भूकंप आ गया था मुकेश । पर भूकंप से उतना नुकसान नहीं हुआ - जिन जगहों पर नीचे जमीन से पानी निकाला जा रहा था, उसके आस पास बने हुए मकान धंस गए थे । ऐसी आशंका देहातों में तो नहीं, पर दिल्ली में जरूर जताई जा रही है । शहरों में हर घर में जमीन में बोरिंग करके या तो हैंडपंप या मोटर से पानी निकाला जा रहा है । नीचे से जमीन में काफी खोखलापन आ गया है और इसी gap की वजह से छोटा सा भूकंप का झटका ही शहर के बड़े हिस्से को तबाह करने को काफी है ।
अब एक छोटी सी और बात का जिक्र करें । जैसा कि ऊपर लिखा गया है, आजकल देसी गेहूं दिखाई देना बंद हो गया है, जिसके आटे की रोटियों का स्वाद ही अलग था । एक ताऊ कहने लगा कि भाई, पहले जब सुबह-सुबह उठकर कुल्ला करते थे तो मुंह का अलग ही जायका होता था, लगता था जैसे कि मिठाई खाकर सोये थे । मैने पूछा कि ताऊ, अब क्या हो गया ? ताऊ ने जवाब दिया - "भाई, ईब तै तड़कैहें-2 कड़वा मुंह पावै सै - इसा लागै सै जणूं गू खा-कै सोये थे" !!
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