Resp Neel ji
Thank you very much for posting meaningful poems of established poets like Niralaji, MaithiliSharan Gupt ji, Suman ji ,Agey ji, Jai Shankar Parshad ji and Harivans Rai Bachan ji.
I was thinking a lot whether I should post this poem or not but I could not Contain myself. I am posting a pom by PAAS "SABSEY KHATARNAK HOTA HAI-----",a part of it.
Please go through
R.S.Dahiya
Good One Jit..
i have posted one poem from Harivansh Rai Bachhan Ji in some thread earlier. sharing with you all once again...
अग्नि पथ-हरिवंश राय बच्चन
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !
व्रिक्ष हों भले खड़े,
हों घने,हों बडे़,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत,माँग मत!
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी- कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !
यह महान द्रश्य है-
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ !
some beautiful lines from Faiz Ahmed Faiz....
वो लोग बहुत खुशकिस्मत थे
जो इश्क को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे
हम जीते जी मशरूफ रहे
कुछ इश्क किया कुछ काम किया
काम इश्क के आड़े आता रहा
और इश्क से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग आकर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया
ndalal (August 28th, 2012)
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
हँसता हूँ मगर उल्लास नहीं - - ओमकृष्ण राहत
हँसता हूँ मगर उल्लास नहीं रोने पे मुझे विश्वास नहीं
इस मूरख मन को जाने क्यों ये जी बहलावे रास नहीं
अश्रु का खिलौना टूट गया मुस्कान की गुडिया रूठ गई
इस चंचल बालक-मन को मगर लुटे जाने का अहसास नहीं
सब बात बिगड़ने की एक आस निरास का चक्कर है
जो बिगड़ गई वो बात नही जो टूट गई वो आस नहीं
क्या भीगा भीगा मौसम था क्या रुत है फिकी फिकी सी
हम पहरो रोया करते थे अब एक भी आंशु पास नहीं
हिम्मत तो करो पूछो तो सही इस बगिया के रखवालों से
क्यों रंग नहीं है फूलों पे क्यों कलियों में बू बास नहीं
वो आ जाएं या घर बैठे कुछ इसमे ऐसा फ़र्क नहीं
ये मिलना जुलना रश्में है दिल इन रश्मों का दास नहीं
जब सारा जीवन बीत गया तब जीने का ढब आया है
वो जाएं तो कोई शोक नहीं वो आए तो कोई उल्लास नहीं
इस बॆरन बिरहा ने मेरा ये हाल बनाया है राहत
वो कबसे सामने बैठे हैं और आंखों पे विश्वास नहीं
Rock on
Jit
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
ndalal (August 28th, 2012)
Keep Believing in Yourself and Your Dreams
आ: धरती कितना देती है / सुमित्रानंदन पंत
मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे
सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे ,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी ,
और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा !
पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा ,
बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला ।
सपने जाने कहां मिटे , कब धूल हो गये ।
मै हताश हो , बाट जोहता रहा दिनो तक ,
बाल कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर ।
मै अबोध था, मैने गलत बीज बोये थे ,
ममता को रोपा था , तृष्णा को सींचा था ।
अर्धशती हहराती निकल गयी है तबसे ।
कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने
ग्रीष्म तपे , वर्षा झूलीं , शरदें मुसकाई
सी-सी कर हेमन्त कँपे, तरु झरे ,खिले वन ।
औ' जब फिर से गाढी ऊदी लालसा लिये
गहरे कजरारे बादल बरसे धरती पर
मैने कौतूहलवश आँगन के कोने की
गीली तह को यों ही उँगली से सहलाकर
बीज सेम के दबा दिए मिट्टी के नीचे ।
भू के अन्चल मे मणि माणिक बाँध दिए हों ।
मै फिर भूल गया था छोटी से घटना को
और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन ।
किन्तु एक दिन , जब मै सन्ध्या को आँगन मे
टहल रहा था- तब सह्सा मैने जो देखा ,
उससे हर्ष विमूढ़ हो उठा मै विस्मय से ।
देखा आँगन के कोने मे कई नवागत
छोटी छोटी छाता ताने खडे हुए है ।
छाता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की;
या हथेलियाँ खोले थे वे नन्हीं ,प्यारी -
जो भी हो , वे हरे हरे उल्लास से भरे
पंख मारकर उडने को उत्सुक लगते थे
डिम्ब तोडकर निकले चिडियों के बच्चे से ।
निर्निमेष , क्षण भर मै उनको रहा देखता-
सहसा मुझे स्मरण हो आया कुछ दिन पहले ,
बीज सेम के रोपे थे मैने आँगन मे
और उन्ही से बौने पौधौं की यह पलटन
मेरी आँखो के सम्मुख अब खडी गर्व से ,
नन्हे नाटे पैर पटक , बढ़ती जाती है ।
तबसे उनको रहा देखता धीरे धीरे
अनगिनती पत्तो से लद भर गयी झाडियाँ
हरे भरे टँग गये कई मखमली चन्दोवे
बेलें फैल गई बल खा , आँगन मे लहरा
और सहारा लेकर बाड़े की टट्टी का
हरे हरे सौ झरने फूट ऊपर को
मै अवाक रह गया वंश कैसे बढता है
यह धरती कितना देती है । धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रो को
नहीं समझ पाया था मै उसके महत्व को
बचपन मे , छि: स्वार्थ लोभवश पैसे बोकर
रत्न प्रसविनि है वसुधा , अब समझ सका हूँ ।
इसमे सच्ची समता के दाने बोने है
इसमे जन की क्षमता के दाने बोने है
इसमे मानव ममता के दाने बोने है
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसले
मानवता की - जीवन क्ष्रम से हँसे दिशाएं
हम जैसा बोएँगे वैसा ही पाएँगे ।
Keep Believing in Yourself and Your Dreams
Really Inspirin' lines for all the broken hearted
Dont know the poet name though...
