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  • Such Initiative was a need of the day

    9 28.13%
  • Good work to preserve the root culture

    25 78.13%
  • Good job but bring more transparency

    5 15.63%
  • More features and content should be added

    6 18.75%
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Thread: निडाना हाइट्स: हरियाणवी सामाजिक मान्यता प

  1. #21
    bot badiya site banayi hai bhai.........
    Regards

    VIKAS DHANKHAR





    THE MOST DANGEROUS THING IN THE WORLD IS AN IDEA.:rolleyes:
    THE MOST DANGEROUS PERSON IN THE WORLD IS ONE WITH AN IDEA....!!!!!!
    :rolleyes:

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    phoolkumar (September 20th, 2012), rajpaldular (August 3rd, 2013)

  3. #22

    अमंगलिक कौन?

    पैदा होने वाली या पैदा हुई पे मोहर लगाने वाले?

    वाह रे इंसानियत के ठेकदार पुरुष-प्रधान समाज, लड़का पैदा होने पे "पीलिया का शगुन" शुक्ल पक्ष में देना और वही जब लड़की हो तो कृष्ण पक्ष में| अगर औरत को इतना ही मनहूस मानते हो तो उसकी कोख से जन्म लेना क्यों नहीं त्याग देते? कोई इस बात पर भी नहीं सोचता की ऐसे ताकियानूसी रिवाज क्यों चलाये गए थे, चाहें वो मजबूरी में चलाने पड़े हों, ढोंग में या फिर ख़ुशी से ही सही परन्तु अब तो इनको छोड़ने से ही काम चलना है| आखिर कब तक अपनी ही जननी की इतनी मिटटी पीटेंगे हम?

    Source: http://www.nidanaheights.com/media-banners.html

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    balraaj (July 18th, 2013), rajpaldular (August 3rd, 2013), ravinderjeet (October 19th, 2012), satyenderdeswal (November 22nd, 2012), vijaykajla1 (March 2nd, 2013)

  5. #23
    Selective Haryanvi Ragni Kisse: "1857 अजादी विद्रोह - क्यस्सा हरियाणा", "पाणीपत की चौथी लड़ाई", "तुझे सत्-सत् नमन मेरे किसान", "हरियाणवी तीज-त्यौहार", "Anti-Wine Campaign", "डब्ल्यू. टी. ओ. (WTO)", "परमाणु करार (Nuclear Deal)", "Fouji Mehar Singh", "1857 - Revolution", "Shaheed Bhagat Singh", "झलकारी बाई", "सुण प्रधानमंत्री", "Gopi-Chand", "Subhash Chander Bose", "फुट्कार - Leisure", and many more ragnies and Haryanvi Lyrics all together at http://www.nidanaheights.com/media-audios.html

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    rajpaldular (August 3rd, 2013)

  7. #24

    एक क्य्सान के च्यार रूप सुणे!

    एक क्य्सान के च्यार रूप सुणे, इह्सा देख्या तगाजा चाळआ हे|
    अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||

    तात्ता-सीळआ देख्या कदे ना, समूं-सुझाई चाल्या हे,
    सांपा के मुहां पाँ रहे सदा, खाळआं गात अड़ाए हे|
    रायत बधी चैहे पाणी चढ़े, अयन्सान भूखा ना रह ज्या हे,
    गात गाळ कें पेट भरण के धर्म की श्यान सदा पुगाई हे||
    यू खुडाँ-खुडाँ खटे तै, लोगाँ का सुवाद बनै न्यराळआ हे|
    अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||

    लोकतंत्र का ज्ञान त्यरे म्ह, देख्या सबतें टळमा हे,
    खाप बणाई तन्ने, यू न्यातन्त्र का उपरला खरणा हे|
    दुनिया कणछै तोड़ण नैं, त्यरी न्या की इस भेरी नैं,
    स्प्रे-ठावें मन-भरमावें न्या इह्सा सस्ता क्युकर ठयाणा हे||
    हळद लगै न फटकड़ी, रंग चोक्खे का चोक्खा ए पाणा हे|
    अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||

