Page 2 of 2 FirstFirst 1 2
Results 21 to 33 of 33

Thread: A Documentary :- Sir Chhotu Ram Ohlan - The Legend of of Farmers and Jats!

  1. #21
    मेरी जयंती बसंत पंचमी के दिन ही मनाई जाए
    लेखक दीनबंधु सर छोटूराम के साथी रहे हैं। प्रो. हरि सिंह गुलिया स र छोटूराम का जन्म तो 24 नवंबर 1881 को हुआ था, लेकिन पूरे देश में उनकी जयंती बसंत पंचमी के दिन मनाई जाती है। यह ख्वाहिश छोटूराम की ही थी कि उन्हें बसंत पंचमी पर ही याद किया जाए। इसी दिन मेरी जयंती मनाई जाए। दरअसल, इसके पीछे भी एक कहानी है। मैं आपको बताता हूं।

    बात 1942 की है। जब देश में सांप्रदायिक दंगे फैलने लगे और बेचैनी बढ़ने लगी तो बसंत पंचमी को बेगम शाहनवाज ने इसे सद्भावना दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। उस समय पंजाब के प्रीमियर सर सिकंदर हयात खां मिस्र के फ्रंट पर सैनिकों का हौसला बढ़ाने गए हुए थे और उनकी गैरहाजिरी में वजीरे आजम (प्रधानमंत्री) की जिम्मेदारी छोटूराम निभा रहे थे। तब बसंत पंचमी पर पहले सद्भावना दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में सर छोटूराम को आमंत्रित किया गया। तब छोटूराम ने लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी के हॉल में हुए समारोह में भावुक होते हुए कहा था कि बसंत पंचमी बहुत ही प्यारा दिन है। यह ऋतुओं की रानी का दिन है। मेरी इच्छा है बसंत पंचमी को ही मेरी जयंती मानी जाए। तब से इसी दिन उनकी जयंती मनाई और असली जन्मतिथि गौण होकर रह गई।

    जटों का नेता छोटूराम

    देश को छोटूराम जैसा धर्मनिरपेक्ष नेता नहीं मिला। वह जितना मुसलमानों के प्यारे नेता थे, उतने ही हिंदुओं और सिखों के। जितने किसानों और मजदूरों के मसीहा थे, उतने ही शोषितों के। पंजाब में सांप्रदायिक घृणा फैली शुरू हुई तो जिन्ना ने सर सिकंदर हयात खां के पुत्र शौकत हयात खां को मुस्लिम लीग में शामिल कर लिया। बावजूद इसके छोटूराम उनको चुनाव में जिताया और मंत्री भी बनाया। दंगे बढ़ने पर शौकत हयात खां ने कायदे आजम जिन्ना को लाहौर बुलाया। उन्हें नवाब ममदौत की कोठी पर ठहराया गया। जब वहां सारे मुसलमान विधायक इकट्ठे हो गए तो जिन्ना ने कहा कि अब आप मुस्लिम लीग में आ जाओ। तब झंग के एक यूनियनिस्ट पार्टी (जमींदारा लीग, छोटूराम की पार्टी) के नेता जट कौन हैं। जिन्ना ने कहा जट एक तबका है। तो एक यूनियनिस्ट नेता ने जोश में कहा कि हम मुसलमान हैं, लेकिन जट भी हैं। जटों का नेता सिर्फ छोटूराम है। जो वह कहेंगे, वही करेंगे। हम उन्हीं के साथ रहेंगे। यह सुनकर जिन्ना की आंखें खुल गईं।

    देवीलाल का भाई कराया रिहा

    लायलपुर में 24 अप्रैल 1944 को अखिल भारतीय जाट महासभा का महासम्मेलन हुआ था। उसमें भारी भीड़ जुटी थी। किसानों, मुसलमानों के साथ युवा छात्रों का भी बड़ा हुजूम था। महासम्मेलन में छात्रों ने प्रस्ताव रखा कि कायदे आजम (महान नेता) जिन्ना की तरह हम छोटूराम को रहबरे आजम (महान लीडर) घोषित करते हैं। इसका प्रस्ताव छात्र मोहम्मद रफीक तरार ने रखा था और इसका अनुमोदन होडल के राजेंद्र सिंह ने किया था। ये दोनों अब भी जिंदा हैं। मैं भी इस मौके पर मौजूद था, चौ. देवीलाल भी वहां आए हुए थे। छोटूराम खुद उनसे मिले थे। तब देवीलाल ने बताया कि मेरे बड़े भाई साहबराम जेल में हैं। उन्हें आजाद करवाया जाए। छोटूराम ने तुरंत साहबराम को जेल से बाहर करने की व्यवस्था करा दी थी।

    (जैसा कर्मपाल गिल को बताया)
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  2. The Following 2 Users Say Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    ravinderjeet (February 15th, 2013), sukhbirhooda (February 16th, 2013)

  3. #22
    ‘हम मौत पसंद करते हैं, विभाजन नहीं’
    सर छोटू राम का सफ र इतना आसान नहीं था। एक मध्यम किसान परिवार में जन्मे बच्चे के दिल में एक साहूकार से पिता को बे-इज्जत होते देख जो भावना पैदा हुई वह प्रतिशोध नहीं कुछ कर गुजरने की ललक थी। अपनी मेहनत और बुद्धि की बदोलत उन्होंने सैंट स्टीफन कॉलेज दिल्ली से स्नातक की डिग्री हासिल की।
    सर छोटूराम हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। 1944 में उन्होंने मुस्लिम बाहुल क्षेत्र लायलपुर अब फैसलाबाद में मुल्लओं और डिप्टी कमीश्नर के विरोध के बावजूद बड़ी रैली की। इस रैली में 50,000 लोगों ने हिस्सा लिया।
    दी नबंधु सर छोटूराम ने किसान के शोषण के मद्देनजर कहा ‘‘जिस खेत से म्यंसर ना हो दो जून की रोटी, उस खेत के गोदाए गंदम को जला दो’’। सर छोटूराम ऐसी ही प्रतिभा थे जो एक ही वक्त में भगत भी, शूर भी और दाता भी थे। खुद का जीवन कभी आसान ना था, लेकिन बिना किसी जाति-पाति और धर्म के प्रतिभा पर सब न्यौछावर था। उनका जन्म एक मध्यम वर्गीय गढ़ी सांपला के चौधरी सुखीराम के घर 24 नवंबर 1881 को हुआ, लेकिन कृषक समाज के मसीहा ने इसे किसान की इच्छाओं आकांक्षाओं से जोड़कर बसंत पंचमी के दिन मनाने का आह्वान किया। इस दिन सरसों की फसल के फूलों की तरह किसान का तन मन खिल उठता है।

    सर छोटू राम का सफ र इतना आसान नहीं था। एक मध्यम किसान परिवार में जन्मे बच्चे के दिल में एक साहूकार से पिता को बे-इज्जत होते देख जो भावना पैदा हुई वह प्रतिशोध नहीं कुछ कर गुजरने की ललक थी। अपनी मेहनत और बुद्धि की बदौलत सैंट स्टीफन कॉलेज दिल्ली से स्नात्तक की डिग्री हासिल की। संपूर्ण विद्यार्थी जीवन स्नातक और कानून स्नातक तक की डिग्री सदा प्रथम र्शेणी में हासिल कर वजीफे पर ही पूर्ण की जो उनकी बौद्धिकता का प्रतीक है। वे वर्ष 1916 में रोहतक जिले के कांग्रेस अध्यक्ष बने लेकिन केवल चार वर्षों बाद ही 1920 में कांग्रेस के असहयोग आंदोलन से असहमति जताते हुए पदत्याग दिया।

    वर्ष 1923 में सर फजल हुसैन के साथ मिलकर नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया। इसी वर्ष वे पंजाब विधान सभा का चुनाव जीतने पर कृषि मंत्री बने और 26 दिसंबर 1926 तक इसी पद की गारिमा को बढ़ाते हुए किसान हित के ‘पंजाब कर्जा राहत अधिनियम 1934’, पंजाब कर्जदार सुरक्षा अधिनियम 1936, पंजाब राजस्व अधिनियम 1928, पंजाब कर्जदाता पंजीकरण अधिनियम 1938 तथा रहनशुदा जमीनों की बहाली अधिनियम 1938 भी पारित करवाए।

    सर छोटू राम हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। वर्ष 1944 में उन्होंने मुस्लिम बाहुल क्षेत्र लायलपुर अब फैसलाबाद में मुल्लओं और डिप्टी कमीश्नर के विरोध के बावजूद बड़ी रैली करने में सफलता हासिल की। इस रैली में 50,000 के लोगों ने हिस्सा लिया। सर छोटू राम उस वक्त तो इसे टाल गए लेकिन राष्ट्र विरोधी ताकते एक अलग इस्लामिक देश - पाकिस्तान के गठन में कामयाब हो गई और राष्ट्र का विभाजन 1947 में हो गया। चौधरी साहब बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहते थे ‘हम मौत पंसद करते हैं, विभाजन नहीं।’ सर छोटूराम ने किसान के बेटे की शिक्षा की पर बल दिया।उन्होंने जाट गजटियर पत्रिका का प्रकाशन कर किसान-मजदूर के लिए शिक्षा का अभियान चलाया। गुरुकुल और जाट शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करवाई। उनकी सहायता से शिक्षा ग्रहण पाने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. चांदराम और पाक के नोबेल पुरूस्कार विजेता अब्दुस सलाम उल्लेखनीय हैं। नोबेल पुरस्कार मिलने पर अब्दुस सलाम ने कहा था कि ‘अगर सर छोटूराम ना होते तो अब्दुस सलाम इस मुकाम पर ना होते।’ सर छोटूराम की प्रतिभा को हमें आज के संदर्भ में देखना-समझना है। जब तक उनकी विचारधारा युवा वर्ग में जागृत नहीं होगी तब तक उनकी ग्रामीण क्रांति या महात्मा गांधी का पूर्ण स्वराज भारत में नहीं आ सकता। सर छोटू राम का सफ र इतना आसान नहीं था। एक मध्यम किसान परिवार में जन्मे बच्चे के दिल में एक साहूकार से पिता को बे-इज्जत होते देख जो भावना पैदा हुई वह प्रतिशोध नहीं कुछ कर गुजरने की ललक थी। अपनी मेहनत और बुद्धि की बदोलत उन्होंने सैंट स्टीफन कॉलेज दिल्ली से स्नातक की डिग्री हासिल की। सर छोटूराम हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। 1944 में उन्होंने मुस्लिम बाहुल क्षेत्र लायलपुर अब फैसलाबाद में मुल्लओं और डिप्टी कमीश्नर के विरोध के बावजूद बड़ी रैली की। इस रैली में 50,000 लोगों ने हिस्सा लिया।
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  4. The Following 2 Users Say Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    ravinderjeet (February 15th, 2013), sukhbirhooda (February 16th, 2013)

