तो अप्रत्यक्ष रूप से सामंतिवाद आज भी ज़िंदा है । आज किसी भी राज्य का देख लो वहाँ चाहे क्षेत्रीय दल के राजनीतिक घराने हो या राष्ट्रीय दल के राजनीतिक घराने , सभी में पीढ़ी दर पीढ़ी राजनीतिक नंबरदारी फ़िक्स है । क्षेत्रीय दलों का तो ये हाल है कि बाप के बाद बेटों - पोतों में बहस चल रही है , अपने बाप-दादा के “ राजनीतिक साम्राज्य “ का उतराधिकारी बनने की बहस चल रही है । और ऐसा नहीं है कि इस बात से उन राज्यों की जनता बेख़बर हो , ख़बर उन्हें भी है पर उनके लिए इन लोगों ने हालात ही ऐसा पैदा कर दिए कि इन घरानों से ये सवाल करने की बजाए कि तुम तो वर्कर मीटिंग में पार्टी को परिवार और सभी वर्कर को इस परिवार का सदस्य बताते थे तो फिर इस परिवार की राजनीतिक विरासत का अगला वारिस सिर्फ़ तुम ही क्यों हम में से क्यों नहीं ? वर्कर भी उलटा इनके खेमों में बँट कर “ ये नहीं वो क़ाबिल है वो नहीं ये क़ाबिल है “ की बहस में लगे हैं । वो अलग बात है कि कुछ राजनीतिक परिवार के इकलौता वारिस होने की वजह से उनमें फूट की नौबत नहीं आती तो उनके वर्कर वहीं के वहीं सुनपात में पड़े रहते हैं । आज की ये राजनीतिक व्यवस्था , वही पुरानी परिवारों के जयकारे वाली रीत “ Democratic Feudalism अर्थात लोकतांत्रिक सामंतीवाद “ नहीं है तो और क्या है ?


चौधरी छोटूराम के सिर्फ़ दो बेटियाँ ही थी उनके कोई बेटा नहीं था , जैसा कि हमारी मानसिकता है विरासत के वारिस का असली हक़दार सिर्फ़ बेटे को ही समझते हैं तो खाप इकट्ठा हुई और चौधरी छोटूराम के पास दूसरे विवाह का सुझाव लेकर गई कि आपकी राजनीतिक विरासत के लिए बेटा ज़रूरी है इसलिए आप दूसरा विवाह कर लीजिए । यह सुन चौधरी छोटूराम ग़ुस्से में आ गए और वहाँ बैठी पंचायत में नौजवानों की तरफ़ इशारा करते हुए बोले कि हर किसान का बेटा मेरा बेटा है और ये ही मेरी राजनीतिक विरासत के वारिस है । चौधरी छोटूराम ने कहा था ‘ ऐ किसान जो रास्ता मैंने तुझे दिखाया है अगर तू उस पर चलेगा तो पंजाब में तेरा राज हमेशा क़ायम रहेगा ‘ । पर अफ़सोस चौधरी छोटूराम के किसान, जिसको उन्होंने एक मुज़ारे से ज़मींदार बनाया , को उनके बताए रास्ते से भटका दिया गया और भटका कर उसे उसी दरी बिछाने वाली व्यवस्था का हिस्सा बना दिया गया , और भटकाने वाले भी उसके अपने ही है । दरअसल राजनीति में आज भी धृतराष्ट्र ज़िंदा हैं और इसी कारण ये महाभारत है ।


ऐसे ही नहीं फ़ैन हम यूनियनिस्ट चौधरी छोटूराम के । आज हम , चौधरी छोटूराम के युनियनिस्टों , ने उनके बताए रास्ते जो बंद हो गया था के गेट खोल दिए है , यानी वो ज़मीन तैयार कर दी है और अब आने वाले समय में ये यूनियनिस्ट ही इस लोकतांत्रिक सामंतिवाद , इन राजनीतिक घरानों के तिलस्म और इन घरानों की राजनीतिक नंबरदारी को तोड़ेंगे । और तभी सही मायने में जो ख़्वाब और रास्ता चौधरी छोटूराम ने देहातियों को दिखाया था वो पूरा होगा । हाँ , अब इस दरी बिछाने वाली व्यवस्था का हिस्सा बन चुके कुछ लोग युनियनिस्टों के रास्ते में किंतु परंतु करेंगे सो नुक़्स निकालने की कोशिश करेंगे , रोड़े अटकाने की कोशिश ज़रूर करेंगे ।


-यूनियनिस्ट राकेश सांगवान
#JaiYoddhey

amitbudhwar
August 7th, 2018, 02:53 PM
“ Democratic Feudalism अर्थात लोकतांत्रिक सामंतीवाद “


