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Thread: Jaat Ka Dharam Kya Hai ?

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  1. #1

    Jaat Ka Dharam Kya Hai ?

    क्या तथाकथित हिन्दू जाटों को कोई धर्म धारण करना आवश्यक हैं ?
    - पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान
    मो. +919416056145

    धर्म का अर्थ हैं : धारणात धर्म : अर्थात धारण करने को धर्म कहते हैं | संसार में विभिन्न सामाजिक समूहों द्वारा अपने कुछ नियम , एक चिन्ह , एक स्थान . एक धर्म गुरु , एक पूजा पद्धति तथा एक धर्म ग्रन्थ निर्धारित करके उनको धारण कर लिया और उन्होंने अपने अलग - अलग धर्म स्थापित कर लिए | उदाहरण स्वरूप मुस्लिम, ईसाई , सिक्ख , जैन , तथा बौद्ध आदि | लेकिन केवल हिन्दू धर्म ही ऐसा धर्म हैं , जिसका ऊपर वर्णित कोई भी एक चीज नहीं हैं और इससे भी बड़ा आश्चर्यजनक प्रमाण हैं कि हिन्दू कहे जाने वाले ग्रंथो में जैसा कि वेद , उपनिषद , शास्त्र , गीता , रामायण , महाभारत तथा पुराणों में कही भी हिन्दू शब्द या हिन्दू धर्म का उल्लेख तक नहीं हैं | इसीलिए हिन्दू धर्म को धर्म कहना एक मुर्खता एवं अज्ञानता हैं | इसी सच्चाई के आधार पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय कि तीन जजों के पीठ ने रमेश यशवंत बनाम श्री प्रभाकर काशीनाथ कुंटे के केस में दिनांक 11 -12 -1995 को अपने फैसले में सपष्ट किया था कि हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं हैं | हालांकि न्यायालय ने इसे जीवन पद्धति कहा | लेकिन हिंदूओ कि यह जीवन पद्धति भी हिन्दू समाज में पुरे देश में आपस में कही भी मेल नहीं खाती | उदाहरण के लिए उत्तर भारत में अपनी बहन कि बेटी को अपनी बेटी समान तो बुआ और मामा कि बेटी को बहन का दर्जा प्राप्त हैं जबकि दक्षिण भारत के हिंदूओ (ब्रह्मण) में ठीक इसके विपरीत इनको अपनी पत्नी के रूप में ग्रहण किया जाता हैं | इसी प्रकार अनेक हिंदूओ के नियम व संस्कार आपस में कहीं भी मेल नहीं खाते | उदाहरण के लिए हिन्दू समाज में उच्च जातियां कहीं जाने वाले समाज में विधवा का पुनर्विवाह करना अधर्म माना जाता रहा जबकि अन्य जातियों में ऐसा करना अपना धर्म समझा गया | जाटों में विधवाओ का चाहे उस स्त्री का मुकलावा (संयोग) हुआ हो या न हुआ हो , पुनर्विवाह एक धार्मिक कर्त्य समझा गया , इसी कारण जाटों में एक कहावत प्रचलित हुई : जाटनी कभी विधवा नहीं होती | और इस पर जाट कौम गर्व करती आई हैं | लेकिन अफ़सोस हैं कि स्वामी दयानंद के जाट शिष्य आज तक यह प्रचार करते रहे हैं कि स्वामी दयानंद ने विधवा विवाह का समर्थन किया और जाटों को क्षत्रिय माना | जबकि सत्यार्थ प्रकाश के चौथे सम्मुलास के पेज नंबर 74 के एक श्लोक में कहा हैं कि ऐसा केवल शुद्र वर्ण ही कर सकता हैं | बाकी के वर्ण कि विधवा स्त्री को मुकलावा होने के बाद पुनर्विवाह कि अनुमति नहीं हैं | इससे स्पष्ट होता हैं कि स्वामी जी ने जाटों को शुद्र माना न कि क्षत्रिय | इसलिए हमारी प्राथना हैं कि आर्य समाजी जाट भाई सत्यार्थ प्रकाश को गौर से पढ़े | इसी प्रकार जाट आर्य समाजियों ने चौ. छोटूराम को एक आर्य समाजी कहकर भारी भूल कि हैं क्योंकि सर्वविदित हैं कि आर्य समाज जाती - पाति पर नहीं , वर्ण व्यवस्था पर आधारित हैं | जबकि चौ. छोटूराम जाट जाति के संगठन जाट सभा के काफी वर्षो तक अध्यक्ष रहे और उन्होंने संयुक्त पंजाब में अपने हिन्दू मुस्लिम और सिक्ख जाट भाइयों को एक मंच पर खड़ा कर दिया | यह कार्य आर्यसमाजी कभी नहीं कर सकता हैं | इससे स्पष्ट हैं कि जब कोर्ट के अनुसार हिन्दू धर्म ही नहीं हैं तो हिन्दू मैरिज एक्ट कैसे वैध हो सकता हैं ?

    हिंदूओ का एक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख पंडित मोहन भागवत को कहना पड़ा कि हिन्दू न तो कोई धर्म हैं और न ही जाति | जबकि वे स्वयं ब्रह्मण जाति से संबंध रखते हैं और हिन्दुत्व का प्रचार करते हुए हिन्दू अर्थात ब्रह्मण संगठन चलते हैं | ( पंजाब केसरी पेज नंबर 3 , दिनांक 17 -10 -2009 )
    इसी प्रकार पंजाब के परिवहन मंत्री मा. मोहनलाल ने पंजाब केसरी पत्र के माध्यम से अपने लेख में स्पष्ट लिखा हैं कि हिन्दू कोई धर्म या मजहब नहीं , अपितु एक जीवन पद्धति हैं | जबकि मंत्री जी स्वयं भाजपा के नेता होते हुए हिन्दुत्व का अलाप करते रहे हैं | जिसे ये लोग पद्धति कहते हैं , जब हिन्दू कोई धर्म ही नहीं तो इसकी पद्धति कहा से आ गई ? जब कोई वस्तु संसार में हैं ही नहीं तो उसका गुण स्वभाव कैसे जाना जायेगा लेकिन बड़े आश्चर्य कि बात हैं कि उपरोक्त टिप्पणियों के बावजूद हिन्दू धर्म के चार शंकराचार्य इस विषय पर मौन क्यों हैं ?
    हमने इस लेख के शीर्षक में तथाकथित शब्द का इस्तेमाल किया हैं क्योंकि जब हिन्दू धर्म ही नहीं हैं तो स्वाभाविक हैं कि जाट भी हिन्दू नहीं हैं | इसी कारण आज जाट कौम को 1955 हिन्दू विवाह कानून के कारण ही कष्ट और शर्मिंदगी उठानी पड़ रही हैं | जहाँ तक हिन्दुइज्म के आध्यात्म कि बात हैं , इस पर डा.हरदयाल ने एक बहुत सुंदर टिपण्णी करते हुए इसे उटपटांग कि संज्ञा दी हैं और आगे लिखा हैं कि : " हिन्दू अध्यात्म विद्या भारत का कलंक रही हैं जिसने भारतीय इतिहास को चौपट कर दिया और उसे विनाश में डालकर उन्हें निरर्थक जिज्ञासा और चेष्ठा के गलियारे में भटका दिया | उसने कुतर्क को कला और कपोल कि कल्पनाओ को ज्ञान के ऊँचे सिंहासन पर बैठा दिया | जिसने भारतीय को इतना निकम्मा बना दिया कि वे संकैड़ो सालों तक कोल्हू के बैल कि तरह उसी पुराने ढर्रे पर चलते हुए गुलामी कि जिल्लत झेलते रहे | कल्पना कि बेवकूफ भरी उड़ाने , विचित्र भ्रांतियों और अंट- शंट अटकलबाजियों से ग्रन्थ के ग्रन्थ भरे पड़े हैं जिन्हें हम अभी तक नहीं समझ पाए कि वे सभी व्यर्थ हैं |" इसी कारण यह सवर्ण हिन्दू समाज चींटियों को चीनी डालेगा , हवन यज्ञ में मूल्यवान सामग्री भस्म करेगा , सूर्य को पानी पहुचाएगा , मूर्तियों को भोग लगाएगा , मिठाई खिलाएगा और दूध पिलाएगा , बंदरों को केला और चना खिलाएगा और शनि महाराज को तेल पिलाएगा लेकिन गरीब को एक बूंद पानी तथा रोटी का टुकड़ा देने में भी रोएगा | इनमे से कुछ तो ऐसे भी हैं जो कि अपने बूढ़े माँ - बाप से झाड़ू पोचा तथा बर्तन साफ़ करवाने तक का काम भी करवाते हैं | इन्होने भगवान को वश में करने के तरीके तो ढूंढ़ लिए और कहते हैं कि हर प्राणी में ईश्वर समान रूप से वास करता हैं , लेकिन क्या इन्होने कभी इंसानों से भी समान रूप से व्यवहार किया हैं ?
    लेकिन अभी प्रश्न पैदा होता हैं कि फिर भी धर्म आवश्यक क्यों हैं ? क्योकि इंसान जितना मजबूत हैं उतना ही कमजोर भी हैं और उसके इस कमजोर पक्ष को किसी सहारे कि जरुरत पड़ती हैं , जिसे हम आस्था कहते हैं और इसी आस्था को कायम रखने के लिए किसी धर्म का सहारा लेना पड़ता हैं | इसीलिए मानव जाति के लिए धर्म एक सर्वाधिक शक्तिशाली प्रेरक शक्ति हैं | लेकिन अफ़सोस हैं कि यही धर्म और आस्था , पाखंडवाद , अन्धविश्वास और जादू - टोनों में भटक कर रह जाता हैं | जबकि धर्म का सर्वोत्तम नियम कमा कर खाने का हो , उसमे आत्मसम्मान और आत्मविश्वास श्रेष्ठ हो और धर्म अन्धविश्वास , गुरुडम और मूर्तिपूजा का विरोधी हो , ऐसा धर्म कभी न हो जिसमे नंगे बाबा , भगवाधारी , अवधूत साधू , पांडे - पुजारी और मठाधीश आदि अपने राष्ट्र पर बोझ बनकर रहे |
    जब संसार के दुसरे लोगो को धर्म कि आवश्यकता हैं तो फिर जाट कौम को क्यों नहीं होगी | यदि हम जाट कौम के सिद्धांत , आचरण परम्पराए और उनकी संस्कृति को हिन्दू धर्म से मिलाते हैं तो उनमे कोई मेल नहीं हैं | उदाहरण के लिए जाटों कि विधवा विवाह प्रथा , मूर्तिपूजा का न होना , गोत्र प्रथा , खाप प्रथा , समानता का सिद्धांत , कट्टर छुआछात को न मानना तथा सबसे बढकर जाट कौम इस देश में ही नहीं , संसार में सबसे बड़ी शाकाहारी कौम हैं जो जिव - हत्या कि पूर्णतया विरोधी हैं | जबकि उत्तर पूर्व के हिन्दू मंदिरों में पशुओ कि बलि दी जाती हैं तो जाट बाहुल्य क्षेत्र को छोड़ कर पुरे देश का ब्रह्मण मासाहारी हैं और केरला का हिन्दू तो बीफ ( गाये - बछड़े का मॉस ) तक खाता हैं | पुस्तकों में तो यहाँ तक लिखा हैं कि वैदिक काल में ब्रह्मण गाये का मॉस खाते थे | इस बात को इतिहासकार पंडित रामशरण शर्मा ने सवीकार किया हैं | इसके अतिरिक्त विधवा विवाह का विरोध करने वालो से ही रखेल प्रथा वेश्या प्रथा का जन्म हुआ और मंदिरों में देवदासियां पहुचाई | इस बारे में विस्तार से न लिखते हुए संक्षेप में इतना ही कहना सार्थक होगा कि हिन्दू धर्म एक ब्रह्मण धर्म हैं और हिन्दुत्व ब्राह्मणवाद हैं जिसने शैन:- शैन: वैदिक धर्म को भी अपने अंदर अपने स्वार्थवश समेट लिया , इस कारण वैदिक धर्म संविधान और कानून से लोप होकर ब्राह्मणवाद में समा गया | आश्चर्यजनक बात तो यह हैं कि हिन्दू धर्म नहीं हैं तो इस देश में 1955 हिन्दू विवाह कानून कैसे लागु हैं ?
    यह ब्रह्मण धर्म जाट कौम का कभी धर्म नहीं रहा | इससे पहले प्राचीन में जाट प्रकर्ति कि पूजा करते थे उनके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण किया , जिसका मुख्य कारण था जाट राजा बौद्ध धर्मी हो गए थे | इस कारण जाट प्रजा भी बौद्ध धर्मी हो गई अर्थात यथा राजा तथा प्रजा | उदाहरण के लिए अशोक मोर गोत्रीय जाट , कनिष्क कुषाण गोत्रीय जाट , हर्षवर्धन बैंस गोत्रीय जाट तथा यशोधर्मा विर्क गोत्रीय जाट आदि सभी बौद्ध धर्म के मानने वाले थे | इसलिए आज भी जाट कोई भी नुक्सान होने पर बार बार अपने प्राचीन धर्म बौद्ध के प्रतिक मठ को याद करता हैं | मठ मार दिया , मठ मार दिया | वह इसीलिए कहता हैं क्योंकि कट्टरपंथी ब्रह्मंवादियो ने हमारे इन बौद्ध मठो को बर्बाद कर दिया था | जाटों का शाकाहारी होना और विधवा विवाह प्रथा आदि आज भी जाटों में बौद्ध धर्म के संस्कार हैं |
    contd...........
    Last edited by raka; May 16th, 2011 at 08:44 PM.
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

