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Results 101 to 113 of 113

Thread: Shudh Hindi.........

  1. #101
    Quote Originally Posted by arvind1069 View Post
    mujhe computer par apni matri bhasha hindi main likhne ka gyan nahi hai. aap main se koi mujhe ye vidya sikha sakta hai.
    प्रिया मित्र,
    मुझे ये देवेन्द्र द्वारा सिखाया गया सबसे सरल तरीका लगा. इसलिए आप यहाँ निचे दिए अनुसार लिंक को आजमा कर देखें. आशा है आपको भी पसंद आए.

    http://www.google.co.in/transliterate/indic#

  2. #102
    Quote Originally Posted by dkumars View Post
    महोदया, मोडरेटर शब्द की इस्सी तीसी कर दी आप ने तो|
    दोस्त, अपने अनुसार मैंने एकदम उचित शब्द लिखा था, किंतु ये तो बदल के कुछ और ही हो गया :d......ही ही ही ही.......मुझे अनु जी से ये नई बात सीख के और अच्छा लगा

  3. #103
    "[quote=shwetadhaka;185999]Funny Translations
    ******************

    Have a nice day! ----- * अच्छा दिन लो!

    Check this out, man! ----* इसकी छानबीन करो, आदमी!

    Don't mess with me, dude.--*मेरे साथ गंदगी मत करो, ए व्यक्ति

    She's so fine! ----- * वो इतनी बारीक हैं!.........."
    ----------------------------------------------------------------------

    श्वेता आपने बहुत ही सुंदर लिखा है. सभी पहले के धागों में भी अच्छा लिखा है. सभी का प्रयास सराहनीय है. यह सच है कि समय बहुत लगता है लेकिन एक बार लिखने लगो तो शायद आपका कंप्यूटर भी मदद करने लगता है और ठीक शब्द लिखता है. मुझे भी पहली बार हिन्दी में लिख कर अच्छा लगा | आप सभी का धन्यवाद |
    Ranjit Dahiya.

    Think Positive-Everything is Possible.

  4. #104
    आदर्नियन (आदरणीया)श्वेता जी,
    मेरे कहने का तात्पर्य ये कती ना (
    यह कतई नहीं ) था की (कि)किसी कार्य को मात्र इसलिए छोड़ दिया जाएँ की वो जटिल है बल्की क्या अनुकूल परिणाम उसका भविष्य में आएगा वो मूल चिन्तन का उदेशेया होना चाइये (बल्कि क्या भविष्य में उसका अनुकूल परिणाम आयेगा, वो मूल चिन्तन का उद्देश्य होना चाहिए ) ...आप जिन कार्यो की व्याख्या कर रही है हर कार्य (उन कार्यों )से बहुत सारे सपष्ट दिखने वाले अनुकूल परिणाम निकट और दूर भविष्य में देखे जा सकते है
    हिन्दी का यदी हम वीकास (
    विकास )करना चाहते है तो अहम् मुद्दा तो ये है की इन वीकास के पर्यतानो (विकास के प्रयत्नो)के दौरान हम उसके स्वरुप से छेड़खानी ना होने दे ....सब से प्रथम आवशयकता (आवश्यकता)है तो वो यह है की (कि)हम उपकरण का वीकास (विकास )करे जो भाषा के व्याकरण का सम्मान करे.....अगर इस भांती वीकास (भाँतिविकास )चलता गया तो कुछ बर्षों में हिन्दी पहचान में भी नही आएगी .....किसी दूसरी भाषा के मध्यम (माध्यम )से अगर हम अपनी भाषा को टाइप करे तो अपनी भाषा का वीकास (विकास )कैसे संभंव है ....आवशयकता (आवश्यकता)है तो पहले अपनी भाषा को अन्य भाषा पर निर्भार्यता (निर्भरता )से मुक्त करे ... अगर हम अपनी धरोहर को जीवित रखना चाहते है तो हमें पहले इसे मानक स्तर पर टाइप करने की आवशयकता है ...
    अगर आज अंग्रेज़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है तो उसका कारण महज ये नही है की अंग्रेज़ी के वीकास
    (विकास )पर महज ध्यान दिया गया था ...अंग्रेज़ी बोलने वाले लोगों का समाज के वीकास (विकास )में बहुत बड़ा योगदान है....हम लोगों ने ऐसा किया क्या है की जो हम हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कभी दूर भविष्य में भी ला सकेंगे.....हमारे जिस वीकास (विकास )पर हम गर्व करते है वो वीकास (विकास ) केवल इतना है की (कि)हम किस तीव्रता से पास्चायता (पाश्चात्य) संस्कृति को अपनी संस्कृति में अपना रहे है....
    .......सीधी सी बात जो मुझे पीड़ा करती है वो येह
    यह है की मुझ से भाषा का येह यह बदलता हुआ सवरूप सहन नही होता है ... भाषा का जिस तरह से हस्त लेखन में प्रयोग होता है उसे यहाँ पर भी संजीवित (सजीव )रखा जाएँ......दिविसतर ?मानको (दोहरे मापदंडो) से कोई सफलता नही ली जा सकती. (प्राप्त नही की जा सकती)....
    .......... टिप्पणियों की सह्दिल (सह्रदय) से प्रतीक्षा है ....किसी भी परकार (प्रकार) का संकोच न करे.

