कलकल गोत्र का इतिहास
कलकल - इन लोगों का राज्य मध्य एशिया के ‘वाकाटक’ प्रदेश पर रहा था। (अधिक जानकारी के लिये, तृतीय अध्याय में इन गोत्रों के प्रकरण में देखो)।[21]
दलीप सिंह अहलावत[22] लिखते हैं -
कलकल जाटवंश नागवंश की शाखा है। यह प्राचीन वंश है। इस वंश का राज्य मध्य एशिया के वाकाटक (Vakataka) प्रदेश पर रहा। इस वंश के सम्राट् परवरसेन प्रथम (Pravarasena) ने बुन्देलखण्ड से लेकर दक्षिण में हैदराबाद तक राज्य किया। विष्णु पुराना अंग्रेजी पृ० 382 लेखक विल्सन लिखता है कि “भविष्य में होने वाले पौरव (जाट) वंश के 11 राजाओं का शासन 300 वर्ष रहकर समाप्त हो जायेगा तब किलकिल यवन राज्य करेंगे जिनका सम्राट् विन्ध्यशक्ति नामक होगा। इस वंश के 10 राजा 106 वर्ष राज्य करेंगे।” यह किलकिल जाटवंश है और इनका सम्राट् विंध्यशक्ति भी जाट था। इसका प्रमाण यह है कि इस वंश के विवाह शादी के सम्बन्ध जाट धारण गोत्र के गुप्तों और भारशिव एवं टांक/तक्षक जाटों के साथ रहे। (बी० एस० दहिया, जाट्स दी एन्शन्ट रूलर्ज, पृ० 284)।
“ततः किलकिलेभ्यश्च बिन्ध्यशक्तिर्भविष्यति” वायु पुराण 258, ब्रह्माण्ड पुराण 178 के
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-248
- 1. पाण्डवों की दिग्विजय में अर्जुन ने उत्तर दिशा के अनेक देशों के साथ कालकूट (कालखण्डे) देश को भी जीत लिया था (महाभारत सभापर्व, अध्याय 26)। यह कालकूट देश चीनी तुर्किस्तान में था जिस पर कालखण्डे गोत्र के जाटों का राज्य था।
अनुसार वह राजा विंध्यशक्ति जो किलकिल के नाम से प्रसिद्ध था, किलकिला नदी के किनारे प्रतिष्ठित थी। यह नदी पन्ना नगर से नागौद जाते हुए लगभग 4 मील पर है। इनका शासनकाल ईस्वी पूर्व 248 वर्ष माना गया है। बुन्देलखण्ड पर इनका एकछत्र राज्य था। इस वंश की जि० मेरठ में यादनगर एक अच्छी रियासत थी। यहां के जाट अपने वंश किलकिल को कलकल बोलते हैं। अलीपुर, उपैड़ा, लुकलाड़ा में भी इसी वंश के जाट हैं। यह वंश केवल जाटों में ही है।[23] हरयाणा में दादरी तहसील में इमलोटा गांव कलकलवंशी जाटों का है। यह कलकलवंश चन्द्रवंशी है।
छोटी सादड़ी महाराज गौर का शिलालेख संवत 547 (491 AD) [24]
गौर लोगों का एक शिला लेख छोटी सादड़ी से दो मील के दूरी पर स्थित पहाड़ पर भ्रमर-माता के मंदिर में पाया गया था. इसकी लिपि ब्रह्मी और भाषा संस्कृत है. पंडित गौरी शंकर हीराचन्द ओझा ने उसे देखा है और नागरी-प्रचारिणी-पत्रिका, भाग 13, अंक 1 में ’गौर क्षेत्रिय वंश’ शीर्षक लेख भी लिखा है. उस घिसे हुए और पुराने लेख की पंक्तियों से इसका मूल पाठ यहाँ दिया गया है.
Sanskrit Text
- तस्या प्रणम्य प्रकरोम्यह x x जस्त्रम
- (कीर्तिशु) भां गुणा गणोघम (पींन्टपाणाम) (3)
- x x कुलो (भद्) वव (ञ् श) गौरा
- क्षात्रेप (दे) सतत दीक्षित x शौंडा ।
- x x x
- धान्य सोम इति क्षत्र गणस्य मध्ये (4)
- ... ... ...
