क्षेत्रवाद एक बड़ी विडम्बनात्मक सच्चाई एवं मिथक दोनों हैं ! जाती को रहने दे तब भी ! हर क्षेत्र के बारे में कुछ सत्य, प्रचलित सत्य और कुछ प्रचलित धारणाये होती है ! अब इन क्षेत्रो से अगर जाट आते हैं तो अपने साथ वो क्षेत्र की पहचान लेकर साथ आते हैं ! पहचान व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग है ! किसी व्यक्ति के व्यव्हार करने से पहले हम उसके प्रति अपनी धरना बनाते है , उस धारणा में क्षेत्रीय पहचान मुख्य भूमिका निभाती है ! जैसे की - दिल्ली वाला , रिफलना मुम्बैया , मद्रासी , यु पी बिहार का भैया, गुज्जू , कश्मीरी , ढेरां आला सरदार , रेफूजी , झांगी , असभ्य हरियाणवी , भूखा बंगाली , चिंकी/चिंका , भुंडा मराठी मानुस इतियादी नाम क्षेत्र को मध्यनजर रख कर प्रचलित हो जाते है ! विश्व स्तर पर भी ऐसा ही होता है ! अमेरिका की विभिन्न प्रान्तों के लोग एक दुसरे को उतर दक्षिण तथा अन्य क्षेत्र जनित नामो से पहचानते पुकारते एवं धारणा बनाते हैं ! ऐसा ही हरयाणा के जाटों में भी है ! और यहाँ तो गाँव के स्तर पर है ! उधारहण के लिए - पंडित लख्मीचंद की लिखी 52 गामो के लोग और लुगाइयो की रागनी अत्यंत प्रसिद्ध है ! मुख्यत मानव स्वाभाव में एक दुसरे पर वर्चस्व स्थापित करने का आनुवंशिक गुण मौजूद है ! क्षेत्रवाद मुख्यत व्यंग के लिए अधिक प्रयोग होता है !
जैसे की ,'' अर यो त भैन्स्वाल का मानस / जाट स , कसुते हुश्यार बातये भाई थारे गाम क लोग त .''!
'' तू अम्बाला साइड का जाट दिखे स जबे देशी भाषा की जगह पंजाबी की न्याड तोड़े स , हट नकली '' !
''अर ओ बागड़ी , लाइट अर गेहू थम न काल देखि है , तू के बात करेगा मेरे त'' !
पूर्णतया यह दुसरे पर वर्चस्व स्थापित करने का तरीका है ! जब तक यह मानव रहेगा उसका यह आनुवंशिक गुण हमेशा उसे वर्चस्व स्थापित करने के लिए उकसाता रहेगा !
कमाल की बात है पढ़े लिखे एवं अनपढ़ एक सामान क्षेत्रवाद का उपयोग करते हैं ! कुदरत/प्रकृति बड़ी क्रूर है ! डीएनए ऐसा दिया है की मानव का बस बहुत कम चलता है ! फिर भी किसी भी क्षेत्र के व्यक्ति विशेष के बारे में अपनी राय उनसे व्यवहार करके ही दे तभी आपके बुद्धिमान एवं पढ़े लिखे होने का परिचय होगा ! कोई अगर आपको आपके क्षेत्र के उपर पहचान बना कर ठप्पा लगता है तो अवसर मिलने पर सयम से उसे सच्चाई से अवगत कराये की - जनाब अच्छे बुरे व्यक्ति सब जगह बहुतायत मात्रा में पाए जाते है ! यदि ये समझाना कामयाब होता है तो अति उत्तम ,अन्यथा आप भी उसके क्षेत्र के प्रचलित धारणाओ का उपयोग करके ईंट का जवाब पत्थर से दे ! किन्तु व्यर्थ में अपने मन को अत्यधिक कष्ट न दे ! जो है वो है !
Edit::- वैवाहिक संबंध के विषय के जाटों का एक मुख्य व्यवहार है एक निश्चित तीस से पचास किलोमीटर के क्षेत्र की परिधि में रिश्ता करते आये हैं ! पुराने समय में यातायात के साधनों की कमी के कारन संभवत: ऐसा करते होंगे ! इसी कारन कुछ क्षेत्र के गोत्रो में रिश्ते करने में गोत्र मिलने की वर्तमान समस्या उठी है ! एक निश्चित परिधि में रिश्ते स्थापित करने की आदत बन गयी जिसके कारन एक क्षेत्र से बाहर रिश्ता करने में जोखिम उठाने का साहस नहीं होता ! चूँकि अब यातायात , संचार , के साधनों की कारन मेल-जोल करना पहले की अपेक्षा आसान हो गया है तो अब रिश्ते करने की बाते चलेंगी ही ! किन्तु पुराने समय की आदत भी है ! ऐसे में आदते अधिक समय हावी हो जाती हैं ! ज्यादातर परिवार अभी भी अपनी जोखिम लेने की अपेक्षा पुरानी आदत को मध्यनजर रखते हुए रिश्ते करते हैं ! अब आप सबको पता है की जोखिम उठाने में अच्छे परिणाम के साथ साथ बुरे अनुभव भी रहते हैं ! अब बुरे अनुभव हम शीघ्रता से अधिक से अधिक लोगो को बताते हैं , सुनते हैं , फैलाते हैं और जब हम खुद को वही निर्णय लेना हैं तो वो बुरा अनुभव स्मृति में सबसे प्रथम आता है ! ऐसे में हम सबसे आसान रास्ता अपनाते हैं और किसी दूर-दराज़ से आये रिश्ते को वहां के किसी जोखिम उठाने से हुए बुरे अनुभव का कारन बता कर ठुकरा देते हैं ! एक द्रष्टि कोण से उपरोक्त कारन भी इस सूत्र में उठे विषय की जड़ हो सकता है !