  5. #23
    रहबर-ए-आजम ने युवाओं को दिए जीवन के नुस्खे
    दी नबंधु छोटूराम ने युवाओं को उन्नति के लिए अनेक टिप्स दिए। उन्होंने कहा कि पहिये की भांति चक्कर लगाने वाले संसार में ऐसा कौन सा इंसान है जो पैदा होकर मरता नहीं, लेकिन जीवन सफल उसी इंसान का है जिसके पैदा होने से उसकी कौम की उन्नति हो। यह वहीं संदेश है जिसे सर छोटूराम ने छटी कक्षा में पढ़ा और ताउम्र उनके जीवन पर इसका प्रभाव रहा। वे कहते थे कि बुरे और भले आदमी की मित्रता में यह अंतर है कि बुरे आदमी की दोस्ती दोपहर से पहले की छांव की तरह लंबी होती है और फिर दोपहर तक घटती जाती है। इसके विपरित भले आदमी की मित्रता शुरू में दोपहर के सायं की तरह बढ़ती जाती है। उन्हें अपने गजटीयर में लिखा कि उत्साही मतवाले अैर मजबूत स्वभाव वाले लोग आरंभ में किए हुए काम में पक्के इरादे के साथ लगे रहते हैं। वे दु:ख और सुख की कभी परवाह नहीं करते। वे दोनों हालतों में अपने इरादों पर कायम रहते हैं।

    वे कहते थे कि दुनिया चाहे इनको बुरा कहे या भला कहे, मित्र इसके घर आए या फिर इन्हें छोड़ जाए, चाहे ये आज मर जाएं या जिंदा रहें परंतु पक्के इरादे वाले लोग सत्य और न्याय के मार्ग से अपने कदम नहीं हटाते। जिस प्रकार हाथ से फेंकी गई गेंद फिर उछलकर ऊपर की ओर जाती है। इसी प्रकार ऊंचे हौंसले वाले युवा बार-बार गिरकर फिर उभरते हैं। उन्होंने लिखा कि सुस्ती और आलस्य ही इंसान के सबसे बड़े शत्रु हैं। कोशिश और अमल के बराबर मनुष्य का कोई मित्र नहीं है। इन गुणों का पुजारी कभी भी घाटे में नहीं रहता।

    वह कहते थे कि हिम्मत वाले आदमी कितने भी भारी संकट में फंस जाए, इसका हौसला कभी नहीं टूट सकता। दीपक की बात्ती चाहे ऊपर की ओर हो चाहे नीचे की ओर कर दो परंतु इसकी लौ ऊपर की ओर ही जाएगी और रोशनी चारों तरफ फैलेगी। जिस तरह सूर्य का प्रकाश सारी दुनिया को रोशन करता है। उसकी प्रकार एक आदमी अकेला ही दुनिया को जीतने की शक्ति रखता है। दुश्मन के सामने खड़ा होकर जो आदमी लड़ता है वह फतह पाता या स्वर्ग में जाता है। ऐसा वीर पुरुष जिंदा रहता है तो जीत उसके पैर चूमती है और यदि मर जाए तो सीधा स्वर्ग को जाता है।

    उन्होंने लिखा कि यदि कैर के वृक्ष में पत्ते नहीं लगते तो उसमें बसंत का क्या दोष? यदि दिन में उल्लू को दिखाई नहीं देता तो इसमें सूरज का क्या गुनाह? यदि पपीहे पक्षी के मुंह में पानी की बूंद नहीं पड़ती तो इसमें बादल का क्या कसूर? तात्पर्य यह है कि यदि कोई आदमी नेक बंदों की कुदरती भलाई से लाभ नहीं उठा सकता तो इसमें उस आदमी की कोई कमी ही बाधा डालती है। भले आदमी का इसमें कोई दोष नहीं है। वो हमेशा कहते थे कि शक्ति और सत्ता का आभूषण शराफत है। बहादुरी का जेवर जुबान को काबू में रखना है। सज्जनता का र्शंृगार सहनशीलता है, तप का जेवर क्रोध की गैर हाजिरी है, हकुमत की शान क्षमा में है, धर्म का जेवर सद व्यवहार है, लेकिन इन सब गुणों का आभूषण चरित्र है।

    लालच पर वह कहते थे कि दौलत का अर्थ यह होता है कि इंसान की इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे। जो कुछ मिले उस पर संतोष करना सीख लो।

    समझदारी और बुद्धिमता इस बात में है कि इंसान धीरे-धीरे और हरदम अपनी बुराइयों को कम करता चला जाए। जिस प्रकार सुनार बार-बार चांदी को साफ करके उसका तमाम मैल खोट निकाल डालता है उसी तरह इंसान अपनी तबियत के मैल का आखिरी खोट मिटा सकता है।

    लेखक दीनबंधु सर छोटूराम पर पीएचडी कर चुके हैं। डॉ. अनिल दलाल
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  6. The Following 2 Users Say Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    ravinderjeet (February 15th, 2013), sukhbirhooda (February 16th, 2013)

  7. #24
    छोटूराम मिशन के 100 साल
    1925 से लेकर 1945 तक जो पंजाब का राजनीतिक इतिहास है, वही उसका स्वर्णिम काल है क्योंकि उसी काल में वहां सर्वप्रथम किसान राज्य की स्थापना हुई और उनके हित में जरई-आराजी-एक्ट तथा ऋण मुक्ति जैसे सुनहरी नियम विधान बने। यह संभवत: भारत भर में संवैधानिक स्तर पर सबसे बड़ी क्रांति थी।
    आ ज से ठीक सौ साल पहले 1912 में दीनबंधु छोटूराम अपने मिशन को अमलीजामा पहनाने के लिए कर्मभूमि रोहतक में आगरा से पधारे। 1905 में वायसराय लार्डकर्जन ने अपनी राजस्व व कृषि विभागों से संबंधित रिपोर्ट में एक विशेष रिपोर्ट दी थी- ‘अनेक राज्यों में काश्तभूमि किसानों से बड़ी तेजी से साहूकारों, शहरी लोगों, वकीलों तथा व्यापारियों को जाती जा रही है। इससे आर्थिक शक्ति एक जगह केंद्रित होती दिख रही है। जिससे पंजाब जैसे राज्य में सामाजिक व राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया है। पंजाब का किसान कज्रे में दिनोंदिन डूबता जा रहा है और किसान को भू-हस्तांतरण एक्ट 1900 से कोई राहत नहीं मिल पा रही है। यहां चौ. छोटूराम ने सूदखोरों द्वारा ग्रामीणों का शोषण तथा ब्रिटिश कानूनों के विरुद्ध आवाज उठाई तथा इसके विरुद्ध अपने न्याययुद्ध का बिगुल बजा दिया। इसके लिए उन्होंने एक राजनीतिक मंच तलाशा और 1916 में कांग्रेस पार्टी में सम्मिलित हो गए तथा रोहतक जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बन गए।’ 1920 में कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। यदि किसान समुदाय इस आंदोलन में कूद पड़ता तो उसे अपनी कृषि भूमि जो उनकी रोजी-रोटी का साधन था से हाथ धोना पड़ता, अतएव चौ. छोटूराम किसान हित में कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए। मियां फजल-ए-हुसैन जो उस समय पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे ने भी इसी कारण कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दिया था।

    दोनों के विचारों में समानता थी और दोनों ही ग्रामीण समाज को विकास प्रवाह से जोड़ना चाहते थे। दोनों के प्रयासों से पंजाब में एक नई नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी का गठन हुआ जिसके द्वारा नये पंजाब की आधारशिला रखी गई। इस पार्टी का चौ. छोटूराम ने 22 साल मार्गदर्शन किया। नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी पंजाब में जमींदाराना पार्टी के नाम से लोकप्रिय हुई। इस पार्टी के घोषणापत्र से दो बातें स्पष्ट होती हैं- पंजाब में धर्मनिरपेक्ष गठित यह पार्टी धार्मिक उन्माद को पनपने पर अंकुश लगाने का दायित्व निभायेगी एवं आर्थिक समता के लिए आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक समता हेतु कार्य करेगी। स्वतंत्रता पूर्व के संयुक्त पंजाब की राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों को दृष्टिगत करके हम वहां के विकास और उल्लास को समझें तो यूनियनिस्ट पार्टी ने अपना अस्तित्व साकार किया। 1925 से लेकर 1945 तक जो पंजाब का राजननीतिक इतिहास है, वही उसका स्वर्णिम काल है क्योंकि उसी काल में वहां पर सर्वप्रथम किसान राज्य की स्थापना हुई और उनके हित में जरई-आराजी-एक्ट तथा ऋण मुक्ति जैसे सुनहरी नियम विधान बने। यह संभवत: भारत भर में संवैधानिक स्तर पर सबसे बड़ी क्रांति थी। आज पंजाब-हरियाणा का किसान जो भारत भर में अग्रणी और समृद्ध है, उसका आधार वहां पर यूनियनिस्ट पार्टी का शासन ही था, जिसके सूत्रधार सर छोटूराम थे।

    राजा नरेंद्र नाथ जो चौ. छोटूराम के राजनीतिक प्रबल विरोधी थे ने अपने माडर्न रिव्यू में लिखित लेख ‘पंजाब कृषि सुधार कानून तथा उनका आर्थिक व संवैधानिक प्रभाव- 1939 में पृष्ठ-30 पर उल्लेख किया है, 70 हजार एकड़ गिरवी पड़ी भूमि इन सुधारों के अंतर्गत वापस किसानों को चली जाएगी। कोई 84617 मुसलमान सूदखोर इन्हें लौटाएंगे तथा दो लाख हिंदू व सिख ऐसा करेंगे।’ किसानों को जमीन मिलने के बाद उनके नए जीवन का संचार हुआ और शताब्दियों की अंधकार के बाद उन्हें नये सूरज को उदय होते देखा। इस क्रांति के कर्णधार चौ. छोटूराम को किसी ने रहबरे-आजम कहा तो किसी ने दीनबंधु कहकर संबोधित किया तो किसी ने उन्हें छोटूराम से पुकारा। सरदार खुशवंत सिंह ने हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के 6 जनवरी, 1996 के अंक में टिप्पणी कही थी ‘सर छोटूराम के बारे में कोई भी छोटी बात नहीं थी। किसी भी दृष्टि से देखें वे बड़े आदमी थे। वह विभिन्न कृषक जातियों के उत्थान के प्रमुख नियंता थे। उन्हंोंने मिया फजल-ए-हुसैन (जो कि राजपूत थे) के साथ मिलकर यह सुनिश्चित किया कि खेती बाड़ी में लगी जातियों को राजनीतिक निकायों और सेवाओं में भी प्रतिनिधित्व मिले। यह वर्ष छोटूराम मिशन की शुरुआत का शताब्दी वर्ष है। इस वक्त देश में राजनीतिक संकट है तथा लोकतंत्र व्यवस्था चरमरा गई है। किसान पुन: अधोपतन की ओर अग्रसर हैं। यदि छोटूराम विचार धारा आज बल पकड़ती है तो नि:संदेह किसान सबसे अधिक लाभान्वित होगा। पोलिसी अनुसंधान केंद्र कोच्ची के एक अध्ययन के अनुसार प्रतिवर्ष भारत में भू-प्रशासन 70 करोड़ ि1925 से लेकर 1945 तक जो पंजाब का राजनीतिक इतिहास है, वही उसका स्वर्णिम काल है क्योंकि उसी काल में वहां सर्वप्रथम किसान राज्य की स्थापना हुई और उनके हित में जरई-आराजी-एक्ट तथा ऋण मुक्ति जैसे सुनहरी नियम विधान बने। यह संभवत: भारत भर में संवैधानिक स्तर पर सबसे बड़ी क्रांति थी। लेखक हरियाणा गजटियर के पूर्व संपादक हैं। सूरजभान दहिया
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  8. The Following User Says Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    sukhbirhooda (February 16th, 2013)

