"भादवे कै भळओखै, ज्यन्दगी रंग म्ह डबो-कै":
भादवे के मिन्हे की हरयाणे की संस्क्रती गेल आच्छी ठेलम-ठेल हो सै। किते घाम-छाँ का खेल हो सै तो किते गोफिये-पटासाँ के धमाक्याँ म्ह जन्यौराँ की फड़-फड़ाट, किते कृष्ण जी के जन्म की ख़ुशी तै किते धुर ...बागड़ म्ह गूगा-मेड़ी के मेंळए, किते डेरू-च्यमटा पै अलख जगांदे संवैये जोगी गाळआँ टूलदे हों सैं तो किते बाजरे के खेताँ म्ह क्याण-लिंडे के खेल, किते चूरमे-पिंडियाँ के खाणे हों सैं तै किते तराजू-ताखड़ीयाँ के खेल। यें इह्सी कुछ घूढ़ न्यशानी सैं जो जड़े होंदी पा ज्यां तो न्यूं समझ ल्यों अक हरयाणे म्ह भादवे के मिन्हे की छटा ब्यखर रीह सै|
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