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Thread: Prithviraj Chauhan and his times

  1. #1

    Prithviraj Chauhan and his times

    Excerpts from the book titled - सर्वखाप पंचायत का राष्ट्रीय पराक्रम
    Writer - निहालसिंह आर्य
    Printed in – 1980
    Pages – 102-107

    शहाबुद्दीन गौरी के विरोध में पृथ्वीराज को पंचायती सहयोग
    (संवत् १२४८ अर्थात् 1191 ईस्वी)

    महमूद गजनवी की लूट के पश्चात् उत्तर भारत में मन्दिरों, मठों और पण्डे पुजारियों से तो भारतीयों का विश्वास उठ चुका था परन्तु गुरु और पुरोहितों का अड्डा अभी जमा हुआ था । एक ही कुल के लोगों में ऊंच-नीच के भाव बहुत गहरे हो चुके थे । राजपूत राजाओं में तो उँच-नीच भावों ने अत्यन्त विषैली जड़ जमा ली थी । गुणों को छोड़कर केवल नाममात्र राजपूत अर्थात् राजा के पुत्र कहलाने के मिथ्या निभाने से घमण्डी बने रहकर संगठन तथा देश की बात नहीं सोचते थे । इस प्रकार अलग-अलग शक्ति बिखर रही थी । वीर भारत शक्तिहीन हो गया था ।

    राजा लोग विवाहों में लड़ाई करते थे । उनके 8 महीने विवाहों की लड़ाइयों में बीतते थे । राजाओं में विषय वासना, लम्पटता और कामुकता भयंकर रूप से फैली हुई थी । चारण भाट लोग अपने-अपने राजा की झूठी बड़ाई करते रहते और आपस में लड़ाते रहते थे । महमूद गजनवी की चोट खाकर भी भारत के राजा नहीं संभले । छोटे-छोटे राजाओं और सरदारों में देश बंट गया था । केवल देहली के आसपास जनतन्त्र का पंचायती संगठन था । सर्वखाप पंचायत इन कुकर्म और दोषों से बची हुई थी ।

    ऐसी अवस्था में शहाबुद्दीन गौरी का आक्रमण भारत पर हुआ । अफगानिस्तान में गजनी और हिरात के बीच गौर राज्य था । इसकी स्थापना गौर वंशी सरदारों ने की थी । अरब के जिहादी मुसलमानों के सामने हार कर यह भी इस्लामी बाड़े में चले गये । महमूद गजनवी ने धोखे से गौर राज्य को छीन लिया था । अलाउद्दीन नामक सरदार ने गजनी पर आक्रमण करके उसको नष्ट कर डाला । गजनी उस समय संसार की सुन्दरतम नगरियों में एक थी । अलाउद्दीन ने महमूद गजनवी के मकबरे को छोड़ कर सारा नगर अग्नि की भेंट चढ़ा दिया, नगरवासियों का वध कर डाला । अब सारे अफगानिस्तान पर गौरी राज्य छा गया । संवत् १२१३ वि० में अलाउद्दीन मर गया । सफ-उद्दीन और वही-उद्दीन के पश्चात् गयासुद्दीन बादशाह बना । इसी का छोटा भाई शहाबुद्दीन था ।

    चित्ररेखा नाम की एक भारतीय वेश्या थी जिसको शहाबुद्दीन के चचा का लड़का मीर हुसैन भारत से ले गया । इस वेश्या को शहाबुद्दीन भी चाहता था । मीर हुसैन इस वेश्या को लेकर अजमेर भाग आया और पृथ्वीराज “चौहान” ने शरण दी । पृथ्वीराज भी इस वेश्या को चाहता था । उस समय अजमेर में चौहान थे, विग्रहराज वहां का राजा पहले था । देहली में भी तुंवर वंशीय आनन्दपाल का धेवता पृथ्वीराज चौहान राजा था । कन्नौज में जयचन्द राठौर राजा था । बंगाल में लक्ष्मण सैन राज्य करता था और बुन्देलखंड में परमाल चन्देला महोबे में राजधानी बनाये हुए था । मालवा में परमार वंशीय भोज राज्य करता था । गुजरात में अनहिलवाड़ा राजधानी में भीमदेव सोलंकी राज्य करता था । उस समय अनहिलवाड़ा भारत भर में प्रसिद्ध नगर था । इस से चौहान भी डरते थे ।

