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Thread: NEEM – The ‘Desi’ Pharmacy

  1. #1

    NEEM – The ‘Desi’ Pharmacy

    NEEM – The ‘Desi’ Pharmacy

    We all know the importance of Neem tree and its various usages under Ayurvedic system of medicine. All parts of Neem – its roots, hard skin, tiny branches, leaves, flowers, its fruit (nimbouli – both ripe and dry), its various types of juices have traditionally been a source of better health. Its dry leaves are used to protect the seeds and grains from attack of worms and pests and removal of mosquitos and flies from the scene by producing a smoke by burning process. I am putting this thread in this “Health & Fitness” forum as it relates to our traditional knowledge of keeping ourselves fit by adopting our ancient system of medicine which, unfortunately, is under attack from external forces and multinational drug companies, attempting to patent our common knowledge and get all monetary benefits. In Western Hemisphere and Latin America, this tree is also known as “Azadirachta indica”.

    Swami Omanand Saraswati has a special page under ‘WIKI’ section of this site. Apart from being a great Jat leader and a social reformer, he was an Ayurvedic Vaidya of world-wide repute. Swamiji has written several books on various Ayurvedic herbs including on Neem, Aak, Peepal, Badd (banyan tree), Siras, the common salt, Haldi, cure of snakebite and scorpion-bite etc. I am putting here some extracts (in Hindi) from his book “Neem”. It describes the various qualities of three kinds of Neem tree : the bitter (kaddwa) Neem, Bakayan and Meetha Neem.



    पौराणिक भाई जहां पर भारत की तीन नदियां (गंगा, यमुना और सरस्वती) मिलती हैं, उस स्थान को तीर्थराज, त्रिवेणी प्रयागराज कहते हैं - वहां स्नान करने उसकी तीर्थ यात्रा करने से सब पापों से छुटकारा मिल जाता है और परमपद मोक्ष की प्राप्ति होती है, यह बात तो सर्वथा मिथ्या हैकिन्तु नीम, पीपल और वट (बड़) इन तीनों वृक्षों को एक साथ एक ही स्थान पर लगाने की बहुत ही पुरानी परिपाटी भारतवर्ष में प्रचलित है और इसे भी त्रिवेणी कहते हैं
    इन तीन वृक्षों की त्रिवेणी का औषध रूप में यदि यथोचित रूप में सेवन किया जाये तो बहुत से भयंकर शारीरिक रोगों से छुटकारा पाकर मानव सुख का उपभोग कर सकते हैं ये तीनों ही वृक्ष अपने रूप में तीन औषधालय हैं इसीलिये भारतवर्ष के लोग इसका जाने बहुत प्राचीनकाल से नगरों में, ग्रामों में, ड़कों पर, ड़ातालाबों पर सर्वत्र ही इनको आज तक लगाते रहे हैं इसको धर्मकृत्य पुण्यकार्य समझकर बहुत ही रुचि से इन वृक्षों को लगाते तथा जलसिंचन करते हैं तथा बाड़ लगाकर इनकी सुरक्षा का सुप्रबंध भी करते हैं


    ....CONTINUED
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    Last edited by dndeswal; July 3rd, 2006 at 01:40 AM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  2. #2

    Neem-Part 2

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    निम्ब: (नीम)

    नीम ड़वा ड़वे रस वाला, शीत (ठंडा), हल्का, कफरोग, कफपित्त आदि रोगों का नाशक है इसका लेप और आहार शीतलता देने वाले हैं कच्चे फोड़ों को पकाने वाला और सूजे तथा पके हुए फोड़ों का शोधन करने वाला है राजनिघन्टु में इसके गुण निम्न प्रकार से दिये गए हैं : नीम शीतल, कडुवा, कफ के रोगों को तथा फोड़ों, कृमि, कीड़ों, वमन तथा शोथ रोग को शान्त करने वाला हैबहुत विष और पित्त दोष के बढे हुए प्रकोप रोगों को जीतने वाला है और हृदय की दाह को विशेष रूप से शान्त करने वाला हैबलास तथा चक्षु संबंधी रोगों को जीतने वाला है


