एक गऊ के जाये की करुण पुकार !
एक बार एक किसान अपने बुडे बैल को कसाइयों को यह सोच कर बेचने का विचार कर लेता है की अब ये बहुत बूढा हो चूका है, सिवाय चारे के खर्च के और कुछ भी नहीं ! किसान की इस स्वार्थ भावना को मह्सुश कर असहाय बैल किसान से क्या गुहार लगाता है, इस भजन में कवि ने इसका मार्मिक चित्रण किया है ....
न्यू बोल्या रै, आया बुढापा कड़वा करके, मतना बेच किसान मैंने !
अरे इब काँधे में सत ना रह रया, मतना करे बिरान मैंने !
अरे डेढ़ बरस का बच्चा, जब नाथ सरोंध घलाया था!
उम्र दो बरस थी मेरी , जिब जुए तनै हिलाया था!
हेरै हल जोड्या और गाड़ी खिंची, कोहलू तेरा चलाया था!
आया कर दिया, गाऊ माता ने जितना दूध पिलाया था
तेरा कमा कमा कै घर ठोक दिया, तेरी ऊँची राखी शान मैंने !
आया बुढापा .....
अरे जाडे में तेरी गैल ठर्रा....
में जाडे में तेरी गैल ठर्रा, और घाम में गैल जलया करता !
गोडे डूंगे हल की फाली, टटकारी गैल चल्या करता!
नहीं कदे भी काली मानी, यो कान्धा खूब बलया करता!
हरे जुन्सा बोया बीज मैंने, सहसर गुणा फल्या करता !
हरे सिरसिम,गेहूं , जवार, बाजरा, तेरे बोए इन्ख और धान मनै!
आया बुढापा ......
अरे ध्यान लगा कै सुन अन्नदाता, मेरी बात में रोल नहीं !
सारी जवानी खेत कमाया, हुया कदै डामाडोल नहीं !
इब्ब आया बुढापा बेचन लाग्या कोडी तक मेरा मोल नहीं !
तनै सारा दर्द बता दुयूँगा, मेरे बेशक मुह में बोल नहीं!
इब तेरे ठाण में पैर पसारूं, या भिक्षा दे जिजमान मैंने !
आया बुढापा ...
अरे मतना हवाला करै मने तूं इन् बेदर्द कसायियाँ कै
हत्थे में मेरा गात फंसा दे, लागे लानत जननी माईयां कै !
मेरी नाड़ पे आरा धर दें, दया नहीं अनयायियाँ कै !
हेरै, तेरे तेरे नहीं पाप, लगे सारे हिन्दू भाईयां कै !
आजाद सिंह इब्ब तेरी मर्जी, दिया भतेरा ज्ञान मैंने !
आया बुढापा ....
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http://www.youtube.com/watch?v=xAhB9...eature=related
खुश रहो !