  2. #2
    लेकिन यह प्रशन पैदा होता हैं कि जाटों ने इस ब्राह्मणवाद में प्रवेश कैसे किया ? यह जानने के लिए हमे थोड़ा इतिहास में झाकना पड़ेगा | प्राचीन उत्तर भारत में अफगानिस्तान व स्वात घाटी से लेकर मथुरा , आगरा व बौद्ध गया तक जाटों का गढ़ था जहाँ बोद्ध धर्म का ढंका बज रहा था | इस सच्चाई को चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा हैं कि (जिसने सन 399 से 414 तक उत्तर भारत कि यात्रा कि ) इस क्षेत्र में कहीं कहीं ब्रह्मण थे , जो छोटे छोटे मंदिरों में पूजा किया करते थे | यात्री ने इनके धर्म को केवल ब्राह्मणवाद ही लिखा हैं , जबकि उसने जैन धर्म को मानने वालो कि संख्या तक का वर्णन किया हैं | फाह्यान ने अपनी यात्रा व्रतांत चीनी भाषा में लिखा हैं जिसका अंग्रेजी में सबसे पहले अनुवाद जमेस लीगी ने किया , जिसमे अपने अनुवाद में इन ब्राह्मणों को heretics brahmins अर्थात विधर्मी ब्रह्मण लिखा हैं | अर्थात इन ब्राह्मणों का कोई धर्म नहीं था इस कारण पूजा के नाम से इनका गुजर बसर बहुत ही कठिनाई से चल रहा था | जाट बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण इन्होने जाटों को खुश करने के लिए अपने मंदिरों में जाट महापुरुषों उदाहरण के लिए शिवजी , श्रीराम ,. श्रीक्रिशन , श्रीहनुमान , गणेश आदि कि मुर्तिया स्थापित कि इससे जाट लोग भी इन्हें कुछ दान पुन्य करने लगे और समय आते आते कुछ जगह ब्रह्मण राजाओ का राज आने पर साथ साथ ब्राह्मणों कि भी पूजा होने लगी | इस काल में कुछ जाट मूर्ति पूजक होकर ब्रह्मण का समर्थन करने लगे थे | महाराजा हर्षवर्धन बैंस कि मृत्यु ( सन 647 ) के पश्चात जिनका कोई वंशज नहीं था , मौका देख कर व अवसर का लाभ उठाते हुए , ब्राह्मणों ने माउन्ट आबू पर्वत पर ब्रह्त्त यज्ञ के नाम से एक यज्ञ रचाकर अग्निकुंड से राजपूत जाति कि उत्पति का ढोंग रचाया | इसी कारण केवल चार गोत्रो के राजपूत अपने आपको अग्निवंशीय राजपूत कहते हैं | जबकि अग्नि से एक चींटी भी पैदा नहीं हो सकती हैं क्योंकि अग्नि का स्वभाव जलाने व भस्म करने का हैं , पैदा करने का नहीं |
    इससे स्पष्ट हैं कि ब्रह्मण धर्म अर्थात हिन्दू धर्म जाटों का धर्म न कभी था और न अभी हैं | जो धर्म वास्तव में हैं ही नहीं , तो उसे धारण करने का प्रशन ही पैदा नहीं होता | इसलिए प्रशन पैदा होता हैं कि हम जाटों को अभी किस धर्म को धारण करना चाहिए | इससे पहले हमे सभी मुख्य धर्मो को संक्षेप में समझना हैं | हम सबसे पहले जाटों के प्राचीन धर्म बौद्ध कि बात करेंगे | याद रहे बौद्ध धर्म अहिंसा पर आधारित हैं और इसी अहिंसा के सिद्धांत के कारण प्राचीन में जाटों के राज गए इसलिए इसे क्षत्रिय धर्म नहीं कहा जा सकता , जो जाटों के स्वभाव के उपयुक्त नहीं हैं | इसलिए इस धर्म को धारण करने का कोई औचित्य नहीं | इसके बाद संसार के लोगो का एक बड़ा धर्म इस्लाम धर्म हैं , जिसमे हिन्दू कहे जानेवालो जाटों से अधिक मुसलमान जाट हैं | लेकिन इन तथाकथित हिन्दू जाटों के दिलों में सदियों से ब्राह्मणवादी प्रचार ने कूट कूट कर नफरत पैदा कर दी और उसे एक गाली के समान बना दिया जिस कारण यह जाट वर्तमान में इस धर्म को नहीं पचा पाएंगे | हालांकि इस्लाम धर्म कि तरह जाट कौम एकेश्वरवाद में विश्वास करने वाली तथा मूर्ति पूजा विरोधी हैं | इसके बाद दुनिया का सबसे विकासशील और शिक्षित धर्म ईसाई धर्म हैं जो दया और करुना पर आधारित धर्म हैं | परन्तु जाट कौम सालों से इस धर्म के प्रति किसी भी प्रकार कि न तो कोई सोच रखे हुए हैं और न ही इसका कोई ज्ञान | इसलिए इतनी बड़ी कौम को ईसाई धर्म के विचार में अचानक डालना एक मूर्खतापूर्ण कदम हैं | इसके बाद एक और भारतीय जैन धर्म हैं जो पूर्णतया अहिंसावादी सिद्धांत वाला हैं , इसलिए इसके बारे में विचार करना जाट कौम के लिए निरर्थक हैं | इसके बाद नवीनतम धर्म सिक्ख धर्म हैं | वर्तमान में सिक्ख धर्म में 70% जाट हैं और यह मुगलों से लड़ते - लड़ते बहादुरी का प्रतिक होते - होते स्थापित हुआ , जिसमे कमा के खाना सर्वोपरि हैं | यह धर्म पाखंडवाद और असमानता का विरोधी हैं | सेवाभाव में विश्वास करनेवाला एवंम ब्राह्मणवाद का विनाश करने वाला धर्म हैं | यह धर्म आधुनिक , विकासशील व प्रगतिशील और अपनी सुरक्षा करने में सदैव सक्षम हैं | आज तक कि लड़ाइयो से यह सिद्ध हो चूका हैं कि इस धर्म के लोग सबसे अधिक देशभक्त और लड़ाकू हैं | यह धर्म जाट परम्परों और उनकी संस्कृति के सर्वथा अनुकूल हैं | जिसको ग्रहण करने में जाटों को किसी भी प्रकार कि कोई परेशानी नहीं होगी | वैसे भी निरुक्त ग्रंन्थ में लिखा : जटायते इति जाटयम | अर्थात जो जटाएं रखते हैं , वे असली जाट कहलाते हैं | भाषा किसी भी धर्म को ग्रहण करने में कोई बाधा नहीं होती | इस धर्म को रख पाने में जब पंजाब के जाट को कोई परेशानी नहीं हैं तो हमको कैसे होगी ? यदि भविष्य में जाट कौम अपनी इज्जत , शान और अपने आत्मसम्मान कि रक्षा के लिए इस गौरवपूर्ण एवंम स्वाभिमानी सिक्ख धर्म को धारण करती हैं तो हमारा भविष्य निश्चित ही उज्जवल होगा क्योंकि मैं दावे से लिख रहा हु कि जाट कौम अपने आप को हिन्दू कहकर कभी भी शिखर पर नहीं जा सकती और कभी चली भी गई तो कोई उसे रहने नहीं देगा | इस बात को चौ. चरण सिंह ने भी अपने जीवन में स्वीकार किया था और कहा कि काश . मैं ब्राह्मण होता | हम ब्राह्मण बन नहीं सकते , सिक्ख बन सकते हैं | चौ. छोटूराम ने भी जाट गजट के अंक सन 1924 में जाटों को सिक्ख धर्म अपनाने कि वकालत कि थी | जिसकी निंदा पंडित श्रीराम शर्मा ने अखबार हरियाणा तिलक ने 17 अप्रैल 1924 को छपी थी |
    जाट भाइयों , आओ और खुले दिल और दिमाग से इस पर विचार मंथन करे और कौम को पाखंडवाद और कायरता कि गुलामी से मुक्त करे | जय जाट | जोर से कहो . जो बोले सो निहाल , सत श्री अकाल |
    राज करेगा खालसा , आकी रहै न कोई |
    अर्थात भविष्य में खालिश व पवित्र लोग राज कर सकेंगे आकी अर्थात कोई गुंडा , पाखंडी और लुटेरा नहीं रह पायेगा |
    Last edited by raka; May 16th, 2011 at 08:49 PM.
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