    बलास फेफड़ों और गले के सूजन के रोगों का नाम हैइसको भी निम्ब दूर करता है बलास में क्षय यक्ष्मा तथा श्वासरोग के समान कष्ट होता है

    नीम के पत्ते नेत्रों को हितकारी, वातकारक, पाक में चरपरे, सर्व की अरुचि, कोढ, कृमि, पित्त तथा विषनाशक हैंनीम की कोमल कोंपलें कोमल पत्ते संकोचक, वातकारक तथा रक्तपित्त, नेत्ररोग और कुष्ठ को नष्ट करने वाले हैं

    नीम के फल कड़वे, पाक में चरपरे, मलभेदक, स्निग्ध, हल्के, गर्म और कोढ, गुल्म बवासीर, कृमि तथा प्रमेह को नष्ट करने वाले हैंनीम के पके फलों के ये गुण हैं: पकने पर मीठी निम्बोली (फल) रस में कड़वी, पचने में चरपरी, स्निग्ध, हल्की गर्म तथा कोढ, गुल्म, बवासीर, कृमि और प्रमेह को दूर करने वाली है

    नीम के फूल पित्तनाशक और कड़वे, कृमि तथा कफरोग को दूर करने वाले हैं

    नीम के डंठल कास (खांसी), श्वास, बवासीर, गुल्म, प्रमेह-कृमि रोगों को दूर करते हैं

    निम्बोली की गिरी कुष्ठ और कृमियों को नष्ट करने वाली हैंनीम की निम्बोलियों का तेल कड़वा, चर्मरोग, कुष्ठ और कृमिरोगों को नष्ट करता है

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    Last edited by dndeswal; June 4th, 2006 at 04:28 PM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  3. #3

    Neem Part-III

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    निम्बादिचूर्ण : नीम के पत्ते 10 तोले, हरड़ का छिलका 1 तोला, आमले का छिलका 1 तोला, बहेड़े का छिलका 1 तोला, सोंठ 1 तोला, काली मिर्च 1 भाग, पीपल 1 तोला, अजवायन 1 तोला, सैंधा लवण 1 तोला, विरिया संचर लवण 1 तोला, काला लवण 1 तोला, यवक्षार 2 तोले - इन सब को कूट छान कर रख लेंइसको प्रात:काल खाना चाहियेमात्रा 3 माशे से 6 माशे तक हैयह विषम ज्वरों को दूर करने के लिए सुदर्शन चूर्ण के समान ही लाभप्रद सिद्ध हुआ हैइसके सेवन से प्रतिदिन आने वाला, सात दिन, दस दिन और बारह दिन तक एक समान बना रहने वाला धातुगत ज्वर और तीनों रोगों से उत्पन्न हुआ ज्वर - इन सभी ज्वरों में इसके निरंतर सेवन से अवश्य लाभ होता है

    नीम का मलहम : नीम का तैल 1 पाव, मोम आधा पाव, नीम की हरी पत्तियों का रस 1 सेर, नीम की ड़ की छाल का चूर्ण 1 छटांक, नीम की पत्तियों की राख आधा छटांकएक लोहे की कढाई में नीम का तैल, नीम की पत्तियों का रस डालकर हल्की आंच पर पकायेंजब जलते-जलते छटांक, आधी छटांक रह जाये तब उसमें मोम डाल देंजब मोम गलकर तैल में मिल जाये तब कढाई को चूल्हे से नीचे उतार लेवेंफिर नीम की छाल का चूर्ण और नीम की पत्तियों की राख उसमें मिला देवेंयह नीम का मलहम बवासीर के मस्सों, पुराने घाव, नासूर जहरीले घावों पर लगाने से बहुत लाभ करता हैयह घावों का शोधन और रोपण दोनों काम एक साथ करता हैड़े हुए घाव, दाद, खुजली, एक्झिमा को भी दूर करता हैपशुओं के घावों को भी ठीक करता है