- यो राज्यवर्द्धण (न) गुणै कृत नाम धेयः
- x x x
- जातः सुतो करि करायत दीर्घ बाहु ।
- नाम्ना स राष्ट्र इति प्रोद्धत पुन्य (पय) कीर्ति (6)
- सोयम यशो भरण भूषित सर्व गात्रः
- प्रोत्फुल पद्मः ......तायत चारु नेत्रः ।
- दक्षो दयालु रिह शासित शत्रु पक्षः ।
- क्षमां शासति ....यश गुप्त इति क्षितीन्दुः (8)
- तेनेयं भूतधात्री क्रतु मिरिहचिता (पूर्व) श्रंगेव भाति
- प्रासादे रद्रि तुंगैः शशिकर वषुषैः स्थापितेः भूषिताद्य
- नाना दानेन्दु शुभ्रैर्द्विजवर भवनैर्येन लक्ष्मीर्व्विभक्ता ।
- x x x स्थित यश वषुशा श्री महाराज गौरः (11)
- यातेषु पंचसु शतेष्वथ वत्सराणाम्
- द्वे विंशतीसम धिकेषु स सप्तकेषु ।।
- माघस्य शुक्ल दिवसे त्वगमत्प्रतिष्ठाम् ।
- प्रोत्फुल्ल कुन्द धवलोज्वलिते दश म्याम् (13)
इन श्लोकों में दो प्रार्थना सम्बन्धी श्लोक हैं. शेष में बताया गया है - महाराज धान्यसोम क्षत्रिय लोगों में प्रसिद्ध राजा थे. उनके पीछे राज्यवर्धन हुये. राज्यवर्धन के पुत्र राष्ट्रों में राष्ट्र-नायक हुये. उनका पुत्र यशगुप्त हुआ. उन गोर नरेश ने संवत 547 माघ सुदी दसमी (ई. 491) को अपने माता-पिता के पुण्य (स्मृति) के निमित्त देवी का मंदिर बनवाया. इस लेख से स्पष्ट है कि छ्ठी शताब्दी में गोरा लोग छोटी सादड़ी में राज करते थे.
डॉ गोपीनाथ शर्मा[25] पर इस शिलालेख के बारे में लिखते हैं कि छोटी सादड़ी जिला चितोडगढ़ का भ्रमरमाता का 17 पंक्तियों का लेख पांचवीं शादी की राजनीतिक स्थिति को समझाने में सहायक है. इसमें गौरवंश तथा औलिकरवंश के शासकों का वर्णन मिलता है. गौर वंश के पुण्यशोभ , राज्यवर्धन, यशोगुप्त आदि शासकों तथा औलिकर वंश के आदित्यवर्द्धन के नाम उपलब्ध हैं. इन शासकों का राज्य चित्तोड़ क्षेत्र तक तथा निकट वर्ती भागों में होने की संभावना इस लेख से प्रमाणित होती है. गौर वंशीय शासकों द्वारा यहाँ माता का मंदिर बनवाया गया जिससे इनकी शाक्त-धर्म के प्रति भक्ति होना दिखाई देता है. प्रस्तुत लेख में अपराजित राजपुत्र गोभट्टपादानुध्यात् पंक्ति बड़े महत्व की है. 'राजपुत्र' शब्दों से किसी भी सामंत का किसी शासक के प्रति सेवाभाव होना प्रमाणित होता है.
नोट - 1. x x किल राज्य जित प्रतापो वाक्य पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। इसमें अस्पष्ट शब्द 'किल' होना चाहिए। अगर ऐसा है तो किलकिल राज्य का उल्लेख है। किलकिल एक जाट वंश है।
2. भ्रमर-माता या भवर माता का संबंध भव नाग (290-315 AD) से होना चाहिए।
3. भवारा गोत्र के जाट भी छोटी सादड़ी, चितोडगढ़ में रहते हैं।