  3. #3
    Rakesh, I am afraid the above text may not be read on most computers. I have Windows XP, using IE browser but text is appearing garbled. When I copied the text to MS Word, it shows 'Chanakya' font which is not supported by Unicode, hence not web-compatible.

    Please tell the source from where 'Chanakya' font can be downloaded and installed on computers.

    .

    .
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  4. #4
    Rakesh your text is unreadable in my computer, but religion of jat is KARAM, DAYA, JUSTICE

  5. #5
    click on the below link, from there you can take the font , it will work i think

    http://practice.haryanapoliceacademy.org/
    Khudi ko kar buland itna ke har taqder se pehle
    Khuda bande se ye poche bata teri raza kia hai

  6. #6
    क्या तथाकथित हिन्दू जाटों को कोई धर्म धारण करना आवश्यक हैं ?
    - पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान
    मो. +919416056145

    हां, तथाकथित हिंदू जाटों को कोई धर्म धारण करना आवश्यक है, अन्यथा यह दुनिया उन्हें हराम की संतान का नाम दे देगी.

    धर्म का अर्थ हैं : धारणात धर्म : अर्थात धारण करने को धर्म कहते हैं | संसार में विभिन्न सामाजिक समूहों द्वारा अपने कुछ नियम , एक चिन्ह , एक स्थान . एक धर्म गुरु , एक पूजा पद्धति तथा एक धर्म ग्रन्थ निर्धारित करके उनको धारण कर लिया और उन्होंने अपने अलग - अलग धर्म स्थापित कर लिए | उदाहरण स्वरूप मुस्लिम, ईसाई , सिक्ख , जैन , तथा बौद्ध आदि | लेकिन केवल हिन्दू धर्म ही ऐसा धर्म हैं , जिसका ऊपर वर्णित कोई भी एक चीज नहीं हैं और इससे भी बड़ा आश्चर्यजनक प्रमाण हैं कि हिन्दू कहे जाने वाले ग्रंथो में जैसा कि वेद , उपनिषद , शास्त्र , गीता , रामायण , महाभारत तथा पुराणों में कही भी हिन्दू शब्द या हिन्दू धर्म का उल्लेख तक नहीं हैं | इसीलिए हिन्दू धर्म को धर्म कहना एक मुर्खता एवं अज्ञानता हैं |


    हिंदू धर्म के भी नियम हैं, चिह्न है (ॐ), चूंकि हिंदू धर्म एक सनातन धर्म है, अतः अयोध्या, मथुरा, चार धाम जैसे कई स्थान हिंदू तीर्थ माने जाते हैं, धर्म गुरु भी अनेकों हैं, जिनमें शिवजी, श्रीराम, श्रीकृष्ण तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं. 'गीता' नामक विश्वप्रसिद्ध ग्रंथ भी है. अगर ऊपर वर्णित ग्रंथों में वर्णित होने के बाद ही कोई धर्म प्रमाणित होता है तो उनमें तो इस्लाम, ईसाईयत, सिख इत्यादि धर्मों का भी उल्लेख नहीं है.

    इसी सच्चाई के आधार पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय कि तीन जजों के पीठ ने रमेश यशवंत बनाम श्री प्रभाकर काशीनाथ कुंटे के केस में दिनांक 11 -12 -1995 को अपने फैसले में सपष्ट किया था कि हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं हैं | हालांकि न्यायालय ने इसे जीवन पद्धति कहा | लेकिन हिंदूओ कि यह जीवन पद्धति भी हिन्दू समाज में पुरे देश में आपस में कही भी मेल नहीं खाती | उदाहरण के लिए उत्तर भारत में अपनी बहन कि बेटी को अपनी बेटी समान तो बुआ और मामा कि बेटी को बहन का दर्जा प्राप्त हैं जबकि दक्षिण भारत के हिंदूओ (ब्रह्मण) में ठीक इसके विपरीत इनको अपनी पत्नी के रूप में ग्रहण किया जाता हैं | इसी प्रकार अनेक हिंदूओ के नियम व संस्कार आपस में कहीं भी मेल नहीं खाते | उदाहरण के लिए हिन्दू समाज में उच्च जातियां कहीं जाने वाले समाज में विधवा का पुनर्विवाह करना अधर्म माना जाता रहा जबकि अन्य जातियों में ऐसा करना अपना धर्म समझा गया | जाटों में विधवाओ का चाहे उस स्त्री का मुकलावा (संयोग) हुआ हो या न हुआ हो , पुनर्विवाह एक धार्मिक कर्त्य समझा गया , इसी कारण जाटों में एक कहावत प्रचलित हुई : जाटनी कभी विधवा नहीं होती | और इस पर जाट कौम गर्व करती आई हैं | लेकिन अफ़सोस हैं कि स्वामी दयानंद के जाट शिष्य आज तक यह प्रचार करते रहे हैं कि स्वामी दयानंद ने विधवा विवाह का समर्थन किया और जाटों को क्षत्रिय माना | जबकि सत्यार्थ प्रकाश के चौथे सम्मुलास के पेज नंबर 74 के एक श्लोक में कहा हैं कि ऐसा केवल शुद्र वर्ण ही कर सकता हैं | बाकी के वर्ण कि विधवा स्त्री को मुकलावा होने के बाद पुनर्विवाह कि अनुमति नहीं हैं | इससे स्पष्ट होता हैं कि स्वामी जी ने जाटों को शुद्र माना न कि क्षत्रिय | इसलिए हमारी प्राथना हैं कि आर्य समाजी जाट भाई सत्यार्थ प्रकाश को गौर से पढ़े | इसी प्रकार जाट आर्य समाजियों ने चौ. छोटूराम को एक आर्य समाजी कहकर भारी भूल कि हैं क्योंकि सर्वविदित हैं कि आर्य समाज जाती - पाति पर नहीं , वर्ण व्यवस्था पर आधारित हैं | जबकि चौ. छोटूराम जाट जाति के संगठन जाट सभा के काफी वर्षो तक अध्यक्ष रहे और उन्होंने संयुक्त पंजाब में अपने हिन्दू मुस्लिम और सिक्ख जाट भाइयों को एक मंच पर खड़ा कर दिया | यह कार्य आर्यसमाजी कभी नहीं कर सकता हैं | इससे स्पष्ट हैं कि जब कोर्ट के अनुसार हिन्दू धर्म ही नहीं हैं तो हिन्दू मैरिज एक्ट कैसे वैध हो सकता हैं ?
    हिंदूओ का एक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख पंडित मोहन भागवत को कहना पड़ा कि हिन्दू न तो कोई धर्म हैं और न ही जाति | जबकि वे स्वयं ब्रह्मण जाति से संबंध रखते हैं और हिन्दुत्व का प्रचार करते हुए हिन्दू अर्थात ब्रह्मण संगठन चलते हैं | ( पंजाब केसरी पेज नंबर 3 , दिनांक 17 -10 -2009 )
    इसी प्रकार पंजाब के परिवहन मंत्री मा. मोहनलाल ने पंजाब केसरी पत्र के माध्यम से अपने लेख में स्पष्ट लिखा हैं कि हिन्दू कोई धर्म या मजहब नहीं , अपितु एक जीवन पद्धति हैं | जबकि मंत्री जी स्वयं भाजपा के नेता होते हुए हिन्दुत्व का अलाप करते रहे हैं | जिसे ये लोग पद्धति कहते हैं , जब हिन्दू कोई धर्म ही नहीं तो इसकी पद्धति कहा से आ गई ? जब कोई वस्तु संसार में हैं ही नहीं तो उसका गुण स्वभाव कैसे जाना जायेगा लेकिन बड़े आश्चर्य कि बात हैं कि उपरोक्त टिप्पणियों के बावजूद हिन्दू धर्म के चार शंकराचार्य इस विषय पर मौन क्यों हैं ?