    स्वभिमान्नी अर समर्थ ईतणा, रक्ष्या का सांग भी जोड्या हे,
    बड़े-बड़े राजां के जुल्मी राज हाथ लिए, जो राजा राह तैं ब्यद्का हे|
    खाप-सेना राखी तैयार बणा कें, नवाब्बी धोख्याँ म आया कदे ना हे,
    बड़े-बड़े राज बणा कें खड़े कर दिए, फ्यरंगी भी तोड़ ना पाए हे||
    लोकतंत्र कहें इसे नैं जडै, दांती प्यघळआ तल्वायर बणदी आई हे,
    लोगाँ के रयात नैं बारहा बजदे, तैने द्यन-धोळी रयात बणाई हे||
    विक्टोरिया क्रोस तें ले कारगिल लग, तरया जज्बा उत-मटिल्ला हे|
    अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||

    आज बतावें सदियाँ तें एक-ए काम करणियाँ नैं आरक्षण दे रहे सें,
    तेरे तैं पराणा कर्म किसका, फेर भी खड़े मुंह फेरें सें|
    सब धंधे चलें तेरे तैं, चाहे रोजगार हो चाहे खाणा हे,
    दो पाट्टा ब्यचाळए प्यसदा आया, फेर भी धन्ना भगत कुहाया हे|
    पर रोऊँ आज की दुनिया म, ज्यब देखूं तन्ने उघाणा हे|
    फुल्ले भगत राह जोह्वे छोटूराम तेरा फेर कद बनै आणा हे||
    अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||

    एक क्य्सान के च्यार रूप सुणे, इह्सा देख्या तगाजा चाळआ हे|
    अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||

    http://www.nidanaheights.com/infohr-gatha.html

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  9. #25

    « हद्छाती »

    जाट के सी हद्छाती ना पाई किसे और की|
    राम की भी लोढ़ ओटें, कचोट घुन्नयां के त्योर की||

    अंग्रेजां नैं भी इनतें बड्डे सूरमे ना कित्ते पाए,
    वर्ल्ड-वॉर 1 हो चाहे 2, विक्टोरिया क्रॉस पै झंडे फराए|
    हिटलर नैं भी भीड़ पड़ी म जुट-सेना की थी दरकार भाई,
    वें लोहागढ़ के शेर गाज्ज़े, जिनतें अंग्रेजां नैं सदा गस खाई||
    फेर भी शुद्र ठहरावण नैं, लाहौर कोर्ट म्ह घुन्ने करीं कुकाई|
    जाट के सी हद्छाती ना पाई किसे और की|
    राम की भी लोढ़ ओटें, कचोट घुन्नयां के त्योर की||

    सबतें पहल्यां अजाद भारत म्ह पटियाळआ अर भरतपुर रळए,
    पाक्यस्तानी पंजाबियाँ खायत्तर, इन्नें आपणे ठोर-ठ्य्काणे दळए|
    देश नाज के काळ तें गुजरया, इसका संकट मोचक कूण हळए,
    इन्हें जाट्टां नें फेर ल्या हरित-क्रांति, देश के गुदाम फळए||
    फेर एक चौधरी चरणा होया, जो जा प्रधानमंत्री बणे,
    जळदे-बळदे घुन्ने फेर कुकाए, यू तो छोटी ज्यात का संतरी|
    जाट के सी हद्छाती ना पाई किसे और की|
    राम की भी लोढ़ ओटें, कचोट घुन्नयां के त्योर की||

    फेर मंडल कमिशन आण धमक्या, ल्या रिजरवेसन फळवाया,
    किसे नें ना वें लाहौर अर छोटी ज्यात का जय्क्र लग भी ठाया|
    अटल-बिहारी फेर रोया, म्यरे सपने चकना-चूर हुये,
    चौधरी नें महत्वाकांक्षी कहणीये, इस रोणे पै सूं-सां-चप गये|
    नया हथ्यार घुन्नयाँ नें टोह्या, जाट्टां नें ख्यंढावण तान्हीं,
    दो पाटा के 35 बणाये, इसकी ज्यान ब्यचोढण मह-हीं|
    जाट के सी हद्छाती ना पाई किसे और की|
    राम की भी लोढ़ ओटें, कचोट घुन्नयां के त्योर की||