  9. #25
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  10. The Following User Says Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    sukhbirhooda (February 16th, 2013)

  11. #26
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  12. The Following User Says Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    sukhbirhooda (February 16th, 2013)

  13. #27
    Quote Originally Posted by RavinderSura View Post
    छोटूराम मिशन के 100 साल
    1925 से लेकर 1945 तक जो पंजाब का राजनीतिक इतिहास है, वही उसका स्वर्णिम काल है क्योंकि उसी काल में वहां सर्वप्रथम किसान राज्य की स्थापना हुई और उनके हित में जरई-आराजी-एक्ट तथा ऋण मुक्ति जैसे सुनहरी नियम विधान बने। यह संभवत: भारत भर में संवैधानिक स्तर पर सबसे बड़ी क्रांति थी।
    आ ज से ठीक सौ साल पहले 1912 में दीनबंधु छोटूराम अपने मिशन को अमलीजामा पहनाने के लिए कर्मभूमि रोहतक में आगरा से पधारे। 1905 में वायसराय लार्डकर्जन ने अपनी राजस्व व कृषि विभागों से संबंधित रिपोर्ट में एक विशेष रिपोर्ट दी थी- ‘अनेक राज्यों में काश्तभूमि किसानों से बड़ी तेजी से साहूकारों, शहरी लोगों, वकीलों तथा व्यापारियों को जाती जा रही है। इससे आर्थिक शक्ति एक जगह केंद्रित होती दिख रही है। जिससे पंजाब जैसे राज्य में सामाजिक व राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया है। पंजाब का किसान कज्रे में दिनोंदिन डूबता जा रहा है और किसान को भू-हस्तांतरण एक्ट 1900 से कोई राहत नहीं मिल पा रही है। यहां चौ. छोटूराम ने सूदखोरों द्वारा ग्रामीणों का शोषण तथा ब्रिटिश कानूनों के विरुद्ध आवाज उठाई तथा इसके विरुद्ध अपने न्याययुद्ध का बिगुल बजा दिया। इसके लिए उन्होंने एक राजनीतिक मंच तलाशा और 1916 में कांग्रेस पार्टी में सम्मिलित हो गए तथा रोहतक जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बन गए।’ 1920 में कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। यदि किसान समुदाय इस आंदोलन में कूद पड़ता तो उसे अपनी कृषि भूमि जो उनकी रोजी-रोटी का साधन था से हाथ धोना पड़ता, अतएव चौ. छोटूराम किसान हित में कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए। मियां फजल-ए-हुसैन जो उस समय पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे ने भी इसी कारण कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दिया था।

    दोनों के विचारों में समानता थी और दोनों ही ग्रामीण समाज को विकास प्रवाह से जोड़ना चाहते थे। दोनों के प्रयासों से पंजाब में एक नई नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी का गठन हुआ जिसके द्वारा नये पंजाब की आधारशिला रखी गई। इस पार्टी का चौ. छोटूराम ने 22 साल मार्गदर्शन किया। नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी पंजाब में जमींदाराना पार्टी के नाम से लोकप्रिय हुई। इस पार्टी के घोषणापत्र से दो बातें स्पष्ट होती हैं- पंजाब में धर्मनिरपेक्ष गठित यह पार्टी धार्मिक उन्माद को पनपने पर अंकुश लगाने का दायित्व निभायेगी एवं आर्थिक समता के लिए आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक समता हेतु कार्य करेगी। स्वतंत्रता पूर्व के संयुक्त पंजाब की राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों को दृष्टिगत करके हम वहां के विकास और उल्लास को समझें तो यूनियनिस्ट पार्टी ने अपना अस्तित्व साकार किया। 1925 से लेकर 1945 तक जो पंजाब का राजननीतिक इतिहास है, वही उसका स्वर्णिम काल है क्योंकि उसी काल में वहां पर सर्वप्रथम किसान राज्य की स्थापना हुई और उनके हित में जरई-आराजी-एक्ट तथा ऋण मुक्ति जैसे सुनहरी नियम विधान बने। यह संभवत: भारत भर में संवैधानिक स्तर पर सबसे बड़ी क्रांति थी। आज पंजाब-हरियाणा का किसान जो भारत भर में अग्रणी और समृद्ध है, उसका आधार वहां पर यूनियनिस्ट पार्टी का शासन ही था, जिसके सूत्रधार सर छोटूराम थे।

    राजा नरेंद्र नाथ जो चौ. छोटूराम के राजनीतिक प्रबल विरोधी थे ने अपने माडर्न रिव्यू में लिखित लेख ‘पंजाब कृषि सुधार कानून तथा उनका आर्थिक व संवैधानिक प्रभाव- 1939 में पृष्ठ-30 पर उल्लेख किया है, 70 हजार एकड़ गिरवी पड़ी भूमि इन सुधारों के अंतर्गत वापस किसानों को चली जाएगी। कोई 84617 मुसलमान सूदखोर इन्हें लौटाएंगे तथा दो लाख हिंदू व सिख ऐसा करेंगे।’ किसानों को जमीन मिलने के बाद उनके नए जीवन का संचार हुआ और शताब्दियों की अंधकार के बाद उन्हें नये सूरज को उदय होते देखा। इस क्रांति के कर्णधार चौ. छोटूराम को किसी ने रहबरे-आजम कहा तो किसी ने दीनबंधु कहकर संबोधित किया तो किसी ने उन्हें छोटूराम से पुकारा। सरदार खुशवंत सिंह ने हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के 6 जनवरी, 1996 के अंक में टिप्पणी कही थी ‘सर छोटूराम के बारे में कोई भी छोटी बात नहीं थी। किसी भी दृष्टि से देखें वे बड़े आदमी थे। वह विभिन्न कृषक जातियों के उत्थान के प्रमुख नियंता थे। उन्हंोंने मिया फजल-ए-हुसैन (जो कि राजपूत थे) के साथ मिलकर यह सुनिश्चित किया कि खेती बाड़ी में लगी जातियों को राजनीतिक निकायों और सेवाओं में भी प्रतिनिधित्व मिले। यह वर्ष छोटूराम मिशन की शुरुआत का शताब्दी वर्ष है। इस वक्त देश में राजनीतिक संकट है तथा लोकतंत्र व्यवस्था चरमरा गई है। किसान पुन: अधोपतन की ओर अग्रसर हैं। यदि छोटूराम विचार धारा आज बल पकड़ती है तो नि:संदेह किसान सबसे अधिक लाभान्वित होगा। पोलिसी अनुसंधान केंद्र कोच्ची के एक अध्ययन के अनुसार प्रतिवर्ष भारत में भू-प्रशासन 70 करोड़ ि1925 से लेकर 1945 तक जो पंजाब का राजनीतिक इतिहास है, वही उसका स्वर्णिम काल है क्योंकि उसी काल में वहां सर्वप्रथम किसान राज्य की स्थापना हुई और उनके हित में जरई-आराजी-एक्ट तथा ऋण मुक्ति जैसे सुनहरी नियम विधान बने। यह संभवत: भारत भर में संवैधानिक स्तर पर सबसे बड़ी क्रांति थी। लेखक हरियाणा गजटियर के पूर्व संपादक हैं। सूरजभान दहिया

    Really he was a visionary who gave practical shape to his ideas in the form of Golden Acts.
    History is best when created, better when re-constructed and worst when invented.

  14. The Following User Says Thank You to DrRajpalSingh For This Useful Post:

    sukhbirhooda (July 25th, 2014)

  15. #28
    अखिल भारतीय जाट सम्मेलन मे छोटूराम का एतिहासिक भाषण

    अखिल भारतीय जाट महासभा के लायलपुर अधिवेशन मे 9 अप्रैल सन 1944 को छोटूराम ने एक एतिहासिक भाषण दिया था , और जाट गज़ट मे इसे शब्दाश: प्रकाशित किया गया था | प्रोफ़ेसर दुलीचंद ने इस का सफल अनुवाद उर्दू से अङ्ग्रेज़ी मे किया और ' दीनबंधु सर छोटूराम कामेमोरेशन वॉल्यूम II , जनवरी 1993 मे इसे प्रकाशित किया | इस पुस्तक को इसमे इसी रूप ने दिया जा रहा हैं - इस आशा के साथ की पाठक भाईचारे के संबंध मे छोटूराम के सूक्षम एवम सुंदर विचारो को समझ सकेंगे | इस संगठन को वह पूरी जाट कौम के सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण -वाहक के रूप मे देखता था | इस संगठन का मूल मंत्र रहा हैं - अपनी सहायता करो और दूसरों की सहायता करो | यही सच्चा मानवतावादी आदर्श हैं , और हमारे प्रिय नेता छोटूराम ने इसे जाट कौम के ह्रदय मे उतारने का काम किया था |

    ' हम एक ऐसे नाजुक दौर से गुजर रहे हैं कि हमे अपने कार्य-कलापों एवं भाषणो मे बहुत सावधानी बरतनी चाहिए | इस मौके पर यदि हम कोई गलत कदम उठा लेते हैं तो हमारे आंदोलन को आपूरणीय क्षति पहुँच सकती हैं ! हमारे द्वारा बोला जाने वाला हर शब्द उचित एवं संतुलित होना चाहिए | हमारे विरोधियो और आलोचको कि कमी नहीं हैं | वे हमारे कथनो कि व्याख्या अपनी सहूलियत के मुताबिक ऐसे तरीके करेंगे कि हमारे उद्देश्यों को नुकसान हो और हमारे विरुद्ध हर प्रकार का भ्रामक प्रचार किया जा सके | इसलिए मैं काफी सोच-समझकर , और पूरी जिम्मेवारी के साथ , पंजाब , भारत और पूरी दुनिया को दृष्टि मे रखकर बोलने जा रहा हु |