    महानिम्ब (बकायण)

    महानिम्ब बकायण के विषय में धनवन्तरीय निघण्टु में इस प्रकार लिखा है :

    महानिम्ब: स्मृतोद्रेको विषमुष्टिका
    केशमुष्टिर्निम्बर्को रम्यक: क्षीर एव

    बकायण को संस्कृत में महानिम्ब:, उद्रेक:, विषमुष्टिक:, केश-मुष्टि, निम्बरक, रम्यक और क्षीर नाम वाला कहा गया है

    Last edited by dndeswal; June 4th, 2006 at 06:12 PM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  4. #4

    Neem - Part IV

    बकायण के वृक्षों में फाल्गुन और चैत्र के मास में एक दूधिया रस निकलता हैयह रस मादक और विषैला होता हैइसीलिये फाल्गुन और चैत्र के मास में इस वनस्पति का प्रयोग नहीं करना चाहिये

    बकायण का वृक्ष सारे ही भारत में पाया जाता हैइसके वृक्ष 32 से 40 फुट तक ऊंचे होते हैंइसका वृक्ष बहुत सीधा होता हैइसके पत्ते नीम के पत्तों से कुछ ड़े होते हैं इसके फल गुच्छों के अंदर लगते हैंवे नीम के फलों से ड़े तथा गोल होते हैंफल पकने पर पीले रंग के होते हैंइसके बीजों में से एक स्थिर तैल निकलता है जो नीम के तैल के समान ही होता हैइसका पंचांग अधिक मात्रा में विषैला होता है

    इसके नाम अन्य भाषाओं में निम्न प्रकार से हैं : संस्कृत में महानिम्ब, केशमुष्टि, क्षीर, महाद्राक्षादिहिन्दी में बकायण निम्ब, महानिम्ब, द्रेकादिगुजराती - बकाण, लींबड़ोबंगाली में घोड़ा नीमफारसी- अजेदेदेरचता, बकेनपंजाबी बकेन चेन, तमिल : मलः अबेबू सिगारी निम्ब, उर्दू - बकायनलेटिन melia a zedaracha

    मुस्लिम देशों में इस वनस्पति का उपयोग बहुत ड़ी मात्रा में किया जाता हैफारस के हकीम इसकी जानकारी भारत से ले गए थेउन लोगों के मत से इस वृक्ष की छाल, फूल, फल और पत्ते गर्म, और रूक्ष होते हैंइसके पत्तों कारस अन्त:प्रयोगों में लेप से मूत्रल, तुस्राव नियामक और सर्दी के शोथ को मिटाने वाला होता हैअमेरिका में इसके पत्तों का काढा हिस्टेरिया रोग को दूर करने वाला, संकोचक और अग्निवर्धक माना जाता है। इसके पत्ते और छाल गलितकुष्ठ और कण्ठमाला को दूर करने के लिए खाने और लगाने के कार्य में प्रयुक्त किए जाते हैंऐसा विश्वास वहां पर है कि इसके फलों से पुलिटश के कृमियों का नाश हो जाता है इसीलिये चर्मरोगों के नाशार्थ यह उत्तम औषधि मानी जाती है
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    Last edited by dndeswal; June 4th, 2006 at 05:15 PM.
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  5. #5

    Neem - Part V

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    ...Continued from previous post

    इंडोचाइना में इसके फूल और फल अग्निवर्धक, संकोचक और कृमिनाशक माने जाते हैंकुछ विशेष प्रकार के ज्वर और मूत्र संबन्धी रोगों में इसके फलों का प्रयोग होता है

    मीठा नीम

    इसे कढी-पत्ता का पेड़ भी कहा जाता हैमीठे नीम के कैडर्य, महानिम्ब:, रामण:, रमण:, महारिष्ट, शुक्लसार, शुक्लशाल:, कफाह्वय:, प्रियसार और वरतिक्तादि संस्कृत में नाम हैंहिन्दी में मीठा नीममराठी कलयनिम्ब, पंजाबी गंधनिम्ब, तमिल करुणपिल्ले, तेलगू करिवेपमू, फारसी सजंद करखी कुनाह, लेटिन murraya koenigie नाम भिन्न-भिन्न भाषाओं में मीठे नीम के हैं

