जाट ::जातिवाद बनाम धार्मिक !
गत कुछ समय से धर्म ,प्रमुख रूप से हिन्दू धर्म से संभंधित अनेक चर्चाओ से जाटलैंड का बाज़ार गर्म है ! हम सब इस अनोखे मंच पर जाट होने के कारन एकत्रित हैं ! जो की जातिसूचक है ! जाटलैंड का मुख्य्प्रष्ठ भी इसे केवल हिन्दू जाट सदस्यों तक सीमित होने का संकेत करता है ! कुछ माननीय सिख सदस्य भी यहाँ भाईचारे का अदभुत एवं सराहनीय उदहारण प्रस्तुत करते हैं ! जाट स्वाभाव से कभी किसी धर्म के प्रति कट्टर नहीं रहा ! इसके कई कारन हो सकते हैं परन्तु मुख्य कारन जो इस नाचीज़ को प्रतीत हुआ वो यह था की एक कृषि करने वाला समुदाय प्रकृति के समीप, उसके आँचल में गुजर बसर करता था ! प्रकृति चयनित रूप से कट्टर है अन्यथा इसके कार्यकलाप निर्विघ्न रूप से शांत चलते हैं ! यही कारन है की अनेको व्यवसाय आधारित जातिया गाँव में सौहार्द से बस्ती आई हैं !
मानव सभ्यता में गत सौ से डेढ़ सौ वर्ष अत्यंत रोचक एवं गहन सांसारिक प्रगति के रहे हैं ! यह एक तर्क पुराकालीन समय से प्रचलित है कि जितने हम सुविधाओं को प्राप्त करते जायेंगे , जितनी हमारी जीवन की आधारभूत आव्शय्क्तायें पूरी होती जायेंगी , उसी समानुपात में हम अपनी पहचान को खोजेंगे ! आधुनिक समय में इस तर्क को मासलोव हायर्की ऑफ़ नीड्स [ (Maslow Law of Hierarchy ) - http://en.wikipedia.org/wiki/Maslow'...archy_of_needs ] के नाम से जाना जाता है ! मानव जीवन के चक्र में प्राय: हर मानव भावनात्मक, बौद्धिक, चेतन एवं अर्धचेतन रूप से इस नियम के अंतर्गत अपनी पहचान खोजता है ! कई बार हमे ज्ञात भी नहीं होता है कि कथित कार्य, विचार से हम अपनी वास्तविक पहचान खोज रहे हैं! जिस परिद्रश्य में हम जनम लेते हैं , हम अपना बचपन व्यतीत करते हैं , विद्या ग्रहण करते हैं ; उनका पहचान पर गहरा असर पड़ता है ! जाती एवं जनम हम चेतन रूप से चयन नहीं कर सकते यह हमे जन्म से मिलती है ! हमारे जीवन में जातिगत गुण कूट कूट कर इस तरह से भरे हैं कि वो कहीं न कहीं किसी न रूप में प्रकट हो ही जाते हैं जो कि स्वाभाविक है ! धर्म जाती के थोडा बाद आता है ! किन्तु यह भी हमारी जीवन पद्धति में महत्वपूर्ण स्थान ले लेता है ! हमारी पहचान का एक अभिन्न अंग बन जाता है ! अब , कोई भी जाट मै, आप, रामफल या रल्धू या कोई भी कथित जाट इसी पहचान खोजने कि प्रक्रिया से गुजरते हैं तो जाती एवं धर्म का आना स्वाभिक है !
जाटलैंड पर वर्तमान समय में होने वाली चर्चाये , वाद विवाद , मन मुटाव इसी पहचान, पहचान के साथ गहरा जुडाव एवं पहचान कि खोज के कारन हैं ! जैसा कि मैंने पहले कहा कि जाट स्वाभाविक रूप से कट्टर नहीं रहा है किन्तु गत वर्षो में कुछ परिवर्तन है ! जाट का कभी पूजा एवं पूजा पद्धतियो में अधिक विश्वास नहीं रहा किन्तु कुछ चीज़े जो मैंने जाट परिवारों में देखी है, वो है संध्या करना अर्थात संध्या के समय एक दीपक जला कर कुछ क्षंन के लिए मौन हो जाना ! ध्यान देने कि बात यह है कि यह दीपक किसी भगवन या देवता कि मूर्ति के सामने नहीं अपितु एक आले (दीवार में छोट्टा सा स्थान ) में जलाया जाता है ! अब यह कहाँ से आई एवं कब आई इसका मुझे ज्ञान नहीं है किन्तु यह किसी भी रूप से धार्मिक नहीं लगती वरन आध्यात्मिक प्रतीत होती हैं ! ये लुप्त हो रही है या होगी , इसके विषय में भी मै कुछ नहीं कहूँगा !
मेरा प्रश्न है कि एक जाट अपनी पहचान कि खोज में ज्यादा धार्मिक होना चाहिए या जातिवादी ?
आपके तर्क, वितर्क , कुतर्क का स्वागत है ! एक पोल भी इस सूत्र के साथ जोड़ रहा हूँ जिसका प्रश्न है कि आप कोनसी पहचान के साथ ज्यादा जुड़े हैं !
मेरा निजी विचार है कि मै जाट होकर ही इस क्रम में ऊपर जा सकता हूँ क्यों कि आध्याम्तिक रूप से अंत में सब कुछ भूल कर इश्वर या किसी ऐसे शक्ति या सचाई के सामने समर्पण करना पड़ता ! धार्मिक चोले को उतारने में मानसिक , आत्मिक एवं भावनात्मक रूप से कई गुना ज्यादा संघर्ष करना पड़ेगा !