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भारत का प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध
लेखक - चौ. कबूल सिंह (मन्त्री, सर्वखाप पंचायत)
सं० १९१४ वि० (1857 ई०) में भारतीयों ने अंग्रेजी राज्य को भारत से उखाड फेंकने के लिए प्रथम यत्न किया । सैनिक विद्रोह भी हुआ । जनता ने पूरी शक्ति लगाई । यह यत्न यद्यपि सफल न हो सका परन्तु इससे अंग्रेजों की मनोवृत्ति अवश्य बदली ।
विरोधी
अंग्रेजी राज्य के विरोधी और विरोध के कारण नीचे लिखे जाते हैं ।
1. अंग्रेजों का प्रथम विरोधी हरयाणा सर्वखाप पंचायत का संगठन था क्योंकि -
क - अंग्रेजों ने गरीब किसानों पर अत्याचार किये । अन्न बलपूर्वक लेते थे । किसानों और गरीबों से बेगार लेते थे । कारीगरों की देशी चीजों को बाहर नहीं जाने देते थे । छोटे मोटे व्यापार धन्धे नष्ट कर डाले ।
ख - अदालतें बनाकर पंचायतों के संगठन और शक्ति को नष्ट कर डाला । लोगों के आपसी झगड़े अदालतों में जाने लगे । गरीबों की लुटाई होने लगी । झूठ, मक्कारी, बेईमानी और रिश्वत फैलाई जाने लगी । लोग तंग हो गये ।
ग - किसानों पर साहूकारों के अत्याचार बढ़ने लगे ।
घ - अंग्रेजी माल जबरदस्ती बेचा जाने लगा ।
ङ - अच्छे-अच्छे आचार वाले कुलों को दबाया जाने लगा ।
च - पंचायती नेताओं का अपमान किया जाने लगा ।
इन कारणों से सर्वखाप पंचायत ने सबसे पहले अंग्रेजों के विरोध में झंडा ऊँचा किया । हरयाणा सर्वखाप पंचायत के दो भाग किये । जमना आर और पार । पंचायत ने दोनों ओर देहली को केन्द्र मानकर मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बुलन्दशहर, बहादुरगढ़, रेवाड़ी, रोहतक और पानीपत में अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंका जिसके कारण भारी कष्ट सहन किये । जनता कोल्हू में पेली गई । जायदाद छीन ली गई । खेद है कि यह जायदाद अब तक नहीं लौटाई गई है ।
2. दूसरा विरोधी दल मराठों का था क्योंकि मराठों का राज्य छिन गया था ।
3. तीसरा दल उन मुसलमानों का था जिनको कि अंग्रेजों ने अपमानित किया था और जागीरें हड़प ली थीं । नवाबों को कंगाल बना दिया था ।
4. यह दल पंडे-पुजारियों और मुल्ला-मौलवियों का था क्योंकि इनके पास धर्म और मजहब के नाम पर जो जायदाद थी, वह छीनी गई ।
5. अनेक जागीरदारों की भूमि छीन ली गई और दूसरों को दे दी गई ।
6. पुराने कर्मचारी नौकरी से निकाल दिए गये थे ।
7. जनता के साथ की गई प्रतिज्ञाओं को तोड़ दिया गया और अंग्रेजों के वचन से विश्वास उठ गया ।
8. ईसाई धर्म का प्रचार राज्य के बल पर किया जाने लगा था । इंग्लैंड की पार्लियामेंट में ऐसा करने का भाषण दिया गया था ।
9. पण्डारी दल के मार्ग में बाधा डाली गई ।
10. बड़े-बड़े राजनैतिक दल समाप्त किये जा रहे थे ।
11. भारतीय सेना में नये कारतूस दिए गए जो कि दांत लगाकर काटने पड़ते थे । इससे हिन्दू और मुसलमान सैनिकों में असन्तोष बढ़ा ।
इसी प्रकार भिन्न-भिन्न कारणों से भारतीय जनता, राजा, नवाब और अन्य दलों में असन्तोष हुआ ।
बहादुरशाह का पत्र
देहली के बहादुरशाह बादशाह ने ऐसे समय सर्वखाप पंचायत के प्रधान को एक पत्र लिखा जिसका आशय यह है -
"सर्वखाप पंचायत के नेताओ ! अपने पहलवानों को लेकर फिरंगी को निकालो । आप में शक्ति है । जनता आपके साथ है । आपके पास योग्य वीर और नेता हैं । शाही कुल में नौजवान लड़के हैं परन्तु इन्होंने कभी युद्ध में बारूद का धुआँ नहीं देखा । आपके जवानों ने अंग्रेजी सेना की शक्ति की कई बार जाँच की है । आजकल यह राजनैतिक बात है के नेता राजघराने का हो । परन्तु राजा और नवाब गिर चुके हैं । इन्होंने अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार कर ली है । आप पर देश को अभिमान और भरोसा है । आप आगे बढ़ें । फिरंगी को देश से निकालें । निकलने पर एक दरबार किया जाये और राजपाट स्वयं पंचायत संभाले । मुझे कुछ उजर नहीं होगा ।"
इस पत्र को पाकर पंचायत ने अपने शक्ति का संग्रह करना आरम्भ किया और अन्य शक्तियों से सम्पर्क बढ़ाया ।
हरद्वार में नाना साहब और अजीमुल्ला पंचायत नेताओं से मिले ।
नेता
आन्दोलन के मुख्य नेता यह थे - नाना साहब, तांत्या टोपे, झाँसी की रानी, कुंवरसिंह, अजीमुल्ला, बख्त खाँ पठान आदि । पंचायतों के दो नेता चुने गये - नाहरसिंह सूबेदार और हरनामसिंह जमादार ।
परिणाम
जो कुछ परिणाम हुआ, आपको ज्ञात है । आन्दोलन सफल न हो सका ।
विफलता के कारण
यद्यपि सब पेशों और सम्प्रदायों के लोग आन्दोलन में थे । परन्तु शीघ्रता करने से शक्ति संग्रह न हो सका । अंग्रेजों ने फाड़ने की नीति से काम लिया और उनकी सेना नए शस्त्रों से सुसज्जित थी । राजा और नवाबों की शक्ति अलग रही । मराठों में आपसी झगड़े थे । यह कारण सबको ज्ञात है । हमने उन बातों पर ही प्रकाश डाला है जो कि इतिहास के पत्रों पर नहीं लिखी गई ।
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उद्धरण (Excerpts from): “देशभक्तों के बलिदान”
पृष्ठ - 485-486 (द्वितीय संस्करण, 2000 AD)
लेखक एवं सम्पादक - स्वामी ओमानन्द सरस्वती
प्रकाशक - हरयाणा साहित्य संस्थान, गुरुकुल झज्जर, जिला झज्जर (हरयाणा)
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