    शहाबुद्दीन ने चित्ररेखा वेश्या का बहाना लेकर पृथ्वीराज पर चढ़ाई कर दी परन्तु 1191 ईस्वी में वह हार गया ।

    उस समय सर्वखाप पंचायत की बारह हजार सेना पृथ्वीराज के साथ थी । उस पंचायती सेना का सेनापति उदयभान राजपूत था । उपसेनापति हृदयनाथ ब्राह्मण था । शहाबुद्दीन की सेना का बायां भाग पंचायती सेना ने ही सर्वथा नष्ट कर दिया था ।

    दूसरी बार शहाबुद्दीन और खाण्डेराव की लड़ाई हुई तब पंचायती सेना के अठारह हजार मल्ल खाण्डेराव के साथ शामिल हुए । पंचायती सेना ने शहाबुद्दीन का पच्चीस मील तक पीछा किया । उस समय पंचायत का प्रधान डूंगरमल जाट था । उपप्रधान हरिश्चन्द्र तगा (त्यागी) था । श्योरामदास कायस्थ मन्त्री और श्यामप्रसाद बनिया कोषाध्यक्ष था । रामेश्वर दयाल भाट पंचायत का परामर्शदाता मन्त्री था । यह बड़ा भारी विद्वान पण्डित था, सदा उत्तम सम्मति देता था । मल्लों को सदाचार की पूर्ण शिक्षा देता और निगरानी रखता था । इसने पंचायती वीरों में कुप्रथा और कुवासनाओं को कभी घुसने नहीं दिया । जहां राजाओं में कुप्रथाओं ने घर कर लिया था, वहाँ पंचायती संगठन में देवताओं का वास था ।

    उस समय के एक भाट ने राजदरबारों की कुप्रथाओं का नंगा चित्र खींचा है । सब राजा आचरणहीन हो चुके थे । स्त्रियों के लिए लड़ते थे । केवल मोहब्बा के सरदार बचे हुए थे । उनमें उतने उंच-नीच के भाव भी नहीं थे । स्त्रियों के लिए वे भी लड़े । पृथ्वीराज ने संयोगिता स्वयंवर में बड़े-बड़े सरदार लड़ाई में खो दिये थे । पृथ्वीराज अत्यन्त पतित हो चुका था, सदा रणवास में शराब के नशे में पड़ा रहता था । दरबार में स्त्रियों की चर्चा होती थी । वीरता को जंग लग रही थी । दरबार में रंडियां नाचतीं थीं । इस्लामी जिहादी आक्रमणों की ओर से आंखें मीच रखी थी । चौहान, राठौड़ और चन्देले आपस में लड़ कर नष्ट हो रहे थे । पृथ्वीराज ने संयोगिता के कारण जयचन्द से लड़ाई की । इसी प्रकार और कई स्त्रियों को घर में डाला । एक रवे की लड़की को छोड़ने पर सर्वखाप पंचायत से भी इसका सम्बन्ध टूट गया ।

    ...continued
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

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    ravinderjeet (February 16th, 2011)

