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  1. #11
    ठाकुर देश राज द्वारा प्रस्तुत जाट इतिहास से सम्बंधित प्रमाण: शिलालेख आदि (जारी ---)

    महादानी भक्त चौधरी हर्षराम: आकोदा

    बहुत दिनों से सुनते आए हैं कि रियासत जोधपुर के आकोदा गांव ([Wiki]Akoda Nagaur[/Wiki]) में एक कुआं है। वह राजा सगर का बनाया हुआ सतयुग का है और जब तक पृथ्वी आकाश रहेंगे तब तक यह कुआं भी रहेगा। कोई कहता है कि कुआं देवताओं का बनाया हुआ है क्योकि ऐसे कुएं बनाने में मनुष्य की शक्ति काम नहीं कर सकती। इस कुएं को बनाने वाले हमारी ही जाट जाति के एक महान पुरुष थे। विक्रम संबत् 1000 के आरम्भ में हर्षरामजी नाम के एक बड़े भारी दानी ईश्वर भक्त फगोड़चा गोत्र के जाट भूमिपति हो गए हैं। यह प्रान्त जो चौरासी कहलाता है (जिसमें 84 गांव हैं) इन्हीं के शासन में था। सिवाय दिल्ली-पति सम्राट के ये दूसरे किसी को खिराज नहीं देते थे। करीब एक हजार वर्ष हुए इन्होंने अकोदा गांव बसाया था और गांव के उत्तर की तरफ 525 बीघे बीड़े के नाम से गोचर भूमि छोड़ी थी जिसमें दो तालाब हैं। यह बीड़ अभी तक मौजूद है जो फगोड़चा का बीड़ कहलाता है। इसी महापुरुष का बनाया हुआ अकोंदा का कुआं है जिसको देखकर यही कहना पड़ता है कि संसार में सात चीज आश्चर्य की बताते हैं यदि आठवीं चीज इस कुएं को भी मान लिया जाए तो भी अत्युक्ति नहीं समझनी चाहिए। चार-चार हाथ लम्बाई में, दस-दस हाथ भीतर पोल की गहराई में ढोलों की नाल का रद्दा एक हाथ चौड़ा है। आकार में समझ लीजिए पोल बांस की भोगली (नाल) वा चाम से बिना मंढा हुआ पोला ढोल दोनों तरफ खुला हुआ मुंह का, इस तरह से पत्थर के 16 ढोल बनाकर पानी के पैंदे से लेकर ऊपर तक कच्चे कुएं के बीच बैठा दिए गए हैं। जैसे चूड़ी पर चूड़ी रखने से चूड़ा बन जाता है वैसे ही ऊपर-ऊपर 16 ढोलों को रखने से 64 हाथ लम्बी कुएं की नाल बन गई है।

    [Wiki]जाट इतिहास:ठाकुर देशराज[/Wiki],पृष्ठान्त-726

    इन ढोलों का रंग लाल है। इससे अनुमान किया जाता है कि ये पत्थर खाटू के पहाड़ के हैं। इस कुएं से खाटू बारह कोस है। अचम्भे की बात यह है कि यदि खाटू से पत्थर लाकर अकोदा में ढोल बनाए गए हों तो एक-एक पत्थर में एक-एक हजार मन भार होगा इतने भारी पत्थर कैसे लाए गए और यदि खाटू में ही पत्थरों को भीतर से खुदवाकर बने बनाए, ढोल मंगवाए हो तो भी एक-एक ढोल में चार सौ मन से कम बोझा न होगा। ये भी कैसे लाए गए और इतने भारी ढोल कुएं में ऊपर नीचे कैसे जचाए गए। एक मन आध मन के तो पत्थर थे ही नहीं जो हाथों में रख दिए जाते। इतने भारी ढोल बराबर की मोटाई में कैसे काटे गए? किस औजार से ये ढोल 64 हाथ गहरे कुएं में पहुंचाए गए? गांव के राजपूत ठाकुर, वेश्य, जाट आदि को हमने इस कुएं की जांच के लिए पूछ-ताछ की। राजपूत तो बोले कि इस कुएं को राजा सगर ने बनाया था। बहुत काल के बाद यह कुआं जमीन में गड़ गया था और बहुत काल तक जमीन में ही गड़ा रहा। संबत् 1000 के आरम्भ में हर्षराम चौधरी से देवी प्रसन्न होकर बोली कि हे ईश्वर भक्त, गो सेवक, धर्म-मूर्ति महादानी चौ. हर्षराम! मैं तुम से बहुत प्रसन्न होकर आज्ञा देती हूं कि तू यहां गांव बसा और इस जगह राजा सागर का बनाया हुआ कुआं है इसको खुदवाकर जमीन से निकलवा ले। चौधरी हर्षराम ने जमीन खुदवाकर कुएं को ठीक किया। इस प्रकार की अनेक दन्त-कथाएं हैं। चौ. गंगाराम ने बताया कि हमारे पुरखा हर्षराम ने स्वयं इस कुएं को बनाया था। न तो देवी ने बताया और न राजा सगर या देवताओं का बनाया हुआ है। फिर लोगों में विवाद हुआ कि हर्षराम मनुष्य होकर ऐसा कुआं कैसे बना सकते थे? चौ. गंगारामजी ने कहा कि हमारे यहां कोई सौ वर्ष पहले की लिखी हुई पोथी मौजूद है जिसमें लिखा है कि चौधरी हर्षराम ने इस कुएं को खुद बनवाया था और इसका पूरा-पूरा विवरण कुएं के भीतर के ढोल में शिलालेख है उसको देख लें। भाट की पुस्तक को सब पंचों ने सही मानकर महापुरुष हर्षराम के पुरुषार्थ को याद करके सभी लोग आश्चर्य में मग्न हो गए।

    एक हजार वर्ष पहले जाट जाति में कैसी विद्या और पुरुषार्थ था कि जाटों के बनाए हुए कुओं को लोग देवताओं के बनाए बतलाते हैं क्योंकि लोगों की बुद्धि में नहीं जंचता कि मनुष्य होकर ऐसे कुएं बना सकते । लोगों का विचार ठीक ही है क्योंकि उस समय की जाट जाति में इतनी विद्या थी तभी इस जाति का गौरव सूर्य आकाश में तपा था। यदि आजकल के बड़े भारी इंजीनियर भी इस कुएं को देखें तो उनको भी आश्चर्य हुए बिना न रहे। यदि भारतवर्ष के प्राचीन शिल्पविद्या की मूर्ति का नमूना देखना हो तो चौ. हर्षराम के बनाए हुए हजार वर्ष के पुराने कुएं के दर्शन कर जाइए। यह जाट जाति के ही गौरव की चीज नहीं है वरन् हिन्दू जाति की प्राचीन विद्या के नमूना दिखने के लिए चौ. हर्षराम का

    [Wiki]जाट इतिहास:ठाकुर देशराज[/Wiki],पृष्ठान्त-727

    कुआं आदर्श वस्तु है। जिस जाति में अपने महापुरखाओं के इतिहास जब तक बने रहेंगे, तब तक वह जाति अमर रहेगी और जो जाति अपने महापुरखाओं के इतिहासों की कदर करेगी वह दीन-हीन दशा भोगकर भी फिर उन्नति के शिखर पर चढ़ेगी, क्योंकि गिरी हुई जाति को उठाने वाला अपने पुरखाओं का इतिहास ही है। महादानी राजर्षि हर्षराम की संक्षिप्त जीवनी जाति को समर्पण करके मैं अपना अहोभाग्य मानता हूं।
    Laxman Burdak

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