    फेर भी ना पार बसाई तै, खाप्पाँ नें ज्या छेड्या,
    समाज एक रय्वाज एक, पर पराणेपण का ठीकरा इनपै फोड्या|
    कितै साहनी पंचकुला तै, किते गोत्रा पै करनाळ कोर्ट घुसेड़या,
    राम मेरे हो त्यरे धरती के भगवान की या के रे-रे माट्टी होरी,
    फुल्ले भगत की नश-नश भी कर-कर स्प्रे पाटण नैं हो री|
    जाट के सी हद्छाती ना पाई किसे और की|
    राम की भी लोढ़ ओटें, कचोट घुन्नयां के त्योर की||

    Source: http://www.nidanaheights.com/

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  11. #26
    Dear Jatland Friends, Nidana Heights has reached 50000 page views in 6.5 months (201 days) of its launch. So on behalf of our Advisory Board team, I would like to express my gratitude towards love and support we are getting from you all!

    Please stay with us and keep us guiding in this mission of preserving and promoting of our culture!

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    rajpaldular (August 3rd, 2013), ravinderjeet (November 6th, 2012), ssgoyat (November 22nd, 2012), vijaykajla1 (March 2nd, 2013)

  13. #27
    A journey from colonial slavery to cultural slavery: http://www.nidanaheights.com/EH-swa.html

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    op1955 (February 6th, 2013), rajpaldular (August 3rd, 2013)

  15. #28

    ओ माँ कुहावनिया ऐडड़ दिद्याँ आळआ था.....

    निडाना के अजूबे

    स्वर्गीय चौधरी दादा जागर सिंह मलिक:

    वैसे तो आप (दादा जी) गाँव में 1935 से स्थापित सरकारी उच्च विधालय के लिए जितनी चाहिए उतनी जमीन दान करने के कारण आज भी गाँव के सबसे बड़े दानवीर कहलाते हैं| लेकिन इससे ज्यादा आपकी तीव्र मनोवैज्ञानिकता, खुले दिल और बड़े जिगर मिशालें आज भी लोक-किवदंतियां बन गाँव के लोगों की जुबानों पर पाई जा सकती हैं| जिसमें से एक ऐसे ही किस्से का विवरण यहाँ दे रहा हूँ, जिसमें कि आपके हस्यास्द्पूर्ण स्वभाव और खुले दिल की झलक देखने को मिलती है:

    पुराने जमानें में ब्याह-शादी में बरातें 3 दिन रुका करती थी और खापलैंड के गावों में ये प्रचलन था कि बारात के ठहरने का पूरा खर्चा और प्रबंध गाँव के लोग मिलकर उठाते और करते थे (आज की तरह नहीं था कि लड़की वाले को सब कुछ अकेले ही करना पड़ता है)| और बारात में आये हुए सबसे बिगडैल, नखरैल और अड़ियल बाराती को आपके (दादा जी) घर ठहराया जाता था क्योंकि आपमें ऐसी विलक्ष्ण मनोवैज्ञानिकता की समझ थी कि ऐसे-ऐसे अड़ियल बाराती भी या तो आपकी आवभगती और मेहमान-नवाजी का लोहा मान जाते थे अन्यथा रातों-रात एडियो-थूक लगा (साथी बारातियों को घर पर काम होने का बहाना बना) फुर्र हो जाया करते थे|