  3. #2
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    ऐसी दुरवस्था को देखकर सन् 1193 में शहाबुद्दीन फिर देहली पर चढ़ आया । पृथ्वीराज के बड़े बड़े सरदार आपसी लड़ाइयों में काम आ चुके थे । चन्द्रा भाट ने ज्यों त्यों रणवासों से पृथ्वीराज को बाहर निकाला । पृथ्वीराज की पचास हजार सेना इकट्ठी हुई । पृथ्वीराज का जमाई समर सिंह राजा चित्तौड़ से बारह हजार सेना लाया । पिछले भेद भुला कर देश को शत्रुओं से बचाने के लिए सर्वखाप पंचायत ने भी अठारह हजार मल्ल सेना में दिए । इस प्रकार कुल अस्सी हजार सेना मिल गई । यह सेना भी बहुत थी परन्तु देश का घातक, नीच, द्रोही विजयसिंह राजपूत धोखा दे गया और शहाबुद्दीन से मिल गया । थानेश्वर के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ । तीन दिन तक राणा समर सिंह और पंचायती सेना के तीस हजार जवानों ने मोर्चा लिया । प्राण रहते शत्रु को एक इंच आगे नहीं बढ़ने दिया । राणा समर सिंह, सर्वखाप पंचायत के प्रधान सेनापति और दूसरे सहायक सेनापतियों ने अपने वीरों के साथ प्राणाहुति देकर भारत माता का मुख उज्जवल किया । पंचायती सेना का प्रधान सेनापति बड़ा विकट योद्धा सागर सिंह रोड़ था । तीन जाट, पांच गूजर, चार अहीर, तीन राजपूत, दो सैनी और चार ब्राह्मण सहायक सेनापति थे । हरदन, मरदन, जंगम, बुगली - ये चार दहिया योद्धा थे । जब यह तीस हजार वीर बलि चढ़ गये तब पृथ्वीराज की पचास हजार सेना आगे बढ़ी । इस सेना के पुराने वीर योद्धा पहले आपसी लड़ाइयों में मारे जा चुके थे । नए लड़के सेना में थे और यह भी विषयी कथाओं को सुनते और रंडियों का नाच देखते थे । जवानी में ही बूढ़े हो चुके थे । ये सब शहाबुद्दीन के जिहादी लुटेरे आक्रमणकारियों के सामने कब तक ठहरते ? कुल एक घंटे की लड़ाई में शत्रु की सेना के सामने से भाग लिए । पृथ्वीराज पकड़ा गया और देहली पर शहाबुद्दीन का झंडा गड़ गया । अगले वर्ष (1194 ईस्वी) में जयचन्द हारा । कई वर्ष बाद जब शहाबुद्दीन वापिस अफगानिस्तान जा रहा था तो सिन्धु नदी पर खोखर जाटों के 25,000 के दस्ते ने रात्रि में उस पर आक्रमण किया और खोखरों के सेनापति अनिरुद्ध ने गौरी का सिर काट दिया ।

    पृथ्वीराज के पश्चात् आर्य जाति का पासा पलट गया । गौरी के बाद उसका दास कुतुबुद्दीन ऐबक देहली का स्वामी बना और इसके साथ भी पंचायत के युद्ध हुए । कुतुबुद्दीन की सेना ने सर्वखाप पंचायत की हिसार सभा पर सं० १२५१ वि० में चलते हुए अधिवेशन पर एकदम आक्रमण कर दिया परन्तु पंचायती मल्लों की वीरता से पंचायत की सेना विजयी रही । आगे सं० १२५४ वि० भाद्र बदि एकम् को राणा भीमदेव की प्रधानता में बड़ौत में एक सर्वखाप पंचायत की सभा हुई जिसमें ९०,००० पंचायती थे । यह सभा पंचायत पर से पाबंदी हटाने और जजिया कर हटाने हेतु हुई थी । शाही सेना ने इस पंचायत पर आक्रमण किया । घमासान युद्ध में शाही सेना को मार भगाया । कुतुबुद्दीन को पंचायत से सन्धि करनी पड़ी । इस युद्द में नौ हजार पंचायती वीर बलिदान हुए । कुतुबुद्दीन ने सं० १२६७ वि० के आसपास दिपालपुर हांसी के पास गठवाले जाटों से युद्ध किया । बहुत घमासान युद्ध हुआ । बहुत थोड़े होने के कारण गठवाला वीर योद्धा हार गए । गठवाला जाट वान योद्धा वीरगति को प्राप्त हुआ । फिर गठवाला वीरों ने रोहतक मंडल में गोहाना के पास अपने पूर्वज हुलराम के स्थान पर हुलोणा ग्राम बसाया ।

    विशेष सूचना - संसार की उपरोक्त गजनी नगरी (राजा गज के नाम की गजानन्दी) को जलाने और हत्या करने वाला अलाउद्दीन सरदार (जो १२१३ वि० में मर गया था), अलाउद्दीन खिलजी से पहले हुआ है । अजमेर को बसाने वाले अजयपाल चौहाण का सेनापति जोगाराम दहिया था । पृथ्वीराज से ५-६ पीढ़ी पहले विग्रहराज बीसलदेव ने अजमेर का दुर्ग बनाया था, इसी के समय डाबूराम दहिया का अलग दल बना था, बाद में जिसकी डाबूवास (डबास) खाप कंझावला (दिल्ली) के पास बसी ।

