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सर्वखाप पंचायत द्वारा राणा सांगा को सहयोग
(संवत् 1583 विक्रमी)
राणा रायमल के बाद संग्राम सिंह (राणा सांगा) मेवाड़ के सिंहासन पर बैठा । राणा सांगा ने भी अपने पिता राणा रायमल के चरण चिन्हों पर चलते हुए सर्वखाप पंचायत के प्रति बहुत आदर भाव रखा । इसीलिए धौलपुर के राणा कीर्तिमल जो सर्वखाप पंचायत के सदस्य और प्रमुख नेताओं में से एक थे, सदा राणा सांगा के साथ रहे । कीर्तिमल ने सर्वखाप पंचायत को सदा सर्वोपरि माना था । लोधी, खिलजी और गुजरातियों के साथ युद्धों में धौलपुर के कीर्तिमल राणा सांगा के साथ रहे ।
राणा सांगा ने अपने पिता की तरह वीर सम्मान से सब वीर जातियों को मोह लिया और अपने प्रेम सूत्र में बांध लिया था ।
सम्मेलन - सं० 1584 वि० में राणा सांगा ने भी सब जाति बिरादरियों के मुखियाओं का सम्मेलन बुलाया था । इसमें सर्वखाप पंचायत के नेताओं की बड़ी आवभगत की थी ।
राणा सांगा का भाषण - सम्मेलन में राणा सांगा ने बड़ा ओजस्वी भाषण दिया था, जिसका सार इस प्रकार है -
“जाट, अहीर, गूजर और राजपूत आदि वीर जातियां समान कुलोत्पन्न हैं । विदेशी, तुर्की और पौराणिक रूढ़ियों के कारण इनमें आपसी फूट है । विदेशियों से देश को छुड़ाकर अपनी सब जातियों और वर्गों को एक सूत्र में बांध लेना चाहिये । यह सब आपका काम है । मैं तो सबको भाई के रूप में देखता हूं ।”
सर्वखाप पंचायत के लेखक मुंशी दीनानाथ कायस्थ ने लिखा है कि राणा की परामर्शदात्री समिति में सर्वखाप पंचायत के प्रतिनिधि भी सम्मिलित थे । राणा के उस समय के भाव –
“मैं सब वीर कुलों के क्षत्रियों से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हूं कि आपस का वैमनस्य छोड़ दें । सब बराबर हैं । छोटे-बड़े के भाव दिल से निकाल दें । अपने भाई को अपने से ओछा समझने वाला स्वयं ओछापन प्रकट करता है । वह कभी बड़ा नहीं रह सकता जो घमण्ड करे और दूसरों को छोटा समझे । जाति-पांति का झूठा आडम्बर है । इसमें पड़कर मनुष्य अपने कर्त्तव्य से पतित हो जाता है । बड़ा वह है जो दुर्बलों के दुःख में साथ दे । एकता से रहने में हमारी शान है, आन है । अलग-अलग रहकर अंग भंग हो जाता है, तब कुछ न शान न आन । मैं सर्वखाप पंचायत के समता भाव का बड़ा आदर करता हूं । मैं अपने पिता की भांति सदा पंचायत का सहयोग लूंगा और सहयोग देता रहूंगा ।”
राणा सांगा - बाबर युद्ध (सं० 1583 वि०, 1527 AD)
मार्च 17 का दिन भारत के लिए अशुभ तथा कलंक स्वरूप था । बयाना में जब बाबर के साथ सांगा का युद्ध हुआ तब देशघातक बयाना के किलेदार ठाकुर शिवदयाल सिंह ने यह देशद्रोह का कलंक अपने माथे पर लगाया । बाबर और इस नीच के बीच का सौदा करवाने वाला महापातकी सौदागरमल व्यापारी था । बाबर की सेना के साथ तोपें थीं, फिर भी वह हार रहा था । उसकी सेना युद्धभूमि छोड़ कर भागने को थी तब बाबर ने चालाकी से सन्धि के बहाने 20-25 दिन का अवकाश लेकर उन देशद्रोहियों से सौदा कर लिया । इसी बीच में लोधियों ने भी तैयारी कर ली थी । राणा की अजेय शक्ति को देख कर बाबर के होश उड़ गए । लेकिन गद्दारी से राणा सांगा हार गया । इस युद्ध में सर्वखाप पंचायत के वीरों ने देशहित में अपना अपूर्व बलिदान दिया । राणा के वीर बलिदानी नेता इस प्रकार थे –