    आशीष
    प्रदीप बेनीवाल

    आप सभी का प्रयास बहुत ही सराहनीय है, किन्तु आप भाषा को लिखते समय अशुद्धियों का भी ध्यान रखिये. निम्नलिखित लेख इसका एक उदहारण है; ( अशुद्ध शब्दों को नीले रंग में दर्शाया गया है) इस लेख में बहुत सी व्याकरण सम्बन्धी गलतियाँ हैं .
    क्योंकि यहाँ हम शुद्ध हिन्दी भाषा के प्रयोग की बातें कर रहें हैं, तो इसमे अतिरिक्त सावधानी की जरुरत है.
    परन्तु आप के द्वारा व्यक्त किए गए विचार सराहनीय है.मेरा उद्देश्य आपको ठेस पहुचाने नही है , क्योकि आलोचना अगर सही तरह की हो , तो उसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि इसमे आपकी ही भलाई छुपी होती है .




    Learn to write your Pain on the Sand
    Where winds of forgiveness erase it away
    Curve your Joys on Stone
    Where even rains cannot erase it !!
    ENJOY LIFE !!!


  5. #105

    Smile

    Quote Originally Posted by anjalis View Post
    आप सभी का प्रयास बहुत ही सराहनीय है, किन्तु आप भाषा को लिखते समय अशुद्धियों का भी ध्यान रखिये. निम्नलिखित लेख इसका एक उदहारण है; ( अशुद्ध शब्दों को नीले रंग में दर्शाया गया है) इस लेख में बहुत सी व्याकरण सम्बन्धी गलतियाँ हैं .
    क्योंकि यहाँ हम शुद्ध हिन्दी भाषा के प्रयोग की बातें कर रहें हैं, तो इसमे अतिरिक्त सावधानी की जरुरत है.
    परन्तु आप के द्वारा व्यक्त किए गए विचार सराहनीय है.मेरा उद्देश्य आपको ठेस पहुचाने नही है , क्योकि आलोचना अगर सही तरह की हो , तो उसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि इसमे आपकी ही भलाई छुपी होती है .


    उपरोक्त (लिखित/वर्णित) लेख इसका उदाहरण है |

  6. #106
    Quote Originally Posted by choudharyneelam View Post
    प्रिया मित्र,
    मुझे ये देवेन्द्र द्वारा सिखाया गया सबसे सरल तरीका लगा. इसलिए आप यहाँ निचे दिए अनुसार लिंक को आजमा कर देखें. आशा है आपको भी पसंद आए.

    http://www.google.co.in/transliterate/indic#

    आपका बहुत २ धन्यवाद नीलम जी

  7. #107
    क्या कारण है की हमारी मात्री भाषा की आज इतनी उपेक्षा हो रही है?
    हम हिन्दी मैं बात करने मैं संकोच क्यूँ करते है और अंग्रेज़ी मैं बात करने में गर्व क्यूँ महसूस करते हैं?
    क्या कोई बता सकता है?
    क्या हमारा देश अपनी भाषा का प्रयोग करके उन्नति नही कर सकता?