क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता
सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता
कोई सह लेता है कोई कह लेता है
क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता
आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे
यहाँ ठोकर देने वाला हर पत्थर नही होता
क्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो
इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता
कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर
ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता !!
Rock on
Jit
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
kamnanadar (January 22nd, 2012), ndalal (August 28th, 2012)
Dear All
Lot of creative poems are being put. Thanks to all for subscriptions .
Sahir Ludhianvi was a poet of his own variety. A poem by him Vo Subah kabhi to Aayegee.
R.S.Dahiya
यह कदम्ब का पेड़ / सुभद्राकुमारी चौहान
This one I still remember word to word,,, from the golden old days of school...
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता।।
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।
तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।।
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।।
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।।
Keep Believing in Yourself and Your Dreams
kamnanadar (January 22nd, 2012)
रिश्ते - दीप्ति गुप्ता
अक्सर रिश्तों को रोते हुए देखा है,
अपनों की ही बाँहो में मरते हुए देखा है
टूटते, बिखरते, सिसकते, कसकते
रिश्तों का इतिहास,
दिल पे लिखा है बेहिसाब!
प्यार की आँच में पक कर पक्के होते जो,
वे कब कौन सी आग में झुलसते चले जाते हैं,
झुलसते चले जाते हैं और राख हो जाते हैं!
क्या वे नियति से नियत घड़ियाँ लिखा कर लाते हैं?
कौन सी कमी कहाँ रह जाती है
कि वे अस्तित्वहीन हो जाते हैं,
या एक अरसे की पूर्ण जिन्दगी जी कर,
वे अपने अन्तिम मुकाम पर पहुँच जाते हैं!
मैंने देखे हैं कुछ रिश्ते धन-दौलत पे टिके होते हैं,
कुछ चालबाजों से लुटे होते हैं-गहरा धोखा खाए होते हैं
कुछ आँसुओं से खारे और नम हुए होते हैं,
कुछ रिश्ते अभावों में पले होते हैं-
पर भावों से भरे होते है! बड़े ही खरे होते हैं !
कुछ रिश्ते, रिश्तों की कब्र पर बने होते हैं,
जो कभी पनपते नहीं, बहुत समय तक जीते नहीं
दुर्भाग्य और दुखों के तूफान से बचते नहीं!
स्वार्थ पर बनें रिश्ते बुलबुले की तरह उठते हैं
कुछ देर बने रहते हैं और गायब हो जाते हैं;
कुछ रिश्ते दूरियों में ओझल हो जाते हैं,
जाने वाले के साथ दूर चले जाते हैं !
कुछ नजदीकियों की भेंट चढ़ जाते हैं,
कुछ शक से सुन्न हो जाते हैं !
कुछ अतिविश्वास की बलि चढ़ जाते हैं!
फिर भी रिश्ते बनते हैं, बिगड़ते हैं,
जीते हैं, मरते हैं, लड़खड़ाते हैं, लंगड़ाते हैं
तेरे मेरे उसके द्वारा घसीटे जाते हैं,
कभी रस्मों की बैसाखी पे चलाए जाते हैं!
पर कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं
जो जन्म से लेकर बचपन जवानी - बुढ़ापे से गुजरते हुए,
बड़ी गरिमा से जीते हुए महान महिमाय हो जाते हैं !
ऐसे रिश्ते सदियों में नजर आते हैं !
जब कभी सच्चा रिश्ता नजर आया है
कृष्ण की बाँसुरी ने गीत गुनगुनाया है!
आसमां में ईद का चाँद मुस्कराया है!
या सूरज रात में ही निकल आया है!
ईद का चाँद रोज नहीं दिखता,
इन्द्रधनुष भी कभी-कभी खिलता है!
इसलिए शायद - प्यारा खरा रिश्ता
सदियों में दिखता है, मुश्किल से मिलता है पर,
दिखता है, मिलता है, यही क्या कम है .. !!!
Rock on
Jit
Last edited by cooljat; November 18th, 2007 at 07:41 PM.
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
जीवन - सुगंध सिन्हा
यह जीवन एक सफर है,
सुख दुख का भंवर है,
सबके जीवन की दिशा अलग है,
लोग अलग परिभाषा अलग है।
पृथक पृथक है उनके भाव,
वेश अलग अभिलाषा अलग है।
कोई जीता है स्व के लिये,
तो कोई जीवित है नव के लिये,
कहीं दिलों में प्रेम की इच्छा,
तो कहीं है जीत का जज़्बा,
कहीं सांस लेते हैं संस्कार,
तो कहीं किया कुकर्मों ने कब्ज़ा।
कहीं सत्य नन्हीं आँखों से
सूर्य का प्रकाश ढूँढ रहा,
तो कहीं झूठ का काला बादल,
मन के सपनों को रूँध रहा।
मैंने देखा है सपनों को जलते,
झुलसे मन में इच्छा पलते,
जब मन को मिलता न किनारा,
ढूँढे वह तिनके का सहारा,
सपनों की माला के मोती,
बिखरे जैसे बुझती हुई ज्योति।
दिल में एक सवाल छुपा है,
माँगे प्रभु की असीम कृपा है,
आज फिर से जीवन जी लूँ,
मन में यह विश्वास जगा है।
धूप छाँव तो प्रकृति का नियम है,
जितना जीवन मिले वो कम है,
आज वह चाहता है जीना,
न झुके कभी, ताने रहे सीना,
जीवन का उसने अर्थ है जाना,
जाना ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त स्वयं है।
Rock on
Jit
.. " Until Lions have their historians, tales of the hunt shall always glorify the hunter! " ..
kamnanadar (February 5th, 2012)