    मीठे नीम के पेड़ प्राय: भारतवर्ष के सभी भागों में पाये जाते हैंइसके पेड़ की ऊंचाई 12 से 15 फुट तक की होती हैइसके पत्ते देखने में नीम के पत्तों के समान ही होते हैं किन्तु ये कटे किनारों के नहीं होतेचैत्र और वैशाख में इसके पेड़ पर सफेद रंग के फूल आते हैंइसके फल झूमदार होते हैंपकने पर इस के पत्तों का रंग लाल हो जाता है इसके पत्तों में से भी एक प्रकार का सुगंधित तैल निकलता हैयूनानी मत में यह पाचक, क्षुधा कारक, धातु उत्पन्न करने वाला, कृमिनाशक, कफ को छांटने वाला और मुख की दुर्गन्ध को मिटाने वाला होता है यह दूसरे दर्जे में गर्म और खुश्क होता है इसकी ड़ को घिसकर विषैले कीड़ों के काटने के स्थान पर लगाने से लाभ होता है

    भोजन के रूप में : इसके सूखे पत्ते कढी में छोंक लगाने तथा दाल को स्वादिष्ट बनाने के कार्य में आते हैंइनको चने के बेसन में मिलाकर पकौड़ी भी बनाई जाती हैमूत्राशय के रोगों में इसकी ड़ों का रस सेवन लखीमपुर आसाम में अच्छा उपयोगी माना जाता है
    ....Continued
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    Last edited by dndeswal; June 4th, 2006 at 05:41 PM.
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  6. #6

    Neem Part-VI

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    ..Continued from previous post

    इंडोचाइना में इसका फल संकोचक माना जाता है और इसके पत्ते रक्तातिसार और आमातिसार को दूर करने के लिए अच्छे माने जाते हैं

    सारांश यह है कि मीठे नीम के वही गुण हैं जो प्राय: करके ड़वे नीम में हैं तथा जो धनवन्तरीय निघन्टु में लिखे हैं वही प्रयोग करने पर यथार्थ रूप में पाये गए हैं

    ड़वे निम्ब, मीठे निम्ब तथा बकायण के गुण मिलते हैं । इस प्रकार नीम नीमवृक्ष में इतने गुण हैं कि उसकी प्रशंसा जितनी की जाये उतनी थोड़ी है। सचमुच त्रिवेणी में स्नान करना तो मूर्खता है किन्तु नीम, पीपल और ड़ की त्रिवेणी का सेवन सब दुखों को दूर करके प्राणिमात्र के कष्ट दूर करके सुखी बनाता है



    Some Internet links about Need tree:

    http://www.american.edu/TED/neemtree.htm

    http://pa.essortment.com/neemtreeindia_rltz.htm

    http://neemtreefarms.com

    http://www.twnside.org.sg/title/pir-ch.htm

    http://www.encyclopedia.com/html/n/neem.asp

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    Last edited by dndeswal; July 11th, 2006 at 12:22 AM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  7. #7
    Deswal ji.........
    I recently found out that Neem plant is not native to Australia....
    and therefore very very difficult to grow here..........
    You might wonder at this but the fact that Australia is the driest continent in the world doesnt help either...........
    Anyway ....... who cares for australia...... hahahaha

  8. #8
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    Thanx Deswal ji,

    For sharing this valuable information. i have been using neem twig and leaves for 10 yrs now, and it has kept me healthy and fit.

    regards,

  9. #9
    I still think of the "neem baths" I took when I visited my grandparents. It just made me fel so nice and cozy. There is definitely something about neem trees.

  10. #10
    Very nice and informative post this.Thanks a ton for sharing wit all Deswal ji.
    "LIFE TEACHES EVERY ONE IN A NATURAL WAY.NO ONE CAN ESCAPE THIS REALITY"

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