आज कहने को बेशक लोकतांत्रिक व्यवस्था है पर देखा जाए तो अप्रत्यक्ष रूप से सामंतिवाद आज भी ज़िंदा है । आज किसी भी राज्य का देख लो वहाँ चाहे क्षेत्रीय दल के राजनीतिक घराने हो या राष्ट्रीय दल के राजनीतिक घराने , सभी में पीढ़ी दर पीढ़ी राजनीतिक नंबरदारी फ़िक्स है । क्षेत्रीय दलों का तो ये हाल है कि बाप के बाद बेटों - पोतों में बहस चल रही है , अपने बाप-दादा के “ राजनीतिक साम्राज्य “ का उतराधिकारी बनने की बहस चल रही है । और ऐसा नहीं है कि इस बात से उन राज्यों की जनता बेख़बर हो , ख़बर उन्हें भी है पर उनके लिए इन लोगों ने हालात ही ऐसा पैदा कर दिए कि इन घरानों से ये सवाल करने की बजाए कि तुम तो वर्कर मीटिंग में पार्टी को परिवार और सभी वर्कर को इस परिवार का सदस्य बताते थे तो फिर इस परिवार की राजनीतिक विरासत का अगला वारिस सिर्फ़ तुम ही क्यों हम में से क्यों नहीं ? वर्कर भी उलटा इनके खेमों में बँट कर “ ये नहीं वो क़ाबिल है वो नहीं ये क़ाबिल है “ की बहस में लगे हैं । वो अलग बात है कि कुछ राजनीतिक परिवार के इकलौता वारिस होने की वजह से उनमें फूट की नौबत नहीं आती तो उनके वर्कर वहीं के वहीं सुनपात में पड़े रहते हैं । आज की ये राजनीतिक व्यवस्था , वही पुरानी परिवारों के जयकारे वाली रीत “ Democratic Feudalism अर्थात लोकतांत्रिक सामंतीवाद “ नहीं है तो और क्या है ?


चौधरी छोटूराम के सिर्फ़ दो बेटियाँ ही थी उनके कोई बेटा नहीं था , जैसा कि हमारी मानसिकता है विरासत के वारिस का असली हक़दार सिर्फ़ बेटे को ही समझते हैं तो खाप इकट्ठा हुई और चौधरी छोटूराम के पास दूसरे विवाह का सुझाव लेकर गई कि आपकी राजनीतिक विरासत के लिए बेटा ज़रूरी है इसलिए आप दूसरा विवाह कर लीजिए । यह सुन चौधरी छोटूराम ग़ुस्से में आ गए और वहाँ बैठी पंचायत में नौजवानों की तरफ़ इशारा करते हुए बोले कि हर किसान का बेटा मेरा बेटा है और ये ही मेरी राजनीतिक विरासत के वारिस है । चौधरी छोटूराम ने कहा था ‘ ऐ किसान जो रास्ता मैंने तुझे दिखाया है अगर तू उस पर चलेगा तो पंजाब में तेरा राज हमेशा क़ायम रहेगा ‘ । पर अफ़सोस चौधरी छोटूराम के किसान, जिसको उन्होंने एक मुज़ारे से ज़मींदार बनाया , को उनके बताए रास्ते से भटका दिया गया और भटका कर उसे उसी दरी बिछाने वाली व्यवस्था का हिस्सा बना दिया गया , और भटकाने वाले भी उसके अपने ही है । दरअसल राजनीति में आज भी धृतराष्ट्र ज़िंदा हैं और इसी कारण ये महाभारत है ।


ऐसे ही नहीं फ़ैन हम यूनियनिस्ट चौधरी छोटूराम के । आज हम , चौधरी छोटूराम के युनियनिस्टों , ने उनके बताए रास्ते जो बंद हो गया था के गेट खोल दिए है , यानी वो ज़मीन तैयार कर दी है और अब आने वाले समय में ये यूनियनिस्ट ही इस लोकतांत्रिक सामंतिवाद , इन राजनीतिक घरानों के तिलस्म और इन घरानों की राजनीतिक नंबरदारी को तोड़ेंगे । और तभी सही मायने में जो ख़्वाब और रास्ता चौधरी छोटूराम ने देहातियों को दिखाया था वो पूरा होगा । हाँ , अब इस दरी बिछाने वाली व्यवस्था का हिस्सा बन चुके कुछ लोग युनियनिस्टों के रास्ते में किंतु परंतु करेंगे सो नुक़्स निकालने की कोशिश करेंगे , रोड़े अटकाने की कोशिश ज़रूर करेंगे ।


-यूनियनिस्ट राकेश सांगवान
#JaiYoddhey
Sir ji aise neta aab nahi rahe, aise neta abb shayad hi aayein. Aur jis tarah se corporates humari polity ko control kar rahe hain usse to ye lag raha hai ki chote mote local dal bhi khatre mei aane waale hain. aaj ki date mei to Ambani Adani type ke businessman sab kuch govt ko run karte hain. budget bhi wahi decide karte hain. aise mahool mei aam janta ki samasya dheere dheere aur badhne waali hain.

amitbudhwar
August 7th, 2018, 02:54 PM
Aur yadi koi aachi mansha se aata bhi hai to usko jaanta poochti nahi hai. aise vyaktiyon ki to jamanat jabtt ho jaati hai. Election mei to paisa bolta hai. jiske pass gaadiyon ka kaafila hai, jike saath media hai, ussi ki chaandi hoti hai. baaki sidhe raaste pe chalne ka jamana to gaya.