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Thread: Research on history of Jat clans

  1. #901
    History of Khanda Jat clan

    Khanda (खाण्डा) Khandia (खाण्डिया) Khanda (खन्दा) is a gotra of Jats found in Madhya Pradesh and Uttar Pradesh in India and Pakistan. Khundi/ Khandya Baloch Jat clan is found in Afghanistan.

    We know as per Jat historians that This gotra started after people who always kept sword (khanda) with them. People of Khandavavana were also called Khanda. Khanda is the name of a village also. (Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas, p. 234 )

    We have researched further and found that Khandu (खंडु) is a place name mentioned by Panini under Suvastvadi (सुवास्त्वादि) (4.2.77) group. (KhanduKhandava) (V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.508)
    Laxman Burdak

  2. #902
    History of Hudda Jat clan

    हुड्डा गोत्र का इतिहास

    हुड्डा गोत्र का इतिहास जाट-रत्न [1] में प्रकाशित हुआ है. सांघी गाँव के डालाण पाने के भाट पँ. ओमप्रकाश के अनुसार हुड्डा गोत्र सूर्यवंशी है. इनके पूर्वज चौहान वंश में अग्र नाम के व्यक्ति थे. अग्र के पुत्र उदासीह थे जिनसे हुड्डा (ऊदा) गोत्र का प्रचलन हुआ. इनका निवास प्रारंभ में अलतकुण्ड (साम्भर) में था जहाँ से निकल कर इन्होने गढ़रेहड़ा (गोगामेड़ी) गाँव बसाया जहाँ गोगापीर का मेला लगता है. गढ़रेहड़ा से चलकर ये चित्रकूट बसे फिर वहां से छोड़ कर राजस्थान के जैसलमेर में चले गए. कुछ समय जैसलमेर रहकर अजमेर आ गए. परिवार बढ़ने से उदयसिह परिवार एवं पुत्र हरडा सहित घुसकानी गाँव में 'देववाला' तालाब के किनारे 'खुजाटी खेड़ा' गाँव बसाया. उदा की पत्नी का नाम घुमानी था जिसके नाम पर गाँव का नाम घुसकानी पड़ा. घुसकानी की नींव संवत 1230 (सन 1177 ) को रखी गयी थी. घुमानी हुड्डा गोत्रीय लोगों की दादी कहलाई तथा उसके पति उदा (हुड्डा) के नाम पर गोत्र का नाम हुड्डा पड़ा. इसके पांच साल बाद घुसकानी के एक कि.मी. उत्तर की तरफ विक्रमी संवत 1235 (सन 1182 ) में हुड्डा के पुत्र हरडा के चचेरे भाई फ़तेह सिंह ने खिडवाली गाँव बसाया. फ़तेह सिंह के दूसरे भाई ने यमुना की तरफ बल्लभगढ़ के पास दयालपुर गाँव बसाया.


    सीकर जिले की फतेहपुर तहसील का गाँव हुडेरा हूडा गोत्र के जाट ने बसाया था.


    पंडित अमीचन्द्र शर्मा[2]ने हुड्डा गोत्र का इतिहास और वंशावली निम्नानुसार दी है: जिला रोहतक में हुड्डा गोत्री जाटों के 24 ग्राम हैं। उनमें सांघी, खड़वाली, कलोई ये 3 ग्राम मुख्य हैं। सांघी में चौधरी मातूराम प्रधान आर्यसमाजी के घर मुझे गरीबाबाद जिला दिल्ली का रहने वाला भोला राम भाट मिला था। मैंने सांघी के हुड्डा गोत्री जाटों की वंशावली उसकी बही से लिखी है। पृथ्वीराज चौहान के पुत्र हुये रोड़, उसके पुत्र हुये भोलण, उसके पुत्र हुआ हुड्डा, उसका पुत्र हरड़ा। हरड़ा ने पंघाल गोत्री सुखा जाट की पुत्री नंदोदेवी से कराव कर लिया। तब से हरड़ा चौहान संघ से अलग हो गया तथा पुनः जाट संघ में सामिल हो गया। चौहान संघ मुख्यत: जाट गोत्रों से ही बना था।


    हरड़ा का पुत्र अल्ली हुआ, उसका पुत्र गेगला हुआ जिसने सांघी गाँव बसाया। गेगला का पुत्र दाहड़ हुआ, जिसका पुत्र देडू हुआ, जिसका पुत्र बीसल, बीसल का पुत्र धर्मसी, धर्मसी के दो पुत्र हुये 1. गांधरे, 2. लेखू । लेखू का पुत्र डालू हुआ जिसके नाम पर सांघी ग्राम में डाल्याण पान्ना (मुहल्ला) विख्यात है। गांधारे का पुत्र बोड़ा हुआ जिसके नाम पर सांघी गाँव में बोड़ान पान्ना प्रसिद्ध है।


    पृथ्वीराज चौहान से डालू और बोड़ा की वंशावली इस प्रकार है: 1. पृथ्वीराज चौहान, 2. रोड़, 3. भोलण, 4. हुड्डा, 5. हरड़ा 6. अल्ली 7. गेगला (जिसने सांघी गाँव बसाया 1263ई.), 8. दाहड़ – जस्सू, 9. देडू 10. बीसल, 11. धर्मसी, 12. गांधरे – लेखू, 13. डालू – बोड़ा

    References

    1.
    जाट-रत्न:फरवरी 2011, पृ. 29 -30,

    2. Jat Varna Mimansa (1910) , Author: Pandit Amichandra Sharma, Published by Lala Devidayaluji Khajanchi, pp.8-9
    Last edited by lrburdak; July 22nd, 2017 at 09:46 PM.
    Laxman Burdak

  3. #903
    History of Ghanghas Jat clan

    According to Bhim Singh Dahiya[1] this is a rare name but fortunately, Priscus mentioned a king of white Hunas, as Kong Khas, who made himself lord of Sogdiana in 356 AD and whose brother clans, crossed the Don River in 374/375 AD, as per Franz Altheim, the German Scholar. [2] This king Kangkhas, certainly was a Khangas Jat. Kung-Kas was a son of Kidara, which is improvable - the clan of son can not be different from the clan of the, father, unless, both father and son, founders of new clans. The Sassanid emperor of Iran, Piroz, promised to marry his sister to Kung-Khas.[3] But he broke the promise and the result was in which the Persians were summarily defeated. Piroz was taken prisoner and was released only after pledging his son Kawadh, as hostage and paying a large sum of gold coins as tribute. Kung-Khas restruck the tribute coins with his own name, and it is these coins, inter alia, which through light on the Khangas emperor in 4th century AD. Tribes and Castes names them as Khung as.[4]

    Thakur Deshraj
    [5] writes that Ghanghas Jats had an independent state in Dhanana. This state had 900 sawars always ready for war. In their neighbourhood there was a Rajput village named Bapora. Bapora Rajputs had accepted paying tax to Delhi Badshah but Ghanghas Jats of Dhanana did not accept this proposal of paying any tax to the Badshah. Thakur Deshraj has mentioned about a song prevalent in the area which reveals this fact and is as under:


    हरियाणा के बीच में एक गाँव धणाणा
    सूही बांधे पागड़ी क्षत्रीपण का बाण ।।
    नोसै नेजे भकड़ते घुड़ियन का हिनियाना ।
    तुरई टामक बाजता बुर्जन के दरम्याना ।।
    अपनी कमाई आप खात हैं नहीं देहि किसी को दाणा ।
    बापोड़ा मत जाणियो है ये गाँव धणाणा ।।
    Last edited by lrburdak; July 13th, 2017 at 09:31 AM.
    Laxman Burdak