    सर्व प्रथम मैं जाट आंदोलन के उद्देश्यों, कार्यकर्मों और कार्यक्षेत्र के विषय मे बताना चाहता हु | बहुत से भ्रम , और बहुत सी शंकाए पैदा कर दी गई हैं , और हमारे विरुद्ध मिथ्या प्रचार किया जा रहा हैं | जान-बूझकर अथवा अंजाने मे उल्टी और बेहूदा आलोचनाए कि गई हैं जिसके कारण गैर-जाट समुदाय मे या तो भ्रम पैदा हो गया हैं , या हो सकता हैं कि उन के द्वारा पैदा कर दिया गया हैं |

    जाट महासभा कि स्थापना सन 1905 मे हुई थी | मैं इस के अस्तित्व मे आने के समय से ही इस का सदस्य चला आ रहा हु | इस के क्रिया-कलापों मुख्तया संयुक्त प्रांत (यू पी) के उतरी पश्चिमी जिलो , पंजाब के दक्षिणी-पूर्वी जिलो और किसी सीमा तक राजपूताना के उत्तरी-पूर्वी राज्यों तक सीमित रहे हैं | पिछले कुछ वर्षो से इसे पंजाब के मध्यवर्ती जिलो मे जाना जाने लगा हैं | पिछले वर्ष सभा के लाहौर अधिवेशन मे पंजाब के लिए एक प्रांतीय महासभा कि स्थापना करने का निर्णय लिया गया था , और इसका कार्य संतोषजनक रहा हैं | लाहौर चूंकि पंजाब कि राजधानी हैं , और वहाँ से कई अखबार निकलते हैं , इसलिए प्रायः अनजाने मे ही इन समाचार पत्रों के माध्यम से जाट महासभा को काफी प्रचार मिला हैं |

    भारत मे जाटों कि कुल जनसंख्या डेढ़ करोड़ (1941) से अधिक हैं , और मुख्यतया भारत के उत्तर-पश्चिम भाग मे इकट्ठी हैं | इन मे से एक बड़ी संख्या हिन्दू जाटों कि हैं | सिख और मुसलमान जाटों कि संख्या भी काफी बड़ी हैं | कुछ हजार ईसाई जाट भी हैं | अधिकतर जाट देहाती क्षेत्रों मे बसे हुए हैं और भूमि कि जोत पर आश्रित हैं | शैक्षणिक सुविधाए , व्यापारिक एवं औधोगिक गतिविधिया शहरो और कस्बो मे केन्द्रित हैं ; इसलिए शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र मे जाट पिछड़े हुए हैं | परिणामतः शिक्षा और धन से वंचित उनका सामाजिक स्तर भी नीचा हैं ! जाट बहुत से बुराइयों के भी शिकार हो रहे हैं | यदि किसी कौम के पास शिक्षा और धन का आभाव हो और इसका सामाजिक स्तर भी नीचे धंस गया हो , तो इसके राजनीतिक स्तर और महत्व का वर्णन करने के बजाए कल्पना कर लेना ही अच्छा होगा ! यह वास्तव मे ही आश्चर्य कि बात हैं कि पंजाब मे जाटों कि संख्या पूरे हिंदुस्तान कि कुल जाट आबादी के आधे से भी ज्यादा हैं , परंतु यहा उनके हालात अत्यंत दयनीय हैं | इन कि आबादी के एक छोटे से भाग को छोड़ कर वे भिन्न भिन्न नाम कि जोतों के स्वामी हैं | प्रत्येक फसल कि कटाई के बाद वे करोड़ो रुपया भूमिकर और सिंचाई कर के रूप मे सरकार को देते हैं | प्रत्येक जिले से हजारों कि संख्या मे जाट सेना मे भर्ती हैं | इन मे लाखों कि संख्या मे इस विश्व -महायुद्ध के दौरान (1939-1945) सेना मे गए हैं | उन्होने शौर्य , पराकर्म और बलिदान का ऐसा शानदार प्रदर्शन किया हैं जिस पर दुनिया भर कि सर्वाधिक बहादुर कौम भी गर्व करे ! लेकिन इस सब के बावजूद जाटों के विषय मे कोई नहीं सोचता हैं - किसी को भी इन कि चिंता नहीं हैं ! दूसरी जातियो के लोग, जिन कि संख्या नगण्य सि हैं , इनकी वीरता और बलिदान का फल आप भोग रहे हैं | इन के (जाटों के) दम पर लाभान्वित होने वाले ये लोग कभी ही देश के लिए कोई आर्थिक या सैनिक योगदान देते होंगे , परंतु क्योंकि ये शहरों मे बसते हैं इस कारण शिक्षा के क्षेत्र मे उन्नति कर गए और अफसर बन गए हैं | जाटों के शौर्य और बलिदानो का आकलन तमगो के आधार अच्छी तरह से किया जा सकता हैं | भारतीयो को दिये गए सात विक्टोरिया क्रोसों मे से तीन पंजाबियों ने जीते हैं , और ये सभी (तीनों) जाट हैं | इन मे से सूबेदार रीछपाल राज और छैलू राम वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए | इस जिले का हवलदार प्रकाश सिंह जीवित हैं | एक भारतीय को दिया गया डी . एस . ओ का एक मात्र तमगा कैप्टन मेहर सिंह पुत्र सरदार त्रिलोक सिंह ने जीता हैं जो इसी जिले का एक जाट हैं | वे लोग जिन कि कौम को कोई श्रेय प्राप्त नहीं हैं , परंतु मजहब-हिन्दू मुसलमान, सिख, ईसाई-के नाम पर दूसरों कि सेवाओ का फल चखने के आदि हो गए हैं , किसी दूसरी कौम कि पहचान बनने देना नहीं चाहते ! वे केवल यह चाहते हैं कि इन धर्मो मे आने वाली बड़ी कौमो के त्याग और बलिदान का लाभ वे अकेले ही लेते रहे -डकारते रहे ! उन के दर्ष्टिकोन से इस से अच्छा कुछ नहीं हैं कि अपने आप थोड़ी से भी तकलीफ उठाए बिना अथवा प्रयत्न और त्याग-बलिदान किए बिना सारे लाभों को वे ही भोगते रहे ! यद्द्पि पंजाब मे जाटों कि सामाजिक और शैक्षिक हालात अन्य प्रांतो मे बसने वाले जाटों कि अपेशा थोड़ी से बेहतर हैं , परंतु जो स्तर काफी पहले प्राप्त कर लेना चाहिए था उस से अब भी नीचे हैं | ' पंजाब जाट महासभा' कि स्थापना जाटों के हालात मे सुधार लाने के लिए कि गई थी | इस की बहुत सारी गतिविधियो मे लाहौर से एक दैनिक अखबार निकालना शामिल करने का निर्णय लिया गया हैं | इसकी जानकारी मिलते ही हमारे बहुत सारे भाई विचलित हो गए हैं और अपना मानसिक संतुलन एवं शांति खो बैठे हैं ! वे बहुत चिंतित हैं ! इन भाइयों के चैन के लिए मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हु कि जाट महासभा के उद्देश्यों मे ऐसा कुछ भी नहीं हैं जिस से इन को नुकसान पहुचता हो ! हम जाटों कि सामाजिक -आर्थिक दशा सुधारणा चाहते हैं | हमारा उन कि धार्मिक राजनीति से कुछ लेना देना नहीं हैं | हमारे जलसो के मंचो पर धार्मिक बहस को कोई जगह नहीं मिलेगी | हम स्वयं को इस तरह कि राजनीति मे नहीं उलझाएंगे | हम रजीनीतिक मामलो मे केवल इस हद तक संबंध रखेंगे कि हिन्दू, मुसलमान , सिख और इसाइयों के नाम पर जो भी विशेषाधिकार दिये जाते हैं उन मे जाटों को उन का उचित हिस्सा अवश्य मिले | हिस्से से थोड़ा कम मे भी हम चला लेंगे | यदि कोई राजनेता हमारे हितों कि रक्षा का आश्वासन दे दे , या जाटों के लिए निर्धारित किसी उंच्च पद पर किसी ऊंच्च शिक्षा -प्राप्त व्यक्ति कि नियुक्ति कर डी जाती हैं तो हम सहन कर लेंगे; लेकिन यदि हर मामले मे , हर बार अयोग्य व्यक्ति जाट समुदाए के अधिकारों का अतिक्रमण करते रहे तो स्वाभाविक हैं कि हमे शिकायत होगी !

    contd...
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  16. The Following User Says Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    sukhbirhooda (July 25th, 2014)

  17. #29
    हम आर्थिक सांझा हितों कि राजनीति से नहीं डिगेंगे | उदाहरण के लिए , मूल्यों पर नियंत्रण का मामला , आवश्यक उपजों को पंजाब अथवा देश से बाहर भेजने पर पाबंदी का मामला , प्रांतो के उधोगों और व्यापार मे हिस्सेदारी , कृषि उपजों के लाने ले जाने पर चुंगी महसूल आदि , ये सब आर्थिक सवाल हैं , परंतु इन सब का राजनीतिक महत्व भी हैं | लेकिन ये सब सवाल अपने स्वरूप मे ऐसे हैं कि कोई भी कृषक जाति इन के ऊपर जाटों से मतभेद नहीं करेगी |

    हम दूसरों के धार्मिक संगठनो मे कभी हस्तक्षेप नहीं करेंगे ; लेकिन हम इस बात को खुशी से स्वीकार करते हैं कि जब तक भारत के संविधान (भारत संबंधी अङ्ग्रेज़ी कानून , भारत विधेयक 1935) के तहत राजनीतिक अधिकारों का बंटवारा मजहबो पर आधारित हैं , हर धर्म के लोगो को धार्मिक आधार पर संगठित होने और अपने संगठनो को मजबूत करने का अधिकार हैं | क्योंकि कोई भी समुदाय जो इस तरह संगठित नहीं होगा वह घाटे मे रहेगा | हमारे जाट समुदाय मे हर व्यक्ति को छूट होगी कि चाहे वह कांग्रेस मे शामिल हो जाये अथवा हिन्दू महासभा , अकाली दल, लिब्रल फेडरेशन या इंडियन क्रोश्चियन असोशिएशन मे अपने विश्वास और अपनी मान्यता के अनुसार इन मे से किसी मे शामिल हो जाए | अपनी व्यतिगत हैसियत मे वह पाकिस्तान कि मांग कर सकता हैं ; या भारत कि एकता व अखंडता के लिए प्रचार कर सकता हैं ; संयुक्त पंजाब या स्वतंत्र पंजाब कि मांग का समर्थन कर सकता हैं अथवा पूर्ण स्व-शासन कि मांग कर सकता हैं ; परंतु कोई भी इन बातों का विरोध अथवा समर्थन जाट महासभा के मञ्च से नहीं कर सकेगा |

