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Thread: ओमपाल आर्य जी की कवितायें

  1. #21
    || जाट सोना उगाता हे ||

    === २२ ===


    बड़ी मेहनत कमा करके जाट सोना उगाता हे |
    कलेजा उट्ठ जाता हे ,जब वो कस्सी बैठाता हे ||
    सदा ऊंचे व् नीचे खेत को, करता रहे समतल -२
    दिन में जोत - बो कर , रात पानी लगाता हे ||
    खरीदा खाद था महंगा ,बीज बाजार से लाया -२
    नकली हे, नहीं उगता ,हाथ माथे लगाता हे ||
    किया जो खेत में पैदा ,ढेर मंडी में लग जाता -२
    सेठ मुट्ठी में भर-भर कर ,खड़ी बोली लगता हे ||
    उठा खेत से गन्ना मीलों में पहुंचा देता -२
    पसीना छुट जाता, की वो पर्ची थमाता हे |
    "ओमपाल" ऐसा हाल जट्टों का दीवानों सा-२
    पंडा घुस के घर अन्दर ,सेठ बाहर से खाता हे ||


    निरंतर जारी .........................,

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    हक़ मांगने से नहीं मिलता , छिना जाता हे |
    अहिंसा कमजोरों का हथियार हे |
    पगड़ी संभाल जट्टा |
    मौत नु आंगालियाँ पे नचांदे , ते आपां जाट कुहांदे |

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  3. #22
    सफलता केसे मिलेगी ?

    ===२३===


    इक्कठे हो ज़रा जोर लगा दो , सफलता तुम्हारे सिरहाने खड़ी हे |
    टूट-फूट और बेर भुला दो , आराक्षण की आगि घडी हे ||


    जब तक ना विशवास करोगे , अपना सदा विनाश करोगे |
    विकास की सीढ़ी सीधी उठा दो,वो बिलकुल तुम्हारे पास खड़ी हे ||


    दल बल सबल जाट बाहुतेरा , इसको केसे कहा लुटेरा ?
    बब्बर शेर बन के दिखला दो , ताकत तुम्हारी बहुत बड़ी हे ||


    आरक्षण अधिकार हमारा , लेना हे इसको दोबारा |
    ऐसा नजारा ज़रा दिखा दो , कोई नहीं करनी गड़बड़ी हे ||


    पद पैसा लालच को छोडो , सब भाईओं से नाता जोड़ो |
    "ओमपाल" इस्सा ख्याल बना दो ,प्रेम प्यार की यही लड़ी हे ||


    निरंतर जारी .........................,






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    हक़ मांगने से नहीं मिलता , छिना जाता हे |
    अहिंसा कमजोरों का हथियार हे |
    पगड़ी संभाल जट्टा |
    मौत नु आंगालियाँ पे नचांदे , ते आपां जाट कुहांदे |

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  5. #23
    जाट गौरव का डंका


    ===२४===
    जाट बहादुर मिल जुल के अब जोर लगाना हे |
    फिर से अपणे गौरव का डंका बजवाना हे ||


    सदा कमेरा रहा जाट केसे कह दिया लूटेरा हे |
    मददगार निर्बल का हे, पर सदा घमंडी घेरा हे ||
    डाकू चोर लूटेरों को तो सबक सिखाना हे |
    फिर से अपणे गौरव का डंका बजवाना हे ||


    राज रहे महाराज रहे और जाट सदा सरताज रहे |
    पर इनके आगे पाछे भी लगे खूब दगाबाज रहे ||
    साथ छोड़ जो भाग गए उनको समझाना हे |
    फिर से अपणे गौरव का डंका बजवाना हे ||


    धन वैभव से सदा देश का भरे जाट भंडारा हे |
    सीमाओं पर कटे मरे हरदम दुश्मन ललकारा हे ||
    झंडा ऊंचा किया और भी शिखर चढ़ाना हे |
    फिर से अपणे गौरव का डंका बजवाना हे ||


    चूस-चूस खून जाट का बन बेठे जो सेठ महान |
    चालाकी षड्यंत्र कर-कर जाट को मारा सर के तान ||
    बिन ज्ञान णा दिया ध्यान ,खो दिया ठीकाना हे |
    फिर से अपणे गौरव का डंका बजवाना हे ||