1. धौलपुर के राणा कीर्तिमल - जब इस युद्ध में राणा सांगा घायल हो गया और उनका हाथी उसको बाहर ले चला तब राणा कीर्तिमल ने राणा सांगा का छत्र लेकर युद्ध किया । मुगलों ने कीर्तिमल को राणा सांगा समझ भारी घेरा डाला और भयंकर युद्ध हुआ । कीर्तिमल देश पर बलिदान हो गए और राणा सांगा के प्रेम और मित्रता का सच्चा उदाहरण दे गए ।
2. कीर्तिमल का भाई - सरदार भालमल जो कीर्तिमल का भाई था, इस युद्ध में प्राणाहुति दे गया ।
3. ठाकुर वीर अम्भा - यह सादड़ी का ठाकुर था । इस वीर ने मुगलों के आक्रमण को रोकने में अद्*भुत पराक्रम दिखाया और भारतमाता की जय का घोष लगाता हुआ देवलोक पहुंचा ।
4. हसन खां और मेवाती पठान - ये वीर 12,000 मेव लेकर लड़े थे । इन दोनों वीरों ने राणा सांगा का अपूर्व साथ दिया । इन्होंने सांगा को कहा था - “पठान देश भारत का अंग है, भारत हमारी माता है । विदेशी मुगल तुर्कों को भारत से निकालना हमारा घर्म है ।” ये दोनों वीर पठान लड़ाई में अमर हो गए ।
5. रत्*न सिंह राठौड़ - यह प्रसिद्ध देवी मीराबाई का पिता था । यह भी भारत भू की धूलि को माथे पर लगा सदा के लिए सो गया ।
जब राणा सांगा की सेना हार कर पीछे हटी तो राणा को बांदी कूई पहुंच कर होश आया । उसको जब मालूम हुआ कि उसके अनन्य साथी कीर्तिमल आदि वीर बलिदार हुए तो एक बार फिर बेहोश हो गया । जब होश में आया तो गरज कर प्रण किया कि बाबर को युद्ध में हराऊंगा या प्यारे कीर्तिमल के साथ स्वर्ग में वास करूंगा ।
सं० 1584 वि० में बाबर चन्देरी की तरफ चला गया । राणा कालपी में आ डटा । इस बार राणा सांगा के साथ भी तोपें और बन्दूकें थीं । बाबर मार्ग में ही रुक गया । दो महीने तक वहीं पड़ा रहा, आगे जाने का साहस नहीं हुआ । उसने फिर लोभ का जाल फैलाया । इसने दो महापातकी राजपूत और दो ब्राह्मण रसोइया फंसा लिए । इन्होंने 4 लाख रुपये में भारत देश और आर्य धर्म को बेच डाला । इन नरपिशाच राक्षसों ने 30 जनवरी 1528 ई० को महावीर राणा सांगा को विष देकर मार डाला ।
उसी समय का एक मुसलमान लेखक साबर अली इमाम यह लिखता है - राणा सांगा की तैयारी को जानकर बाबर रातों रात जागता रहता था । बाबर कहता था कि सांगा के साथ इस बार हम युद्ध में जरूर हारेंगे या हमें भारत छोड़ना पड़ेगा । परन्तु नराधम देश के हत्यारों ने युद्ध से पहले ही राणा सांगा को जहर से मार कर देश को बाबर के अर्पण कर दिया ।
यह लेख सर्वखाप पंचायत के प्राचीन गढ़ शिकारपुर के भाट हरपतराय की पोथी का है । उस भाट के पूर्वज हरीराम भाट जो करवाड़ा ग्राम में बसे थे, उसी की पोथी से उसने यह लेख नकल किया था ।
(सर्वखाप पंचायत सौरम के रिकार्ड से)
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