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    kamnanadar (February 21st, 2012)

  9. #108

    Smile

    Quote Originally Posted by arvind1069 View Post
    क्या कारण है की हमारी मात्री भाषा की आज इतनी उपेक्षा हो रही है?
    हम हिन्दी मैं बात करने मैं संकोच क्यूँ करते है और अंग्रेज़ी मैं बात करने में गर्व क्यूँ महसूस करते हैं?
    क्या कोई बता सकता है?
    क्या हमारा देश अपनी भाषा का प्रयोग करके उन्नति नही कर सकता?
    क्योंकि हम सब वर्षों की परतंत्रा के कारण स्वयम को हीन समझने लगे हैं | अंग्रेजों का शासन एवं उनकी शासन विधि जो की उन्होंने हमारे ऊपर थोपी गयी थी, हमने अक्षरसः स्वीकार कर ली है | हम आज भी उन्ही पुरानी नीतियों और परम्पराओं को जान बुझ कर ढ़ो रहे है, क्योंकि समाज में आज भी अंग्रेज़ी के वक्ताओं को उसी सम्मान से देखा जाता है जिस सम्मान से अंग्रेज़ प्रशासको को उनके चापलूस देखा करते थे | केवल हमारा राष्ट्र ही इस परम्परा का एक मात्र ज्वलंत उदाहरण है |
    हमने कभी हमारी प्रशासकीय एवं न्यायिक शब्दावलियों के विकास एवं प्रयोग के लिए अथक प्रयत्न नही किए | कुछ जागरूक नागरिक अंग्रेज़ी भाषा को इसलिए अधिक उत्साहित करते हैं क्योंकि वे ये समझते है कि इसके माध्यम से शिक्षा एवं रोजगार के अवसर अधिक प्राप्त हो सकते है | किंतु यह एक मिथ्या ब्रह्म ही सिद्ध होता है, यह एक सत्य से परे की सोच है | चीन, जापान, रूस एवं फ्रांस आज भी अपनी मातृभाषाओं क्रमशः चीनी, जापानी, रूसी एवं फ्रांसीसी का प्रयोग करते हुए भी हम भारवासियों से बहुत आगे हैं | क्योंकि सफलता कि जनक भाषा नही वरन आत्म सम्मान एवं आत्म प्रयत्न से जन्म लेने वाला उत्साह एवं दृढ़ निश्चय है |

    हमने स्वयं ने बहुत बार देखा होगा के जब रूसी राष्ट्राध्यक्ष हमारी संसद को स्वयम की मातृभाषा में संबोधित करते हैं तो हमें भी आत्मिक रूप से गौरव की अनुभूति होती है कि देखिये इनका अपने राष्ट्र एवं मातृभाषा के प्रति कितना समर्पण है | हमारे ह्रदय में भी उनसे प्रेरणा लेने कि उत्कंठा उत्पन्न होती है परन्तु यह क्षणिक आवेश ही बन कर रह जाती सी प्रतीत होती है | क्योंकि हमें हिन्दी भाषा को प्रोत्साहित करने वाला वातावरण पूर्ण रूप से प्राप्त नही हो पता है | आइये हम सभी आज से हिन्दी को अपना उत्कृष्ट स्थान दिलाने के लिए प्रण करें जिससे कि हमें और हमारी भावी पीढी को आत्म गौरव की प्राप्ति हो|
    जय हिंद !
    Last edited by PrashantHooda; November 3rd, 2008 at 02:04 PM.

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    kamnanadar (February 21st, 2012)

