Sayad ye dhaga pehlum bhi thaa.. close ho gaya lagta hai.. fer se suru kar raha hoon....
Koshish to yahi hai meri . kuch achchha likh pau ..
अनजाने रास्तों पे चलना, हमने कब शीखा था,
किसी से मुलाकात करना, हमने कब शीखा था,
बस दुनिया को देखकर, हम भी कुछ टेड़े-मेडे चल पड़े है;
किसी मुसाफिर का साथ पाना, हमने कब शीखा था !!