खालसा पंथ की नीव १७वि सदी के अंत में पड़ी थी. जाट खालसा में १८वि सदी के बाद आना शुरु हुए थे और कुछ एक साल बाद औरंगजेब की मौत हो गयी थी. औरंगजेब/मुग़ल मराठों से और पठानों से लड़ कर काफी कमजोर हो चुके थे. खालसा पंथ की नीव रखने में दूसरी जातियों का बहोत बड़ा हाथ हे. अगर मुग़ल दक्कन में और पठानों में न फंसे होते तो शयद सिख empire इतनी जल्दी स्थापित ही न हो पाता. एक पॉवर vaccum बन गया था औरंगजेब के बाद.
औरंगजेब का साथ तो बहोत से हिन्दू भी दे रहे थे. उसका mission सबको मुस्लमान बनाना नहीं था नहीं तो सबसे पहले वो राजपूतों को मुस्लमान बनता. और आपको पाता न हो तो औरंगजेब के payroll में ३३% हिन्दू थे. . वो इस्लाम को बढावा जरूर देता था.
तो भाई जो जाट आज हिन्दू हे वो आज भी हिन्दू ही होते अगर खालसा न होता तो भी.
सिखों ने अंग्रेजों का खूब साथ दिया था १८५७ की क्रांति में.
और सिख जाट में बहोत से इसलिए भी सिख बने थे ताकि उनका सामाजिक सत्र ऊपर उठ सके.
This is turning to be another one - sided rant in praise of sikh jaats. But everyone know the contributitions of Khatris and other communities in sikhism.