    ऐसे ही एक बार क्या हुआ कि गाँव में बांगर (हरियाणा का जींद-उचाना से पंजाब की ओर का क्षेत्र बांगर कहा जाता है) के एक गाँव से बारात आई| और क्योंकि उस जमानें में मोटर-गाड़ियाँ तो होती नहीं थी, जाट-जमींदार दूरस्थ आने-जाने हेतु घोड़े-घोड़ियाँ और बैल-गाड़ियाँ रखा करते थे| तो ऐसे ही उस बारात में एक ऐसा बातूनी और माँ को माँ ना कहने वाला (हरियाणवी में माँ को माँ वो नहीं कहता जो जवानी के मद में रहता हो (वही गधे के अढाई दिन वाली बात) और अपने से किसी को बड़ा ना समझता हो)बाराती आया तो उसनें अजीब सी शर्तें रख दी कि मुझे ऐसे जजमान के घर ठहराओ जिसके यहाँ मेरी घोड़ी तो बुखारी (चने के गोदाम को हरियाणवी में बुखारी कहते हैं) पे खड़ी हो के चरे और जब तक मैं ना, ना कहूँ वो मेरे को खिलाता जाए| तो बस फिर क्या था गाँव वालों ने कहा कि अच्छा "गाखडया" (मतलब बिगड़ा हुआ) जाट है इसको तो दादा जागर के घर छुड्वाओ, और उसको और उसकी घोड़ी दोनों की आवभगती दादा जागर के जिम्मे सोंप दी गई|

    दादा जागर ने क्या किया कि उसकी घोड़ी को तो बुखारी पर बंधवा दिया और उसके रात के नास्ते में एक परात (वो बड़ा बर्तन जिसमें रोटियाँ बनाने के लिए आट्टा गूंथा जाता है) में उसके लिए बूरा (मीठा) दाल दिया, एक बड़ी कुलिया (जो कि 1 से 1.5 लिटर पिघला हुआ घी आ जाए, इतनी बड़ी होती थी उस जमाने में) घी की रख ली, और दूसरी परात में ढेर-साड़ी रोटियाँ व् अन्य खाने की सामग्री रखवा दी| और पास में एक गंडास रख लिया| और मेहमान को भोजन करवाने को आगे बढे|

    तो दादा नें घी की कुलिया उठाई और मीठे वाली परात में धार लगा दी और बोले कि जब आप बस कहोगे तभी यह धार रोकूँगा| पर वो बाराती भी बड़ा ढीठ था और पूरी कुलिया घी की खाली हो गई पर शेर ने ना नहीं की| फिर दादा ने कहा कि आप भोजन करना शुरू कीजिये| लेकिन दादा का इतना फक्कडपना देख के बाराती समझ तो गया था कि नहले पे दहले से टक्कर हुई है तेरी| खैर उसनें धीरे से खाना शुरू किया| तो उधर दादा नें गंडास को पत्थर पर रगड़ना शुरू कर दिया|

    दादा को ऐसा करते देख, बाराती को टेंशन हुई और पूछ बैठा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं तो दादा ने कहा कि गंडास को पिना (पैना) कर रहा हूँ| तो बाराती फिर पूछ बैठा कि वो किसलिए? तो दादा ने कहा कि अगर तूने ये सारा खाना नहीं खाया और तेरी घोड़ी ने बुखारी को खाली करने से पहले उसमें से गर्दन उठाई तो दोनों को यहीं के यहीं काटूँगा| बाराती तो अब तक का नजारा देख पहले ही पशोपेश में आ चुका था और अब तो उसको पक्का जच गया था कि जो इतना दिल खोल के खिला सकता है वो गर्दन काटने में कितनी देर लगाएगा? और सच भी था वो इससे पहले बहुत सी बरातों में गया था पर ऐसा आवभगती करने वाला कहीं नहीं मिला|