    हमने (जाट महासभा ने ) राजनीति से अलग रहने का निर्णय इसलिए नहीं लिया हैं , क्योंकि हमारे लिए इन मुद्दो का महत्व नहीं हैं ; इसलिए भी नहीं कि हम किसी ताकत से भय खाते हैं , बल्कि इसलिए लिया हैं कि इस के दो खास कारण हैं | पहला यह कि राजनीति के क्षेत्र मे काम करने वाले असीमित साधनो वाले दूसरे संगठन हैं | जाटों के पास साधन सीमित हैं , जिन को जाटों के आर्थिक , शैक्षिक और सामाजिक स्तर को दूसरी प्रगतिशील जातियों के स्तर के समानान्तर लाने के कार्यो पर खर्च किया जाना चाहिए | उचित शिक्षा प्राप्त कर लेने पर वे जिस भी पार्टी मे जाएँगे , उस पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ समानता के दर्जे और टीम-भावना से कार्य कर सकेंगे | एक गरीब अशिक्षित जाट को किसी भी पार्टी मे कोई सम्मान अथवा पद नहीं मिलेगा | वह तो केवल एक संदेशवाहक छोकरा या नेताओ का व्यक्तिगत नौकर बन कर वाहा रहेगा ! दूसरे आम राजनीति मे सभी जाटों का मतैक्य नहीं हैं , और न हो सकना स्वाभाविक एवं संभव ही हैं | यहा बीरदारी के मञ्च से उन्हे राजनीतिक चर्चा करने कि इजाजत देने से आपसी झगड़े होंगे | हमारा जाट महासभा के मंच को केवल आर्थिक , शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के मुद्दो पर चर्चा तक सीमित रखने का यही कारण हैं |

    जाट महासभा का किसी दूसरी कौम से कोई विवाद या टकराव नहीं हैं | हमारे आंदोलन का केवल मात्र उद्देश्य अपनी बीरदारी के आर्थिक शैक्षिक एवं सामाजिक उत्थान करने कि दिशा मे रचनातामक एवं ठोस उपाय करना हैं | हमे आमतौर पर सभी समुदायों और जातियों के साथ सहयोग कर के काम करना हैं ; और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व कि नीति के बावजूद यदि कोई हमारे प्रति दुर्भावना रखे तो दोष हमारा नहीं हैं ! हम दूसरी जातियों के साथ उस हद तक सहयोग करेंगे , जहा तक करना मनुष्य के लिए संभव हैं | हम सब के प्रति प्यार प्रेम बनाए रखेंगे | हम सांप्रदायिक सदभाव कि प्राप्ति के लिए सदा प्रयत्नशील रहेंगे | हम पारस्परिक वीद्वेष , घृणा और तनाव के मूल कारणो को समाप्त करने कि दिशा मे प्रयासरत रहेंगे | यदि इस सब के बावजूद कोई हमारी कौम को ज़ोर जबरदस्ती , बिना उचित कारणो के कुचलने कि कोशिश करेगा तो हम अपना बचाव करने के लिए मजबूर होंगे , वह भी उस सीमा तक जहा तक आत्मरक्षा के लिए अवशयक होगा |

    जाटों को ही क्यों आतंकित और परेशान किया जाए ! पंजाब मे सभी समुदायों , जैसे ब्राह्मण , खत्री , शिया , सुन्नी , आरोड़े , अग्रवाल , महाजन , कायस्थ , कुरैशी , अरई, अवन, सैयद , मोमिन , शिया ,सुन्नी ,और भी न जाने कितनों के अपने अलग जातिय सम्मेलन होता रहते हैं | राजपूत , गुजर ,सैनी ,लबाना और अहलुवालिया सभाए हैं | खालसा ब्राथरहूड जैसी सोसाईटिया हैं , अथवा विभीन्न समुदायों के अपने मजहबी सम्मेलन हैं | इस के अतिरिक्त हमे कभी कभी कश्मीरियों और पारसियों के विषय मे भी सुनने को मिलता हैं | पिछले दो वर्षो के दौरान ' चैंबर ऑफ ट्रेड एंड कॉमर्स ' भी काफी चर्चित हैं रहा हैं | इन मे से कुछ पेशो से संबन्धित हैं | कश्मीरी सम्मेलन अपने एक व्यवसाय से संबन्धित हैं | हिन्दू , मुसलमान और सिख अपने स्वयं के मजहब का ख्याल किए बिना इन मे भाग लेते रहे हैं | यदि कोई कबीला अथवा समुदाए एक से अधिक धर्मो मे फैला हुआ हैं , ऐसे कबीले अथवा समुदाए के सभी लोग अपनी जाति-समुदाए के संगठनो कि गतिविधियों मे भाग लेते हैं - जैसे हिन्दू और मुसलमान , अथवा हिन्दू और सिख , अथवा हिन्दू , मुसलमान और सिख बिना धार्मिक विश्वास का लिहाज किए , और बिना किसी औपचारिकता के ! परंतु हमने किसी भी ओर से कोई शिकायत या आपत्ति नहीं सुनी हैं | वास्तव मे ही यह बात आश्चर्यजनक हैं कि अपना संगठन बनाने पर केवल जाट समुदाए को ही क्यों त्रासा और प्रताड़ित किया जा रहा हैं | हिन्दुओ का कहना हैं कि क्या मुसलमान -गैर मुसलमान , जमींदार -गैर जमींदार और शहर देहात के नाम पर विभाजन पर्याप्त नहीं थे । जो अब एक नया विभाजन जाट-गैर जाट के नाम से जोड़ा जा रहा हैं ? आर्य समाजियों का कहना हैं कि इस प्रकार का भेद वेदो और महर्षि दयानंद के सिद्धांतों के विरुद्ध हैं | सीखो कि आपत्ति हैं कि जाट-गैर जाट का भेद पंथ के खिलाफ हैं और सीखो का विभाजन करने के लिए किया जा रहा हैं | मुसलमान यह दलील देते हैं कि इस प्रकार कि भेद-रेखा खींचना कुरान के नियमो के खिलाफ हैं और मुसलमानों को कमजोर करने के लिए ऐसा किया गया हैं |

    ये शिकायते और आपत्तीय चिंताजनक भी हैं और उत्साहवर्धक भी | धार्मिक विषय हमारी महासभा के कार्य क्षेत्र के बाहर हैं | हम किसी धर्म के सिद्धांतों पर चोट नहीं करते ; और हम ऐसा करे भी क्यों ? क्योंकि हमारा तो विशास है कि एक अच्छा मुसलमान , एक अच्छा हिन्दू , एक अच्छा सिख और एक अच्छा ईसाई , एक अच्छा इंसान , एक अच्छा पंजाबी , एक अच्छा हिंदुस्तानी , और एक अच्छा पड़ोसी भी होगा ! हम मजहबी राजनीति पर किसी बहस कि इजाजत नहीं देते | जाट महासभा शुद्ध राजनीति को भी टालती हैं | अपनी व्यक्तिगत हैसियत मे प्रत्येक जाट किसी भी तरह कि राजनीति का प्रचार करने और किसी भी सामाजिक संगठन का सदस्य बनने के लिए स्वतंत्र हैं | क्या यह हमारे प्रति अन्याय नहीं हैं कि इन हालातों मे भी कुछ लोग हम पर विभाजन पैदा कर के किन्ही धार्मिक संगठनो को कमजोर करने कि साजिश का आरोप लगते हैं ? इस से अधिक अनुचित और क्या होगा ?

    हम यह बात साफ कर देना चाहते हैं कि हम ऐसी किसी भी स्थिति मे कोई सम्झौता नहीं करेंगे जहा हिन्दू-मुसलमान -सिख और ईसाई , हमे पुश्तैनी दास मानते हो , अथवा दसो कि भांति हमारे साथ बर्ताव करे ! और न ही हम उन के इस तथाकथित अधिकार को मानेंगे कि वे -हिन्दू-सिख- मुसलमान-ईसाई-जाटों को पशु कि भांति किसी भी धार्मिक कार्यकर्म मे अथवा अन्य क्रिया-कलापों मे अपनी मर्जी के मुताबिक जब चाहे और जहा चाहे हांक ले जाये ! हम ऐसे धार्मिक आक्रमण कि सहन नहीं करेंगे | हम अपने तौर अपने तरीके से सभी धर्मो और उन के गुरुओ पीर-पैगंबरों , ऋषि-मुनियो और देवी-देवताओ को सम्मान देते हैं |

    जाति और धर्म के कारण भेद का बहाना : हिन्दू धर्म के सुधारक जैसे आर्य समाज ; और इसी प्रकार दूसरे भी , जैसे मुसलमान और सिख यह कहते हैं कि जातिवाद एक अभिशाप हैं , जिसे कबीला संस्था जीवित रखे हुए हैं ! इस बात को सभी मानेंगे कि जातिवाद और जन्म-भेद , जहा तक उन का संबंध धर्म और अध्यातम से हैं , बिलकुल भीन्न हैं | लेकिन हमे इन शब्दों के अर्थो को गंभीरता और बारीकी से समझने का प्रयास करना चाहिए | इस का अर्थ हैं कि कोई भी व्यक्ति किसी खास परिवार मे जन्म लेने से महान नहीं बन जाता ; और न ही जन्म के आधार पर किसी को स्वर्ग मे स्थान मिलने वाला हैं | इसी प्रकार यह बात भी नहीं हैं कि किसी खास धर्म या परिवार मे जन्म के आधार पर , आध्यात्मिक दर्ष्टिकोन से , स्वर्ग मे किसी को छोटा या बड़ा समझा जाएगा ! कर्मो कि गुणात्मक द्रष्टि से विवेचना कर के अच्छों को इनाम और बुरों को सजा मिलेगी ! यदि कोई यह कहे कि आध्यात्मिक क्षेत्र कि भांति ही सांसारिक मामलों मे भी पालन पोषण , जाति-खून निरर्थक और महत्वहीन हैं , और कि आध्यात्मिक क्षेत्र कि भांति ही दुनियावी मामलों मे भी लोगो को धर्म को छोड़ कर अन्य किसी भी आधार का वर्गीकर्त नहीं किया जा सकता , और कर्मो के एलवा और कोई संगत और सार्थक मापदंड नहीं हैं , तो यह बात ठीक नहीं लगती ! सांसारिक क्षेत्र मे परिवार , पालन-पोषण , विधत्ता , धन , अधिकार , दर्जा और प्रभाव ऐसे तत्व हैं जो किसी व्यक्ति के महत्व का निर्धारन करते हैं ! इसी प्रकार रक्त-संबंध और लालन-पालन बिलकुल स्वाभाविक बाते हैं , और कई बार ये ऐसे आध्यात्मिक गुणो को पैदा कर देते हैं जो वासत्व मे अद्भुत और सम्माननीय होते हैं |


    contd...
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  18. The Following User Says Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    sukhbirhooda (July 25th, 2014)