  4. #904
    History of Ghanghas Jat clan (Contd)

    घन घस गोत्र का इतिहास


    पंडित अमीचन्द्र शर्मा[6]ने घन घस गोत्र का इतिहास और वंशावली निम्नानुसार दी है:

    घन घस - [p.10] जिला हिसार में धनाणा जाटों का बड़ा गाँव है। यहाँ जाटों का घन घस गोत्र है। हिसार की तहसील भिवानी में जाटू गोत्री राजपूतों का एक बड़ा गाँव कैरू है। कैरू के राजपूत और धनाणा के घंघस जाट 25 वीं पीढ़ी ऊपर एक हो जाते हैं। कैरू ग्राम के बुजुर्ग ठाकुर अगड़ी सिंह ने मुझे वंशावली लिखाई है। उसने मुझे यह भी बताया कि इस समय के धनाणा गाँव के जाटों से 24 वीं पीढ़ी में मिलता हूँ। जिला हिसार तहसील भिवानी के ढ़ानी माहू के बुजुर्ग राजपूत ठाकुर रणजीत सिंह ने भी मुझे बताया कि इस समय के धनाना गाँव के जाटों से 24 वीं पीढ़ी में मिलता हूँ। अब हम कैरू ग्राम के ठाकुर अगड़ी सिंह की वंशावली लिखकर घंघस गोत्र का वर्णन करेंगे।

    जयपुर रियासत के शेखावाटी भाग में गूगौर और बागौर नाम के दो गाँव थे। इनके स्वामी जयपरतनामी थे।

    जयपरतनामी के 4 पुत्र हुये 1. जाटू, 2. सतरोल, 3. राघू, और 4. जरावता

    जाटू का विवाह सिरसा नगर के सरोहा गोत्री ठाकुर की पुत्री के साथ हुआ। जाटू के दो पुत्र हुये पाड़ और हरपाल। पाड़ ने राजली ग्राम बसाया जो अब जिला हिसार में पड़ता है।

    [p.11] राजली सारा जाटों का गाँव है जिसके स्वामी भी जाट हैं। हरपाल ने गुराणा गाँव बसाया जो राजली के पास ही है। यह ग्राम भी जाटों का है।

    चेतंग नदी, जो यमुना से निकलती है, के किनारे पर जाटों के अनेक गाँव हैं। इन गांवों को सतरोला ने बसाया इसीलिए इनको सतरौले बोलते हैं जिनमें सामिल हैं – नार नाद, भैनी, पाली, खांडा, बास, पेट वाड़, सुलचाणी, राजथल आदि प्रसिद्ध गाँव हैं। यहाँ सतरोला का खेड़ा भी है। इसीसे यह प्रमाणित होता है कि ये सारे गाँव सतरोला ने बसाये। इन सारे ग्रामों का स्वामी सतरौला था।

    तहसील हांसी जिला हिसार में जाटों का सिसाय नाम का बड़ा गाँव है। इस ग्राम के स्वामी जाट हैं। इस ग्राम को राघू का ग्राम कहते हैं। डाटा, मसूदपुरा आदि और भी कई गाँव हैं जिनको राघू के ग्राम कहते हैं।ये सारे गाँव सिसाय के पास ही हैं ये सब राघू के बसाये ग्राम हैं।

    पाड़ के 5 पुत्र हुये – 1. अमृता, 2. बसुदेव, 3. पद्मा, 4. अब्भा, 5. लौआ

    अमृता ने खूड़ाना गाँव बसाया जो रियासत पटियाला में है।

    बसुदेव ने भिवानी नगर बसाया जो अब हिसार की तहसील है। भिवानी से 7 कोस के अंतर पर बवानी खेड़ा और बलियाली ग्राम भी बसुदेव ने बसाये जो अब तहसील हांसी में हैं। बलियाली ग्राम के सारे राजपूत अब मुस्लिम हैं। बवानी खेड़ा के आधे राजपूत हिन्दू मत में

    (p.12) और आधे मुस्लिम हैं। भवानी नगर के सारे राजपूत हिन्दू मत के हैं।
    भिवानी, बवानी खेड़ा और बलियाली के राजपूत वसुदेव की संतान हैं। भारत में जब महम्मदी लोगों का राज्य हो गया था तब बलियाली ग्राम के सारे और बवानी खेड़ा के आधे मुस्लिम बन गए थे।

    पद्मा ने सवाणी और मंगाली ने दो ग्राम बसाये थे ये जिला हिसार में हैं। दोनों ग्रामों के राजपूत लोग मुस्लिम हो गए।

    अब्भा ने पातली और हिन्दू वाना ग्राम बसाये थे। पातली जिला गुड़गांव में है और सारा जाटों का है। हिंदवाना जिला हिसार में है और यह भी सारा जाटों का है।

    लौरा ने कूंगड़ और भैनी लुहारी और तिगड़ाना ये 4 गाँव बसाये। ये चारों ही गाँव जिला हिसार में हैं। इनमें से लुहारी और तिगड़ाना हिन्दू राजपूतों के हैं और कूंगड़ तथा भैनी दोनों जाटों के गाँव हैं।

    हरपाल के 5 पुत्र हुये – 1. राणा, 2. आब्भा, 3. महीपाल, 4. लाखा, 5 बीलण

    राणा की संतान के तीन ग्राम थे - 1. तलवंडी, 2. नगथला, 3. साली

    आब्भा की संतान के तीन गाँव थे - 1. कुलेरी, 2. सुनाणा, और 3. सवूर

    महिपाल की संतान के 4 गाँव थे - 1. बापोड़ा, 2. सिवाड़ा, 3. कैरू, और 4. बजीणा
    पीछे आकर महिपाल की संतान के 30 गाँव हो गए। इनको आजकल अमरान के गाँव कहते हैं। इनमें से बहुतसे जिला हिसार में हैं।

    [p.13]: लाखा के 4 गाँव - 1. मुंडाल, 2. मांडेरी, 3. जताई, 4. तालू । ये सारे गाँव जिला हिसार में और जाटों के हैं।

    बीलण की संतान का धनाना गाँव है। बीलण हरपाल का 5 वां पुत्र था। धनाना गाँव सारा जाटों का है और जिला हिसार में है । बीलण सरोया संघ से अलग होकर पुनः जाट संघ में सामिल हो गया। सरोया संघ भी जाट गोत्रों से मिलकर ही बना था। कहते हैं बीलण ने कीकर की एक मोटीसी लकड़ी घन के साथ घसाकर काट डाली थी इसलिए घनघस कहलाए। (नोट- भाट की यह व्याख्या मान्य करने योग्य नहीं है)।
    [p.14] बीलण और महिपाल परस्पर सहोदर भाई थे। वे हरपाल के पुत्र और राजा जाटू के पौत्र थे। महिपाल की संतान राजपूत संघ में ही रही। बीलण की संतान जाट संघ में आ गई।

    Last edited by lrburdak; July 22nd, 2017 at 08:25 PM.
    Laxman Burdak

  5. #905
    History of Ghanghas Jat clan (Contd)

    [p.15] महिपाल की वंशावली इस प्रकार है: महिपाल का पुत्र सनता हुआ, जिसके 3 पुत्र हुये - 1. मूड़, 2. काला, 3. बींदड़


