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View Full Version : लखमीचंद : हरियाणवी रचनाएँ



navdeepkhatkar
May 20th, 2020, 06:37 PM
लेणा एक ना देणे दो दिलदार बणे हांडै सैं
मन मैं घुण्डी रहै पाप की यार बणें हांडैं सैं

नई-नई यारी लागै प्यारी दोष पाछले ढक ले
मतलब खात्यर यार बणें फेर थोड़े दिन में छिक ले
नहीं जाणते फर्ज यार का पाप पंक में पक ले
कैं तैं खाज्यां धन यार का ना बाहण बहू नै तक ले
करें बहाना यारी का इसे यार बणे हांडै सैं

मतलब कारण बड़ै पेट मैं करकै नै धिंगताणा
गर्ज लिकड़ज्या पास पकड़ज्यां करैं सारे कै बिसराणा
सारी दुनिया कहा करै, करै यार-यार नैं स्याणा
उसे हांडी मैं छेक करैं और उसे हांडी मैं खाणा
विश्वासघात करैं प्यारे तै इसे यार बणे हाण्डैं सैं

यारी हो सै प्याऊ केसी हो कोए नीर भरणियां
एक दिल तैं दो दिल करवादे करकै जबान फिरणियां
यार सुदामा का कृष्ण था टोटा दूर करणियां
महाराणा को कर्ज दिया था भामाशाह था बणियां
आज टूम धरा कै कर्जा दें साहूकार बणे हांडै सैं

प्यारे गैल्यां दगा करे का हो सब तै बद्ती घा सै
जो ले कै कर्जा तुरंत नाट्ज्या औ बिन औलादा जा सै
पढे लिखे और भाव बिना मनै छन्द का बेरा ना सै
पर गावण और बजावण का मनै बाळकपण तै चा सै
इब तेरे केसे ‘लखमीचन्द’ हजार बणे हांडैं सैं

dndeswal
May 20th, 2020, 10:14 PM
बढिया।


इसको विकि के Haryanavi Folk Lore सैक्शन में शामिल कर लिया है -


https://www.jatland.com/home/राजकवि_दादा_लखमी_चन्द_जी_की_कविताएं

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navdeepkhatkar
May 22nd, 2020, 12:28 AM
mere PASS AISI KAYI SARI H ... eb nyu batao ... roj ek naya taggaa banauu ek aade chaape jauu ?

navdeepkhatkar
June 3rd, 2020, 07:20 PM
सारा कुणबा भरया उमंग मैं घरां बहोड़िया आई / लखमीचंद


सारा कुणबा भरया उमंग मैं घरां बहोड़िया आई
प्रेम मैं भर कै सासू नैं झट पीढ़ा घाल बिठाई

फूलां के म्हं तोलण जोगी बहू उमर की बाली
पतला-पतला चीर चिमकती चोटी काळी-काळी
धन-धन इसके मात पिता नै लाड लडाकै पाळी
गहणे के मैं लटपट होरयी जणूं फूलां की डाळी
जितनी सुथरी घर्मकौर सै ना इसी और लुगाई

एक बहू के आवण तै आज घर भररया सै म्हारा
मुंह का पल्ला हटज्या लागै बिजली सा चिमकारा
खिली रोशनी रूप इसा जाणूं लेरया भान उभारा
भूरे-भूरे हाथ गात मैं लरज पड़ै सै अठारा
अच्छा सुथरा खानदान सै ठीक मिली असनाई

एक आधी बै बहू चलै जणूं लरज पड़ै केळे मैं
घोट्या कै मैं जड्या हुआ था चिमक लगै सेले मैं
और भी दूणां रंग चढ़ ज्यागा हंस-खाये खेले मैं
सासू बोली ले बहू खाले घी खिचड़ी बेले मैं
मन्दी मन्दी बोली फिर मुंह फेर बहू शरमाई

देवी कैसा रूप बहू का चांदणा होरया
बिजली कैसे चमके लागैं रूप था गोरा
कली की खुशबोई ऊपर आशिक हो भौंरा
‘लखमीचन्द’ कह नई बहू थी घर देख घबराई