  19. #30
    यह कहना भी पूरी तरह गलत हैं कि जन्म और जाति के संबंधो को स्वीकार करना और इन्हे महत्व देना आध्यात्मिक अथवा धार्मिक मान्यताओ , मार्यदाओं, और आदेशो के विरुद्ध हैं | यूरोप के ईसाई समुदाय स्वयं को एंगेलों सैक्शन , जर्मन , नोर्दिंस , लैटिन्स आदि कहने मे कोई शर्म महसूस नहीं करते | एशिया के मुस्लिम समुदाए खुद को तुर्क , अरब और अफगान कहते हैं , परंतु इस प्रकार के कथनो के बारे किसी को कोई आपत्ति नहीं | उत्तर-पश्चिम सीमा पार के हमारे पड़ोसी बड़े गर्व से अपने को यासाफिञ्जय , महसूद और वज़ीरी कहते हैं | अलीगढ़ के एक नौजवान ने मुझे बताया कि रसूल करीम बड़े गर्व से कहा करता था : ' मैं मोहम्मद हू; मैं अरब हू और मैं हाशमी भी हू ' |

    यदि तुर्क और अफगान स्वयं को क्रमशः तुर्क और अफगान कहने से , गैर -मुसलमान नहीं हो जाते ; ब्राह्मण और खत्री स्वयं को ब्राह्मण और खत्री कहने से गैर हिन्दू नहीं बन जाते ; अहलुवालिया और रामगढ़िया स्वयं को क्रमशः अहलुवालिया और रामगढ़िया कहने से गैर -सिख नहीं बन जाते ; तो जाटों को , यदि वे स्वयं को जाट कहते हैं , इस्लाम विरोधी , सिख विरोधी अथवा वैधिक सिद्धांतों के विरोधी के रूप मे पेश करने का क्या औचित्य हैं ?

    दूसरे लोग अपने नामों के साथ अपनी जातियों को उपनाम के रूप मे जोड़ते हैं , यथा , सैयद , कुरैशी , सिद्दीकी , अंसारी , शर्मा , नातन , वर्मा , सोढ़ी , बेदी , जेटली , चावला , चड्डा , बजाज आदि; और उन के विरुद्ध कोई फतवा अथवा धर्मादेश , हिन्दू , सिख , अथवा इस्लाम धर्म के नाम पर जारी नहीं किया जाता ! इसके विपरीत अगर कोई अपने आप को जाट कौम का बेटा कह देता हैं तो ऐसा लगता हैं मानो वह अपने धर्म से गिर गया हो | वह भ्रष्ट हो जाता हैं , और भगवान विरोधी बन जाता हैं ; और उसने बहुत बड़ा पाप कर दिया , उसे नरक मे फेंकना पड़ेगा ! धर्म के ये ठेकदार भी जाट सगठनों कि भर्त्सना और बदनामी करते हैं और उन्हे बुरी नजर से देखते हैं | यह क्या आध्यात्मवाद हुआ ? यह कैसा वैदिक संदेश हैं ? इस धर्मदेश या फतवा का क्या आधार हैं ? कितनी निरर्थक हैं ये दलील ! ये कैसा इंसाफ हुआ ?

    आपत्तियों के मुख़्य कारण: इन आपत्तियों का कारण न तो इस्लाम के प्रति समर्पण भाव हैं; न सिख पंथ के प्रति सेवा भावना इसका कारण हैं ; न हिन्दू धर्म कि रक्षा भाव ! परंतु इस का कारण निहित स्वार्थों कि रक्षा कि कोशिश हैं ! हमारी जाट कौम गहरी नींद मे थी ; उन्नति -प्राप्त वर्ग , खास तौर पर शहरी शिक्षित वर्ग , और व्यापारी वर्ग हमारे अधिकारों को चटकर जाते थे | जब उन्होने देखा कि जाट इकट्ठे हो रहे हैं -संगठित हो रहे हैं , और अपने अधिकारों पर दावा जताने लगे हैं , तो वे (शहरी) बेचैन हो उठे हैं ! उन ने सोचा धार्मिक मुद्दे सहायक हो सकते हैं | वे जाटों को मूर्ख और असभ्य मानते रहे थे ; वे उन कि सादगी और अज्ञानता का मज़ाक उड़ाते रहे थे ; जाटों कि साफ़गोई को उन मे सभ्यता और संस्कृति का आभाव माना जाता था ! वे लोग अब इन भोले -भाले , सहनशील , गूंगे बहरे और अशिक्षित गरीब जाटों के जाग जाने के कारण दुखी हैं , चिंतित और विचलित हैं ; और उन लोगो ने उन्हे नींद मे ही बनाए रखने के लिए षड्यंत्र रचा हैं ; इन के साथ भेड़-बकरियों कि तरह बर्ताव करते रहने , और इन कि जुबानों और दिमागो को धर्म कि नशीली खुराक देकर बंद कर देने का षड्यंत्र रचा हैं ; वे डरे हुए हैं कि जाट यदि जाग गए तो उन मे बदले कि भावना आ सकती हैं ! धार्मिक निहित स्वार्थो के अतिरिक्त राजनीतिक स्वार्थ भी हैं | इस तरह के राजनेताओ और उन कि पार्टियों मे न तो कोई सेवा भाव होता हैं और न ही आध्यात्मिक भावना उत्साह | जो लोग हमारा विरोध कर रहे हैं , चिलल-पों कर रहे हैं और हमारे विरुद्ध झूठा प्रचार कर रहे हैं , वे आम तौर पर अपने धर्म अथवा मजहब के प्रति भी निष्ठावान नहीं हैं ! दूसरे शब्दो मे उन मे अपने मत के अनुसार प्रतिदिन प्रार्थना करने जैसे धार्मिक अनुष्ठान करने का अभ्यास नहीं हैं | ये ही संस्थाए , पार्टिया , और समुदाए हैं , जो आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र मे किए जा रहे हमारे प्रयासो को विफल कर देते हैं , और हमारी सभी उपलब्धियों को चट कर जाते हैं ! वे हमारे शोषक हैं , शुभेच्छु और प्यारे नहीं | वे केवल मात्र अपनी भलाई मे रुचि रखते हैं | वे हमारी कष्ट कमाई पर डाका डालने कि योजनाए बना रहे हैं ; वे हमारी जागृति , प्रगति और आत्मरक्षा एवं आत्मोत्थान के उपायों और प्रयासो को देख कर बेचैन हैं , बौखलाए हुए हैं ; यह देखकर उदास हैं कि उन का प्रिय शिकार शीघ्र ही बच निकालने वाला हैं ! वे हम पर दोषारोपण करके , और अपने पापों और कुक्र्त्यों पर पर्दा डालने कि कोशिश करते हैं; वे बहुत चालाक बनने कि कोशिश करते हैं , जैसे कि वे हमारे भाग्य-विधाता हों, हमारे जीवन-दाता हों और हमारे भविष्य के निर्माता हों ! ये लोग हमारी जागृति को देख कर भय का अनुभव कर रहे हैं ; वे हमारी उन्नति को पचा नहीं पा रहे हैं और बहुत बेचैन हों उठे हैं ! हमारी जागृति को वे अपनी मौत का संकेत मान रहे हैं ; भगवान का मुखौटा लगाए हुए ये शैतान बेचैन हैं ! इसका दोष हम पर कैसे लगाया जा सकता हैं ? जाटों ने अब सच्चे भगवान और सच्चे गुरु को पहचान लिया हैं !

    हमारा जवाब यह हैं : हमारा किसी से झगड़ा नहीं हैं ; हम सब धर्मो का आदर करते हैं , किसी के धार्मिक मामलो मे दखल नहीं देते ; हम धार्मिक कट्टरपंथियों से दूर रहना चाहते हैं ; हम आपसी सूझ-बुझ मे विश्वास रखते हैं जिस के कारण हम समाज को लाभकारी सेवाएं देने कि स्थिति मे हैं | शुभ कार्यों के लिए हमारी सेवाए सदा उपलब्ध रहती हैं | हमारी ओर से कोई भी जाट अपनी सोच और अपनी आस्था के अनुसार किसी भी साधारण अथवा सांप्रदायिक-राजनीतिक पार्टी मे शामिल होने और अपने सहयोग -सहायता से उसे मजबूत करने मे स्वतंत्र हैं | हम शुद्ध राजनीति -क्षेत्र मे भी अलग-अलग जगहों पर खड़े हैं | इस पर्थक्ता के कारण मैं पहले बता ही चुका हू , हमारा संबंध केवल अर्थ-प्रधान राजनीति से हैं -अर्थात सांप्रदायिक आधार पर अधिकारों को निर्धारन हों जाने के बाद हम न्यायोचित एवं वैधानिक तरीके से उन अधिकारो कि सीमा मे रह कर उन का उचित हिस्सा हासिल करने कि कोशिश कर रहे हैं | हम सभी समुदायों के साथ पूर्ण सदभाव से रहना चाहते हैं-हम गरिमापूर्ण ढंग से मिल-जुल कर रहना चाहते हैं ; विशेष रूप से किसान जातियों के साथ प्रेम , आवश्यक एकता एवं सहयोग के साथ | हमारा समुदाय पिछड़ा हुआ हैं | हम देश के कमाऊ पूत हैं | दूसरी पिछड़ी जातियों के साथ हमारी हमदर्दी हैं | हम अपनी बिरादरी के आर्थिक एवं शैक्षिक स्तर को सुधारना चाहते हैं , और हम यह भी चाहते हैं कि दूसरी जातियों को भी अपने पिछड़ेपन से मुक्ति पा लेनी चाहिए ! इस उद्देश्य को लेकर हमारे बीच कोई विवाद नहीं हैं | हम सभी निहित स्वार्थो के साथ लड़ेंगे | आपसी सूझ-बुझ के साथ हमे एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए | देश तब ही सम्पन्न बनेगा जब हम पिछड़ेपन से मुक्ति पा लेंगे | पूरा समाज खुशहाल होगा | हम स्वयं को संगठित कर के जाट बिरादरी कि विशेषताओ को सँजोकर रखना चाहते हैं और अपनी सभी सामाजिक कुरीतियों को दूर करना चाहते हैं | ' जाट्स एंड संसार कबील गालदा ' -यह हमारी कौम कि कमजोरी हैं | हमारे विरोधी सब अवसरों पर इस का लाभ उठाते हैं | हमे इस कमजोरी को दूर करना हैं | हमारा 90 प्रतिशत कार्यकर्म आर्थिक ,शैक्षिक और सामाजिक सुधारों और उत्थान से संबंधित हैं | इस के बावजूद यदि कोई हमारे खून का प्यासा बनेगा तो हम जैसे को तैसा कि भावना से प्रत्याक्रमण करेंगे -मुंह तोड़ जवाब देंगे ! हम धर्म के क्षेत्र और इसकी सीमाओं को अच्छी तरह समझते हैं , और इन सीमाओं के भीतर हम धर्म को पूरा सम्मान देते रहेंगे , लेकिन हम किसी भी धर्म कि गलत व्याख्या और इसका दुरुपयोग कर के हम को मूर्ख बनाने कि इजाजत नहीं देंगे | सांसारिक मामलों मे जन्म और खून के रिश्तों को हम मजबूत , ठोस एवं पवित्र संबंध और बंधन मानते हैं | हम इस निम्न शेर मे व्यक्त शास्वत सत्य मे विश्वास करते हैं :
    'हमने ये माना मजहब जान हैं इंसान कि |
    कुछ इसके दम से कायम शान हैं इंसान कि
    रंग-ए-क़ौमियत मगर इससे बदल सकता नहीं |
    खून आबाए -रग तन से निकल सकता नहीं ||
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  20. The Following User Says Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    sukhbirhooda (July 25th, 2014)