    पता नहीं लेखक महोदय बार-बार इस बात पर क्यों जोर दे रहे हैं कि हिंदू कोई धर्म ही नहीं है, क्योंकि उसका कहीं बतौर धर्म उल्लेख ही नहीं है. धर्म है क्या. जो धारण किया जाए. खुद को हिंदू कहने वालों ने इसे धारण कर लिया तो बस हो गए हिंदू. अब कहने को यदि यह कह दिया जाए कि इस्लाम, ईसाईयत, सिख जीवन पद्धति हैं, ना कि कोई धर्म, तो इस बात का मतलब क्या है? मैं कहता हूं कि मैं हिंदू हूं. मैं शिव, श्रीराम, श्रीकृष्ण सहित अन्य हिंदू महापुरुषों का सम्मान करता हूं, मुझे ॐ चिह्न पसंद है, मुझे होली-दीपावली और अन्य हिंदू त्यौहार पसंद है, यदि कहीं खुद को हिंदू कहने वालों पर कोई परेशानी आती है तो मैं भी परेशान हो उठता हूं कि मेरे हिंदू भाई परेशान हैं. एक धर्म यही तो है. धर्म जोड़ता है, धर्म एकजुट करता है. यह काम 'हिंदू' शब्द बखूबी कर रहा है. अतः इस बात के कोई मायने नहीं हैं कि हिंदू एक जीवन पद्धति है, ना कि कोई धर्म. इस दुनिया में 'बच्चन' कायस्थ जाति का कोई गोत्र नहीं है, लेकिन हरिवंश राय 'बच्चन' (श्रीवास्तव) ने इसे बतौर उपनाम ऐसा अपनाया कि अब यह एक गोत्र बन गया है. इस दुनिया में 'नेहरू' ब्राह्मणों का कोई गोत्र नहीं है, लेकिन जवाहर लाल नेहरू के दादा ग्यासुद्दीन गाजी (जो कि एक मुसलमान थे और जिन्होंने हिंदू धर्म ग्रहण कर लिया था) एक नहर किनारे रहते थे, जिस वजह से सब उन्हें नेहरू कहने लगे. अब कोई यह कहे कि नेहरू तो गोत्र होता ही नहीं है. सब ब्राह्मण जवाहर लाल नेहरू को एक ब्राह्मण मानते हैं, क्योंकि उनके दादा खुद को ब्राह्मण मानने लगे थे.

    हमने इस लेख के शीर्षक में तथाकथित शब्द का इस्तेमाल किया हैं क्योंकि जब हिन्दू धर्म ही नहीं हैं तो स्वाभाविक हैं कि जाट भी हिन्दू नहीं हैं | इसी कारण आज जाट कौम को 1955 हिन्दू विवाह कानून के कारण ही कष्ट और शर्मिंदगी उठानी पड़ रही हैं |

    जाट से ज्यादा तो कोई हिंदू ही नहीं है. भले ही कहीं कोई उल्लेख हो या ना हो, लेकिन यह दुनिया 'हिंदू' को एक धर्म ही मानती है. जो खूबियां एक धर्म में होनी चाहिए, वे सभी इस धर्म में हैं.

    जहाँ तक हिन्दुइज्म के आध्यात्म कि बात हैं , इस पर डा.हरदयाल ने एक बहुत सुंदर टिपण्णी करते हुए इसे उटपटांग कि संज्ञा दी हैं और आगे लिखा हैं कि : " हिन्दू अध्यात्म विद्या भारत का कलंक रही हैं जिसने भारतीय इतिहास को चौपट कर दिया और उसे विनाश में डालकर उन्हें निरर्थक जिज्ञासा और चेष्ठा के गलियारे में भटका दिया | उसने कुतर्क को कला और कपोल कि कल्पनाओ को ज्ञान के ऊँचे सिंहासन पर बैठा दिया | जिसने भारतीय को इतना निकम्मा बना दिया कि वे संकैड़ो सालों तक कोल्हू के बैल कि तरह उसी पुराने ढर्रे पर चलते हुए गुलामी कि जिल्लत झेलते रहे | कल्पना कि बेवकूफ भरी उड़ाने , विचित्र भ्रांतियों और अंट- शंट अटकलबाजियों से ग्रन्थ के ग्रन्थ भरे पड़े हैं जिन्हें हम अभी तक नहीं समझ पाए कि वे सभी व्यर्थ हैं |" इसी कारण यह सवर्ण हिन्दू समाज चींटियों को चीनी डालेगा , हवन यज्ञ में मूल्यवान सामग्री भस्म करेगा , सूर्य को पानी पहुचाएगा , मूर्तियों को भोग लगाएगा , मिठाई खिलाएगा और दूध पिलाएगा , बंदरों को केला और चना खिलाएगा और शनि महाराज को तेल पिलाएगा लेकिन गरीब को एक बूंद पानी तथा रोटी का टुकड़ा देने में भी रोएगा | इनमे से कुछ तो ऐसे भी हैं जो कि अपने बूढ़े माँ - बाप से झाड़ू पोचा तथा बर्तन साफ़ करवाने तक का काम भी करवाते हैं | इन्होने भगवान को वश में करने के तरीके तो ढूंढ़ लिए और कहते हैं कि हर प्राणी में ईश्वर समान रूप से वास करता हैं , लेकिन क्या इन्होने कभी इंसानों से भी समान रूप से व्यवहार किया हैं ?

    गुलाम तो चीन और अमेरिका के लोग भी रहे हैं, वे तो हिंदू नहीं थे. चींटियों को चीनी डालना, बंदरों को केले और चने खिलाना यदि किसी को पाखंड लगता है तो लानत है ऐसे मूर्ख की बुद्धि पर. बूढ़े मां-बाप से झाड़ू-पोचा तथा बर्तन साफ़ करवाने वाले सभी धर्मों में हैं.

    लेकिन अभी प्रश्न पैदा होता हैं कि फिर भी धर्म आवश्यक क्यों हैं ? क्योकि इंसान जितना मजबूत हैं उतना ही कमजोर भी हैं और उसके इस कमजोर पक्ष को किसी सहारे कि जरुरत पड़ती हैं , जिसे हम आस्था कहते हैं और इसी आस्था को कायम रखने के लिए किसी धर्म का सहारा लेना पड़ता हैं | इसीलिए मानव जाति के लिए धर्म एक सर्वाधिक शक्तिशाली प्रेरक शक्ति हैं | लेकिन अफ़सोस हैं कि यही धर्म और आस्था , पाखंडवाद , अन्धविश्वास और जादू - टोनों में भटक कर रह जाता हैं | जबकि धर्म का सर्वोत्तम नियम कमा कर खाने का हो , उसमे आत्मसम्मान और आत्मविश्वास श्रेष्ठ हो और धर्म अन्धविश्वास , गुरुडम और मूर्तिपूजा का विरोधी हो , ऐसा धर्म कभी न हो जिसमे नंगे बाबा , भगवाधारी , अवधूत साधू , पांडे - पुजारी और मठाधीश आदि अपने राष्ट्र पर बोझ बनकर रहे |


    लगता है लेखक महोदय निहंगों, उलेमाओं, फकीरों, पादरियों के अस्तित्व को भूल गए हैं.
    जो लोग मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं, मैं उन सबको मूर्ख करार देता हूं और उन्हें खुली चुनौती देता हूं कि मेरे इस तर्क का जवाब दें:
    'मेहनत करना एक बहुत ही अच्छी बात है. यदि कोई एक ही चीज में लंबे समय तक मेहनत करता है तो उसे उसका फल जरूर मिलता है. किसी पत्थर की पूजा करना भी एक किस्म की मेहनत है. यदि कोई प्रेरक व्यक्तित्व किसी समूह, धर्म, जाति में पैदा हुआ हो तो फिर पत्थर की जगह उसकी पूजा करने में क्या हर्ज है? मायने तो उस मूर्ति के बहाने की गई मेहनत के हैं. मूर्ति की नियमित रूप से पूजा करने का अर्थ है अच्छा बनने के लिए मेहनत करना. ऐसे में मूर्ति पूजा कैसे गलत है?'
    अन्य धर्म के लोग भी मूर्ति पूजा तो खूब करते, लेकिन उनमें कोई ऐसा पैदा तो हो पहले, जिसकी मूर्ति लगाई जा सके. मुस्लिम सद्दाम हुसैन को अल्लाह का दूत मानते थे और उसकी तस्वीर लगाकर खूब उसकी पूजा करते थे. वो तो सद्दाम हुसैन एक साधारण इंसान सिद्ध हुआ, अन्यथा बहुत संभव था कि उसकी मूर्ति की पूजा होने लगती.

    ...to be continued...
    Last edited by upendersingh; May 18th, 2011 at 04:12 AM.

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    annch (May 18th, 2011), Arveend (May 6th, 2012), narvir (July 2nd, 2012), vijaykajla1 (May 29th, 2011), VirJ (May 18th, 2011)

  8. #7
    जब संसार के दुसरे लोगो को धर्म कि आवश्यकता हैं तो फिर जाट कौम को क्यों नहीं होगी | यदि हम जाट कौम के सिद्धांत , आचरण परम्पराए और उनकी संस्कृति को हिन्दू धर्म से मिलाते हैं तो उनमे कोई मेल नहीं हैं | उदाहरण के लिए जाटों कि विधवा विवाह प्रथा , मूर्तिपूजा का न होना , गोत्र प्रथा , खाप प्रथा , समानता का सिद्धांत , कट्टर छुआछात को न मानना तथा सबसे बढकर जाट कौम इस देश में ही नहीं , संसार में सबसे बड़ी शाकाहारी कौम हैं जो जिव - हत्या कि पूर्णतया विरोधी हैं | जबकि उत्तर पूर्व के हिन्दू मंदिरों में पशुओ कि बलि दी जाती हैं तो जाट बाहुल्य क्षेत्र को छोड़ कर पुरे देश का ब्रह्मण मासाहारी हैं और केरला का हिन्दू तो बीफ ( गाये - बछड़े का मॉस ) तक खाता हैं | पुस्तकों में तो यहाँ तक लिखा हैं कि वैदिक काल में ब्रह्मण गाये का मॉस खाते थे | इस बात को इतिहासकार पंडित रामशरण शर्मा ने सवीकार किया हैं | इसके अतिरिक्त विधवा विवाह का विरोध करने वालो से ही रखेल प्रथा वेश्या प्रथा का जन्म हुआ और मंदिरों में देवदासियां पहुचाई | इस बारे में विस्तार से न लिखते हुए संक्षेप में इतना ही कहना सार्थक होगा कि हिन्दू धर्म एक ब्रह्मण धर्म हैं और हिन्दुत्व ब्राह्मणवाद हैं जिसने शैन:- शैन: वैदिक धर्म को भी अपने अंदर अपने स्वार्थवश समेट लिया , इस कारण वैदिक धर्म संविधान और कानून से लोप होकर ब्राह्मणवाद में समा गया | आश्चर्यजनक बात तो यह हैं कि हिन्दू धर्म नहीं हैं तो इस देश में 1955 हिन्दू विवाह कानून कैसे लागु हैं ?
    यह ब्रह्मण धर्म जाट कौम का कभी धर्म नहीं रहा | इससे पहले प्राचीन में जाट प्रकर्ति कि पूजा करते थे उनके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण किया , जिसका मुख्य कारण था जाट राजा बौद्ध धर्मी हो गए थे | इस कारण जाट प्रजा भी बौद्ध धर्मी हो गई अर्थात यथा राजा तथा प्रजा | उदाहरण के लिए अशोक मोर गोत्रीय जाट , कनिष्क कुषाण गोत्रीय जाट , हर्षवर्धन बैंस गोत्रीय जाट तथा यशोधर्मा विर्क गोत्रीय जाट आदि सभी बौद्ध धर्म के मानने वाले थे | इसलिए आज भी जाट कोई भी नुक्सान होने पर बार बार अपने प्राचीन धर्म बौद्ध के प्रतिक मठ को याद करता हैं | मठ मार दिया , मठ मार दिया | वह इसीलिए कहता हैं क्योंकि कट्टरपंथी ब्रह्मंवादियो ने हमारे इन बौद्ध मठो को बर्बाद कर दिया था | जाटों का शाकाहारी होना और विधवा विवाह प्रथा आदि आज भी जाटों में बौद्ध धर्म के संस्कार हैं |
    लेखक की बातों में कोई दम नहीं है. ब्राह्मणों की इतनी कूवत नहीं कि वे हिंदू धर्म जैसा सनातन और महान धर्म उत्पन्न कर सकते. अगर यह हिंदू धर्म जाटों का कभी धर्म नहीं रहा तो लेखक महोदय क्यों अपने नाम के बीच में यह 'सिंह' लगाए हुए हैं. यह तो हिंदुओं की ही देन है, जिसे बाद में सिखों ने अपनाया. जाट क्यों छोटूराम, चंदगीराम जैसे नामों के चक्कर में पड़े? यदि अशोक, कनिष्क, हर्षवर्धन सचमुच जाट ही थे तो इसका मतलब यह कैसे लगा लिया गया कि उस समय सभी जाट बौद्ध थे? महाराजा रणजीत सिंह सिख थे, लेकिन उस समय सारे जाट सिख थे, ऐसा कहना तो मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं.