    श्री छोटू राम की बात मान के ,सच्चाई का ध्यान धरो |
    पढ़ लिख के ल्यो सीख बोलना ,दुश्मन की पहचान करो ||
    "ओमपाल"एक हो ,बढे चलो,गर नाम कमाना हे |
    फिर से अपणे गौरव का डंका बजवाना हे ||


    निरंतर जारी ..........................
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  7. #24
    || जाट का वाय्वाहर ||

    ===२५===
    अरे-रे ,ओ ,वीर जाट सरदार ,
    क्यूँ तेरे अनुकूल रह्या ना ,तेरा यह व्यवाहर ||


    देख अजरा आपनी काया को ,
    घटती होई धन ओर माया को ,
    क्यूँ तेरी औलाद भटकती ,फिरे यहाँ बेकार ||


    बंद करो अब टांग खीन्चाई ,
    दुश्मन क्यूँ भाई का भाई ,
    इर्ष्या ,द्वेस ,क्रोध से तेरा ,होवे ना बड़ा पार ||


    सच्चा मित्र ना पहचाना ,
    दुश्मन तेरा तन्ने नहीं जाना ,
    करता रहा काम मनमाना ,पाल रहा अहंकार ||


    क्यूँ आलस प्रमाद में सोया ,
    समय कीमती हरदम खोया ,
    बिघन फूट का बीज हे बोया ,धोया घर परिवार ||


    पढो लिखो और ज्ञान बढ़ाओ,
    मिल-जुल गीत ख़ुशी के गाओ ,
    "ओमपाल " कमाओ खाओ ,ले के आरक्स्न अधिकार ||




    निरंतर जारी ........
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    हक़ मांगने से नहीं मिलता , छिना जाता हे |
    अहिंसा कमजोरों का हथियार हे |
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    मौत नु आंगालियाँ पे नचांदे , ते आपां जाट कुहांदे |

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  9. #25
    .

    हवासिंह सांगवान जी ने भी एक "जाट चालीसा" लिखी है । उसकी एक कविता प्रस्तुत है ।


    विकास कैसे ?

    तर्ज: मनैं आवै हिचकी.......
    सुनो सही इतिहास जाट का, सुनो सही इतिहास।
    कैसे हुआ विकास और फिर कैसे हुआ विनाश।।

    हेरः आर्यव्रत था देश हमारा भूमण्डल पै राज,
    छोटे-छोटे रजवाड़ों पै एक बड़ा महाराज।
    रहा जो चक्रवर्ती खास।।
    कैसे हुआ............

    सोने की चिड़ियां कहलाता था यो देश हमारा,
    धन धान्य सम्पन्नता का था बहुत बड़ा भण्डारा।
    एक ही ईश्वर में विश्वास।।
    कैसे हुआ............

    घी-दूध की नदियां बहती थी कुदरत की माया,
    भारत का व्यापार इस सारे भूमण्डल में छाया।
    ऐसा रहा सदा प्रयास।।
    कैसे हुआ............

    इसी सम्पन्नता के कारण यहां आने लगे लुटेरे,
    मुगल मठान अंग्रेजों के संग आए बहुत घूमेरे।
    होते रहे युद्ध अभ्यास।।
    कैसे हुआ............

    पर आपस की फूट के आगे हम हो-ग्ये लाचार,
    लूटते पिटते रहे ना फिर भी छोड़ सके अहंकार।
    इसलिए दासों के हुए दास।।
    कैसे हुआ............

    .
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

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  11. #26
    चलो एक और काम पूरा हुआ यानि "रोग सा काट दिया" । मैंने पूरी किताब (जाट चालीसा) "हरयाणवी भाषा" पेज पर डाल दी है (Haryanvi Folklore सैक्सन में). इस पूरी किताब को आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं -

    http://www.jatland.com/home/Jat_Chalisa

    .
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

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    anilrana (August 13th, 2012), ravinderjeet (August 13th, 2012)

  13. #27
    Quote Originally Posted by dndeswal View Post
    चलो एक और काम पूरा हुआ यानि "रोग सा काट दिया" । मैंने पूरी किताब (जाट चालीसा) "हरयाणवी भाषा" पेज पर डाल दी है (Haryanvi Folklore सैक्सन में). इस पूरी किताब को आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं -

    http://www.jatland.com/home/Jat_Chalisa


    .

    धन्यवाद देशवाल जी ,फेर और आगे इस तागे में लिखण की टाळ मारूँ के ?
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    anilrana (August 13th, 2012)

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