डाक्टर साहब,
मै आप की बात का सम्मान करता हूँ !
पर मै कह रहा हूँ की उस समय में और आज के समय में बहुत अंतर है.
पुराने समय में आम आदमी इतना असंतुस्ट कभी नहीं था जितना की आज है .
उस समय आदमी की जरूरते इतनी नहीं थी,खर्चे भी इतने नहीं थे,ज्यादा साधन भी नहीं थे! पर समय बहोत था सब के पास वो सुनते थे,समझते थे,सोचते थे और मानते थे! क्यों की सोच सकारात्मक थी हर बात के लिए.
उनके पास संतोष था ख़ुशी थी !
आज हम देखते है की किसी के पास भी समय नहीं है कुछ भी सोचने का,समझने का या करने का.साधन बढ़ते जा रहे है और जितने हमारे साधन बढ़ते जा रहे है हम उतने ही बेकार होते जा रहे है !
बस एक चीज है जो लगातार बढती जा रही है वो है नकारात्मक सोच जिसका परभाव हमें हर जगह नजर आता है ! गुस्सा,खीज,आक्रोश,परेशानी,झगड़े,हर जगह तैयार बैठे है ये सब इसी नकारात्मक सोच की दें है !
कोई भी आदमी संतुस्ट नहीं है जिसके के पास आज जितना है उससे सो गुना उसे आज ही दे दो फिर भी वो खुश नहीं होगा फिर उसे और ज्यादा चाहिए इसी का कारण भारस्ताचार है !
जितनी भी आज समाज में बुराइया आपको नजर आएँगी उन सब की जड़ यही से शुरू होती है !
हम हर बात नकारात्मक तरीके से ही लेते है.
अगर ये नकारात्मक सोच न हो तो बड़ा आसन हो जायेगा हर बुराई को मिटाना !
अगर सकारात्मक सोच के साथ हर आदमी काम करना सिख ले तो सभी बुराइया ख़त्म हो जाएँगी !
क्यों की फिर हर आदमी सच्चे आदमी का साथ देगा !
मै जब किसी समस्या के बारे मै गहराई से सोचता हु तो मुझे तो ऐसा ही लगता है !
धन्यवाद्