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Thread: Bigga Ji Jakhar - Folk deity in Rajasthan

  1. #1

    Bigga Ji Jakhar - Folk deity in Rajasthan

    [Wiki]Bigga Ji Jakhar[/Wiki] (1301 - 1336) (also called Bigga Ji or Biggaji) is a folk-deity of Jangladesh area of Rajasthan. He was a Jat ruler of Jakhar gotra of a small democratic republic state. He was born in year 1301 AD at place called [Wiki]Riri[/Wiki], which was capital of [Wiki]Jakhar[/Wiki]s in present tahsil Dungargarh of the Bikaner district in Rajasthan, India. His great grandfather was Rao Lakhoji Chuhad and father was Rao Mehandji. His mother was Sultani daughter of Chuhadji Godara chieftain of Kapoorisar. He was a great warrior, protector of Hindu religion and cows. He was killed in war with Rath Muslims in the year 1336.

    बिग्गाजी के राठ मुसलिमों से सन 1336 में युद्ध करते मारे जाने के अवसर पर प्रति वर्ष आसोज माह के 13 को बिग्गा और रीड़ी जिला बिकानेर में मेला भरता है. इस वर्ष यह मेला 8 और 9 अक्टूबर 2011 को भर रहा है. इस अवसर पर कुशल यौद्धा वीर बिग्गाजी महाराज को समर्पित है यह ऐतिहासिक लेख
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    Laxman Burdak

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  3. #2
    बिग्गा जी की जीवनी

    राजस्थान के वर्तमान बिकानेर जिले में स्थित गाँव बिग्गा व रिड़ी में जाखड़ जाटों का भोमिचारा था और लंबे समय तक जाखड़ों का इन पर अधिकार बना रहा.[1] बिग्गाजी का जन्म विक्रम संवत 1358 (1301) में रिड़ी में हुआ रहा. इनका गोत्र पुरुवंशी है. इस गोत्र के बड़े बड़े जत्थे दिग्विजय के लिए विदेश में गए बताये जाते हैं. ये वापिस अपनी जन्म स्थली भारतवर्ष लौट आए. इनके पिताजी का नाम राव मेहन्दजी तथा दादा जी का नाम राव लाखोजी चुहड़ था. गाँव कपूरीसर के ग्राम प्रधान चूहड़ जी गोदारा की पुत्री सुलतानी इनकी माता जी थी. [2]


    बिग्गाजी जब थोड़े बड़े हुए तो इनको धनुष विद्या तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया गया. जब वे युवा हुए तो उन्हें विशेष युद्ध लड़ने की शिक्षा दी गई. उस युग में गायों को पवित्र और पूजनीय माना जाता था. उस समय में गायों को चराना और उनकी रक्षा करना क्षत्रियों का धर्म और प्रतिष्टा मानी जाती थी. [3]

    बिग्गाजी की वंशावली

    राव लाखोजी के चार रानियों से 22 पुत्र व 2 पुत्रियाँ उत्पन्न हुई. इन भाइयों में सबसे बड़ा भाई राव मेहन्दजी का विवाह गाँव कपूरीसर के ग्राम प्रधान चूहड़ जी गोदारा की पुत्री सुल्तानी के साथ हुआ. कपूरीसर वर्तमान में बिकानेर जिले की लूणकरणसर तह्सील में स्थित है. बिग्गाजी का जन्म माता सुल्तानी की कोख से रोहिणी नक्षत्र धन लगन में प्रात: के समय हुआ. राव मेहंदजी ने उनके जन्म के समय दान-पुन्य किया और आस-पास के गांवों में न्योता देकर बुलाया. बिग्गाजी के एक बहन थी जिसका नाम हरिया बाई था. [4]

    युवा होने पर बिग्गाजी की शादी अमरसर के चौधरी खुशल सिंह सिनसिनवार की पुत्री राजकंवर के साथ हुई. बिग्गाजी की दूसरी शादी मालासर (मोलाणिया) के खिदाजी मील की पुत्री मीरा के साथ हुई. ये दोनों तरुनीय बड़ी सुंदर , सुडौल एवं अत्यन्त शील थी. [5]