  11. #109
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    [quote=PrashantHooda;186167]क्योंकि हम सब वर्षों की परतंत्रा के कारण स्वयम को हीन समझने लगे हैं | अंग्रेजों का शासन एवं उनकी शासन विधि जो की उन्होंने हमारे ऊपर थोपी गयी थी, हमने अक्षरसः स्वीकार कर ली है | हम आज भी उन्ही पुरानी नीतियों और परम्पराओं को जान बुझ कर ढ़ो रहे है, क्योंकि समाज में आज भी अंग्रेज़ी के वक्ताओं को उसी सम्मान से देखा जाता है जिस सम्मान से अंग्रेज़ प्रशासको को उनके चापलूस देखा करते थे | केवल हमारा राष्ट्र ही इस परम्परा का एक मात्र ज्वलंत उदाहरण है |
    हमने कभी हमारी प्रशासकीय एवं न्यायिक शब्दावलियों के विकास एवं प्रयोग के लिए अथक प्रयत्न नही किए | कुछ जागरूक नागरिक अंग्रेज़ी भाषा को इसलिए अधिक उत्साहित करते हैं क्योंकि वे ये समझते है कि इसके माध्यम से शिक्षा एवं रोजगार के अवसर अधिक प्राप्त हो सकते है | किंतु यह एक मिथ्या ब्रह्म ही सिद्ध होता है, यह एक सत्य से परे की सोच है | चीन, जापान, रूस एवं फ्रांस आज भी अपनी मातृभाषाओं क्रमशः चीनी, जापानी, रूसी एवं फ्रांसीसी का प्रयोग करते हुए भी हम भारवासियों से बहुत आगे हैं | क्योंकि सफलता कि जनक भाषा नही वरन आत्म सम्मान एवं आत्म प्रयत्न से जन्म लेने वाला उत्साह एवं दृढ़ निश्चय है |

    हमने स्वयं ने बहुत बार देखा होगा के जब रूसी राष्ट्राध्यक्ष हमारी संसद को स्वयम की मातृभाषा में संबोधित करते हैं तो हमें भी आत्मिक रूप से गौरव की अनुभूति होती है कि देखिये इनका अपने राष्ट्र एवं मातृभाषा के प्रति कितना समर्पण है | हमारे ह्रदय में भी उनसे प्रेरणा लेने कि उत्कंठा उत्पन्न होती है परन्तु यह क्षणिक आवेश ही बन कर रह जाती सी प्रतीत होती है | क्योंकि हमें हिन्दी भाषा को प्रोत्साहित करने वाला वातावरण पूर्ण रूप से प्राप्त |
    जय हिंद ![/नही हो पता है | आइये हम सभी आज से हिन्दी को अपना उत्कृष्ट स्थान दिलाने के लिए प्रण करें जिससे कि हमें और हमारी भावी पीढी को आत्म गौरव की प्राप्ति हो
    quote]
    प्रिय मित्र .
    मैं आपकी बात से सों फीसदी सहमत हू . आज लगभग पुलिश थानों में और
    अदालतों में सारे काम हिन्दी + उर्दू में होते है . तो क्या वहा के काम नही हो रहे क्या .
    पर सुप्रीम कोर्ट में काम अंग्रेजी में होता है . एसा इसलिए की अंग्रेजो के समय में
    सुप्रीम कोर्ट के सारे न्याय धीश अंग्रेज ही होते थे . अभी कुछ समय पहले वहा भी
    हिन्दी में काम करवाने के प्रयास हुए थे . पर न्याय धिशो ने यह कह कर हिन्दी को
    लागु करने से मना कर दिया की हमें परेशानी होगी . तो क्या सुप्रीम कोर्ट के माननीय
    न्याय धीश अमेरिका से आयात किए हुए है जो उनको परेशानी होगी . वहा के वकील
    साहेबान भी भारतीय ही है . हिन्दी की कुछ माटी पलित तो दक्सिन भारतीयों ने भी कर राखी है .
    रही कसर राज ठाकरे जैसे छुट भये नेता कर रहे है . काश सरदार पटेल कुछ समय और जीवित
    रह जाते तो जैसे सभी रियासतों को मिलाकर एक भारत बना दिया था . उसी तरह सभी भाषाओ
    को मिलाकर एक हिन्दी बना देते .
    जय हिन्दी
    जय हिंद

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    kamnanadar (February 21st, 2012)

