पिछले १०० वर्षों के इतिहास के अध्ययन के पश्चात, मैंने ये निर्णय लिया है कि अब मैं श्री मोहन दास करमचंद गाँधी जी को न बापू कहूँगा और न ही राष्ट्रपिता. मैं उन्हें महात्मा भी नहीं मानता. मैं उन्हें एक भ्रष्ट कांग्रेसी नेता के रूप में मानता हूँ, जिनके समय में अहिंसक स्वतंत्रता आन्दोलन को गति मिली, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण हुआ और अंततः देश का विभाजन हुआ.क्या आप भी मेरे विचारों से सहमत हैं, यदि हाँ तो एक स्वतंत्र भारत नागरिक होने के नाते अपने विचारों को खुलकर जाटलैंड.कॉम पर आने दीजिये और अपने मित्रों के विचार भी इस विषय पर जानिए.