    तो थोड़ी देर तो उसनें कोशिश करी पर जब सारा नहीं खा पाया तो बोला कि चौधरी साहब घर पर मेरी माँ बीमार थी सो उसकी चिंता में खाना खाया ही नहीं जा रहा और मुझे तो जाना है अभी के अभी, मेरी माँ को संभालने| शायद उसको जंच गई थी कि अभी तो 3 दिन के ठहराव का पहला ही खाना है और अगर पूरे 3 दिन इसके पास रुकना पड़ा तो बड़ा भारी हो जायेगा, और अगर शादी वालों को यह कहूँगा कि मेरा जजमान बदल दो सब मेरा मजाक उड़ायेंगे कि तब तो बड़ी ढींगे मार रहा था कि ये चाहिये-वो चाहिये| इसीलिए उसनें तो पकड़ी अपनी घोड़ी की लगाम और सीधा जा के अपने गाँव रुका और घर की दहलीज पर पहुँचते ही आवाज लगाई (ठेठ बांगरू में):

    बाराती (अपनी माँ से): ऐ री माँ

    और क्योंकि माँ को अपने बेटे के मुंह से माँ शब्द सुने एक अरसा हो गया था तो माँ ने कहा

    माँ: रे बेटा, न्यूं क्यूकर मेहर होई रे परमात्मा की, जो तनै मैं माँ कह कें पुकारी?

    बेटा (अपने बाराती महाशय): अरी माँ ओ माँ कुहावनिया ऐडड़ दिद्याँ आळआ था| अर्थात (हाथों को खोल के ईशारे से बताते हुए) वो मेरे से माँ कहलवाने वाला इतनी मोटी-मोटी आँखों वाला था

    तो फिर उसकी माँ जी ने दादा जी के पास वापिस संदेशा पहुंचवाया और कहलवाया कि दादा थारा कर्म बना रहे-खेड़ा जमा रहे जो मेरे बेटे के मुंह पे वापिस माँ शब्द धरवाया|

    तो ऐसे थे हमारे दादा जागर जी, इनकी महानताओं को शब्दों में पिरोती एक कविता भी बनाई गई है, जो आप यहाँ से पढ़ सकते हैं| शीर्षक है: "दादा जागर हो, फेर न्यडाणे आइये"

    और इसे कहते थे पुराने जमाने के लोगों की human management की कला, कि आदमी को अपनी जिद्द पूरी करने का मौका भी देते थे पर उसको हंसी-हंसी में लाइन पे भी लगा देते थे|


    Read more about other such personalities from Nidana at this page: http://www.nidanaheights.com/mediahn-ajoobe.html
    Last edited by phoolkumar; December 10th, 2012 at 03:26 PM.

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    JSRana (December 10th, 2012), Mishti (February 7th, 2013), op1955 (February 6th, 2013), rajpaldular (August 3rd, 2013), SandeepSirohi (December 10th, 2012), vijaykajla1 (March 2nd, 2013)

  17. #29

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    rajpaldular (August 3rd, 2013), vishalsunsunwal (July 15th, 2013)

  19. #30
    अमर समाजसेवी, धर्मरक्षक, भारत की सबसे बड़ी गठ्वाला खाप के संस्थापक स्वर्गीय दादा-चौधरी घासी राम जी मलिक के प्रकाशोत्सव (जन्मदिवस) की पावन स्मृति पर दिनांक 19 फरवरी 2013 को गाँव तिहाड़ मलिक, जिला सोनीपत - हरियाणा में होने वाले अंतराजीय उत्सव में पहुँच अपने गौरव और इतिहास को जानें| http://www.nidanaheights.com/mediahn-event.html

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    op1955 (February 6th, 2013), rajpaldular (August 3rd, 2013)

  21. #31

    "हरियाणे सी सोधी नहीं"

    बिहार देख्या बंगाल देख्या, अर देख्या असाम-उड़ीसा|
    हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

    पह्ल्म झटक गाम म्हारे, मानवता सदा तैं सर बैठा रेह,
    वासना-द्वेष कम हो मन म्ह, गाम-गोत का इह्सा सुवा रे|
    लग ज्या जिस्कै अयन्सानत फळ ज्या, इह्सी ब्यदा लोह-लाठ सी रे,
    गाँधी गेल सुवा कें भी तजुर्बा कर लेंदा, फेर भी बेटी बाजी||
    आडै सारा गाम बेटी-बाहण मान्नै, उसपै कोए नीह रिस्सया|
    हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