  13. #110

    Thumbs down

    Quote Originally Posted by hoodarajesh View Post
    प्रिय मित्र .
    मैं आपकी बात से सों फीसदी सहमत हू . आज लगभग पुलिश थानों में और
    अदालतों में सारे काम हिन्दी + उर्दू में होते है . तो क्या वहा के काम नही हो रहे क्या .
    पर सुप्रीम कोर्ट में काम अंग्रेजी में होता है . एसा इसलिए की अंग्रेजो के समय में
    सुप्रीम कोर्ट के सारे न्याय धीश अंग्रेज ही होते थे . अभी कुछ समय पहले वहा भी
    हिन्दी में काम करवाने के प्रयास हुए थे . पर न्याय धिशो ने यह कह कर हिन्दी को
    लागु करने से मना कर दिया की हमें परेशानी होगी . तो क्या सुप्रीम कोर्ट के माननीय
    न्याय धीश अमेरिका से आयात किए हुए है जो उनको परेशानी होगी . वहा के वकील
    साहेबान भी भारतीय ही है . हिन्दी की कुछ माटी पलित तो दक्सिन भारतीयों ने भी कर राखी है .
    रही कसर राज ठाकरे जैसे छुट भये नेता कर रहे है . काश सरदार पटेल कुछ समय और जीवित
    रह जाते तो जैसे सभी रियासतों को मिलाकर एक भारत बना दिया था . उसी तरह सभी भाषाओ
    को मिलाकर एक हिन्दी बना देते .
    जय हिन्दी
    जय हिंद

    भाई आपने पूर्णतया सही कहा है | हमें आज भी अंग्रेज़ी सभ्यता ने बहुत मजबूती से जकड रखा है, वस्तुतः यह एक रूप से न्यायलय का अपमान ही होगा परन्तु मुझे आज यह कहते हुए बहुत शर्म एवं पीड़ा अनुभव होती है कि आज भी राजस्थान मुख्य न्यायालय का ग्रीष्म काल में एक माह का अवकाश घोषित होता है क्योंकि आज भी ये उन्ही अंग्रेज़ अधिकारी कि अक्षरश: नक़ल करते हैं जिनको कि राजपूताने की ग्रीष्म ऋतू बहुत ही कष्ट कारक प्रतीत होती थी | हमारी परतंत्र विचारधारा का इससे बड़ा सजीव उदाहरण नही हो सकता | आज जबकि समस्त न्यायालय कक्ष वातानाकूलित हैं तो भी माननीय न्यायाधीश एक माह के ग्रीष्म अवकाश पर रहतें है | जब धर्माधिकारियों की यह स्थिति है तो हम लोग जन साधारण से तो सदाचार एवं सद्-व्यवहार की अपेक्षा ही नही कर सकते है | इसके पीछे हमारी परतंत्र मानसिकता के अलावा कुछ भी नही है |
    (हमारे राष्ट्रपति भी ग्रीष्म ऋतू में शिमला में रह कर स्वयं को बहुत धन्य समझते है |)

  14. The Following User Says Thank You to PrashantHooda For This Useful Post:

    kamnanadar (February 21st, 2012)

  15. #111
    Quote Originally Posted by arvind1069 View Post
    क्या कारण है की हमारी मात्री भाषा की आज इतनी उपेक्षा हो रही है?
    हम हिन्दी मैं बात करने मैं संकोच क्यूँ करते है और अंग्रेज़ी मैं बात करने में गर्व क्यूँ महसूस करते हैं?
    क्या कोई बता सकता है?
    क्या हमारा देश अपनी भाषा का प्रयोग करके उन्नति नही कर सकता?
    बाज़ार में जो चीज़ थोक के भाव मिलती है उसका भाव कम होना स्भाविक है....ऐसी ही कुछ स्तिथी से गुजर रही है हमारी राष्ट्राय भाषा......ये दर्शय है हिन्दी भाषी राज्यों का.....जनमानस की हमेशा से यही सोच रही है की भीड़ में अलग से कैसे दिखा जाए .........
    ...फिर वो कोई भी वीदेशी वस्तु हो.....यहाँ तक की वीदेशी भाषा से भी कोई परहेज नही है
    इस को कहने में तो कोई अतिशाक्योती नही होगी कि कारपोरेट दुनिया में तो अंग्रेज़ी अपने पैर पसार चुकी है.....आज करियर के जितने भी अवसर है सब की प्रथम आवशय्कता है अंग्रेज़ी....इसलिए आज की नौजवान पीढ़ी के लिए अंग्रेज़ी के अभाव में पल्पना मात्र एक अप्रोढ़ सोच है.....
    जब हमारा देश आजाद हुआ था तो राष्ट्राय भाषा के चुनाव में हिन्दी मात्र एक मत से अंग्रेज़ी से जीती थी.....अगर ऐसा ना होके विपरीत हुआ होता तो कम से कम राष्ट्राय भाषा हिन्दी का बिगुल तो नही बजता....पर विधाता को यही मंजूर था तो अब
    राष्ट्र्यभाषा को बचाने के प्रयतन ऐसे धागों तक ही सिमीत रह गए है.....
    अगर हिन्दी भाषा के विकास में सब से बड़े योगदान कि बात कि जाएँ तो वो है हिन्दी सिनेमा का....अगर दक्षिण भारत के कुछ राज्यों को नज़रंदाज़ कर दिया जाएँ तो.......
    . लेकिन अब हिन्दी सिनेमा का भी अंग्रेजीकरण हो रहा है तो अब क्या कह सकते है ......
    All that we are is the result of what we have thought."
    ~ Buddha