    वंशावली के अनुसार बिग्गाजी के राजकँवर से कोई संतान उत्पन्न होने का उल्लेख नहीं है. बिग्गाजी के घर मीरा से चार पुत्र रत्न तथा एक पुत्री का जन्म हुआ. इनके पुत्रों के नाम 1. कुंवर आलजी, 2. कुंवर जालजी, 3. कुंवर बहालजी व 4. कुंवर हंसराव जी थे. पुत्री का नाम हरियल था. [6]

    राव लाखोजी → राव मेहन्दजी (m.सुल्तानी गोदारा) → बिग्गाजी (m.मीरा मील) → कुंवर जालजी

    हिन्दू धर्म के संरक्षक और महान गौरक्षक

    बिग्गाजी ने 1336 ई. में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे. विक्रम संवत 1393 में बिग्गाजी के साले का विवाह था. ऐसी लोक कथा प्रचलित है कि बिग्गाजी 1336 ई. में अपनी ससुराल में साले की शादी में गए तब साथ में बागड़वा ढाढी, जाखड़ नाई, तावणिया ब्राह्मण, कालवा मेघवाल को भी साथ ले गये. रात्रि विश्राम के बाद सुबह खाने के समय मिश्रा ब्राहमणों की कुछ औरतें आई और बिग्गाजी से सहायता की गुहार की. मिश्रा ब्राहमणियों ने अपना दुखड़ा सुनाया कि यहाँ के राठ मुसलमानों ने हमारी सारी गायों को छीन लिया है. वे उनको लेकर जंगल की और गए हैं. कृपा करके हमारी गायों को छुड़ाओ. उन्होने कहा कि कोई भी क्षत्रिय रक्षार्थ आगे नहीं आ रहा है. इस बात पर बिग्गाजी का खून खोल उथा. बिग्गाजी ने कहा "धर्म रक्षक क्षत्रियों को नारी के आंसू देखने की आदत नहीं है. अपने अस्त्र-सस्त्र उठाये और साथी सावलदास पहलवान, हेमा बागडवा ढाढी, गुमानाराम तावणिया, राधो व बाधो दो बेगारी व अन्य साथियों सहित गायों के रक्षार्थ सफ़ेद घोडी पर सवार होकर मालासर से रवाना हुये. [7] मालासर वर्तमान में बिकानेर जिले की बिकानेर तह्सील में स्थित है.

    बिग्गाजी अपने लश्कर के साथ गायों को छुडाने के लिए चल पड़े. मालासर से 35 कोस दूर जेतारण (जो अब उजाड़ है) में बिग्गाजी का राठों से मुकाबला हुआ. लुटेरे संख्या में कहीं अधिक थे. दोनों में घोर युद्ध हुआ. यह युद्ध राठों की जोहडी नामक स्थान पर हुआ. काफी संख्या में राठों के सर काट दिए गए. वहां पर इतना रक्त बहा कि धरती खून से लाल हो गई. युद्ध में राठों को पराजित कर सारी गायें वपस लेली, लेकिन एक बछडे के पीछे रह जने के कारण ज्योंही बिग्गाजी वापस मुड़े एक राठ ने धोके से आकर पीछे से बिग्गाजी का सर धड़ से अलग कर दिया. [8]

    ऐसी लोक कथा प्रचलित है कि सर के धड़ से अलग होने के बाद भी धड़ अपना काम करती रही. दोनों बाजुओं से उसी प्रकार हथियार चलते रहे जैसे जीवित के चलते हैं. सब राठों को मार कर बिग्गाजी की शीश विहीन देह ने असीम वेग से व ताकत के साथ शस्त्र साफ़ किए. सर विहीन देह के आदेश से गायें और घोड़ी वापिस अपने मूल स्थान की और चल पड़े. शहीद बिग्गा जी ने गायों को अपने ससुराल पहुँचा दिया तथा फ़िर घोडी बिग्गाजी का शीश लेकर जाखड राज्य की और चल पड़ी. [9]