    ...to be continued...

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    Arveend (May 6th, 2012), narvir (July 2nd, 2012)

  10. #8
    Quote Originally Posted by Fateh View Post
    Rakesh your text is unreadable in my computer, but religion of jat is KARAM, DAYA, JUSTICE
    Quote Originally Posted by dndeswal View Post
    Rakesh, I am afraid the above text may not be read on most computers. I have Windows XP, using IE browser but text is appearing garbled. When I copied the text to MS Word, it shows 'Chanakya' font which is not supported by Unicode, hence not web-compatible.

    Please tell the source from where 'Chanakya' font can be downloaded and installed on computers.

    .

    .


    Deshwal ji!, Fateh ji!,
    Try Google Chrome!
    Hope this will solve the problem!
    इस ज़मीं आसमा से आगे हूँ.... वक़्त के कारवा से आगे हूँ ... मैं कहा हूँ ये खुदा जाने ..... कल जहा था वहा से आगे हूँ .....
    Never discourage anyone who continually makes progress, no matter how slow

  11. #9
    Though, the article make sense to some extent but writer has assumed furiously and made it ridiculous at many place.
    Become more and more innocent, less knowledgeable and more childlike. Take life as fun - because that's precisely what it is!

  12. #10
    I don't see any logic in following the tenets of any particular religion in toto. Why to label ourselves as Sikhs and play second fiddle to the original Sikhs. I have noticed that those Sikhs who are converts from other religions, especially from the so called lower castes, do not enjoy the equal respectability and very often there are skirmishes between them and the aborigines. I think the frequent clashes between Dera Sacha Suada followers and the Sikh groups is an example. However, some of the observations made by the author in his article about hypocrisy in Hindu Religion and certain myths are correct. But the advice to get the Jats converted to one particular religion overnight is devoid of any substance and scientific reasoning. Humanism is the best religion and we should first try to be good human beings.
    Last edited by singhvp; May 19th, 2011 at 07:01 PM.

  13. The Following 5 Users Say Thank You to singhvp For This Useful Post:

    Ankurbaliyan (May 19th, 2011), navdeepkhatkar (June 25th, 2011), prashantacmet (May 19th, 2011), rajneeshantil (December 21st, 2011), vijaykajla1 (May 29th, 2011)

  14. #11
    DEAR SIR,I have readout very anlytical facts given by you and it forced me to read out full detail. it is very intersting. I will go in deep and will in touch with you.
    Quote Originally Posted by raka View Post
    लेकिन यह प्रशन पैदा होता हैं कि जाटों ने इस ब्राह्मणवाद में प्रवेश कैसे किया ? यह जानने के लिए हमे थोड़ा इतिहास में झाकना पड़ेगा | प्राचीन उत्तर भारत में अफगानिस्तान व स्वात घाटी से लेकर मथुरा , आगरा व बौद्ध गया तक जाटों का गढ़ था जहाँ बोद्ध धर्म का ढंका बज रहा था | इस सच्चाई को चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा हैं कि (जिसने सन 399 से 414 तक उत्तर भारत कि यात्रा कि ) इस क्षेत्र में कहीं कहीं ब्रह्मण थे , जो छोटे छोटे मंदिरों में पूजा किया करते थे | यात्री ने इनके धर्म को केवल ब्राह्मणवाद ही लिखा हैं , जबकि उसने जैन धर्म को मानने वालो कि संख्या तक का वर्णन किया हैं | फाह्यान ने अपनी यात्रा व्रतांत चीनी भाषा में लिखा हैं जिसका अंग्रेजी में सबसे पहले अनुवाद जमेस लीगी ने किया , जिसमे अपने अनुवाद में इन ब्राह्मणों को heretics brahmins अर्थात विधर्मी ब्रह्मण लिखा हैं | अर्थात इन ब्राह्मणों का कोई धर्म नहीं था इस कारण पूजा के नाम से इनका गुजर बसर बहुत ही कठिनाई से चल रहा था | जाट बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण इन्होने जाटों को खुश करने के लिए अपने मंदिरों में जाट महापुरुषों उदाहरण के लिए शिवजी , श्रीराम ,. श्रीक्रिशन , श्रीहनुमान , गणेश आदि कि मुर्तिया स्थापित कि इससे जाट लोग भी इन्हें कुछ दान पुन्य करने लगे और समय आते आते कुछ जगह ब्रह्मण राजाओ का राज आने पर साथ साथ ब्राह्मणों कि भी पूजा होने लगी | इस काल में कुछ जाट मूर्ति पूजक होकर ब्रह्मण का समर्थन करने लगे थे | महाराजा हर्षवर्धन बैंस कि मृत्यु ( सन 647 ) के पश्चात जिनका कोई वंशज नहीं था , मौका देख कर व अवसर का लाभ उठाते हुए , ब्राह्मणों ने माउन्ट आबू पर्वत पर ब्रह्त्त यज्ञ के नाम से एक यज्ञ रचाकर अग्निकुंड से राजपूत जाति कि उत्पति का ढोंग रचाया | इसी कारण केवल चार गोत्रो के राजपूत अपने आपको अग्निवंशीय राजपूत कहते हैं | जबकि अग्नि से एक चींटी भी पैदा नहीं हो सकती हैं क्योंकि अग्नि का स्वभाव जलाने व भस्म करने का हैं , पैदा करने का नहीं |
    इससे स्पष्ट हैं कि ब्रह्मण धर्म अर्थात हिन्दू धर्म जाटों का धर्म न कभी था और न अभी हैं | जो धर्म वास्तव में हैं ही नहीं , तो उसे धारण करने का प्रशन ही पैदा नहीं होता | इसलिए प्रशन पैदा होता हैं कि हम जाटों को अभी किस धर्म को धारण करना चाहिए | इससे पहले हमे सभी मुख्य धर्मो को संक्षेप में समझना हैं | हम सबसे पहले जाटों के प्राचीन धर्म बौद्ध कि बात करेंगे | याद रहे बौद्ध धर्म अहिंसा पर आधारित हैं और इसी अहिंसा के सिद्धांत के कारण प्राचीन में जाटों के राज गए इसलिए इसे क्षत्रिय धर्म नहीं कहा जा सकता , जो जाटों के स्वभाव के उपयुक्त नहीं हैं | इसलिए इस धर्म को धारण करने का कोई औचित्य नहीं | इसके बाद संसार के लोगो का एक बड़ा धर्म इस्लाम धर्म हैं , जिसमे हिन्दू कहे जानेवालो जाटों से अधिक मुसलमान जाट हैं | लेकिन इन तथाकथित हिन्दू जाटों के दिलों में सदियों से ब्राह्मणवादी प्रचार ने कूट कूट कर नफरत पैदा कर दी और उसे एक गाली के समान बना दिया जिस कारण यह जाट वर्तमान में इस धर्म को नहीं पचा पाएंगे | हालांकि इस्लाम धर्म कि तरह जाट कौम एकेश्वरवाद में विश्वास करने वाली तथा मूर्ति पूजा विरोधी हैं | इसके बाद दुनिया का सबसे विकासशील और शिक्षित धर्म ईसाई धर्म हैं जो दया और करुना पर आधारित धर्म हैं | परन्तु जाट कौम सालों से इस धर्म के प्रति किसी भी प्रकार कि न तो कोई सोच रखे हुए हैं और न ही इसका कोई ज्ञान | इसलिए इतनी बड़ी कौम को ईसाई धर्म के विचार में अचानक डालना एक मूर्खतापूर्ण कदम हैं | इसके बाद एक और भारतीय जैन धर्म हैं जो पूर्णतया अहिंसावादी सिद्धांत वाला हैं , इसलिए इसके बारे में विचार करना जाट कौम के लिए निरर्थक हैं | इसके बाद नवीनतम धर्म सिक्ख धर्म हैं | वर्तमान में सिक्ख धर्म में 70% जाट हैं और यह मुगलों से लड़ते - लड़ते बहादुरी का प्रतिक होते - होते स्थापित हुआ , जिसमे कमा के खाना सर्वोपरि हैं | यह धर्म पाखंडवाद और असमानता का विरोधी हैं | सेवाभाव में विश्वास करनेवाला एवंम ब्राह्मणवाद का विनाश करने वाला धर्म हैं | यह धर्म आधुनिक , विकासशील व प्रगतिशील और अपनी सुरक्षा करने में सदैव सक्षम हैं | आज तक कि लड़ाइयो से यह सिद्ध हो चूका हैं कि इस धर्म के लोग सबसे अधिक देशभक्त और लड़ाकू हैं | यह धर्म जाट परम्परों और उनकी संस्कृति के सर्वथा अनुकूल हैं | जिसको ग्रहण करने में जाटों को किसी भी प्रकार कि कोई परेशानी नहीं होगी | वैसे भी निरुक्त ग्रंन्थ में लिखा : जटायते इति जाटयम | अर्थात जो जटाएं रखते हैं , वे असली जाट कहलाते हैं | भाषा किसी भी धर्म को ग्रहण करने में कोई बाधा नहीं होती | इस धर्म को रख पाने में जब पंजाब के जाट को कोई परेशानी नहीं हैं तो हमको कैसे होगी ? यदि भविष्य में जाट कौम अपनी इज्जत , शान और अपने आत्मसम्मान कि रक्षा के लिए इस गौरवपूर्ण एवंम स्वाभिमानी सिक्ख धर्म को धारण करती हैं तो हमारा भविष्य निश्चित ही उज्जवल होगा क्योंकि मैं दावे से लिख रहा हु कि जाट कौम अपने आप को हिन्दू कहकर कभी भी शिखर पर नहीं जा सकती और कभी चली भी गई तो कोई उसे रहने नहीं देगा | इस बात को चौ. चरण सिंह ने भी अपने जीवन में स्वीकार किया था और कहा कि काश . मैं ब्राह्मण होता | हम ब्राह्मण बन नहीं सकते , सिक्ख बन सकते हैं | चौ. छोटूराम ने भी जाट गजट के अंक सन 1924 में जाटों को सिक्ख धर्म अपनाने कि वकालत कि थी | जिसकी निंदा पंडित श्रीराम शर्मा ने अखबार हरियाणा तिलक ने 17 अप्रैल 1924 को छपी थी |
    जाट भाइयों , आओ और खुले दिल और दिमाग से इस पर विचार मंथन करे और कौम को पाखंडवाद और कायरता कि गुलामी से मुक्त करे | जय जाट | जोर से कहो . जो बोले सो निहाल , सत श्री अकाल |
    राज करेगा खालसा , आकी रहै न कोई |
    अर्थात भविष्य में खालिश व पवित्र लोग राज कर सकेंगे आकी अर्थात कोई गुंडा , पाखंडी और लुटेरा नहीं रह पायेगा |

