भाई उपेंदर सिंह लगता है आपने पूरी की पूरी पोस्टिंग नहीं पढ़ी इस तागे की | मैं आप की बात की बड़ी कद्र इसलिए करूँगा की जाट को आप सबसे उप्पर रख कर सोच रहे हो | फेर अगर आप हनुमान को पूज रहे हो, किसी पंडित ने यो कह दिया अक तेरे को क्या पता कैसे हनुमान को कैसे खुश किया जाता है | क्या कहोगे, ये ही बात इस सारी की सारी पोस्टिंग में Discuss करी गयी है की, हिन्दू धर्म के कुछ खास ठेकेदार हैं, जिन्होंने हिन्दू धर्म को अपने हिसाब से बना रखा है और टाइम आने पर और भी बदलाव कर देंगे, आज जो हिन्दू धर्म के बारे में पढ़ते हैं वो कुछ टाइम बात कुछ और हो जाएगी | पुरे हिंदुस्तान में हिन्दुओं के अलग-अलग देवता, अलग-अलग त्यौहार तथा अलग-अलग रीती-रिवाज़ हैं, जिनके बारे खुद हिन्दुओं को भी नहीं पता |
फेर सारी ज़िन्दगी हनुमान को पूजते रहना, मरते टाइम फेर कोई पंडित बुलाना पड़ेगा, करिया कर्म कर्म करने के लिए | हिन्दू धर्म में किसी जाट को को हवन के मंत्र पढता देखा है कभी, जाट को इजाजत ही नहीं है | हिन्दू धर्म के अध्यात्मिक और ज्ञान के भंडार की चाबी कुछ खाश ठेकेदारो की हाथ है, जिसे मन मर्ज़ी से चलाया जाता है | अपने फायदे अनुसार भंडार को बदल लिया जाता है |
जाट का मतलब हैं, पूर्णत: आज़ाद इंसान | जाट आज़ाद है किसी भी धर्म को अपनाने में | धर्म के नाम पर इंसान की भावना उभर कर सामने आती है, इसलिए हम संकीर्ण हो गए है, जाट के बीच धर्म का फासला आ गया है जो एक अच्छा सकेंत नहीं है |
हनुमान तो खुद एक काल्पनिक देवता हैं, उनके अस्तित्व का कोई सबूत नहीं है | सारी ज़िन्दगी हनुमान को मानने आत्मिक ज्ञान नहीं हो सकता, वोह तो एक पूरण धर्म से हो सकता है | और आप को किस ने कह दिया हनुमान जाट है, ये तो एक मजाकिया बात लगती है |
दूसरी तरफ धर्म अपनाने से मतलब ये है की जाटों को कोई हराम की संतान न कहे जैसे की सरदार भगत सिंह को कहा जाता है उसे Atheist कहा जाता है |
अब बात करते हैं जाट सरदारों की, 80% जाट सिख हैं, हर एक सिख क्रन्तिकारी, योधा, पुजारी और संत (जरनैल सिंह भिंडरावाला) जैसे लोग जाट ही है, पंजाबी खत्री तो जाट सिखों के पिछलगू हैं, वोह अपने आपको जाटों के साथ सुरक्षित महसूस करते हैं | सिख धर्म में जाट को किसी पंडित या खत्री की इजाज़त लेने की जरुरत नहीं है | सिख धर्म के अंदर आध्यात्मिकता का चरम ज्ञान गुरु नानक साहिब ने दिया था, जबकि अपने हक की रक्षा करना और योधा बनना गुरु गोबिंद सिंह ने सिखाया था | जो एक जाट के लिए सोने पे सुहागे की तरह है |
और सबसे आखरी और सबसे बड़ी बात जाटों को धर्म के नाम पर एक दुसरे जाट भाई की बुराई नहीं करनी चाहिए, जाट चाहे कोई भी, उसको ये मत बोलो वो तो सरदार है, या वो तो हिन्दू है या वो मुल्ला है | जाटों कुछ भी बनो पर जाट धर्म की कद्र करो | जो जाट होकर दुसरे धर्म के जाट को नीचा दिखाता है वो जाट नहीं बल्कि किसी विशेष धर्म का पर्चारक है |
जाट जिंदाबाद !!!