    हिन्दू संस्कृति म्ह धर्मधारी को मास खाणा मुहाल नहीं,
    बकरे-मुर्गे सब चट कर ज्यां इस्पै किसे-का ख्याल नहीं|
    एक प्रतिशत इह्सा नि पाणा जो सच्चे हिन्दू-प्रण पुगा दे,
    म्हारे गाम्मा म्ह भाईचारे-सद्भाव की इह्सी-ए ऊँची प्रकाष्ठा||
    पुगावणिया पंचाती कुहावै, नहीं तो झटका फट्बिजणे सा|
    हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

    पंचाती शब्द पै रोळआ ना मचाइयो अर भों-किसे नैं पंचाती ना लाइयो,
    खरपतवार सारै होंदी आई, पर सच्चा पंचाती माणस उपरला लाइयो|
    एंडी के हम रुखाळए नहीं, सुद्धे-सुच्चे नैं भर ल्यां कोळी म्ह,
    ठाकुर-अम्मा का रोब फ़ाब्बै नहीं, राह ला दयां द्य्न-धोळी म्ह||
    जाट-दलित खांदा पा ज्या एक थाळी म्ह, सै किते और मजन इह्सा|
    हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

    मोहम्मद गौरी तें ले आज-लग, साल 50 को इह्से गए नीह,
    ज्यब हरियाणे की धरती पै, नई नश्ल का हुआ आगमन नहीं|
    ईतणे झक-झोळए त्यर कें, संस्कृति म्हारी आज भी रुळी नहीं,
    फेर भी राह-चाल्दे बरडा दें अक आड़े सभ्यता-संस्कृति नहीं||
    यु तै बड्डा सै ज्यगरा म्हारा, नहीं तै कूण पाँ ठुणक जा|
    हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||

    ठा हूड गाम म्हारयां पै, सुगळए बोल्लां की फ़ौज चढ़ा रेह,
    सै इह्सी सीळी धरती किते की, जो ईतणा माणस समा ले|
    मुगल-पठान-पंजाबी चहे पूरबी-पाहड़ी सब आडै बस रेह,
    चैन तैं जियो अर जीण द्यो, इह्सा प्रण तो बम्बई का भी ना रे||
    फुल्ले-भगत खाप्पां की धरती पै, माणस टोह ले चाहे स्यगार सा|
    हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||
    बिहार देख्या बंगाल देख्या, अर देख्या असाम-उड़ीसा|
    हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||


    http://www.nidanaheights.com/infohr-sadachar.html
    Last edited by phoolkumar; March 2nd, 2013 at 06:16 PM.
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

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    rajpaldular (August 3rd, 2013)

  23. #32

    "होळी म्हारे गाम की"

    "होळी म्हारे गाम की"

    ऊठ-ल्यो पोता, ऊठ-ल्यो लाडो, दादी न्यू चौगरदै फ्य्रगी|
    गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||

    ... हे माँ मेरी - हे माँ मेरी, चलो खरक दादा के देहळी,
    बाब्बू म्हारा बैल्ह्ड़ी (ट्रेक्टर) जोड़ें, देवै बुलावे की झोल्ली|
    फागण के गीतां की गूँजा म्ह, गाड्डी म्हारी दौड़ी,
    सीळी-सीळी सर-सर करदी, कान्नां पै पटखेळी|
    मुंह-अँधेरी जा दादा के दर, लावाँ अमरज्योत की फेरी||
    मेहर फ्यरी दादा की जिसपै, बारहां-साल्ली भी छंटगी|
    गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||