    मूड़ का पुत्र जगसी हुआ जिसके 4 पुत्र थे - 1. अमर, 2. वीक्रमसी, 3. राजासी और 4. पनुआ
    अमर वजीणा ग्राम का स्वामी हुआ। वजीणा हिन्दू राजपूतों का ग्राम है हिसार जिले में।
    विक्रमसी की संतान का ग्राम नगाणा था जो हिसार में है और सब मुस्लिम राजपूत हैं।
    रामसी का दीनोद गाँव है जो जिला हिसार में है और हिन्दू राजपूतों का गाँव है।
    पनुआ का जोहड़ बापोड़ा ग्राम में है उसका कोई पुत्र नहीं था। बापोड़ा हिन्दू राजपूतों का गाँव है। यह जिला हिसार में है।


    अमर के 7 पुत्र हुये - 1. सौंत, 2. औछत, 3. ऊदला, 4. थीरी, 5. जौणपाल, 6. लाला, 7. गांगदे
    ठाकुर अगड़ीसिंह की वंशावली इस प्रकार है – 1. महिपाल 2. संतना 3. मूड़ 4. जगसी 5. अमर 6. सौंत 7. सलवान 8. बाला 9. अणदीत 10. राजा 11. गदाड़ 12. जैता 13. फूला 14. रूड़ा 15. हाथी 16. सेखू 17. राधा 18. जूजा 19. दरबारी 20. जगमाल 21. अमरू 22. किसना 23. शार्दूल 24. अगड़ीसिंह 25. सूजाद सिंह जवाहरजी फतेहसिंह


    जाटू वंशज महिपाल राजपूत क्षत्रिय से कैरू ग्राम के जाटू वंशज राजपूत क्षत्रिय अगड़ीसिंह तक वंशावली दी है। अगड़ीसिंह महिपाल से 24 पीढ़ी में है वह राजपूत है और कैरूँ ग्राम भी राजपूतों का है। धनाना ग्राम जाटों का है और बीलण की संतान का है। कैरू, वजीणा, ढानीमाहू,

    [p.16] दीनोद और बापोडा के राजपूत और धनाणा के जाट परस्पर भाई हैं। जब कैरू आदि के राजपूत क्षत्रिय हैं तो धनाना के घंघस जाट भी क्षत्रिय हैं।



    References

    1. Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers, p. 255


    2. Geschite der Hunnen


    3. ibid


    4. Vol. II, p. 377


    5. Jat History Thakur Deshraj/Chapter VII, 1934, p.221


    6. Jat Varna Mimansa (1910), Author: Pandit Amichandra Sharma, Published by Lala Devidayaluji Khajanchi, pp.10-16
    Last edited by lrburdak; July 13th, 2017 at 09:28 AM.
    Laxman Burdak

  6. #906
    Quote Originally Posted by lrburdak View Post
    History of Ghanghas Jat clan (Contd)

    मूड़ का पुत्र जगसी हुआ जिसके 4 पुत्र थे - 1. अमर, 2. वीक्रमसी, 3. राजासी और 4. पनुआ
    अमर वजीणा ग्राम का स्वामी हुआ। वजीणा हिन्दू राजपूतों का ग्राम है हिसार जिले में।
    विक्रमसी की संतान का ग्राम नगाणा था जो हिसार में है और सब मुस्लिम राजपूत हैं।
    रामसी का दीनोद गाँव है जो जिला हिसार में है और हिन्दू राजपूतों का गाँव है।
    पनुआ का जोहड़ बापोड़ा ग्राम में है उसका कोई पुत्र नहीं था। बापोड़ा हिन्दू राजपूतों का गाँव है। यह जिला हिसार में है।

    References

    1. Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers, p. 255


    2. Geschite der Hunnen


    3. ibid


    4. Vol. II, p. 377


    5. Jat History Thakur Deshraj/Chapter VII, 1934, p.221


    6. Jat Varna Mimansa (1910), Author: Pandit Amichandra Sharma, Published by Lala Devidayaluji Khajanchi, pp.10-16

    good to know information! :-)

  7. #907

    History of Jaglan Clan

    Local tradition says that there was a Rajasthani Jat with 'Chauhan' surname. He migrated to southern Haryana region few hundred years ago. He had two sons - Bhaina and Jugaa. Off springs of Bhaina came to be known as 'Bhayan' and Off springs of Jugga came to be known as 'Jaglan'. Given their same roots, Hindu Jats of Jaglan, Bhayan do not intermarry. Kalika Ranjan Qanungo [1] mentions about the village Naultha and the Jaglan clan:


    "A similar phenomenon of a tribal feud in which even aliens range themselves under one faction or another has not altogether disappeared in the Rohtak and Delhi [P.12] districts, where the country-side is divided into two factions - Dahiya and Ahulanas: "the Gujars and Tagas of the tract, the Jaglan Jats of thapa Naultha, and the Latmar Jats of Rohtak joining the Dahiyas, and the Huda Jats of Rohtak . . . joining the Ahulanas." [P.13]

    H.A. Rose[2] writes that Jaglan (जगलान), a tribe of Jats, found in Karnal. They are descended from Jagla, a Jat of Jaipur, whose shrine at Israna is worshipped by the whole thapa or group of 12 Jaglan villages which forms the barah of Naultha. Their ancestor is also worshipped at the village shrine called deh, which is always surrounded by kaim trees, and if a woman who has married into a Jaglan family, passes a kaimn tree (Stephegyne parvifolia), she always veils her face as if it were her older relative of her husband. In Jind the Jaglan are described as descendants of Jaga, founder of Jaglan in Hissar.


    जागलाण गोत्र का इतिहास

    पंडित अमीचन्द्र शर्मा[3]ने जागलाण गोत्र का इतिहास और वंशावली निम्नानुसार दी है:
    जागलाण गोत्र: [p.16] जींद रियासत में जींद नगर से 2 कोस दूरी पर जायलाल पुरा जिसका दूसरा नाम बड़ी छान है, जागलाण गोत्र के जाटों का एक ग्राम है जिसमें चौधरी इंद्राज नामके वृद्ध जाट रहते हैं उनको अपनी सारी वंशावली स्मरण है। [p.17]: उसी ग्राम में एक डूम का बालक है उसे भी जागलाण गोत्र के जाटों की वंशावली याद है। जागलाण गोत्र के जाटों के ओर भी गाँव हैं। जिला करनाल में नऊलथा नाम का गाँव भी जागलाण जाटों का है। बड़ी छान के जाटों का गोत्र जागलाण है। इनका बड़ा प्रख्यात जागल नामी हुआ है। उसके नाम पर उसकी संतान जागलाण कहलाई। चौधरी इंदराज जागल से 19 पीढ़ी पीछे हैं। जागल चौहान संघ में सामिल था और उससे प्रथक होकर जाट संघ में आ गया। चौधरी इंद्राज की वंशावली निम्नानुसार है:
    1. चाह, 2. चंद, 3. विजयराव, 4. थावर, 5. भीम, 6. जागल, 7. सहजू, 8. बैरछी, 9. रोम्मा, 10. कौरा, 11. दुनिअर, 12. खोखरा, 13. दफ़र, 14. रनमल, 15. वीरखान, 16. देसू, 17. गोकुल, 18. दिलावर, 19. नैन, 20. श्रीचंद, 21. मलूक, 22. सौंदा, 23. मसानिया, 24. इंद्राज
    चौधरी इंद्राज चाह से 24 और जागल से 19 पीढ़ी पीछे है। जागल तक चौहान कहलाते थे और जागल से जाट। चौहान संघ मुख्यत: जाट गोत्रों से ही बना था।


