Navbharat Times (20 June 2008)
नई दिल्लीः अपने ही गोत्र में शादी करना कानून की नजर में अवैध नहीं है। अदालत ने कहा कि शादी दो लोगों की व्यक्तिगत पसंद से होती है। अडिशनल सेशन जज कामिनी लॉ ने कहा कि एक गोत्र में शादी में कानूनी तौर पर कोई अड़चन नहीं है तो ऐसे में किसी को इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती कि वह विवाहित जोड़े को प्रताड़ित करे। एक ही गोत्र में शादी करने वाले एक जोड़े के मामले की सुनवाई के दौरान जज ने यह टिप्पणी की। शादी करने वाले लड़के को अदालत ने जमानत दे दी।
जज कामिनी लॉ ने कहा कि समाज के नियम-कायदे इसलिए बनाए जाते हैं ताकि लोगों का उससे भला हो सके। ये नियम-कायदे लोगों की जिंदगी में अड़चनें पैदा करने के लिए नहीं बनाए जाते। अदालत ने कहा कि एक ही गोत्र में विवाह करना हिंदू मैरिज एक्ट में निषेध नहीं है। अदालत ने कहा कि अगर किसी ने सपिंडा श्रेणी में शादी कर ली है तो वह हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-5 में वर्जित है। सपिंडा श्रेणी का मतलब होता है कि कोई भी शख्स अपने पिता के खानदान की पांच पीढ़ियों और मां के खानदान की तीन पीढ़ियों के भीतर आने वाले दूसरे शख्स से शादी नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामला सपिंडा की श्रेणी में नहीं आता। अदालत ने लड़की और लड़के के पिता को निर्देश दिया कि वह किसी भी तरह से शादीशुदा जोड़े को प्रताड़ित नहीं करेंगे।
मामला संगम विहार थाने का है। पुलिस ने लड़की के पिता की शिकायत पर नरेंद्र के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज किया था। इस मामले में नरेंद्र की ओर से अदालत में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल की गई। अर्जी में कहा गया कि उसने 29 अप्रैल 2008 को आर्य समाज मंदिर में रेखा (बदला हुआ नाम) से शादी की। उन्हें अंदेशा था कि रेखा के पिता उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं इसलिए उन्होंने अपनी शादी के बारे में संबंधित थाने के एसएचओ और पुलिस कमिश्नर को भी इत्तला कर दी थी।
मामले की सुनवाई के दौरान रेखा का बयान अदालत के सामने रेकॉर्ड किया गया। उसने अपने बयान में कहा कि वह नरेंद्र से शादी कर चुकी है और वह अपने पति के साथ ससुराल में रहती है। लेकिन मामले के जांच अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि रेखा के स्कूल सर्टिफिकेट के हिसाब से वह नाबालिग है। पुलिस ने लड़की की उम्र संबंधी जांच कराई। मेडिकल रिपोर्ट में लड़की की उम्र 16 से 18 साल के बीच बताई गई। लड़की के पिता ने अदालत में यह भी कहा कि लड़का उन्हीं के गोत्र का है और यह शादी समाज में स्वीकार्य नहीं है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि लोगों को इस बारे में बताना जरूरी है कि अपने गोत्र में शादी कानूनन अमान्य नहीं है। अदालत ने कहा कि वैदिक काल में सप्तऋषि होते थे उन्हीं के नाम पर गोत्र का चलन है। शादी अन्य गोत्र के लोगों के साथ किए जाने का चलन जेनेटिक अवधारणाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया था। लेकिन 1955 में बनाए गए हिंदू मैरिज एक्ट में कई सारी पुरानी धारणाओं को पीछे छोड़ा गया और गोत्र व कास्ट को दरकिनार किया गया।
अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में लड़की की उम्र पर सवाल उठाया गया है। अदालत ने कहा कि अगर जांच में यह सामने आए कि लड़की शादी के वक्त नाबालिग थी तब इस शादी के लिए जिम्मेदार सभी के खिलाफ चाइल्ड मैरिज निरोधक कानून के तहत कार्रवाई की जाए। हालांकि वैसी सूरत में भी शादी अमान्य नहीं करार दी जा सकती। अदालत ने अभियुक्त को 30 हजार रुपये की राशि पर जमानत दे दी।