    दादा के टिल्ले पै मेऴआ, भरया ऊँचे ध्वज सा भारी,
    के पारवा के खादरिया सब धोंक पुन्ह्चावें मनहारी|
    ईब देखो दंगल के नजारे, पहलवानां की डाक निराळी,
    कुंड काट्ठे की जांड तळए, स्वरलहरी गूँज मचा रही||
    इब चढ़ेगा नजारा द्य्खे, इनामां की बरसात कांटे-आळी,
    याह बोल्ली छुट्टी माह्ल्लां नैं, अर कैंची कुढाळी गडगी|
    गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||

    सारे कट्ठे जोह रे बाट म्ह, एक सेत्ती ल्यकडांगे,
    ट्रेक्टर फालतू भाज्जै किसका, इस बात पै अकड़ान्गे|
    रोड़-गोहर म्ह कोए आ ज्या, सुक्का ल्यकड़ण ना द्यांगे,
    किते आयशर, किते फोर्ड तै किते हिंदुस्तान राम्भैंगे||
    धुर्र-धुर्र करते झनझणी सी ठावें, रंग-चा से साजैंगे,
    दुनियां देखै खड़ी ल्यकड़दयां नैं, या उंमग कुणसै बळ की||
    गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||

    गाम बड़ें तो देख्या, दादा अत्तर का टयोळ स्यन्गर रह्या,
    छुट्टी बोलें सारी भाभियाँ की, चन्द्र-बादी का सांग सा जुड़ रया|
    ज्यब चाल्लें ढोल बजांदे गाळआं, जणु रामजी भी म्ह रळग्या,
    किते बागड़ो-किते बांगरो-किते सिलाणी आळी लिएं कोरड़ा जमज्यां||
    फुल्ले भगत खेलिए संभळ कें, कदे सांस्सा-म-सांस अटक ज्यां,
    कितके रंग-कितकी किलकी, पेरिस की गाळआं म्ह जकड़गी||
    गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||

    ऊठ-ल्यो पोता, ऊठ-ल्यो लाडो, दादी न्यू चौगरदै फ्य्रगी|
    गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||

    Source: http://www.nidanaheights.com/infohr-sadachar.html
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

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    DrRajpalSingh (March 31st, 2013), rajpaldular (August 3rd, 2013)

  25. #33

    NH - 1st Anniversary 19th April 2013

    NH 1st Anniversary 19th April 2013

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    rajpaldular (August 3rd, 2013)

  27. #34
    bdhaaiyaan bhaai ,mande raho.
    :rockwhen you found a key to success,some ideot change the lock,*******BREAK THE DOOR.
    हक़ मांगने से नहीं मिलता , छिना जाता हे |
    अहिंसा कमजोरों का हथियार हे |
    पगड़ी संभाल जट्टा |
    मौत नु आंगालियाँ पे नचांदे , ते आपां जाट कुहांदे |

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    phoolkumar (April 18th, 2013), rajpaldular (August 3rd, 2013)

  29. #35
    The Splendour of Chaupals of Haryana: An inside glimpse of architecture of Haryana; on broad scale the architectural charisma of the agriculturalists cum warrior classes of a state. In absence of proper promotion and research of which, the ...state has been manipulated as cultureless till recent times and imposed on with agriculture as if the only culture known to and known for. This architecture can be read as architectural love of KHAP people also, because all these Chaupals were constructed by these communitiy people only. Hope that this article will impress you with the democratic sense and philosophy of these social bodies. You will never find such big villas/bunglows/fortresses on such a large scale as one minimum to two, three per village depending on habitant size anywhere else state or geography worldwide as in state of Haryana and adjacent regions :

    http://www.nidanaheights.com/choupal-description.html

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    DrRajpalSingh (June 6th, 2013), JSDAHIYA (August 24th, 2013), rajpaldular (August 3rd, 2013)

  31. #36
    Changes in Villages of Haryana: The villages in Haryana may look similar in outward appearance but inwardly they have unusual features and individuality that can be discovered in meticulous in details only if keenly observed. There is a rationale to be noticed as to why the village communities shaped their living landscape in a different way and ventured into ......read more

    http://www.nidanaheights.com/cognizance.html
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    rajpaldular (August 3rd, 2013)