    बड़ी छान के जागलाण गोत्र का प्रथन निकास ददरेड़ा ग्राम का है और दूसरा निकास लुद्दस ग्राम का है जो अब हिसार जिले में है। चौहान क्षत्रिय हैं और जागलाण जाट भी क्षत्रिय हैं।

    नोट - एक पीढ़ी का काल 25 वर्ष मानते हुये जागल का काल 1910 ई. - (19x25=475) = 1435 ई. बनता है।

    एक अन्य सूत्र के अनुसार भयाण एवं जागलान जाट गोत्रों वत्स जाट गोत्र की शाखा चौहान जाटों के वंशज हैं। वत्स गोत्र के जाट वीरों का राज्य महाभारत काल में था और महाभारत युद्ध के बाद इनका राज्य भटिण्डा (पंजाब) क्षेत्र पर रहा, जिनका राजा उदयन था। इसी वत्स जाट गोत्र की शाखा चौहान जाट हैं। सातवीं शताब्दी में राजपूत संघ स्थापित होने पर जो चौहान जाट उसमें मिल गये वे चौहान राजपूत कहलाने लगे और जो उस संघ में न मिले वे चौहान जाट ही कहलाते रहे जो आज भी कई प्रांतों में विद्यमान हैं। इसी चौहान जाट गोत्र के दो प्रसिद्ध वीर भैया व जग्गा नामक हुए। उनकी प्रसिद्धि के कारण चौहान जाटों का एक संघ, भैया से भयाण तथा दूसरा संघ जग्गा से जागलान शाखा गोत्र प्रचलित हुए।

    References -
    1. History of the Jats:Dr Kanungo/Origin and Early History,p.12-13


    2. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/J,p.339


    3. Jat Varna Mimansa (1910), Author: Pandit Amichandra Sharma, Published by Lala Devidayaluji Khajanchi, pp.16-17
    Laxman Burdak

  8. #908
    "which is always surrounded by kaim trees, and if a woman who has married into a Jaglan family, passes a kaimn tree (Stephegyne parvifolia), she always veils her face as if it were her older relative of her husband. In Jind the Jaglan are described as descendants of Jaga, founder of Jaglan in Hissar.........as quoted by Sir Laxman "

    this is something interesting to know

  9. #909
    History of Sheoran clan

    Sheoran is a branch of Shivi Jats who ruled in Malwa and Rajasthan. When they moved from Malwa to Rajasthan, one group also moved to Neemrana, where they were found at the time of Emperor Humanyun.[1]

    According to the bard of this dynasty king Gaj of Ghazni had two sons named Mangal Rao and Masur Rao. Mangal Rao was the ruler of Lahore and Masur Rao of Sialkot. Foreign invaders drove both of them out of their kingdoms. Masur Rao fled away to the deserts of Rajasthan. He had two sons named Abhai Rao and Saran Rao. Descendants of Abhai Rao came to be called Bhurhya Bhatti and those of Saran Rao, Saran. Mangal Rao had six sons, named Mojam Rao, Gulrish, Moolraj, Sheoraj, Kewl Rao and Phul Rao. Descendants of Gulrish came to be called Gloraya or Kiliraya, those of Moolraj, Munda and those Sheoraj, Sheoran.[2]



    The Sheoran gotra is a big gotra having 52 villages in Luharu 25 in tehsil Badhra and teh. Charkhi Dadri and 25 big villages in Jind, known as 8 Khera. Other Villages Jodawali, Kardawan, Munnawali, Kinsrenti, Khunghai.


    Sidhanwa village in Tehsil Loharu, District Bhiwani is said to be central place from where they spread to other areas in Haryana. Sidhanwa Village is having both Dhankhar and Sheoran gotra populations and they have brotherhood relations. The village should find a rightful place in the Jat history as it is an originating place for one of the important clan i.e. Sheoran. Legend has it that there were two brothers Sheora and Sumra who were passing by the place where this village is situated now to find some greener pastures due to a severe drought in their village. The wheel of their bull cart got damaged and they had to stop there. Nearby there lived a Saint named Baba Sidh Nath who advised them to settle there and blessed them. Sheorans are now scattered over many villages but the main thrust is in this area in about 52 villages. There is a famous Dera in this village in the name of Baba Sidhnath and a huge Dharamshala has also been built (for the pilgrims from other villages and holding the bigger social congregations and Panchayats) with the donations received from devotees which include local politicians as well. These donations run in lakhs every year.

    Bhim Singh Dahiya[3] provides us list of Jat clans who were supporters of the Chauhan when they gained political ascendancy. The Sheoran clan supported the ascendant clan Chauhan and become part of a political confederacy.[4]



    References -

    1. Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers ( A clan study), p. 289


    2. Thakur Deshraj, Jat Itihas, p.596

    3. Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Appendices/Appendix I,p.316-17


    4. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/J,p.375-76
    Last edited by lrburdak; July 23rd, 2017 at 04:23 PM.
    Laxman Burdak

  10. #910

    History of Sheoran clan (Contd)

    शिवराण गोत्र का इतिहास: पंडित अमीचन्द्र शर्मा

    पंडित अमीचन्द्र शर्मा[1]ने शिवराण गोत्र गोत्र का इतिहास और वंशावली निम्नानुसार दी है: शिवराण गोत्र: [p.18]: रियासत नीमराना का स्वामी अति विख्यात संकटराव (1310 ई.) चौहान वंशी क्षेत्रीय हुये। संकट राव ने 120 वर्ष (?) की आयु में दूसरा विवाह नावाँ और कादमा ग्राम के क्षेत्रीय की पुत्री पवन रेखा के साथ करवाया था। पवन रेखा ने संकटराव से यह वचन लिया था कि आप की मृत्यु के पश्चात राज्य के स्वामी उसकी संतान ही होंगी।

    रानी पवन रेखा के 2 पुत्र हुये – 1 लाह , और 2 लौरे

    बड़ी रानी के 19 पुत्र हुये – 1 हरसराज, 2 ग्रहराज, 3 बहराज, 4 नलदूदा, 5 सीर, 6 पीथे 7 त्रानचंद, 8 त्रिलोकचंद, 9 मान, 10 खैणसी, 11 मैणसी, 12 सैंसमल, 13 खैरा, 14 काहूड़ासी, 15 बुक्कणसी, 16 विजयराव, 17 शिवराव, 18 राधाकृष्ण, 19 परमानंद

    संकट राव के देहांत के बाद दोनों रानियों की संतानों में राज्य के लिए संघर्ष हुआ। उस समय दिल्ली का बादशाह हुमायूँ (1508–1556)* था। उसकी आज्ञा से पवनरेखा के बड़े पुत्र

    *नोट - एक पीढ़ी के 25 वर्ष मानकर गणना करने पर रावसंकट का समय 1910 - (24x25 = 600) = 1310 ई. के करीब आता है। परंतु यह समय दिल्ली बादशाह हुमायूँ (1508–1556) का नहीं है जैसा कि पंडित अमीचन्द्र शर्मा ने ऊपर लिखा है। अर्थात रावसंकट इससे पूर्व में हुये हैं। यह काल अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.) का बनता है। इसमें अनुसंधान की आवश्यकता है।