    घोडी जब अपने मुंह में बिग्गा जी का शीश दबाए जाखड राज्य की राजधानी रीडी़ पहुँची तो उस घोडी को बिग्गा जी की माता सुल्तानी ने देख लिया तथा घोड़ी को अभिशाप दिया कि जो घोड़ी अपने मालिक सवार का शीश कटवा देती है तो उसका मुंह नहीं देखना चाहिए. कुदरत का खेल कि घोडी ने जब यह बात सुनी तो वह वापिस दौड़ने लगी. पहरेदारों ने दरवाजा बंद कर दिया था सो घोड़ी ने छलांग लगाई तथा किले की दीवार को फांद लिया. किले के बाहर बनी खई में उस घोड़ी के मुंह से शहीद बिग्गाजी का शीश छुट गया. जहाँ आज शीश देवली (मन्दिर) बना हुआ है. [10]

    बिग्गाजी के जुझार होने क समाचार उनकी बहिन हरिया ने सुना तो एक बछड़े सहित सती हो गयी. उस स्थान पर एक चबूतरा आज भी मौजूद है, जो गांव रिड़ी में है. [11]

    जब घोड़ी शहीद बिग्गाजी का शीश विहीन धड़ ला रही थी तो उस समय जाखड़ की राजधानी रीडी से पांच कोस दूरी पर थी. यह स्थान रीडी से उत्तर दिशा में गोमटिया की रोही में है. सारी गायें बिदक गई. ग्वालों ने गायों को रोकने का प्रयास किया तो उनमें से एक गाय घोड़ी से टकरा गई तथा खून का छींटा उछला. उसी स्थान पर एक गाँव बसाया गया जिसका नाम गोमटिया से बदल कर बिग्गाजी के नाम पर बिग्गा रखा गया. जहाँ आज धड़ देवली (मन्दिर) बना हुआ है. यह गाँव आज भी आबाद है तथा इसमें अधिक संख्या जाखड़ गोत्र के जाटों की है. यह गाँव राष्ट्रीय राजमार्ग पर रतनगढ़ व डूंगर गढ़ के बीच आबाद है. यहाँ पर बीकानेर दिल्ली की रेलवे लाइन का स्टेशन भी है. [12]


    ऐसी लोक कथा है कि जहाँ पर बिग्गा जी की धड़ गिरी थी वहां पर एक सोने की मूर्ती अवतरित हुई. जब डाकू उसे निकालने लगे तो वह सोने की मूर्ती जमीन के अन्दर धसने लगी. डाकू निकालने का प्रयास करते रहे, इसी प्रयास के दौरान एक समय ऐसा आया कि ऊपर की मिटटी गिरी जिसके निचे वे डाकू दब कर मर गए. उस जगह के पास एक खेजडी के सामने बने कच्चे चबूतरे पर सफ़ेद पत्थर शिला पर बिग्गाजी की मूर्ती अंकित है तथा सामने पानी की कच्ची नाडी है. इसके पास एक पत्थर की मूर्ती विद्यमान है. इस मूर्ती में बिग्गाजी को घोड़ी पर सवार दिखाया गया है. इस स्थान पर एक बड़ा भारी मेला लगता है. आशोज शुक्ला त्रयोदशी को बिग्गाजी ने देवता होने का सबूत दिया था. वहां पर उनका चबूतरा बना हुआ है. उसी दिन से वहां पर पूजापाठ होने लगी. बिग्गाजी 1336 में वीरगति को प्राप्त हुए थे. [13]
    Last edited by lrburdak; October 8th, 2011 at 03:18 PM.
    Laxman Burdak

