जनजातियों का अपना अलग पहनावा, रहन सहन, वास्तुकला आदि होती है जबकि जातियों में ये कारक मौजूद होना जरूरी नहीं, जाटों के पास ये भी था, अलग पहनावा, अलग वास्तु कला, अलग खान पान, भवन निर्माण, सामाजिक संरचना, सामाजिक क़ानून आदि सबकुछ था। हाँ आज इनको ढूंढ़ना मुश्किल हो सकता है। पहनावे का उदाहरण दे तो आज जमना पार हरयाणा और मेरठ क्षेत्र का पहनावा अलग है, जो पिछले ३०-४० में बिलकुल बदल गया, पर अगर और पीछे जाए तो पहनावा एक समान था। और क्षेत्र के जाटों के साथ में भी है, जनजातीय स्थानांतरण और अन्य कारकों की वजह से इसमें बाह्य प्रभाव पड़ता गया।