    [p.19]: लाह को राज्य मिला। पवनरेखा ने बादशाह हुमायूँ की आज्ञा पाकर बड़ी रानी के 19 पुत्रों को देश निकाला दे दिया और वे देश के विभिन्न भागों में चले गए और बस गए।
    शिवराव ने बुड़ोली गाँव बसाया। वह चौहान संघ छोडकर पुनः जाट संघ में सम्मिलित हो गया। चौहान संघ मुख्यत: जाट गोत्रों से ही बना था। शिवराव की संतान शिवराण कहलाई। तहसील दादरी चरखी रियासत जींद में शिवराण गोत्र के 25 ग्राम हैं। उनमे मुख्य ग्राम बेरला है। लुहारु रियासत में नवाब साहिब शासन कर रहे थे वहाँ इस गोत्र के 25 ग्राम हैं। शिवराण गोत्र के जाट चौहान वंशी हैं।
    4 वर्ष के लगभग हुये कि बड़ी खोथ जिला हिसार में नंदराम और नानग भाट आए थे। उन्होने बड़ी खोथ के शिवराण गोत्र के जाटों की वंशावली सुनाई थी। बड़ी खोथ का सरस्वती राम नंबरदार शिवराव से 24 पीढ़ी पीछे हुआ है जिसकी वंशावली निम्नानुसार है:

    1 राव संकट (1310 ई.), 2 शिवराव (1335 ई.), 3 पीथा, 4 बाला, 5 उमरा, 6 रातू, 7 पून, 8 अंचल, 9 ?, 10 राणा, 11 रंतपाल,

    [p.20]: 12 अजनूपल्ल, 13 भालू, 14 मैनपाल, 15 जीतू, 16 सोभन, 17 मेघराज, 18 चंदू, 19 जगता, 20 फूल्लू, 21 सुखचंद, 22 उष्णाक, 23 रामलाल, 24 सरस्वतीराम (1910 ई.)
    यह वंशावली नानग और नंदराम भाट की बही से लिखी गई है। ये ग्राम श्यामपुरा, थाना सतनाली, तहसील नारनौल रियासत पटियाला के हैं।

    अब हम जिला रोहतक के खेड़ी सुलतान नामक ग्राम के चौहान वंशी राजपूत क्षत्रियों की वंशावली लिखते हैं:

    1 संकटराव, 2 हरसराज, 3 विजयराज, 4 पद्मपाल, 5 जगतू, 6 सूढ़े, 7 मलसी , 8 अम्बा, 9 आल्हाणसी, 10 भरेपाल, 11 पिचाण 12 मानकचन्द, 13 वाद्दा, 14 चन्दा, 15 नरसिंह 16 राम सिंह, 17 काशीराम, 18 इंद्रभान, 19 अमरसिंह, 20 सेवासिंह, सुलतानसिंह
    हरसराज और शिवराव संकटराव के पुत्र थे। हरसराज की संतान के खेड़ी सुलतान के ठाकुर सेवा सिंह और ठाकुर सुलतान सिंह राजपूत क्षत्रिय हैं और राव संकट राव से 20 वीं पीढ़ी

    [p 21]: पीछे हुये हैं। बड़ी खोथ के चौधरी सरस्वती राम रावसंकट से 24 वीं पीढ़ी पीछे हुये। ये जाट क्षत्रिय हैं।

    ठाकुर देशराज का मत

    ठाकुर देशराज लिखते हैं कि राज्य जींद में इस वंश के 25 गांव हैं और लुहारू स्टेट के 52 गांव पूरे शिवराण गोत्र जाटों के हैं। हिसार जिलें में भी अनेक गांव है। भाट लोगों ने लिखा है कि शिवराव नामी राजपूत ने जो अब से 24 पीढ़ी पहले हुआ था, जाटनी से शादी कर ली, इसलिए उसकी सन्तान के लोग शिवराण कहे जाते हैं। इससे भी बड़ा गपोड़ा और क्या होगा कि एक ही आदमी के सिर्फ चौबीसवीं पीढ़ी में सैकड़ों गांव बस गए! हमारा मत है जो कि बिलकुल सही है कि शिवराण-जाट शिवि अथवा सिवोई समूह के जत्थे में से हैं, जो कि शिवि गोत्र अथवा शैव्य जाटों के भाई-बन्धु हैं। मालवा से हटकर जिस समय ये लोग राजस्थान में गए, उस समय इनका एक दल नीमराणे के आस-पास भी पहुंच गया और हुमायूं के समय तक उनका छोटा-मोटा राज इस स्थान पर रहा।[2]

    References 1.
    Jat Varna Mimansa (1910), Author: Pandit Amichandra Sharma, Published by Lala Devidayaluji Khajanchi, pp.18-21

    2. जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ-596
    Last edited by lrburdak; July 23rd, 2017 at 04:28 PM.
    Laxman Burdak

  11. #911

    History of Sheoran clan (Contd)

    श्योराण जाट गोत्र का इतिहास: भलेराम बेनीवाल

    भलेराम बेनीवाल [1] के अनुसार यह जाटों का प्राचीन गोत्र है. महाभारत में इनका उल्लेख सूर्यासर के रूप में हुआ है. शूर राजा पांडव राजा युधिष्ठिर के यज्ञ में शामिल हुये थे. भारतीय साहित्य में इनका नाम शूरा लिखा है. गुप्त काल में शूर सेन लिखा है. ईरान के रोअन्दिज नामक प्रान्त पर श्योराण जाटों का राज्य था. श्योराण कबीला आज भी वहां पर आबाद है. हुमायुंनामा के अनुसार श्योराण गोत्र के जाटों का मालवा में राज्य था. वहां से किसी कारण राजस्थान के नीमराणा के स्थान पर पहुंचे तथा राज्य स्थापित किया.


    इस गोत्र के बारे में कहावत है कि श्योराण जाटों का राजपूतों से झगड़ा होता रहा और ये आगे बढते रहे. इसी प्रकार ये लोग लोहारू क्षेत्र में पड़ने वाले गांव सिधनवा में पहुंचे और वहीं बस गये. यहीं के महाराज ने इनको कुछ एरिया दे दिया. जिसे बाद में इन्होने रियासत के रूप में स्थापित किया, लुहारूदादरी में अपनी बढोतरी की और धीरे-धीरे लुहारू में ५० गांव व दादरी में २५ गांव में फ़ैल गये. आज श्योराण गोत्र के दादरी में ४७ गांव तथा लुहारू में ७० गांव हैं. सिधनवाचहड कला इस गोत्र के प्रधान गांव हैं.


    श्योराण खाप चौरासी की पंचायत संगठन इस बात का प्रतीक है. इस खाप के फ़ैसलों को राजाओं ने भी माना है. एतिहासिक तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि दिल्ली के जाट सम्राट अनंगपाल तोमर की पुत्री रूकमणी के दो पुत्र थे-एक पृथ्वी राज व दूसरा चाहर देव. पृथ्वीराज का दिल्ली पर राज्य रहा. गौरी से परास्त होने के बाद पृथ्वीराज चौहान का वध कर दिया. गौरी ने चाहर देव के लड़के विजयराज को कर के बदले राज्य सौंप दिया. विजयराज के दो पुत्र थे- श्योरा (सोमराव) तथा दूसरा समराव (श्युमरा). इन्होने भी गौरी के साथ लड़ाई में भाग लिया. युद्ध हारने के बाद ये दोनों जंगलों में चले गये और भिवानी के पास सिधनवा गांव में सिद्ध तपस्वी के डेरे पर शरण ली. फ़िर जंगल साफ़ करके वहीं पर श्योराण खाप के वर्तमान गांवों की स्थापना की.