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  5. #3

    लोकदेवता बिग्गाजी

    लोकदेवता बिग्गाजी

    बिग्गा और उसके आसपास के एरिया में बिग्गा गोरक्षक लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं.[14] शूरवीर बिग्गाजी जाखड़ जांगल प्रदेश में, जो वर्तमान बीकानेर, चुरू, गंगानगर और हनुमानगढ़ में फैला हुआ है, थली क्षेत्र के लोकदेवता माने जाते हैं. इनका परमधाम डूंगरगढ़ से 12 किमी दूर पूर्व में बिग्गा ग्राम की रोही में है. [15]

    बिग्गाजी के चमत्कार की कई लोक कथाएँ प्रचलित हैं. एक बार वहां के एक आदमी हेमराज कुँआ खोदते समय 300 फ़ुट गहरी मिटटी में दब गए. लोगों ने उसे मृत समझ कर छोड़ दिया. कई दिनों के बाद वहां पर लोगों को नगाडा बजता सुनाई दिया. जब लोगों ने थोड़ी सी मिटटी खोदी तो हेमराज जीवित मिला. उसने बताया कि बिग्गाजी उसे अन्न-पानी देते थे. वह नगाड़ा उसने बिग्गाजी के मन्दिर में चढ़ा दिया. मन्दिर में पूजा करते समय कई बार घोड़ी की थापें सुनाई देती हैं. [16]

    लोगों में मान्यता है कि गायों में किसी प्रकार की बीमारी होने पर बिग्गाजी के नाम की मोली गाय के गले में बांधने से सभी रोग ठीक हो जाते हैं. बिग्गाजी के उपासक त्रयोदसी को घी बिलोवना नहीं करते हैं तथा उस दिन जागरण करते हैं और बिग्गाजी के गीत गाते हैं. इसकी याद में भादवा सुदी 13 को ग्राम बिग्गा व रिड़ी में स्थापित बिग्गाजी के मंदिरों में मेले भरते हैं जहाँ हरियाणा, गंगानगर तथा अन्य विभिन्न स्थानों से आए भक्तों द्वारा सृद्धा के साथ बिग्गाजी की पूजा की जाती है. [17]

    लोक सहित्य में बिग्गाजी

    लोक सहित्य में बिग्गाजी के सम्बन्ध में अनेक दोहे और छंद जनमानस मे प्रचलित हैं जिन्से अनेक जानकारी प्राप्त होती हैं:

    सौ ए कोसे रिच्छा करो हिंदवाणी रा सूर ।
    इगियारी संवतां तणो बरस इक्कीसो साल ।
    काती मास तिथी तेरसो वार शनिसर वार ।
    राजा तो रतन सिंघ सिरदार सिंघ राजकंवार ।
    धरसी बैठा पाठवी भली बताई वार ।
    बडो भाई सदा सुख पिता नांव श्रीराम ।
    सिंवर देवी सुळतानवी औ चंद कयो लछीराम ।
    Laxman Burdak

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  7. #4
    बिग्गाजी के छंद

    सिंवरू देवी सारदा लुळहर लागूं पाय ।
    बिगमल हुवो बीकाणगढ सोभा देवूं बताय ।
    कियो रड़ाको राड़ सूं लेसूं निजपत नांव ।
    सारद सीस नवाय कर करसूं कथणी काम ।
    बीदो बीको राजवी गढ बीकाणो गांव ।
    जूना खेड़ा प्रगट किया इडक बिगो है धाम ।
    रूघपत कुळ में ऊपन्यो भगीरथ वंश मांय ।
    मामा गोदारा भीम-सा, नानै चूहड़ का नांव ।
    रीड़ज गढ रो पाटवी परण्यो माला रै गांव ।
    धिन कर चाल्यौ सासरै नाईज लिया बुलाय ।
    कंगर कढाई कोरणी कपड़ा लिया सिलाय ।
    कचव कंठी सोवणी गळ झगबग मोती झाग ।
    मीमां जरी जड़ाव की माथै कसूमल पाग ।
    धिन कर चाल्यो सासरै मात-पिता अरु मेंहद ।
    कमेत घोड़ी बो धणी बण्यो पून्यूं को चंद ।
    उठै राठ की हुई चढाई, दिल्ली का तखत हजारो ।
    क्या मक्का बलखबुखारोचढ्यो राठकर हौकारो ।
    सिंवर मीर पीर पट्टाण ध्यान मैंमद का धर रे ।
    किसो मुलक लौ मार किसो अक छोड़ो थिर रे ।
    कहै राठ इक बात कयो थे हमरो करो ।
    मार जाट का लोग डेरा जसरसर धरो ।
    डावी छोड़दो जखड़ायण जींवणी नागौरी गउवों घेरो ।
    चढ्यो राठ को लोग सुगन ने बोल झडा़ऊ ।
    पिर्या सिंध सादूल सुगन बै हुया पलाऊ ।