  15. #12
    From the thread : Killing of honour is also crime

    Quote Originally Posted by upendersingh View Post
    आर्य समाज हिंदू धर्म में तब व्याप्त कुरीतियों को नष्ट करने के लिए एक गुजराती ब्राह्मण सन्यासी स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा शुरू किया गया एक आंदोलन ही तो था... (Link)
    यहां जितने भी विवाहित जाट हैं, उनमें कितने ऐसे हैं, जिन्होंने अपने विवाह में मंत्र किसी हरिजन से पढ़वाए थे?
    Quote Originally Posted by VipinJyani View Post
    Bhai point to be noted s Upender.

    Mods may move these and related posts to "Jat ka dhram kaya he? " so that this thread doesnt get derailed.
    विपिन भाई, हिंदू धर्म की स्थापना का श्रेय किसी भी एक विभूति को नहीं दिया जा सकता. ठीक इसी प्रकार शिवजी, गणेश या हनुमान किस राज्य में पैदा हुए, इस संदर्भ में भी प्रामाणिक आधार पर कोई भी दावा नहीं कर सकता...ये तो उन सबके हैं, जो भी इनमें आस्था रखता है...

  16. #13
    Kisi bhi jati ka dharam decided ni ho sakta hai.
    dharam decide hota hai aapke k karam se.
    for examle agar koi teacher hai to uska dharam hai ki baalko ko acchi siksha dena,kisaan ka dharam hai kheti krna,fauji ka dharam hai desh ki raksha krna.vidhyarthi ka dharam hai padhai krna.
    Jati se dharam decide kran galat hai.

  17. #14

    Jaat Ka Dharam Kya Hai ?