    Reference - 1. भलेराम बेनीवाल: जाट यौद्धाओं का इतिहास, पृ. 706-707.
    Laxman Burdak

  12. #912
    History of Panghal Clan

    B S Dahiya[1] writes: Pangal are mentioned in Markandeya Purana and also by Varahamihira as Pingalaka.[2] By removing the suffix 'ka' we get the correct clan name as Pingala or Panghal. They have no connection with wings (Pankha) of any bird, as sugsested by Ibbetson.[3] They are now found in Mahindergarh dlstrict of Haryana.


    They have been mentioned in Shalya Parva, Mahabharata/Book IX Chapter 44 in shloka 96 as Pingaksha.[4]

    They are mentioned in Markandeya Purana and also in Varahamihira as Pingalaka.[5] 16] They are mentioned in the Satapatha Brahmana as Paingya. [7] [8]



    Jat clans as described by Megasthenes also includes this clan. Megasthenes writes that after Taxila, Then succeeds a level tract of country known by the general name of Amanda (Manda), Whereof the tribes are four in number inhabiting the area and these are The Peucolaitae (Pangal), Arsagalitae (Asiagh), Geretae (Getae), Asoi (Asiagh)

    H.A. Rose[9] writes that the Bagri Jats have certain sections which might appear totemistic, but very rarely is any reverence paid to the totem. Such are :— Pankhal, peacock’s feather, is so called because a Dohan Jat girl had been given in marriage to one Tetha of Tosham. The couple disagreed and Tetha aided by the royal forces attacked the tribe and only those who had placed peacock’s feathers on their heads were spared.

    References

    1. Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Jat Clan in India,p. 267


    2. Brihat Samhita, IV, 26-27.

    3 Tribes & Castes, Vol. II.

    4. सुविभक्तशरीराश च दीप्तिमन्तः सवलंकृताः पिङ्गाक्षाः शङ्कुकर्णाश च वक्रनासाश च भारत (Mahabharata:IX.44.96)


    5. Brihat Samhita, IV, 26-27

    6. Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers, p. 267

    7. G.P. Upadhyayas Edition , vol I p.33

    8. Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers ( A clan study), p. 288


    9. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/J,p.376
    Laxman Burdak

  13. #913

    History of Panghal Clan (Contd)

    पंघाल गोत्र का इतिहास

    पंडित अमीचन्द्र शर्मा [1]ने लिखा है - [p.30]: पंघाल गोत्र के बड़े का नाम थीथा था जो चौहान संघ में था। चौहान संघ मुख्यतया जाट गोत्रों का ही संघ था। वह सांभर के आस-पास किसी ग्राम में रहता था, वहाँ से चलकर तोशाम जिला हिसार (अब भिवानी जिले) में एक टूण गोत्री जाट के घर रहने लगा। थीथा और उस जाट में प्रेम हो गया। थीथा सुंदर और प्रवीण था।


    [p.31]: वह जाट वहाँ का नंबरदार था। वह औरंगजेब (1618 – 1707) को ग्रामकर (माल) भरने दिल्ली जाया करता था तब वह थीथा को भी साथ लेजाया करता था। बाद में जाट ने थीथा को ही अपना मुखिया बना लिया और अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। अब थीथा की दिल्ली में पहचान हो चुकी थी। जब जाट मर गया तो थीथा के साथ जाट के पुत्रों का विरोध हुआ। जाट के पुत्रों ने थीथा को मारना चाहा। थीथा की स्त्री को नाईन ने यह खबर देदी। थीथा ने दिल्ली जाकर बादशाह औरंगजेब की सहायता ली। बादशाह ने सेनापति भेजकर तूण जाटों पर हमला कर दिया जिसमें कुछ तूण जाट मर गए और कुछ भाग गए।

    [p.32]: थीथा ने अपने घर की रक्षा के लिए मोर पक्षियों के पंख का चिन्ह कर दिया था इसलिए थीथा के घर को पंखालय कहा गया और उसकी सन्तानें बाद में पंखाल बोली जाने लगी जिसका रूपांतर पंघाल हो गया। पंघाल जाटों के संघ का वही गोत्र है जो चौहान संघ का पंघाल है। यह विवरण तालू ग्राम के चौधरी पखिरियाराम के पुत्र रामलाल ने लिखाया। वह पंघाल जाट है।


    नोट - पंडित अमीचन्द्र शर्मा ने ऊपर टूण गोत्र का उल्लेख किया है। टूण गोत्र जाटों में नहीं होता है। यह संभवत: दूण या दुहण होना चाहिए। भाट द्वारा थीथा के 'मोर पक्षियों के पंख का चिन्ह' का प्रयोग करना यह बताता है कि वह मौर या कोई नागवंशी वंश से होना चाहिए।

    References 1. Jat Varna Mimansa (1910) by Pandit Amichandra Sharma, p.30-32
    Laxman Burdak

  14. #914
    History of Nain, Neol, Dadiya and Kothari Jat clans

    ठाकुर देशराज [1] ने लिखा है ....चौधरी हरिश्चंद्र नैण जी ने अपने वंश का परिचय देने और अपने जीवन पर प्रकाश डालने के लिए “मेरी जीवनी के कुछ समाचार”, "संक्षिप्त जीवनी", और “मेरी जीवन गाथा” नामों से तीन प्रयत्न किए गए हैं। यह प्रयत्न जिस उत्साह से आरंभ किए गए हैं उससे पूरे नहीं किए गए हैं। मानो यह काम इन्हें बोझिल सा जंचा। ठाकुर देशराज को उनका यह अधूरा प्रयास भी बहुत सहारा देने वाला सिद्ध हुआ। उनकेलेखानुसार उनका गोत्र नैण है। जो उनके पूर्व पुरुष नैणसी के नाम पर प्रसिद्ध हुआ। नैण और उनके पूर्वज क्षत्रियों के उस प्रसिद्ध राजघराने में से थे जो तंवर अथवा तोमर कहलाते थे। और जिनका अंतिम प्रतापी राजा अनंगपाल तंवर था।

    ठाकुर देशराज [2] ने लिखा है ....तंवरों ने दिल्ली को चौहानों के हवाले कर दिया था क्योंकि अनंगपाल तंवर नि:संतान थे, इसलिए उन्होने सोमेश्वर के पुत्र पृथ्वीराज चौहान, जो कि उनका दौहित्र था, को गोद ले लिया था। हांसी हिसार की ओर जो तंवर गए थे उनमें से कुछ ने राजपूत संघ में दीक्षा लेली और जो राजपूत संघ में दीक्षित नहीं हुये वे जाट ही रहे। नैणसी और उनके तीन भाई नवलसी, दाडिमसी, कुठारसी भी जाट ही रहे। ये चार थम्भ (स्तम्भ) कहलाते हैं। नैणसी के वंशज नैण, नवलसी के न्योल, दाडिमसी के दड़िया, और कुठारसी के कोठारी कहलाए। चौधरी हरिश्चंद्र जी का कहना है कि मैंने इन तीन गोत्रों को पाया नहीं। ठाकुर देशराज ने इनमें से न्योल गोत्र के जाट खंडेला वाटी में देखे हैं। वहाँ के लोगों का कहना है कि दिल्ली के तंवरों में से खडगल नाम का एक राजकुमार इधर आया था उसी ने खंडेला बसाया जो पीछे कछवाहों के हाथ चला गया।