    श्री बिग्गाजी महाराज की आरती

    जय बिगमल देवा-देवा-जाखड़कुल के सूरज करूं मैं नित सेवा ।
    जाखड़ वंश उजागर, संतन हित कारी (प्रभु संतन)
    दुष्ट विदारण दु:ख जन तारण, विप्रन सुखकारी ॥ 1 ॥
    सत धर्म उजागर सब गुण सागर, मंदन पिता दानी ।
    सती धर्म निभावण सब गुण पावन, माता सुल्तानी ॥ 2 ॥
    सुन्दर पग शीश पग सोहे, भाल तिलक रूड़ो देवा-देवा ।
    भाल विशाल तेज अति भारी, मुख पाना बिड़ो ॥ 3 ॥
    कानन कुन्डल झिल मिल ज्योति, नेण नेह भर्यो ।
    गोधन कारन दुष्ट विदारन, जद रण कोप करयो ॥ 4 ॥
    अंग अंगरखी उज्जवल धोती, मोतीन माल गले ।
    कटि तलवार हाथ ले सेलो, अरि दल दलन चले ॥ 5 ॥
    रतन जडित काठी, सजी घोड़ी, आभाबीज जिसी ।
    हो असवार जगत के कारनै, निस दिन कमर कसी ॥ 6 ॥
    जब-जब भीड़ पड़ी दुनिया में , तब-तब सहाय करी ।
    अनन्त बार साचो दे परचो, बहु विध पीड़ हरी ॥ 7 ॥
    सम्वत दोय सहस के माही, तीस चार गिणियो ।
    मास आसोज तेरस उजली, मन्दिर रीड़ी बणियो ॥ 8 ॥
    दूजी धाम बिग्गा में सोहे, धड़ देवल साची ।
    मास आसोज सुदी तेरस को, मेला रंग राची ॥ 9 ॥
    या आरती बिगमल देवा की, जो जन नित गावे ।
    सुख सम्पति मोहन सब पावे, संकट हट जावै ॥ 10 ॥
    Laxman Burdak

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  9. #5

    11 करोड़ की लागत के बिग्गाजी मंदिर का शिलान्&a

    11 करोड़ की लागत के बिग्गाजी मंदिर का शिलान्यास

    संदर्भ - भास्कर न्यूज & श्रीडूंगरगढ़/बिग्गा, 19/11/2010

    तहसील के गांव बिग्गा में लोकदेवता वीर बिग्गाजी के धड़ देवली धाम शौर्य पीठ में नवमंदिर की नींव पूजन एवं शिलान्यास गुरुवार को हुआ। श्रीवीर बिग्गाजी मानव सेवा संस्थान के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में सुबह से ही पहुंचने शुरू हो गए। विधि विधान से हवन में आहुतियां देने के बाद मुख्य अतिथि पूर्व राज्यपाल बलराम जाखड़ ने नींव भरी। जाखड़ ने मंदिर निर्माण में तन-मन-धन से साथ देने का आह्वान किया। इस मौके पर महिलाओं ने मंगलगीत गाए एवं श्रद्धालुओं ने बिग्गाजी के जयकारे लगाए।