  21. #31
    सर छोटूराम के बारे मे एक हरिजन विद्वान के उद्गार
    ( श्री सोहनलाल शास्त्री , विधावाचस्पति , बी.ए., रिसर्च आफिसर , राजभाषा (विधायी) आयोग , विधि मंत्रालय भारत सरकार )

    स्वर्गीय चौधरी छोटूराम जी मेरी दृष्टि मे कर्मवीर योद्धा के साथ साथ महापुरुष भी थे | महापुरुष के लक्षण हैं जिस मे दीन, दुःखी , दरिद्र और अन्याय पीड़ित जनसमुदाय के लिए पूर्ण सहानुभूति हो | वीर तो डाकू भी हो सकता हैं और कर्मवीर उसे कहा जाता हैं जिसका जीवन केवल कथनी पर निर्भर न हो , करनी पर आधारित हो | एक कर्मवीर योद्धा यदि अपने परिश्रम से कोई सिद्धि या निधि प्राप्त कर ले किन्तु उस फल का उपभोग स्वयं ही करे या केवल अपने बंधुओ तथा सगे सम्बन्धियो को उसके उपभोग का पात्र ठहराए तो वह महापुरुष नहीं कहला सकता | चौधरी साहब का ह्रदय गरीब लोगो के लिए सदैव आर्द्र रहा | मैं व्यक्तिगतरूप से उनके संपर्क मे आता रहा हूँ | पंजाब के हरिजनों के बारे मे मेरा उनसे विचार-विनिमय होता रहा हैं | पत्र-व्यवहार मे मैंने एक बार उन्हे लिखा था कि चौधरी साहब आप की दृष्टि मे तो बेचारा किसान ही समाया हुआ हैं , किन्तु आपने कभी बेचारे कम्मी (हरिजन तथा दूसरे मुसलमान कम्मी) के लिए हमदर्दी नहीं दिखाई , अतः परमात्मा आप के लिए एक विशेष नरक तैयार कर रहा हैं |
    चौधरी साहब ने मुझे उत्तर कि उनके दिल मे हरिजन के लिए किसानों से कम प्रेम और स्नेह नहीं हैं |
    साहूकारों के शैतानी पंजे से छुड़ाने के लिए जो विधान चौधरी साहब के प्रयत्नों से पंजाब सरकार ने बनाए , उन से केवल किसानों को ही लाभ नहीं पहुंचाया , वरन कममियों के लिए भी यह लाभदायक बनाए गए | किसी भी हरिजन या कम्मी के घर का सामान , अनाज , भैंस , गाय तथा बैल आदि साहूकार कुर्क नहीं कर सकता था | मसालहती बोर्ड मे फैसले के लिए किसान की भांति कम्मी भी न्याय प्राप्त करने के अधिकारी थे |
    उस युग मे जब यूनियनिस्ट सरकार बनी , हरिजनो को सरकारी नौकरियों मे पहले पहल तब ही लिया गया | मुझे अच्छी तरह स्मरण जब एक हरिजन युवक जिसने बी.ए.,एल.एल.बी. पास करने के पश्चात पी.सी.एस. की परीक्षा की तो उसने मैरिट लिस्ट मे सबसे नीचे स्थान प्राप्त किया | स्वर्गीय सर मनोहरलाल ने उन्हे पी.सी.एस. मे स्थान देना नहीं चाहा , क्योंकि वह योग्यता से दूसरे हिंदुओं के मुकाबिले में बहुत निम्न स्तर पर था |
    चौधरी साहब ने तब पूरा बल लगाकर उस हरिजन को पी.सी.एस. बना कर ही दम लिया | इस घटना पर पंजाब सरकार के हिन्दू सदस्यों और अन्य हिन्दू नेताओ मे घोर विरोध हुआ , किन्तु चौधरी साहब का निर्णय अटल था | आज वही हरिजन युवक पंजाब मे सैशन जज का काम कर रहा हैं और बीसियों हिन्दू सेशन जजो से उसका कार्य अच्छा माना जाता हैं | पंचायतों मे कई हरिजन नवयुवको को पंचायत अफसर बनाने का श्रेय चौधरी साहब को ही हैं | चौधरी साहब वचन के पक्के और स्पष्ट वक्ता थे | वह मनसा अन्यत , कर्मणा , अन्यत , वचसा अन्यत, की नीति मे विश्वास नहीं रखते थे | महापुरुषों के मुख्य लक्षणों मे यह सद्गुण आवश्यक हैं | चौधरी साहब को मैंने एक कड़वा पत्र लिखा जिस मे कहा कि आप हरिजनो को जमीन खरीदने का अधिकार क्यों नहीं देते , जबकि सब हरिजन सदस्य आपकी पार्टी का साथ दे रहे हैं |
    चौधरी साहब ने मुझे उत्तर दिया कि मैंने कभी हरिजनो सदस्यों को यह वचन नहीं दिया कि यदि वह मेरी राजनीतिक पार्टी मे शामिल हो जाए तो मैं उन्हे जमीन खरीदने का अधिकार दिलवा दूंगा | चौधरी साहब कहा करते थे कि पंजाब का Land Alienation Act बेचारे किसान कि ज़मीन को हिन्दू साहूकारों के फौलादी हाथ से बचाने के लिए ढाल हैं | यह एक्ट ऐसा लोहमय दुर्ग हैं जिसमे साहूकार के अत्याचार से जमींदार का बचाव हो सकता हैं | अगर मैं हरिजन के लिए इस एक्ट मे संशोधन करूंगा तो इस दुर्ग मे ऐसी दरार पड़ जाएगी , जिस मार्ग से साहूकार घुस जाएगा और बेचारे किसान या जमींदार कि एकमात्र आशा और आश्रय अर्थात भूमि का टुकड़ा छीन लेगा |
    चौधरी साहब कहते थे कि हरिजन के पास भूमि खरीदने कि आर्थिक शक्ति नहीं हैं | वह केवल हिन्दू नेताओ के बहकावे मे आ कर इस मांग पर बल देता हैं | चौधरी साहब का विश्वास था कि हिन्दू नेता हरिजन को भूमि ख़रीदारी कि मांग के लिए इसलिए उकसाते हैं ताकि विधान कि सुविधा से साहूकार स्वयं रुपया देकर भूमि खरीद ले और हरिजन के नाम पर बेनामी करा दे | क्योंकि हरिजन हिन्दू साहूकार का विश्वासपात्र रह सकता हैं | इस प्रकार हरिजन को भूमि खरीद कि कानूनी छूट का अभिप्राय साहूकार को परोक्ष रूप से किसान की भूमि हथियाना था | चौधरी साहब इन दाव पेंचो को खूब जानते थे , अतः उन्होने हरिजनो की मांग को कभी स्वीकार नहीं किया | ऐसा होने पर ही आपको हरिजन हितैषी ही कहना पड़ता हैं क्योंकि मूलतान के क्षेत्र मे जब कुछ मुरब्बे ज़मीन बांटने की सरकार ने योजना बनाई तो चौधरी साहब ऐसे समय पर हरिजनो को नहीं भूले और बहुत मुरब्बे भूमि इन्हे देकर पंजाब के इतिहास मे पहली बार हरिजनों को जमींदार बना दिया | यह उनकी उदारता और महापुरुष का जीता-जागता उदाहरण हैं |
    ज़िला मूलतान मे आर्य नगर नामक गाँव की सारी भूमि सन 1923-1924 मे मेघ उद्धार सभा स्यालकोट ने सरकार से सस्ते दामों मे खरीद कर के मेघ जाति के हरिजनो को उसका मुजरा बना कर आबाद किया | कई बरसों का सरकारी लगान और मुरब्बों की किशते अदा न करने के कारण सरकार ने उस गाँव की सारी ज़मीन जब्त कर ली थी और फैसला कर दिया था कि इस भूमि कि कीमत वसूल कि जाये | सरकार ने मेघ उद्धार सभा (जिसके कर्ता-धर्ता हिन्दू साहूकार व वकील थे ) के पदाधिकारियों को नोटिस थमा दिये कि वह बकाया रकम अदा करे | किन्तु केघ उद्धार सभा ने ऐसा नहीं किया | यूनियनिस्ट सरकार के समय मे चौधरी साहब ने हरिजन काश्तकारों का ज़मीन बांटने का फैसला कर दिया और मेघ उद्धार सभा का दखल समाप्त करके यह इस सारे गाँव के मुरब्बे मेघ जाति के हरिजनो मे बाँट दिये | जो मेघ काश्तकार जिस-जिस मुरब्बे को काश्त करते चले जा रहे थे वही उसके मालिक बना दिये गए और लगान का बकाया आदि उनसे सस्ती किश्तों मे वसूल किया |
    आपने अपने एक प्राइवेट पार्लियामेंट सेक्रेटरी को आदेश दिया कि जिस-जिस मुरब्बे पर मेघ (हरिजन) काश्तकार चला आ रहा हैं , वह मुरब्बा उस के नाम पर अंकित कर दिया जाये | इससे बढ़कर स्वर्गीय चौधरी छोटूराम कि हरिजनो के प्रति सहानुभूति और क्या हो सकती थी | जाट के उद्धार के लिए तो वह अवतार बन कार आए तथापि वह हरिजनो के हित और कल्याण को कभी नहीं भूले | चौधरी साहब एक आदर्श माता का जो अपनी संतान के लिए अपना बलिदान कर देती हैं साक्षात उदाहरण या प्रतीक थे किन्तु जैसे सहृदय माता अड़ोस पड़ोस के बालकों मे मधुर और स्नेहमय व्यवहार करती हैं , इसी भांति चौधरी साहब कि वास्तविक संतान को पंजाब का जाट था , मगर उस जाट संतान के खेतो मे काम करने वाले , उनके लिए जूता जोड़ा बनाने वाले , लोहार-बढ़ई का काम करने वाले कम्मी को भी उन्होने सदैव सहानुभूति से देखा और उनकी भलाई के लिए कानूनों से जो कुछ किया जा सकता था , किया |
    cont...
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  22. The Following User Says Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    sukhbirhooda (July 25th, 2014)