  16. The Following User Says Thank You to pdpbeniwal For This Useful Post:

    kamnanadar (February 21st, 2012)

  17. #112
    Email Verification Pending
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    Quote Originally Posted by prashanthooda View Post
    भाई आपने पूर्णतया सही कहा है | हमें आज भी अंग्रेज़ी सभ्यता ने बहुत मजबूती से जकड रखा है, वस्तुतः यह एक रूप से न्यायलय का अपमान ही होगा परन्तु मुझे आज यह कहते हुए बहुत शर्म एवं पीड़ा अनुभव होती है कि आज भी राजस्थान मुख्य न्यायालय का ग्रीष्म काल में एक माह का अवकाश घोषित होता है क्योंकि आज भी ये उन्ही अंग्रेज़ अधिकारी कि अक्षरश: नक़ल करते हैं जिनको कि राजपूताने की ग्रीष्म ऋतू बहुत ही कष्ट कारक प्रतीत होती थी | हमारी परतंत्र विचारधारा का इससे बड़ा सजीव उदाहरण नही हो सकता | आज जबकि समस्त न्यायालय कक्ष वातानाकूलित हैं तो भी माननीय न्यायाधीश एक माह के ग्रीष्म अवकाश पर रहतें है | जब धर्माधिकारियों की यह स्थिति है तो हम लोग जन साधारण से तो सदाचार एवं सद्-व्यवहार की अपेक्षा ही नही कर सकते है | इसके पीछे हमारी परतंत्र मानसिकता के अलावा कुछ भी नही है |
    (हमारे राष्ट्रपति भी ग्रीष्म ऋतू में शिमला में रह कर स्वयं को बहुत धन्य समझते है |)
    भ्राता प्रशांत सही बात है . आज हमारे देश के प्रतिनिधि दुसरे मुल्क में जाकर
    अंग्रेजी बोलेंगे . बल्कि ये कहे की वो जाते ही अंग्रेजी सिखने . एक स्वामी
    विवेकानंद थे . जिन्होंने शिकागो धर्म समेलन में हिंदू धर्म पर हिन्दी में अपने
    विचार व्यक्त किए थे . तो पूरी दुनिया में हिंदू धर्म और स्वामी विवेकानद की
    प्रसिदी फ़ैल गई थी | आज भी अमरीका के इतिहास में ये बात दर्ज है .

  18. The Following User Says Thank You to hoodarajesh For This Useful Post:

    kamnanadar (February 21st, 2012)

  19. #113
    "[quote=Anjalis;186152]

    क्योंकि यहाँ हम शुद्ध हिन्दी भाषा के प्रयोग की बातें कर रहें हैं, तो इसमे अतिरिक्त सावधानी की जरुरत है. परन्तु आप के द्वारा व्यक्त किए गए विचार सराहनीय है.मेरा उद्देश्य आपको ठेस पहुचाने नही है , क्योकि आलोचना अगर सही तरह की हो , तो उसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि इसमे आपकी ही भलाई छुपी होती है . "

    ----------------------------------------------------------------------

    बहुत ही सुंदर, सभी को आपसे प्रेरणा लेनी चाहिए. हमें थोड़ा सा प्रयास अपनी भाषा की शुद्दियों के प्रति अवश्य करना चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भाषा सरल भी रहे ताकि सभी को सहज में समझ आ सके. सकारातमक सोच से आगे बढ़ना चाहिए. सभी के प्रयास से ही सफलता मिल सकती है.

    Ranjit Dahiya.

    Think Positive-Everything is Possible.

  20. The Following User Says Thank You to Rmandaura For This Useful Post:

    kamnanadar (February 21st, 2012)

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