    यह उल्लेखनीय है कि जाट लैंड पर इन चारों जाट गोत्रों - नैण, न्योल, दड़िया और कोठारी की जानकारी उपलब्ध है। कृपया इन गोत्रों की लिंक पर क्लिक करें।


    References -

    1. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p. 7

    2. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p. 9
    Last edited by lrburdak; August 5th, 2017 at 09:05 AM.
    Laxman Burdak

  15. #915
    History of Punia clan : New facts

    चौधरी कन्हैयालाल पूनियाने लिखा है कि... लगभग 900 साल पहले श्री उतगर के दो संतान पैदा हुई जिसमें से एक का नाम बाढ़ तथा दूसरे का नाम मेर था। बाढ़देव का जन्म विक्रम संवत 1154 (1097=ई.) कार्तिक सुदी पूर्णिमा को पुणे महाराष्ट्र में हुआ। बाढ़देव ने विक्रम संवत 1184 (1127=ई.) आषाढ़ सुदी नवमी वार शनिवार को बाड़मेर की स्थापना की। बाढ़ और मेर दोनों भाईयों के नाम पर आज के बाढ़मेर का नामकरण हुआ। कालांतर में दोनों भाईयों के झगड़े का फायदा उठाकर सोढ़ा राजपूतों ने उस पर कब्जा कर लिया। बाढ़देव उत्तर भारत की ओर प्रस्थान कर गए। उनकी संताने पूनिया कहलाई और मेर महाराष्ट्र में मेरठा (मराठा) के नाम से जाने गए।


    बाढ़देव बाड़मेर से विक्रम संवत 1235 (1178=ई.) में पुष्कर आए और आगे जीनमाता के स्थान पर हर्ष के पहाड़ पर शिव मंदिर बनवाया। जीनमाता ने बाढ़देव को वरदान स्वरूप एक पत्थर शीला दी और कहा कि यह जहां गिरे वहीं पर नीम की हरी शाखा काटकर डालना वह संजीवनी हो जाएगी तथा वहीं आपका राज्य सदा-सदा के लिए कायम रहेगा। पूनिया गोत्र आज भी उस शीला का आदर करता है। उस पर स्नान नहीं करते।


    विक्रम संवत 1245 (1188=ई.) मिति चैत्र सुदी 2 वार शनिवार को पूनिया गोत्र के आदि पुरुष बाढ़देव ने झांसल में अपने प्रसिद्ध गणराजय की नींव रखी। विक्रम संवत 1245 से 1822 के राठोडों के साथ राजीनामे तक पुनिया आज के हिसार-पिलानी-चुरू-तारानगर एवं भादरा तक काबिज रहे। इस बीच राज्य कायम रखने के समकालीन संघर्षों में पुनियों की राजधानी झांसल से लूदी में तब्दील करनी पड़ी। पडोस के दईया सरदार दीर्घपाल पर विजय, रठौड़ों और गोदारों की संयुक्त सेना के साथ लगातार संघर्ष , जबरिया राठौड़ शासक रायसिंह द्वारा धर्मभाई बनाने का बुलावा देकर धोके से पूनिया सरदारों चेचू और खेता को अपने राजगढ़ वाले किले की नींव में दबाने का बदला राठौड़ रायसिंह के वध से लेने आदि की ऐतिहासिक घटनाएँ हुई। इस कालावधि में कान्हादेव पुनिया गोत्र का इतिहास प्रसिद्ध योद्धा बनकर उभरा जिसने लूदी में अपना स्वतंत्र गढ़ निर्माण किया। लगभग 360 गांवों का यह पूनिया गणराज्य अंतत: जोधपुर शासन के विस्तार हेतु कांधल और बीका तथा जाट गणराज्यों की फूट का शिकार हो गया। (Reference :Hanumangarh Jila Jat Samaj Smarika-2010,p.16-17)
    Laxman Burdak

  16. #916
    I am unable to read Hindi, but find the posts written in English somewhat interesting. I do need to point out that in terms of history, the Jats have several different origins, and they have genetic links to many other ethnic groups of the Indian subcontinent. Consequently, the Jats do not occupy a unique position in the vast genetic pool of the Indian subcontinent. The following article may be of some interest:

    http://journal.frontiersin.org/artic...017.00121/full

    David Mahal

  17. The Following User Says Thank You to Dgmjat For This Useful Post:

    lrburdak (September 25th, 2017)

  18. #917
    It is wonderful article and confirms the Jat Federation theory of Origin of Jats. It may be seen here - Y-STR Haplogroup Diversity in the Jat Population Reveals Several Different Ancient Origins David G. Mahal and Ianis G. Matsoukas
    Last edited by lrburdak; September 26th, 2017 at 08:40 PM.
    Laxman Burdak

  19. The Following User Says Thank You to lrburdak For This Useful Post:

    Pratapdhewa (November 7th, 2017)

  20. #918
    History of Jhuria clan

    झूरिया गौत्र का इतिहास

    झूरिया गौत्र का आंशिक इतिहास प्रो. हनुमानाराम ईसराण (Mob: 9414527293) द्वारा उपलब्ध कराया गया है। ये तथ्य बही भाट श्री कानसिंह गांव ढेंचवास, पोस्ट:चौसाला वाया डिग्गी, तहसील: मालपुरा, जिला:टोंक (राजस्थान) की बही में अभिलिखित है।


    झूरिया का गौत्रचारा



    झूरिया गोत्र की वंशावली:


    झूरिया गोत्र के प्रथम महापुरुष/संत पुरूष श्री महिदास जी हुए।
    महिदास जी के 65 पीढ़ी उपरांत श्री पुरूषोतम नामक सिद्ध पुरुष हुए।
    श्री पुरूषोत्तम जी के चार पुत्र हुए जिनसे निम्नानुसार जाट चार गोत्र प्रसिद्ध हुये :-
    1. ज्ञानाराय ----ज्याणी


    2. जोरराज----झूरिया


    3. हेमराज----हुड्डा


    4. ईसरराय---ईसराण


    महिदास से जोरराज तक वंशावली:


    1. महिदास (50 ई.) → → → → → → 66. पुरूषोतम → 67. जोरराज (झूरिया गोत्र के प्रवर्तक)

    मरडाटु के झूरिया

    लेखक दिनांक 29 अप्रैल 2018 को गांव मरडाटु बड़ी गए। वहाँ पर झूरिया गोत्र के बड़वा मोतीसिंह राव (मोबा:9928887946) निवासी बरना, तहसील किशनगढ़, जिला अजमेर, से मुलाक़ात हुई। उन्होंने झूरिया गोत्र का मौखिक इतिहास निम्नानुसार बताया। विस्तार से जानकारी वे बही देखकर बता सकेंगे।


    ज्याणी, झूरिया, हुड्डा और ईसराण गोत्र में भाई चारा है यह आपस में शादी नहीं करते हैं।


    झूरिया गोत्र की माता: कालका कोलकाता


    झूरिया गोत्र का ब्राह्मण: पारिख


    झूरिया गोत्र का आदिदेव: शिव, गोसाई जी (जुन्जाला, नागौर)