    अध्यक्षता करते हुए संस्थान अध्यक्ष कृष्ण कुमार जाखड़ ने मंदिर की कार्ययोजना से सभी को अवगत करवाया। विधायक मंगलाराम गोदारा ने मंदिर निर्माण एवं विभिन्न सेवा प्रकल्प चलाने में सक्रियता रखने की अपील की।

    कार्यक्रम में बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने दोनों हाथ उठा कर जाखड़ की बात पर मंदिर का निमार्ण पूरा करने में जुटने का समर्थन दिया। जाखड़ के बाद मंच से पाली सांसद बद्रीराम जाखड़, जिला प्रमुख रामेश्वरलाल डूड़ी आदि ने भी विचार व्यक्त किए। सभी वक्ताओं ने बिग्गाजी को देवपुरुष बताते हुए उन्हें जाति विशेष के बंधन से निकाल कर सम्पूर्ण मानव समाज के लिए पूजनीय बताया। उनका अनुसरण करते हुए गोसेवा के लिए तत्पर रहने का आह्वान किया। महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गंगाराम जाखड़ ने भी समारोह में विचार रखे।


    इनकी भी रही उपस्थिति : मंच पर बिग्गा सरपंच श्रवणराम जाखड़, एसीबी के हनुमानगढ़ अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक दलीप जाखड़, हनुमानगढ़ पं.स. के पूर्व प्रधान दयाराम जाखड़, बीकानेर जिला परिषद् सदस्य धाई देवी, रिडी सरपंच रेखा राम कालवा, संस्थान सचिव कन्हेया लाल सिहाग, भंवर बिश्नोई, बिदासर के सांवरमल चौधरी, बाड़मेर के जसवंत भारती, उरमूल डेयरी के अध्यक्ष हरजीराम जाखड़, श्री डूंगरगढ़ महाविद्यालय छात्र संघ महासचिव शारदा सिद्ध, चूरू से मकबूल मंडेलिया, भूपालगढ़ प्रधान कमलेश जाखड़, संस्थान प्रचार मंत्री भीमसेन जाखड़, सलाहकार मनीराम जाखड़, बीकानेर पूर्व उप जिला प्रमुख प्रेमसुख सहारण आदि जनप्रतिनिधियों ने अपनी उपस्थिति दी। 11 करोड़ का प्रोजेक्ट अभी केवल 10 गुना 16 के कमरे के बिग्गाजी के शोर्यपीठ मंदिर का जीर्णोद्वार 11 करोड़ रुपए की लागत से होगा। नव निर्माण के बाद यह मंदिर राजस्थान के भव्यतम मंदिरों में गिना जायेगा। पूर्णतया पत्थरों से बनने वाले इस मंदिर की अनुमानित लागत सात से ग्यारह करोड़ रुपये तक आंकी गई है। मंदिर निर्माण के साथ ही बिग्गा जी द्वारा औरत की पुकार पर गाय की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर करने की प्रेरणा से नारी उत्थान एवं गौसेवा के लिए यहां पर आवासीय महिला शिक्षा केन्द्र एवं विशाल गौशाला बनाना भी प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है। इस मंदिर की अनुमानित ऊंचाई 85 फीट होगी एवं बीकानेर-जयपुर हाईवे से यह लोगों को सीधे दिखाई देगा।

    नोट - जाट लैण्ड विकि पर यह लेख यहां पढ सकते हैं - [Wiki]Bigga Ji Jakhar[/Wiki]