    पृथ्वीराज बहुत बलवान, विशालकाय वीर था । कभी-कभी दुर्ग के फाटक को भी तोड़ देता था परन्तु शराबी विलासी बन कर 15 स्त्रियां घेर लीं थीं । संयोगिता के मोहपाश में तो उसके विख्यात सरदार योद्धा मारे गए । ब्रह्मचर्य विनष्ट होने से वीरता समाप्त होकर रणवासों में घुसा रहता । उसके प्रधान मंत्री कैमास दहिया और काका वीर योद्धा कान्ह के समझाने पर भी होश नहीं आया । अन्त में सन् 1192-93 ईस्वी के आक्रमण में कुरुक्षेत्र के पास सरस्वती नदी पर लड़ता हुआ पकड़ा जाकर यहीं भारत में मारा गया था । पृथ्वीराज की विलासिता, जयचंद की फूट, मूर्ति-पूजा तथा उंच-नीच के दुर्भाव से ही भारत में मुस्लिम शासन आया ।

    पृथ्वीराज-गौरी युद्ध के वर्णन का सर्वखाप पंचायत के वर्तमान हिन्दी लेख का लेखक हरिप्रकाश भाट है । इस युद्ध की तैयारी में प्रथम सर्वखाप पंचायत की सभा सं० १२४८ वि० में शाहदरा में हुई थी ।

    * * *
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  4. The Following 6 Users Say Thank You to dndeswal For This Useful Post:

    anilmhm (April 30th, 2011), bhupindersingh (February 17th, 2011), cooljat (February 15th, 2011), deependra (February 16th, 2011), ravinderjeet (February 16th, 2011), shivamchaudhary (February 15th, 2011)

  5. #3
    Quote Originally Posted by dndeswal View Post
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    अन्त में सन् 1192-93 ईस्वी के आक्रमण में कुरुक्षेत्र के पास सरस्वती नदी पर लड़ता हुआ पकड़ा जाकर यहीं भारत में मारा गया था । पृथ्वीराज की विलासिता, जयचंद की फूट, मूर्ति-पूजा तथा उंच-नीच के दुर्भाव से ही भारत में मुस्लिम शासन आया ।[/B]

    पृथ्वीराज-गौरी युद्ध के वर्णन का सर्वखाप पंचायत के वर्तमान हिन्दी लेख का लेखक हरिप्रकाश भाट है । इस युद्ध की तैयारी में प्रथम सर्वखाप पंचायत की सभा सं० १२४८ वि० में शाहदरा में हुई थी ।

    * * *

    sir ji , Kripya laal rang ki dono tarikho k baare me prakash daale...!! dono me virodhabhas ho raha hai..!! agar prithvi raj 1192-93 me yudh me mara gya tha to १२४८ saal ka jikr kis sanshay me hai.
    dhanyawad.
    DeStInY LiE$ iN tHe $tReNgTh oF uR dReAm$...!!
    JAT ----------> JUSTICE AND TRUTH

  6. #4
    Quote Originally Posted by ravinderpannu View Post
    sir ji , kripya laal rang ki dono tarikho k baare me prakash daale...!! Dono me virodhabhas ho raha hai..!! Agar prithvi raj 1192-93 me yudh me mara gya tha to १२४८ saal ka jikr kis sanshay me hai.
    Dhanyawad.
    लिखने वाले ने जैसा अपनी किताब में लिखा है, मैंने वैसे ही यहां डाला है । लेखक ने इस लेख में विक्रमी और अंग्रेजी दोनों ही तारीखों का प्रयोग किया है । असल में यह भ्रम विक्रमी संवत और ईस्वी (ad) तारीखों के कारण है । पहले हम सभी विक्रमी संवत ही प्रयोग करते थे । जैसे आजकल विक्रमी संवत (यानि देसी साल) 2067 चल रहा है और अंगेजी साल 2011 चल रहा है । होली के बाद विक्रमी संवत 2068 शुरु हो जायेगा ।

    मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि विक्रमी संवत अंग्रेजी साल (ad) से 57 साल ऊपर है ।

    इसलिये अगर हम 1248 वि० में से 57 साल घटा दें तो इसका जवाब अपने आप मिल जायेगा (अंग्रेजी साल 1191-92) ।
    Last edited by dndeswal; February 17th, 2011 at 07:08 AM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  7. #5
    Quote Originally Posted by dndeswal View Post
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    पृथ्वीराज की विलासिता, जयचंद की फूट, मूर्ति-पूजा तथा उंच-नीच के दुर्भाव से ही भारत में मुस्लिम शासन आया ।[/B]


    * * *
    Haha 'Murti-Pooja' se muslim raj aaya? Aur parithvi raj se jayada vilasi to mughal the to jab tak mugal the koi aur muslim nahi aaya. Kyon?

    Aur sirf ek raja ke incompetant hone se pura desh gulam ho gaya? The reality is muslim attackers were more organised, determined and had better tactics and weapons and they caught us unprepared and disintegrated.

    OK Everyone write as per their prejudice, understanding but still nahi to "murti pooja' se muslim rule aaya ye baat to samaj se bahar he. Aur jo log 'Murti pooja ka veerodh karte he real me vo ye chiz muslim se sikh kar aaye he otherwise nothing is wrong in 'Murti-Pooja as long as someone believe in it

    I wish if the write could have taken out a few things other than that this piece of writing is great.
    Last edited by VirJ; February 17th, 2011 at 06:57 AM.
    जागरूक ती अज्ञानी नहीं बनाया जा सके, स्वाभिमानी का अपमान नहीं करा जा सके , निडर ती दबाया नहीं जा सके भाई नुए सामाजिक क्रांति एक बार आ जे तो उसती बदला नहीं जा सके ---ज्याणी जाट।

    दोस्त हो या दुश्मन, जाट दोनुआ ने १०० साल ताईं याद राखा करे

  8. #6
    Quote Originally Posted by dndeswal View Post
    लिखने वाले ने जैसा अपनी किताब में लिखा है, मैंने वैसे ही यहां डाला है । लेखक ने इस लेख में विक्रमी और अंग्रेजी दोनों ही तारीखों का प्रयोग किया है । असल में यह भ्रम विक्रमी संवत और ईस्वी (ad) तारीखों के कारण है । पहले हम सभी विक्रमी संवत ही प्रयोग करते थे । जैसे आजकल विक्रमी संवत (यानि देसी साल) 2067 चल रहा है और अंगेजी साल 2011 चल रहा है । होली के बाद विक्रमी संवत 2068 शुरु हो जायेगा ।

    मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि विक्रमी संवत अंग्रेजी साल (ad) से 57 साल ऊपर है ।
    इसलिये अगर हम 1248 वि० में से 57 साल घटा दें तो इसका जवाब अपने आप मिल जायेगा (अंग्रेजी साल 1191-92) ।


    Dhanyawad sir ji,,for clearing up the clouds..!!
    DeStInY LiE$ iN tHe $tReNgTh oF uR dReAm$...!!
    JAT ----------> JUSTICE AND TRUTH

  9. #7
    Dear Friend,

    The extract from Shri Nihal Singh Arya's book produced here not only make interesting study about the role of grass root institutions in the medieval India but also give vivid description about the indulgence of the rulers of the day. Hats off to you for posting such a nice piece of writing.

    Though all facts stated in the write up cannot be accepted without a pinch of salt; for example the fight between Khokhar Jats against Mohd. Ghaznvi has been erroneously assigned to the event under reference).

    Thanking you,

    Sincerely,

    Dr. Raj Pal Singh

  10. #8
    This historical content has been added to Jarland Wiki for further research. May see at -

    [Wiki]Prithviraj Chauhan and his times[/Wiki]
    Laxman Burdak

  11. The Following 2 Users Say Thank You to lrburdak For This Useful Post:

    deependra (December 17th, 2011), DrRajpalSingh (December 17th, 2011)

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