    झूरिया गोत्र का वंश : सूर्यवंश



    झूरिया गोत्र का मुख्य गाँव मरडाटु बड़ी है। यहीं से ये लोग आस-पास के गांवों में फैले हैं। इनका निकास मथुरा से संवत 1172 (1115 ई.) में हुआ। यहां से चलकर गांव सोनियासर में आकर आबाद हुए। उस समय मोहम्मद गौरी का राज्य दिल्ली में था।


    सोनियासर से आकर मरडाटु गांव संवत 1515 (1458 ई.) में महराम झूरिया ने बसाया। इन्हीं के नाम पर गाँव का नाम मरडाटु रखा गया जो वर्तमान मरडाटु बड़ी और मरडाटु छोटी के बीच में स्थित टीले पर बसा था जो अब उजाड़ हो गया है। झूरिया जाट वर्तमान में मरडाटु बड़ी में संवत 1975 (1918 ई.) में आकर बस गए। संभवत: संवत 1975 में फैली प्लेग माहमारी के कारण मूल गाँव छोड़ना पड़ा था। यहाँ अभी झूरिया जाटों के लगभग 250 घर हैं।


    घोडीवारा खुर्द में 60 घर झूरिया लोगों के हैं। घोडीवारा से चलकर झूरिया लोग आजवा गांव, तहसील डीडवाना, नागौर में आए। यहाँ झूरिया गोत्र के 80 परिवार निवास करते हैं। अन्य गांवों में इस गोत्र के परिवार निम्नानुसार निवास करते हैं:
    मुन्दड़ा (100), सीतसर (10) सुलखनिया (10), खुड़ी चूरू (10), बंगड़ी लक्ष्मणगढ़ (40), मालासी (15), भाउजी की ढाणी (10), भूमा बड़ा (5), बल्दू (8), भिंचावा (10), सांवलोदा पुरोहितान (7), यहां से यह लोग भिंचावा गांव गए।

    हरियाणा में हिसार जिले के बालसमंद तहसील के बांडेड़ी गांव में 40 परिवार हैं।

    मरडाटु गाँव में जब झूरिया लोग आए तो इनके साथ पारीक ब्राह्मण भी आए थे। संवत 1518 (1461 ई.) में पहले इस गांव में ब्राह्मण लोगों ने कुएं की नाल खोदी 55 हाथ तक, जब पानी नहीं आया था तो शेषनाल झूरिया जाटों ने खोदी तब जाकर पानी आया। यह उल्लेख पुराने कुएं के शिलालेख पर अंकित है।

    इनके पूर्वज बीलाजी ने मरडाटु गाँव में सन ...... में बिलाणु जोहड़ बनवाया।
    इनके पूर्वज तुलछाजी ने मरडाटु गाँव में सन् ...... में एक चबूतरा बनवाया। तुलछा जी के तीन पुत्रों 1. खरता, 2. बाला और 3. बोहिता से ही संतानों की वृद्धि हुई है।
    Last edited by lrburdak; May 1st, 2018 at 10:19 PM.
    Laxman Burdak

  21. #919
    Pothohar founded by Poti clan Jats


    Pothohar (Hindi:पोथोहार, Punjabi: پوٹھوار‬, Urdu: سطح مرتفع پوٹھوہار‬‎ ) is a plateau in north-eastern Pakistan, forming the northern part of Punjab (Pakistan). Henry Walter Bellew. writes that Poti is the name of a district in Afghanistan (Tarnak valley), and of a district (Potwar) in the north of Punjab (Pakistan), so called perhaps from a Jat tribe of that name i.e Poti. (An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan, p.119). Atri Jats had been Satrap of Pothohar.

    Read more at https://www.jatland.com/home/Pothohar
    Last edited by lrburdak; July 3rd, 2018 at 12:11 PM.
    Laxman Burdak

  22. #920
    Chahar and Thebad Clans in Greek History

    So far weh ave been linking history of Chahars with Chahals and Chols. Some new facts have come in light from study of book by Greek Historian Arrian The Anabasis of Alexander Or, The History of Wars and Conquests of Alexander the Great

    The Battle of Chaeronea took place in 338 BC when when Alexander the Great was only prince. Thebes was an ancient Egyptian city located east of the Nile. It was the site of present Luxor. People who inhabited the place were called Thebans. Arrian[1] writes that the Thebes had revolted against Alexander the Great in September, B.C. 335[2]. The Thebes were defeated and destroyed by Alexander. Arrian[3] writes...As soon as news of the calamity which had befallen the Thebans reached the other Greeks,....Alexander the Great wrote a letter to the people demanding the surrender of Demosthenes and Lycurgus, as well as that of Hyperides, Polyeuctus, Chares, Charidemus, Ephialtes, Diotimus, and Moerocles; alleging that these men were the cause of the disaster which befell the city at Chaeronea, and the authors of the subsequent offensive proceedings after Philip's death, both against himself and his father. All these nine men were orators except Chares, Charidemus, and Ephialtes, who were military men. He also declared that they had instigated the Thebans to revolt no less than had those of the Thebans themselves who favoured a revolution. The Athenians, however, did not surrender the men, but sent another embassy to Alexander, entreating him to remit his wrath against the persons whom he had demanded. The king did remit his wrath against them, either out of respect for the city of Athens, or from an earnest desire to start on the expedition into Asia, not wishing to leave behind him among the Greeks any cause for distrust. However, he ordered Charidemus alone of the men whom he had demanded as prisoners and who had not been given up, to go into banishment. Charidemus therefore went as an exile to King Darius in Asia. He was put to death by Darius shortly before the battle of Issus, for advising him not to rely on his Asiatic troops in the contest with Alexander, but to subsidize an army of Grecian mercenaries. [4]

    After the conquest of Egypt defeating Darius-III the foundation of Alexandria city was laid by Alexander the Great in 331 BC. At this time Hegelochus sailed to Egypt and informed Alexander that the Tenedians had revolted from the Persians and attached themselves to him; because they had gone over to the Persians against their own wish. He also said that the democracy of Chios were introducing Alexander's adherents in spite of those who held the city, being established in it by Autophradates and Pharnabazus. The latter commander had been caught there and kept as a prisoner, as was also the despot Aristonicus, a Methymnaean (Methymna was, next to Mitylene, the most important city in Lesbos), who sailed into the harbour of Chios with five piratical vessels, fitted with one and a half banks of oars, not knowing that the harbour was in the hands of Alexander's adherents, but being misled by those who kept the bars of the harbour, because forsooth the fleet of Pharnabazus was moored in it.Arrian[5] writes....All the pirates were there massacred by the Chians; and Hegelochus brought to Alexander, as prisoners Aristonicus, Apollonides the Chian, Phisinus, Megareus, and all the others who had taken part in the revolt of Chios to the Persians, and who at that time were holding the government of the island by force. He also announced that he had deprived Chares of the possession of Mitylene. Chares was an Athenian who had been one of the generals at the fatal battle of Chaeronea. Curtius (iv. 24) says that he consented to evacuate Mitylene with his force of 2,000 men on condition of a free departure.

    Our view is that Thebans were ancestors of Thebad Jat clan and Chaeroneans were ancestors of Chahar Jat clan found in India.

    It is a matter of deep research if Chahars were related with the people of city Chaeronea in Greece who came to Asia. It is likely that Charidemus and Chares were people of Chahar clan. When deprived of their Kingdom by Alexander the Great], the Chahar people founded Chaharwati in Agra region.

    References


    Last edited by lrburdak; July 13th, 2018 at 01:32 PM.
    Laxman Burdak

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