  33. #37
    हरियाणा के भित्तिचित्रों के वैज्ञानिक संरक्षण की जरूरत: हरियाणा के जनमानस में ललित कलाओं के पैमाने क्या रहे हैं? उपलब्ध प्रतीकों और बिम्बों के सहारे क्या हम कोई सार्थक अनुमान लगा सकते हैं? ऐसे अनुमान लगाने के लिए केवल प्रतीकों और बिम्बों के... अलावा हमें साहित्य और जनमानस द्वारा संरक्षित की उन मौखिक और यथार्थपरक धरोहरों को भी टटोलना पड़ेगा जो प्रलेखित होनें के अलावा अप्रलेखित भी रह गई हैं| ललित कलाओं के क्षेत्र में हरियाणवी लोकजीवन में कभी से ही भित्तिचित्रों का अंकन एक परम्परा के तौर पर कायम रहा है| बारीकी से विश्लेषण करने पर हरियाणा की लोकसंस्कृति के ऐसे पहलू को हम उजागर करने में कामयाब हो सकते हैं जिसका मूल्यांकन वैज्ञानिक दृष्टि से बड़े पैमाने पर कभी किया ही नहीं गया......आगे पढ़िए:

    http://www.nidanaheights.com/cognizance-hn.html

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    DrRajpalSingh (July 14th, 2013), op1955 (July 13th, 2013), rajpaldular (August 3rd, 2013), ravinderjeet (June 9th, 2013)

  35. #38

    गठ्वाला खाप के अमर-अजर गौरवशाली जौहर को सं

    गठ्वाला खाप के अमर-अजर गौरवशाली जौहर को संजोये मलिक (गठ्वाला) जाटों का सिरमौर, जराहिया नाई की खेड़ा-भक्ति व् भगाणा वाले ब्राह्मण का उपकार धारे नौ-सौ (900) साल से खड़ा - 'मोखरा गाँव': http://www.nidanaheights.com/scv-mokhra.html
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    DrRajpalSingh (July 14th, 2013), rajpaldular (August 3rd, 2013)

  37. #39
    Dear Friends,

    Nidana Heights got coverage in July 2012 edition of Haryana Samvad magazine from Public Relations Department., Govt. of Haryana, got the e-link to article today from their website, here is the cutting now on our website too:
    http://www.nidanaheights.com/media-press.html

    The same page (cutting) can be read from their official website, go to page number 44 of this magazine at this link:
    http://haryanasamvad.gov.in/store/do..._july_2012.pdf
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

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    rajpaldular (August 3rd, 2013), ravinderjeet (July 22nd, 2013), sivach (July 22nd, 2013)

  39. #40

    "नीम्बाँ कै निम्बोळी लागी सामणीया कद आवैग

    "नीम्बाँ कै निम्बोळी लागी सामणीया कद आवैगा, जियो हे! मेरी माँ के जाए कोथळी कद ल्यावैगा|" –

    रय्म-झ्य्म की न्यरोळी झड़ी, पीन्घां की चरड़-मरड़, कोथळीयों के लारों-लंगारों के संग-संग बाहणों की पोहंचियों के संदेशों-वचनों का मिहना - 'साम्मण'|

    ...साम्मण के मिहने का हरयाणे की संस्क्रती अर लोक-जीवन म्ह साल के बाकी के मिह्न्याँ तैं सबतें घणा अर ऊँचा महत्व सै| इस मिहने गेल हरयाणे की खेती, त्यौहार, गीत-संगीत अर भक्ति का न्यारा-ए-मेळ सै|

    हरियाणवी समाज की तारिखाँ-त्योहारां म तीज का त्यौहार वर्ष का सबतें पहला त्यौहार मान्या गया सै| तीज के स्वागत बाबत हरियाणवी कहावत भी बणी सै अक, 'आ गई तीज, बो गई बीज'|....for more:
    http://www.nidanaheights.com/culturehr-saamman.html
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    rajpaldular (August 3rd, 2013), ravinderjeet (August 3rd, 2013)

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