    क्या तथाकथित हिन्दू जाटों को कोई धर्म धारण करना आवश्यक हैं ?
    - पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान
    मो. +919416056145
    धर्म का अर्थ हैं : धारणात धर्म : अर्थात धारण करने को धर्म कहते हैं | संसार में विभिन्न सामाजिक समूहों द्वारा अपने कुछ नियम , एक चिन्ह , एक स्थान . एक धर्म गुरु , एक पूजा पद्धति तथा एक धर्म ग्रन्थ निर्धारित करके उनको धारण कर लिया और उन्होंने अपने अलग - अलग धर्म स्थापित कर लिए | उदाहरण स्वरूप मुस्लिम, ईसाई , सिक्ख , जैन , तथा बौद्ध आदि | लेकिन केवल हिन्दू धर्म ही ऐसा धर्म हैं , जिसका ऊपर वर्णित कोई भी एक चीज नहीं हैं और इससे भी बड़ा आश्चर्यजनक प्रमाण हैं कि हिन्दू कहे जाने वाले ग्रंथो में जैसा कि वेद , उपनिषद , शास्त्र , गीता , रामायण , महाभारत तथा पुराणों में कही भी हिन्दू शब्द या हिन्दू धर्म का उल्लेख तक नहीं हैं | इसीलिए हिन्दू धर्म को धर्म कहना एक मुर्खता एवं अज्ञानता हैं | इसी सच्चाई के आधार पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय कि तीन जजों के पीठ ने रमेश यशवंत बनाम श्री प्रभाकर काशीनाथ कुंटे के केस में दिनांक 11 -12 -1995 को अपने फैसले में सपष्ट किया था कि हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं हैं | हालांकि न्यायालय ने इसे जीवन पद्धति कहा | लेकिन हिंदूओ कि यह जीवन पद्धति भी हिन्दू समाज में पुरे देश में आपस में कही भी मेल नहीं खाती | उदाहरण के लिए उत्तर भारत में अपनी बहन कि बेटी को अपनी बेटी समान तो बुआ और मामा कि बेटी को बहन का दर्जा प्राप्त हैं जबकि दक्षिण भारत के हिंदूओ (ब्रह्मण) में ठीक इसके विपरीत इनको अपनी पत्नी के रूप में ग्रहण किया जाता हैं | इसी प्रकार अनेक हिंदूओ के नियम व संस्कार आपस में कहीं भी मेल नहीं खाते | उदाहरण के लिए हिन्दू समाज में उच्च जातियां कहीं जाने वाले समाज में विधवा का पुनर्विवाह करना अधर्म माना जाता रहा जबकि अन्य जातियों में ऐसा करना अपना धर्म समझा गया | जाटों में विधवाओ का चाहे उस स्त्री का मुकलावा (संयोग) हुआ हो या न हुआ हो , पुनर्विवाह एक धार्मिक कर्त्य समझा गया , इसी कारण जाटों में एक कहावत प्रचलित हुई : जाटनी कभी विधवा नहीं होती | और इस पर जाट कौम गर्व करती आई हैं | लेकिन अफ़सोस हैं कि स्वामी दयानंद के जाट शिष्य आज तक यह प्रचार करते रहे हैं कि स्वामी दयानंद ने विधवा विवाह का समर्थन किया और जाटों को क्षत्रिय माना | जबकि सत्यार्थ प्रकाश के चौथे सम्मुलास के पेज नंबर 74 के एक श्लोक में कहा हैं कि ऐसा केवल शुद्र वर्ण ही कर सकता हैं | बाकी के वर्ण कि विधवा स्त्री को मुकलावा होने के बाद पुनर्विवाह कि अनुमति नहीं हैं | इससे स्पष्ट होता हैं कि स्वामी जी ने जाटों को शुद्र माना न कि क्षत्रिय | इसलिए हमारी प्राथना हैं कि आर्य समाजी जाट भाई सत्यार्थ प्रकाश को गौर से पढ़े | इसी प्रकार जाट आर्य समाजियों ने चौ. छोटूराम को एक आर्य समाजी कहकर भारी भूल कि हैं क्योंकि सर्वविदित हैं कि आर्य समाज जाती - पाति पर नहीं , वर्ण व्यवस्था पर आधारित हैं | जबकि चौ. छोटूराम जाट जाति के संगठन जाट सभा के काफी वर्षो तक अध्यक्ष रहे और उन्होंने संयुक्त पंजाब में अपने हिन्दू मुस्लिम और सिक्ख जाट भाइयों को एक मंच पर खड़ा कर दिया | यह कार्य आर्यसमाजी कभी नहीं कर सकता हैं | इससे स्पष्ट हैं कि जब कोर्ट के अनुसार हिन्दू धर्म ही नहीं हैं तो हिन्दू मैरिज एक्ट कैसे वैध हो सकता हैं ?
    हिंदूओ का एक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख पंडित मोहन भागवत को कहना पड़ा कि हिन्दू न तो कोई धर्म हैं और न ही जाति | जबकि वे स्वयं ब्रह्मण जाति से संबंध रखते हैं और हिन्दुत्व का प्रचार करते हुए हिन्दू अर्थात ब्रह्मण संगठन चलते हैं | ( पंजाब केसरी पेज नंबर 3 , दिनांक 17 -10 -2009 )
    इसी प्रकार पंजाब के परिवहन मंत्री मा. मोहनलाल ने पंजाब केसरी पत्र के माध्यम से अपने लेख में स्पष्ट लिखा हैं कि हिन्दू कोई धर्म या मजहब नहीं , अपितु एक जीवन पद्धति हैं | जबकि मंत्री जी स्वयं भाजपा के नेता होते हुए हिन्दुत्व का अलाप करते रहे हैं | जिसे ये लोग पद्धति कहते हैं , जब हिन्दू कोई धर्म ही नहीं तो इसकी पद्धति कहा से आ गई ? जब कोई वस्तु संसार में हैं ही नहीं तो उसका गुण स्वभाव कैसे जाना जायेगा लेकिन बड़े आश्चर्य कि बात हैं कि उपरोक्त टिप्पणियों के बावजूद हिन्दू धर्म के चार शंकराचार्य इस विषय पर मौन क्यों हैं ?
    हमने इस लेख के शीर्षक में तथाकथित शब्द का इस्तेमाल किया हैं क्योंकि जब हिन्दू धर्म ही नहीं हैं तो स्वाभाविक हैं कि जाट भी हिन्दू नहीं हैं | इसी कारण आज जाट कौम को 1955 हिन्दू विवाह कानून के कारण ही कष्ट और शर्मिंदगी उठानी पड़ रही हैं | जहाँ तक हिन्दुइज्म के आध्यात्म कि बात हैं , इस पर डा.हरदयाल ने एक बहुत सुंदर टिपण्णी करते हुए इसे उटपटांग कि संज्ञा दी हैं और आगे लिखा हैं कि : " हिन्दू अध्यात्म विद्या भारत का कलंक रही हैं जिसने भारतीय इतिहास को चौपट कर दिया और उसे विनाश में डालकर उन्हें निरर्थक जिज्ञासा और चेष्ठा के गलियारे में भटका दिया | उसने कुतर्क को कला और कपोल कि कल्पनाओ को ज्ञान के ऊँचे सिंहासन पर बैठा दिया | जिसने भारतीय को इतना निकम्मा बना दिया कि वे संकैड़ो सालों तक कोल्हू के बैल कि तरह उसी पुराने ढर्रे पर चलते हुए गुलामी कि जिल्लत झेलते रहे | कल्पना कि बेवकूफ भरी उड़ाने , विचित्र भ्रांतियों और अंट- शंट अटकलबाजियों से ग्रन्थ के ग्रन्थ भरे पड़े हैं जिन्हें हम अभी तक नहीं समझ पाए कि वे सभी व्यर्थ हैं |" इसी कारण यह सवर्ण हिन्दू समाज चींटियों को चीनी डालेगा , हवन यज्ञ में मूल्यवान सामग्री भस्म करेगा , सूर्य को पानी पहुचाएगा , मूर्तियों को भोग लगाएगा , मिठाई खिलाएगा और दूध पिलाएगा , बंदरों को केला और चना खिलाएगा और शनि महाराज को तेल पिलाएगा लेकिन गरीब को एक बूंद पानी तथा रोटी का टुकड़ा देने में भी रोएगा | इनमे से कुछ तो ऐसे भी हैं जो कि अपने बूढ़े माँ - बाप से झाड़ू पोचा तथा बर्तन साफ़ करवाने तक का काम भी करवाते हैं | इन्होने भगवान को वश में करने के तरीके तो ढूंढ़ लिए और कहते हैं कि हर प्राणी में ईश्वर समान रूप से वास करता हैं , लेकिन क्या इन्होने कभी इंसानों से भी समान रूप से व्यवहार किया हैं ?
    लेकिन अभी प्रश्न पैदा होता हैं कि फिर भी धर्म आवश्यक क्यों हैं ? क्योकि इंसान जितना मजबूत हैं उतना ही कमजोर भी हैं और उसके इस कमजोर पक्ष को किसी सहारे कि जरुरत पड़ती हैं , जिसे हम आस्था कहते हैं और इसी आस्था को कायम रखने के लिए किसी धर्म का सहारा लेना पड़ता हैं | इसीलिए मानव जाति के लिए धर्म एक सर्वाधिक शक्तिशाली प्रेरक शक्ति हैं | लेकिन अफ़सोस हैं कि यही धर्म और आस्था , पाखंडवाद , अन्धविश्वास और जादू - टोनों में भटक कर रह जाता हैं | जबकि धर्म का सर्वोत्तम नियम कमा कर खाने का हो , उसमे आत्मसम्मान और आत्मविश्वास श्रेष्ठ हो और धर्म अन्धविश्वास , गुरुडम और मूर्तिपूजा का विरोधी हो , ऐसा धर्म कभी न हो जिसमे नंगे बाबा , भगवाधारी , अवधूत साधू , पांडे - पुजारी और मठाधीश आदि अपने राष्ट्र पर बोझ बनकर रहे |
    जब संसार के दुसरे लोगो को धर्म कि आवश्यकता हैं तो फिर जाट कौम को क्यों नहीं होगी | यदि हम जाट कौम के सिद्धांत , आचरण परम्पराए और उनकी संस्कृति को हिन्दू धर्म से मिलाते हैं तो उनमे कोई मेल नहीं हैं | उदाहरण के लिए जाटों कि विधवा विवाह प्रथा , मूर्तिपूजा का न होना , गोत्र प्रथा , खाप प्रथा , समानता का सिद्धांत , कट्टर छुआछात को न मानना तथा सबसे बढकर जाट कौम इस देश में ही नहीं , संसार में सबसे बड़ी शाकाहारी कौम हैं जो जिव - हत्या कि पूर्णतया विरोधी हैं | जबकि उत्तर पूर्व के हिन्दू मंदिरों में पशुओ कि बलि दी जाती हैं तो जाट बाहुल्य क्षेत्र को छोड़ कर पुरे देश का ब्रह्मण मासाहारी हैं और केरला का हिन्दू तो बीफ ( गाये - बछड़े का मॉस ) तक खाता हैं | पुस्तकों में तो यहाँ तक लिखा हैं कि वैदिक काल में ब्रह्मण गाये का मॉस खाते थे | इस बात को इतिहासकार पंडित रामशरण शर्मा ने सवीकार किया हैं | इसके अतिरिक्त विधवा विवाह का विरोध करने वालो से ही रखेल प्रथा वेश्या प्रथा का जन्म हुआ और मंदिरों में देवदासियां पहुचाई | इस बारे में विस्तार से न लिखते हुए संक्षेप में इतना ही कहना सार्थक होगा कि हिन्दू धर्म एक ब्रह्मण धर्म हैं और हिन्दुत्व ब्राह्मणवाद हैं जिसने शैन:- शैन: वैदिक धर्म को भी अपने अंदर अपने स्वार्थवश समेट लिया , इस कारण वैदिक धर्म संविधान और कानून से लोप होकर ब्राह्मणवाद में समा गया | आश्चर्यजनक बात तो यह हैं कि हिन्दू धर्म नहीं हैं तो इस देश में 1955 हिन्दू विवाह कानून कैसे लागु हैं ?
    यह ब्रह्मण धर्म जाट कौम का कभी धर्म नहीं रहा | इससे पहले प्राचीन में जाट प्रकर्ति कि पूजा करते थे उनके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण किया , जिसका मुख्य कारण था जाट राजा बौद्ध धर्मी हो गए थे | इस कारण जाट प्रजा भी बौद्ध धर्मी हो गई अर्थात यथा राजा तथा प्रजा | उदाहरण के लिए अशोक मोर गोत्रीय जाट , कनिष्क कुषाण गोत्रीय जाट , हर्षवर्धन बैंस गोत्रीय जाट तथा यशोधर्मा विर्क गोत्रीय जाट आदि सभी बौद्ध धर्म के मानने वाले थे | इसलिए आज भी जाट कोई भी नुक्सान होने पर बार बार अपने प्राचीन धर्म बौद्ध के प्रतिक मठ को याद करता हैं | मठ मार दिया , मठ मार दिया | वह इसीलिए कहता हैं क्योंकि कट्टरपंथी ब्रह्मंवादियो ने हमारे इन बौद्ध मठो को बर्बाद कर दिया था | जाटों का शाकाहारी होना और विधवा विवाह प्रथा आदि आज भी जाटों में बौद्ध धर्म के संस्कार हैं |
    Last edited by bishanleo2001; May 16th, 2011 at 08:17 PM.
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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    thukrela (August 8th, 2011)

  19. #15
    जाटों को धरम क्या है या उन्हे कोनसा धर्म अपनाना चाहिये?
    मेरे विचार से इस मुद्दे पर एक महाबहस की जरुरत है तभी इसका
    कोई हल निकल सकता है।

  20. #16
    ''Upkar'' movie me Prem chopra/Puran-' Bharat hum ye khati badhi ka kam chodkar shar\city me chalkar koi chota mota kam dhanda/business kyu nhi start kare' Manoj kumar/ Bharat-' Chand rupee peso ki khatir parampao/tradations se muh nhi phera karthe h'',
    yeh dialog mujhe shi laga, But aaj hum un pramparo se jud kr rah sakthe h.
    Jat hi kya koi bhi dharam ka palan kr rha h.

    Above are my own views^^^
    Thanks & Regards,

    Anil Jakhar
    jakhar.anilk@gmail.com
    +91 93143 91300
    Birodi badi \ Nawal garh, Fatehpur Shekhawati, Rajasthan, India


  21. #17
    Quote Originally Posted by raka View Post
    [B] | जाटों में विधवाओ का चाहे उस स्त्री का मुकलावा (संयोग) हुआ हो या न हुआ हो , पुनर्विवाह एक धार्मिक कर्त्य समझा गया , इसी कारण जाटों में एक कहावत प्रचलित हुई : जाटनी कभी विधवा नहीं होती | और इस पर जाट कौम गर्व करती आई हैं | लेकिन अफ़सोस हैं कि स्वामी दयानंद के जाट शिष्य आज तक यह प्रचार करते रहे हैं कि स्वामी दयानंद ने विधवा विवाह का समर्थन किया और जाटों को क्षत्रिय माना | जबकि सत्यार्थ प्रकाश के चौथे सम्मुलास के पेज नंबर 74 के एक श्लोक में कहा हैं कि ऐसा केवल शुद्र वर्ण ही कर सकता हैं | बाकी के वर्ण कि विधवा स्त्री को मुकलावा होने के बाद पुनर्विवाह कि अनुमति नहीं हैं | इससे स्पष्ट होता हैं कि स्वामी जी ने जाटों को शुद्र माना न कि क्षत्रिय | इसलिए हमारी प्राथना हैं कि आर्य समाजी जाट भाई सत्यार्थ प्रकाश को गौर से पढ़े |

    I am not an arya samaji but want to say something.I agree that this has been said in satyarthra prakash. This "widow marriage" and "niyoug" theory is taken from "manu puran" in satyarthra prakash. Though "niyoug" looks like adultery to me. Polygamy was quite prevalent in ancient aryans in india (supposed to be following vedic religion) while it is prohibited in satyarthra prakash. We have heard may stories about polygamy in mahabharata but I did not hear any case of widow marriage in that era. So there may be two things either ancient aryans did not follow the vedic religion completely or Vedas never said any rules about widow marriage and polygamy. Anyway, satyarthara prakash implicitly said us 'shudra" because we follow 'widow marriage". Thanks for taking this up.