    सन्दर्भ

    1. ↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 206
    2. ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa) (2008), प्रकाशक - बेनीवाल पुब्लिकेशन , ग्राम - दुपेडी, फफडाना, जिला- करनाल , हरयाणा, p.645
    3. ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa) (2008), प्रकाशक - बेनीवाल पुब्लिकेशन , ग्राम - दुपेडी, फफडाना, जिला- करनाल , हरयाणा, p.645
    4. ↑ सीता राम जाखड (Mob:09950548448):जाट परिवेश (मासिक), चौथी पट्टी, लाडनूं -341306, नागौर (राजस्थान), पृ. 4 सितम्बर 2011
    5. ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa) (2008), प्रकाशक - बेनीवाल पुब्लिकेशन , ग्राम - दुपेडी, फफडाना, जिला- करनाल , हरयाणा, p.645
    6. ↑ सीता राम जाखड (Mob:09950548448):जाट परिवेश (मासिक), चौथी पट्टी, लाडनूं -341306, नागौर (राजस्थान), पृ. 4 सितम्बर 2011
    7. ↑ सीताराम जाखड (Mob:09950548448):जाट परिवेश (मासिक), चौथी पट्टी, लाडनूं -341306, नागौर (राजस्थान), पृ. 4 सितम्बर 2011
    8. ↑ सीताराम जाखड (Mob:09950548448):जाट परिवेश (मासिक), चौथी पट्टी, लाडनूं -341306, नागौर (राजस्थान), पृ. 4 सितम्बर 2011
    9. ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa) (2008), प्रकाशक - बेनीवाल पुब्लिकेशन , ग्राम - दुपेडी, फफडाना, जिला- करनाल , हरयाणा, p.645
    10. ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa) (2008), प्रकाशक - बेनीवाल पुब्लिकेशन , ग्राम - दुपेडी, फफडाना, जिला- करनाल , हरयाणा, p.646
    11. ↑ सीताराम जाखड (Mob:09950548448):जाट परिवेश (मासिक), चौथी पट्टी, लाडनूं -341306, नागौर (राजस्थान), पृ. 5 सितम्बर 2011
    12. ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa) (2008), प्रकाशक - बेनीवाल पुब्लिकेशन , ग्राम - दुपेडी, फफडाना, जिला- करनाल , हरयाणा, p.646
    13. ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa) (2008), प्रकाशक - बेनीवाल पुब्लिकेशन , ग्राम - दुपेडी, फफडाना, जिला- करनाल , हरयाणा, p.646
    14. ↑ पाऊलेट, बीकानेर गजेटियर, p. 90
    15. ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa) (2008), प्रकाशक - बेनीवाल पुब्लिकेशन , ग्राम - दुपेडी, फफडाना, जिला- करनाल , हरयाणा, p.645
    16. ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट योद्धाओं का इतिहास (Jāt Yodhāon kā Itihāsa) (2008), प्रकाशक - बेनीवाल पुब्लिकेशन , ग्राम - दुपेडी, फफडाना, जिला- करनाल , हरयाणा, p.646
    17. ↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 212
    Last edited by lrburdak; October 8th, 2011 at 04:07 PM.
    Laxman Burdak

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  11. #6
    बुरडक जी काफी सहरानीय कार्य किया हे आपने | धन्यवाद, इतनी सारी जानकारी के लिए | पर एक बात बहुत अखरती हे जब जाट मंदिर बनाते हैं | इन् पोंगा पंथीओं के चक्कर में अपनी गाढे खून की कमाई इन निरर्थक कामों में लगाते हैं | ग्यारह करोड़ की लागत से बीगा जी के नाम पर इंजीनियरिंग कोलेज या मेडिकल कोलेज की स्थापना सही अर्थों में उनका मंदिर होता | वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे ,उनकी याद में एक सामाजिक काम ही ज्यादा उपयुक्त होता | ----सदभावनाओं सहित |
    :rockwhen you found a key to success,some ideot change the lock,*******BREAK THE DOOR.
    हक़ मांगने से नहीं मिलता , छिना जाता हे |
    अहिंसा कमजोरों का हथियार हे |
    पगड़ी संभाल जट्टा |
    मौत नु आंगालियाँ पे नचांदे , ते आपां जाट कुहांदे |

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    vishalsunsunwal (October 8th, 2011)

