मेरी जयंती बसंत पंचमी के दिन ही मनाई जाए लेखक दीनबंधु सर छोटूराम के साथी रहे हैं। प्रो. हरि सिंह गुलिया स र छोटूराम का जन्म तो 24 नवंबर 1881 को हुआ था, लेकिन पूरे देश में उनकी जयंती बसंत पंचमी के दिन मनाई जाती है। यह ख्वाहिश छोटूराम की ही थी कि उन्हें बसंत पंचमी पर ही याद किया जाए। इसी दिन मेरी जयंती मनाई जाए। दरअसल, इसके पीछे भी एक कहानी है। मैं आपको बताता हूं।
बात 1942 की है। जब देश में सांप्रदायिक दंगे फैलने लगे और बेचैनी बढ़ने लगी तो बसंत पंचमी को बेगम शाहनवाज ने इसे सद्भावना दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। उस समय पंजाब के प्रीमियर सर सिकंदर हयात खां मिस्र के फ्रंट पर सैनिकों का हौसला बढ़ाने गए हुए थे और उनकी गैरहाजिरी में वजीरे आजम (प्रधानमंत्री) की जिम्मेदारी छोटूराम निभा रहे थे। तब बसंत पंचमी पर पहले सद्भावना दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में सर छोटूराम को आमंत्रित किया गया। तब छोटूराम ने लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी के हॉल में हुए समारोह में भावुक होते हुए कहा था कि बसंत पंचमी बहुत ही प्यारा दिन है। यह ऋतुओं की रानी का दिन है। मेरी इच्छा है बसंत पंचमी को ही मेरी जयंती मानी जाए। तब से इसी दिन उनकी जयंती मनाई और असली जन्मतिथि गौण होकर रह गई।
जटों का नेता छोटूराम
देश को छोटूराम जैसा धर्मनिरपेक्ष नेता नहीं मिला। वह जितना मुसलमानों के प्यारे नेता थे, उतने ही हिंदुओं और सिखों के। जितने किसानों और मजदूरों के मसीहा थे, उतने ही शोषितों के। पंजाब में सांप्रदायिक घृणा फैली शुरू हुई तो जिन्ना ने सर सिकंदर हयात खां के पुत्र शौकत हयात खां को मुस्लिम लीग में शामिल कर लिया। बावजूद इसके छोटूराम उनको चुनाव में जिताया और मंत्री भी बनाया। दंगे बढ़ने पर शौकत हयात खां ने कायदे आजम जिन्ना को लाहौर बुलाया। उन्हें नवाब ममदौत की कोठी पर ठहराया गया। जब वहां सारे मुसलमान विधायक इकट्ठे हो गए तो जिन्ना ने कहा कि अब आप मुस्लिम लीग में आ जाओ। तब झंग के एक यूनियनिस्ट पार्टी (जमींदारा लीग, छोटूराम की पार्टी) के नेता जट कौन हैं। जिन्ना ने कहा जट एक तबका है। तो एक यूनियनिस्ट नेता ने जोश में कहा कि हम मुसलमान हैं, लेकिन जट भी हैं। जटों का नेता सिर्फ छोटूराम है। जो वह कहेंगे, वही करेंगे। हम उन्हीं के साथ रहेंगे। यह सुनकर जिन्ना की आंखें खुल गईं।
देवीलाल का भाई कराया रिहा
लायलपुर में 24 अप्रैल 1944 को अखिल भारतीय जाट महासभा का महासम्मेलन हुआ था। उसमें भारी भीड़ जुटी थी। किसानों, मुसलमानों के साथ युवा छात्रों का भी बड़ा हुजूम था। महासम्मेलन में छात्रों ने प्रस्ताव रखा कि कायदे आजम (महान नेता) जिन्ना की तरह हम छोटूराम को रहबरे आजम (महान लीडर) घोषित करते हैं। इसका प्रस्ताव छात्र मोहम्मद रफीक तरार ने रखा था और इसका अनुमोदन होडल के राजेंद्र सिंह ने किया था। ये दोनों अब भी जिंदा हैं। मैं भी इस मौके पर मौजूद था, चौ. देवीलाल भी वहां आए हुए थे। छोटूराम खुद उनसे मिले थे। तब देवीलाल ने बताया कि मेरे बड़े भाई साहबराम जेल में हैं। उन्हें आजाद करवाया जाए। छोटूराम ने तुरंत साहबराम को जेल से बाहर करने की व्यवस्था करा दी थी।
(जैसा कर्मपाल गिल को बताया)