- असली हीरो
... शहर में लॉग रहया मेलॉ,
लोगाँ का कट्ठा होरया रेला
मैं अर छोरा दोनूँ मिलकै
पहुँचगे उड़ै ले कै झोलॉ
छोरा बोल्या, बाबू मिजी ल्यूँगा
खावण ख़ातर चीजी ल्यूँगा
खूब खाया, फेर ध्यान घुमाया
एक आदमी गुड्डे बेचता पाया
छोरे नैं सिपाही का गुड्डा ठाया
दुकानदार भी था घणा हुमाया
बोल्या, यू चाबी का खिलौणा सै
खूब मजे का उसका बिछौणा सै
चाबी भरते ही बूट कै बूट मारैगा
इसा ज़ोर का सैलूट मारैगा
डण्डा घुमावैगा, लाग्या तो रूवावैगा
इसा खिलौणा और किते ना पावैगा
पीसे दे दो, पचास रुपये में आवैगा
मैं बोल्या, तू हामनैं के बहकावैगा
इन खिलौणां पै इतना क्यूँ इतरावै सै
पचास रुपये मैं तो असली का पुलिसिया आवै सै
सुण कै दुकानदार के तेवर चढ़गे
हाम दोनूं भी ऑगे बढ़गे
फेर छोरे नै एक पोस्टर नज़र आया
उसनै झट एक सवाल फरमाया
न्यूँ बोल्या, बाबू यू कुणसा हीरो सै
पोस्टर की कलर-स्कीम तो ज़ीरो सै==>
==> कुणसी फिल्म में आया
पिछाण ना पाऊँ, कै चालै से
म्हारे देश के हीरो तो मूछ मुण्डे सैं
यू तो मूच्छाँ ऑला हीरो सै
मैं बोल्या, बेटे यू असली हीरो सै
तेरा सलमान, शाहरूख इसके आगै ज़ीरो सै
इसनैं अंग्रेजाँ की ज़्यान का कट करया था
बम फोड़ कै असली का स्टंट भरया था
घर-बार, माँ-बाप नै भूला था
हंसते-हंसते फांसी पै झूला था
हीरोइन इसकी मौत थी
गुलामी इसकी सौत थी
जिसके दम पै अंग्रेज़ इस देश तैं बाहर सै
सच बताऊँ मेरे लाडले, यू भगत सिंह सरदार सै
छोरा बोल्या, समझग्या मैं, पर बात मैं कुछ रोल सै
क्यूँ बहकावै सै बाबू, यू तो बाबी दयोल सै
मैं आसमान कॉनी लख़ाया
भगतसिंह बादलाँ मैं नज़र आया
मैं रो पड़ा; बोल्या, सरदार म्हारै मैं खोट सै
आज फांसी के फन्दे तैं भी कसूती या चोट सै
आज दिन में पहली बार अपणे-आप में शर्माया
गलती मेरी सै; मन्नै, नई पीढ़ी ताँय तेरा बलिदान ना बताया
ज्यायें तैं तो आज या रोलँ सै
कि म्हारे हीरो भगत-सुखदेव नहीं,
बल्कि शाहरूख और दयोल सै