  13. #7
    sahi kaha @ ravinder jeet singh balhara ji, mandir bane pache ude pande bathenge, that money could be used 4 some genuine needy person who does not get two square meal a day.
    जाट के हाथ के नीचे ताज -९८९९६८६६६१
    साफा बांध ले तुर्हे दार |
    अचकन पहर ले धारी दार |
    पजामा पहर ले चूड़ी दार |
    जूती पहर ले तिल्ले दार |
    तलवार टांग ले चमक दार |
    मूछ राख ले घुंडी दार |

    सही कही भाई फौज दार |

    THIS FAUJDAR IS ALWAYS ON WAR COZ I AM SINSINWAR

  14. #8
    Quote Originally Posted by lrburdak View Post
    Bigga Ji Jakhar (1301 - 1336) (also called Bigga Ji or Biggaji) is a folk-deity of Jangladesh area of Rajasthan. He was a Jat ruler of Jakhar gotra of a small democratic republic state. He was born in year 1301 AD at place called Riri, which was capital of Jakhars in present tahsil Dungargarh of the Bikaner district in Rajasthan, India. His great grandfather was Rao Lakhoji Chuhad and father was Rao Mehandji. His mother was Sultani daughter of Chuhadji Godara chieftain of Kapoorisar. He was a great warrior, protector of Hindu religion and cows. He was killed in war with Rath Muslims in the year 1336.

    बिग्गाजी के राठ मुसलिमों से सन 1336 में युद्ध करते मारे जाने के अवसर पर प्रति वर्ष आसोज माह के 13 को बिग्गा और रीड़ी जिला बिकानेर में मेला भरता है. इस वर्ष यह मेला 8 और 9 अक्टूबर 2011 को भर रहा है. इस अवसर पर कुशल यौद्धा वीर बिग्गाजी महाराज को समर्पित है यह ऐतिहासिक लेख
    burdak ji jankari ke liye bahut-bahut dhanyawad, main 8-10 saal kapoorisar raha hu.kapoorisar me jyada pariwar nahi hai godara jaato ke, jyadatar abadi brahmno ki hai.
    Only a biker knows why a dog sticks his head out of a car window.

  15. #9
    Vijayji, Can you add some more info about Kapoorisar so that we can expand this page. You have the first hand informations. Any images if you have may be uploaded. Regards,
    Laxman Burdak

  16. #10
    Quote Originally Posted by ravinderjeet View Post
    बुरडक जी काफी सहरानीय कार्य किया हे आपने | धन्यवाद, इतनी सारी जानकारी के लिए | पर एक बात बहुत अखरती हे जब जाट मंदिर बनाते हैं | इन् पोंगा पंथीओं के चक्कर में अपनी गाढे खून की कमाई इन निरर्थक कामों में लगाते हैं | ग्यारह करोड़ की लागत से बीगा जी के नाम पर इंजीनियरिंग कोलेज या मेडिकल कोलेज की स्थापना सही अर्थों में उनका मंदिर होता | वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे ,उनकी याद में एक सामाजिक काम ही ज्यादा उपयुक्त होता | ----सदभावनाओं सहित |
    रवीन्द्र जी आपका यह सुझाव अच्छा है - बीगा जी के नाम पर इंजीनियरिंग कोलेज या मेडिकल कोलेज की स्थापना की जाए.
    मेरा सुझाव है - इस पैसे से बिग्गाजी शिक्षण संस्थान शुरू की जाए. इसमें अन्य विषयों के साथ जाट इतिहास पर शौध को भी सम्मिलित किया जावे.
    Laxman Burdak

  17. The Following User Says Thank You to lrburdak For This Useful Post:

    ravinderjeet (November 14th, 2011)

  18. #11
    Quote Originally Posted by lrburdak View Post
    Vijayji, Can you add some more info about Kapoorisar so that we can expand this page. You have the first hand informations. Any images if you have may be uploaded. Regards,
    uncle ji, mere pitaji pichhle 25 saal se kapoorisar me posted hai .main kapoorisar ke bare me info add karne ki koshish karoonga.
    Only a biker knows why a dog sticks his head out of a car window.

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