    Secondly i am not quite sure if vedas ever said something about ancestors worship. Did arya samaj prohibit it? if anyone have details about ancestors worship please share that information, what are other caste that are doing this except jats?



    इसी प्रकार पंजाब के परिवहन मंत्री मा. मोहनलाल ने पंजाब केसरी पत्र के माध्यम से अपने लेख में स्पष्ट लिखा हैं कि हिन्दू कोई धर्म या मजहब नहीं , अपितु एक जीवन पद्धति हैं | जबकि मंत्री जी स्वयं भाजपा के नेता होते हुए हिन्दुत्व का अलाप करते रहे हैं | जिसे ये लोग पद्धति कहते हैं , जब हिन्दू कोई धर्म ही नहीं तो इसकी पद्धति कहा से आ गई ? जब कोई वस्तु संसार में हैं ही नहीं तो उसका गुण स्वभाव कैसे जाना जायेगा लेकिन बड़े आश्चर्य कि बात हैं कि उपरोक्त टिप्पणियों के बावजूद हिन्दू धर्म के चार शंकराचार्य इस विषय पर मौन क्यों हैं ?
    this does not make sense to me. "Dharama" means "way of life" and religion is "following some doctrines flawlessly". I hope that writer understand teh difference between "dharma" and "religion" How can writer prove that there will not be any "way of life" without "religion"?? People started living first or they adopted "religion" first?? Anyway, does writer believe that "vedic" is a religion/dharma?

    हमने इस लेख के शीर्षक में तथाकथित शब्द का इस्तेमाल किया हैं क्योंकि जब हिन्दू धर्म ही नहीं हैं तो स्वाभाविक हैं कि जाट भी हिन्दू नहीं हैं |
    So as per writer there is no hindu religion so every caste/clan calling himself hindu should converted?

    जब संसार के दुसरे लोगो को धर्म कि आवश्यकता हैं तो फिर जाट कौम को क्यों नहीं होगी | यदि हम जाट कौम के सिद्धांत , आचरण परम्पराए और उनकी संस्कृति को हिन्दू धर्म से मिलाते हैं तो उनमे कोई मेल नहीं हैं | उदाहरण के लिए जाटों कि विधवा विवाह प्रथा , मूर्तिपूजा का न होना , गोत्र प्रथा , खाप प्रथा , समानता का सिद्धांत , कट्टर छुआछात को न मानना तथा सबसे बढकर जाट कौम इस देश में ही नहीं , संसार में सबसे बड़ी शाकाहारी कौम हैं जो जिव - हत्या कि पूर्णतया विरोधी हैं |
    Extremely assumption, this is not true. Jats are doing all sort of things you negated above. By the way, writer seems fond of veggy but he is advocating to conversion in sikhism. are sikhs vegetarians?
    पुस्तकों में तो यहाँ तक लिखा हैं कि वैदिक काल में ब्रह्मण गाये का मॉस खाते थे | इस बात को इतिहासकार पंडित रामशरण शर्मा ने सवीकार किया हैं |
    Never heard this, if any reference please put forth

    यह ब्रह्मण धर्म जाट कौम का कभी धर्म नहीं रहा | इससे पहले प्राचीन में जाट प्रकर्ति कि पूजा करते थे उनके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण किया , जिसका मुख्य कारण था जाट राजा बौद्ध धर्मी हो गए थे | इस कारण जाट प्रजा भी बौद्ध धर्मी हो गई अर्थात यथा राजा तथा प्रजा | उदाहरण के लिए अशोक मोर गोत्रीय जाट , कनिष्क कुषाण गोत्रीय जाट , हर्षवर्धन बैंस गोत्रीय जाट तथा यशोधर्मा विर्क गोत्रीय जाट आदि सभी बौद्ध धर्म के मानने वाले थे | इसलिए आज भी जाट कोई भी नुक्सान होने पर बार बार अपने प्राचीन धर्म बौद्ध के प्रतिक मठ को याद करता हैं | मठ मार दिया , मठ मार दिया | वह इसीलिए कहता हैं क्योंकि कट्टरपंथी ब्रह्मंवादियो ने हमारे इन बौद्ध मठो को बर्बाद कर दिया था | जाटों का शाकाहारी होना और विधवा विवाह प्रथा आदि आज भी जाटों में बौद्ध धर्म के संस्कार हैं |
    contd...........
    this is a matter of history so please don't be so sure about these king of being Jat. Non-veg is prohibited in budhismm?? I guess not and it did not say anything about "widow marriage" if yes put forth any reference. and this vegetarian things does not make any sense. Ads you already claimed that islamic jats are most in number and they are not vegetarian..right?? so jats are not vegetarian by blood

    Quote Originally Posted by raka View Post
    [SIZE=3]अर्थात इन ब्राह्मणों का कोई धर्म नहीं था इस कारण पूजा के नाम से इनका गुजर बसर बहुत ही कठिनाई से चल रहा था | जाट बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण इन्होने जाटों को खुश करने के लिए अपने मंदिरों में जाट महापुरुषों उदाहरण के लिए शिवजी , श्रीराम ,. श्रीक्रिशन , श्रीहनुमान , गणेश आदि कि मुर्तिया स्थापित कि इससे जाट लोग भी इन्हें कुछ दान पुन्य करने लगे और समय आते आते कुछ जगह ब्रह्मण राजाओ का राज आने पर साथ साथ ब्राह्मणों कि भी पूजा होने लगी |
    I agree at some point of time a big chunk of jats in north India was following budhism and there are numerous shortcomings in hindu dharma ............but this is Ludicrous!!..these lines has spoiled all the good things of article, baseless statement, all hindu god are jats!!.No sane person will believe this. i guess writer has just written this in the fit of enthusiam!! i don't understand what was the need of saying this.


    and finally i don't understand writer is asking us go back to budhism or adopting sikhism??
    Last edited by prashantacmet; May 20th, 2011 at 01:13 PM.
    Become more and more innocent, less knowledgeable and more childlike. Take life as fun - because that's precisely what it is!

  22. The Following User Says Thank You to prashantacmet For This Useful Post:

    narvir (July 2nd, 2012)

  23. #18
    Quote Originally Posted by prashantacmet View Post

    I am not an arya samaji but want to say something.I agree that this has been said in satyarthra prakash. This "widow marriage" and "niyoug" theory is taken from "manu puran" in satyarthra prakash. Though "niyoug" looks like adultery to me. Polygamy was quite prevalent in ancient aryans in india (supposed to be following vedic religion) while it is prohibited in satyarthra prakash. We have heard may stories about polygamy in mahabharata but I did not hear any case of widow marriage in that era. So there may be two things either ancient aryans did not follow the vedic religion completely or Vedas never said any rules about widow marriage and polygamy. Anyway, satyarthara prakash implicitly said us 'shudra" because we follow 'widow marriage". Thanks for taking this up.

    Secondly i am not quite sure if vedas ever said something about ancestors worship. Did arya samaj prohibit it? if anyone have details about ancestors worship please share that information, what are other caste that are doing this except jats?


    this does not make sense to me. "Dharama" means "way of life" and religion is "following some doctrines flawlessly". I hope that writer understand teh difference between "dharma" and "religion" How can writer prove that there will not be any "way of life" without "religion"?? People started living first or they adopted "religion" first?? Anyway, does writer believe that "vedic" is a religion/dharma?

    So as per writer there is no hindu religion so every caste/clan calling himself hindu should converted?

    Extremely assumption, this is not true. Jats are doing all sort of things you negated above. By the way, writer seems fond of veggy but he is advocating to conversion in sikhism. are sikhs vegetarians?
    Never heard this, if any reference please put forth

    this is a matter of history so please don't be so sure about these king of being Jat. Non-veg is prohibited in budhismm?? I guess not and it did not say anything about "widow marriage" if yes put forth any reference. and this vegetarian things does not make any sense. Ads you already claimed that islamic jats are most in number and they are not vegetarian..right?? so jats are not vegetarian by blood


    I agree at some point of point a big chunk of jats in north India was following budhism and there are numerous shortcomings in hindu dharma ............but this is Ludicrous!!..these lines has spoiled all the good things of article, baseless statement, all hindu god are jats!!.No sane person will believe this. i guess writer has just written this in the fit of enthusiam!! i don't understand what was the need of saying this.


    and finally i don't understand writer is asking us go back to budhism or adopting sikhism??


    Is 'ancestor worship' same as 'Kanagat'? Someone kindly clarify.

    Regards,

    Urmila.
    Attention seekers and attention getters are two different class of people.

  24. #19
    Jaat Ka Dharam Kya Hai ?---------------------- टांग खींचना | हा हा हा हा मजाक में कहू सुं | पर कदे-कदे साची भी हो स |
    :rockwhen you found a key to success,some ideot change the lock,*******BREAK THE DOOR.
    हक़ मांगने से नहीं मिलता , छिना जाता हे |
    अहिंसा कमजोरों का हथियार हे |
    पगड़ी संभाल जट्टा |
    मौत नु आंगालियाँ पे नचांदे , ते आपां जाट कुहांदे |

  25. The Following 4 Users Say Thank You to ravinderjeet For This Useful Post:

    narvir (July 2nd, 2012), navdeepkhatkar (June 25th, 2011), riyaa (May 20th, 2011), VirJ (May 20th, 2011)

  26. #20
    Quote Originally Posted by duhan View Post
    Is 'ancestor worship' same as 'Kanagat'? Someone kindly clarify.

    Regards,

    Urmila.
    Kanagat ka to bera nahi par desi bhasa me kaya kare he "Pitr dhokna". "Tare pitr dukhe he ke"?
    जागरूक ती अज्ञानी नहीं बनाया जा सके, स्वाभिमानी का अपमान नहीं करा जा सके , निडर ती दबाया नहीं जा सके भाई नुए सामाजिक क्रांति एक बार आ जे तो उसती बदला नहीं जा सके ---ज्याणी जाट।

    दोस्त हो या दुश्मन, जाट दोनुआ ने १०० साल ताईं याद राखा करे

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