  23. #32
    अछूतो के लिए जितना दर्द और सहानुभूति बाबा साहिब डॉक्टर अंबेडकर के हृदय मे था और जो कुछ आप ने निरीह लोगो के लिए किया और सोचा , उतना ही बल्कि उससे भी कहीं अधिक काम चौधरी छोटूराम ने पंजाब के जाटों के लिए किया |
    कहावत हैं , कि खून पानी से गाढ़ा होता हैं , अर्थात अपना परिवार , अपनी बीरदारी या जाति से दूसरों की अपेक्षा ज्यादा सहानुभूति होती , ममता और लगाव होता हैं | इसी प्रकार जाट जाति के साथ चौधरी साहब की ममता और स्नेह का होना स्वाभाविक और प्रकृतिक ही था , तो भी सच्चे महापुरुष दूसरे दीनहीन , दुःखी लोगो को अपना स्नेह पात्र मानते हैं |
    बाबा साहिब डॉक्टर अंबेडकर और चौधरी छोटूराम दोनों महापुरुष थे | दोनों अपने व्यक्तिगत संघर्ष और परिश्रम से ऊपर उठे , विद्वान बने , अंतिम श्वास तक दबे , पिसे निरीह लोगो की वकालत की | बहादूरों की भांति पिछड़े वर्गो की उन्नति के लिए अंतिम सांस तक जूझते रहे | दोनों ही सैनिक जाति के सपूत थे | (जाट और महार दोनों ही सैनिक जाति माने गई हैं ) दोनों ही भारत की मिट्टी से उभरे और आकाश के देदीप्यमान सूर्य की भांति भारत के गगन मे जा चमके | दोनों महापुरुषों ने केवल अपनी लौकिक उन्नति पर ही संतोष नहीं किया बल्कि अपनी जाति के उद्धार के लिए अपनी सारी शक्तियों का प्रयोग किया |
    मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ कि मुझे दोनों कर्मवीर योद्धाओ का व्यक्तिगत संपर्क प्राप्त करने का अवसर मिला | दोनों से विविध विषयों पर पत्र व्यवहार होता रहा तथा साक्षात्कार करने के अवसर प्राप्त हुए | मैंने इन दोनों महापुरुषों को बहुर करीब से देखा हैं | दोनों के हृदय स्वच्छ और उदार थे | दोनों के मस्तक विधा और राजनीति से भरपूर थे | दोनों अपनी अपनी धुन के इस प्रकार दृढ़ थे कि संसार का कोई भी प्रलोभन या भय उन्हे अपने उद्देश्य से इधर-उधर नहीं कर सकता था | एक बार शायद 1943 मे जब बाबा साहिब डॉक्टर अंबेडकर वायसराय कि एजीक्यूटिव कौंसिल के सदस्य थे , मुझे उनसे 22 पृथ्वीराज रोड़ पर मिलने का अवसर मिला | बातों-बातों मे चौधरी सर छोटूराम जी का भी प्रसंग छिड़ गया | डॉक्टर साहब ने मुझ से पूछा कि सर छोटूराम की सारे पंजाब और दिल्ली मे धाक हैं , क्या वह बहुत उच्च दर्जे का विद्वान हैं ? मैंने उत्तर दिया कि चौधरी साहब संभवतः आप के बराबर विद्वान तो नहीं किन्तु आप कि भांति पंजाबी किसान को साहूकार के जालिम पंजे से छुटकारा दिलाने के लिए जी-जान से लड़ रहे हैं | साहूकारों के अत्याचारों से पीड़ित पंजाब के लिए वे अवतार हैं | डॉक्टर साहब ने कहा , उनकी प्रसिद्धि और ख्याति का और क्या कारण हैं ? मैंने उत्तर दिया कि चौधरी साहब का संपर्क जन-साधारण के साथ हैं | उनमे दो गुण ऐसे हैं जो आप मे नहीं है | डॉक्टर साहब बोले वह कौन से अनोखे गुण चौधरी साहब मे विधमान हैं जो मुझ मे नहीं ? मैंने उत्तर दिया कि भारत के किसी भी कोने से उन्हे पोस्ट कार्ड लिखा जाए , चाहे उस पोस्ट कार्ड मे उन्हे गालियां ही क्यों न दी जाएँ, उस पत्र का अपने हाथ से उत्तर देना , वह अपना परम कर्तव्य समझते हैं | दूसरा गुण यह हैं कि उनकी कोठी पर सदा भंडारा लगा रहता हैं | कोई भी व्यक्ति किसी समय जा कर वाहा खाना खा सकता हैं | ये हैं दो अनुपम गुण जिनहोने चौधरी साहब को प्रसिद्ध किया और भी चार चाँद लगा दिये | किन्तु बाबा साहिब डॉक्टर अंबेडकर मे इन दोनों गुणो का अभाव था | वह झट बोल उठे कि मैं कार्य मे इतना व्यस्त रहता हूँ कि मुझे किसी व्यक्ति के पत्र का उत्तर देने का समय ही नहीं लगता और मैं विधुर हूँ | इसलिए कोठी पर आए अभ्यागत को चाय-पानी कि नहीं पूछ सकता | मैं उत्तर दिया जहां तक कार्य व्यस्तता का संबंध हैं , चौधरी साहब आप से कम कार्य व्यस्त नहीं हैं किन्तु जहां तक दूसरी बात का प्रसंग हैं , चौधरी साहब कि धर्मपत्नी तो उनके साथ न रह कर अपने गाँव मे ही रहती हैं | कहने का अभिप्राय यह हैं कि चौधरी सर छोटूराम कर्मवीर योद्धा के साथ-साथ महानपुरुष भी थे |
    चौधरी साहब ने जहां पंजाब के पीड़ित किसानों के परोपकार के लिए न्याय-युद्ध लड़ा और उसे जीता , उसी प्रकार वे पंजाब के हरिजनो के भी सच्चे हितचिंतक थे | पंजाबी हरिजनो को यूनियनिस्ट सरकार के अधीन भरसक नौकरिया दिलवाई , उन्हे मूलतान के क्षेत्र मे मुरब्बे बांटे | आर्य नगर के मेघ हरिजनो को सारा का सारा गाँव सरकार से दिलवाया |
    वास्तव मे देखा जाय तो चौधरी छोटूराम साहूकारों का भी अहित नहीं चाहते थे | वे सदा कहा करते थे कि मुझे बनिए, महाजनो से वैर नहीं , वे मेरे भाई हैं | मुझे उनकी उस जालिमाना लूट-खसोट से वैर हैं , जो सुर दर सूद कि शक्ल मे की जा रही हैं और जिसने बेचारे किसान का खून चूस लिया हैं | चौधरी साहब ने अपनी सरकार मे जब दुकाने खोलने और बंद करने के घंटे समय नियत किए तो बनिए दुकानदार चिल्ला उठे | चौधरी साहब को गालियां देने लगे की यह जाट हमे अब दुकानों के जरिये भी रोटी कमाने नहीं देना चाहता | चौधरी साहब अपने व्याख्यानों मे प्रायः इस आरोप का युक्तियुक्त उत्तर देते थे और कहा करते थे कि मैंने दुकानों के खोलने और बंद करने का समय नियत करके बनिया भाइयों का स्वास्थ सुधारा दिया हैं | अब दुकानों से जल्दी उठकर सैर किया करेंगे और स्वस्थ-जीवन और लंबी आयु भोगेंगे |
    आज कि कांग्रेस सरकार जो चौधरी साहब कि सरकार से अधिक लोकप्रिय मानी जाती हैं , वह भी सारे भारत मे उनके कानूनों कि नकल कर रही हैं , और दुकानों को खुलने तथा बंद होने के लिए समय नियत कर रही हैं | चौधरी साहब ने जो जो सुचारु नीति अपनाई , उसका मूल्यांकन आज हो रहा हैं और पंजाब का साहूकार बनिया भी अब उन्हे अत्यंत श्र्दा-भरे दिल से श्रद्धांजलि भेंट करता हैं |
    चौधरी सर छोटूराम पंजाब की वीर भूमि के इस्पात थे | जाट जाति के सच्चे सपूत और हरिजन , किसानों , कम्मियों के सच्चे हितचिंतक थे | इस प्रकार की विभूतिया सैकड़ों बरसों के पश्चात उत्पन्न होती हैं और युग-युगांतरों तक वे इतिहास की शोभा बनती हैं उनके पथ-प्रदर्शन पर चल कर और उनसे शिक्षा लेना अनेक कार्यकर्ता अपने कार्य मे सफल हो सकते हैं | मैं न तो हरियाणा मे पैदा हुआ , न ही जाट जाति से मेरा संबंध हैं और न ही मैंने चौधरी साहब से कोई आर्थिक लाभ प्राप्त किया | इतना होने पर भी उस महान विभूति महापुरुष के लिए मेरा हृदय तथा श्र्धा से भरपूर हैं और मैं अपने आपको सौभाग्यशाली समझता हूँ कि मेरा इस युगपुरुष से परोक्ष और साक्षात संबंध रहा हैं |
    (पुस्तक- किसानबंधु , चौधरी सर छोटूराम - लेखक -आर.एस.तोमर)
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  24. The Following User Says Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    sukhbirhooda (July 25th, 2014)

  25. #33
    Very good documentary thanks for making it. Lakin jab dusri cast jaato ko, jaat kah ke point kar sakti hai to is documentary mai b saaf saaf batana chaiye ye shukar koi or nahi baniya the jo aaj b kisano k saath wahi bartav kar rahe hai jo pahle karte the. Sabse jyaada jaato k arakshan ka virodh b ye kar rahe the wo chate hai jaat hamesa unke karz mai daba rahe. They don't want our progress. Jai hind jai jaat.

Posting Permissions

  • You may not post new threads
  • You may not post replies
  • You may not post attachments
  • You may not edit your posts
  •