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Thread: दानवीर सेठ शिरोमणी चौधरी छाजूराम लांबा

  1. #1

    दानवीर सेठ शिरोमणी चौधरी छाजूराम लांबा

    दानवीर सेठ शिरोमणी चौधरी छाजूराम लांबा
    (़भिवानी में मूर्ति स्थापना हेतू)


    दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम लांबा के पूर्वज झूंझनू(राज.) के निकटवर्ती गांव गोठड़ा से आकर भिवानी जिले के ढ़ाणी माहू गांव में बसे थे। इनके दादा चौधरी मणीराम ढ़ाणी माहू को छोडक़र सरसा में जा बसे। लेकिन कुछ दिनों के बाद इनके पिता चौ. सालिगराम सन् 1860 में भिवानी जिले के अलखपुरा गांव में बस गए थे। यहीं पर चौधरी छाजूराम का जन्म सन 1861 में हुआ था। गांव अलखपुरा में आने पर इनका परिवार पूर्णतया खेतीबाड़ी पर निर्भर रहकर बड़ी कठिनाई से गुजर बसर कर रहा था।
    चौधरी छाजूराम ने अपने प्रारंभिक शिक्षा बवानीखेड़ा के स्कूल से प्राप्त की। मिडल शिक्षा भिवानी से पास करने के बाद उन्होंने रेवाड़ी से मैट्रिक की परीक्षा पास की। मेधावी छात्र होने के कारण इनको स्कूल में छात्रवृतियां मिलती रहीं लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। इनकी संस्$कृत, अंग्रेजी, महाजनी, हिंदी और उर्दू भाषाओं पर बहुत अच्छी पकड़ थी। लेकिन फिर भी रोजगार की तलाश में लगे रहे। उस समय भिवानी में एक बंगाली इंजीनियर एसएन रॉय साहब रहते थे, जिन्होंने अपने बच्चों की ट्यूशन पढ़ाने के लिए चौधरी छाजूराम को एक रूपया प्रति माह वेतन के हिसाब से रख लिया। जब सन् 1883 में ये बंगाली इंजीनियर अपने घर कलकत्ता चले गए तो बाद में चौधरी छाजूराम को भी कलकत्ता बुला लिया। जिस पर इन्होंने इधर-उधर से कलकत्ता के लिए किराए का जुगाड़ किया तथा इंजीनियर साहब के घर पहुंच गए। वहां भी उसी प्रकार से उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। साथ-साथ कलकत्ता में मारवाड़ी सेठों के पास आना-जाना शुरू हो गया, जिन्हें अंग्रेजी भाषा का बहुत कम ज्ञान था। लेकिन चौधरी छाजूराम ने उनकी व्यापार संबंधी अंग्रेजी चि_ियों के आदान-प्रदान में सहायता शुरू की, जिस पर मारवाड़ी सेठों ने इसके लिए मेहनताना देना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में चौधरी छाजूराम मारवाड़ी समाज में एक गुणी मुंशी तथा कुशल मास्टर के नामंं से विख्यात हो गए। इसी दौरान व्यापारी पत्र व्यवहार के कारण उन्होंने व्यापार संबंधी कुछ गुर भी सीख लिए जो उन्हें उस समय के एक महान व्यापारी बनाने में सहायक सिद्ध हुए।
    कुछ समय बाद उन्होंने बारदाना(पुरानी बोरियों) का एक छोटा सा व्यापार शुरू कर दिया। यह पुरानी बोरियों का क्रय विक्रय उनके लिए एक वरदान साबित हुआ, जिसके लाभ से उन्होंने धीरे-धीरे कलकत्ता में कंपनियों के शेयर खरीदने शुरू कर दिए। परिणाम स्वरूप उनकी गिनती भी व्यापारियों में होने लगी। ऐसा करते-करते एक दिन उन्होंने अपनी लग्र, परिश्रम व बुद्धि बल से कलकत्ता का जूट का व्यापार पूर्ण रूप से अपने हाथ में ले लिया और वह दिन आ गया जब लोग उन्हें जूट का बादशाह (जूट किंग) कहने लगे। और इसी कारण चौधरी छाजूराम को लोग एक सेठ की हैसियत से करोड़पतियों में जानने लगे। कलकत्ता की 24 बड़ी विदेशी कंपनियों के यह सबसे बड़े शेयर होल्डर थे। कुछ ही समय में वे 12 कंपनियों के निदेशक बन गए। उस समय इन कंपनियों से 16 लाख प्रति माह के हिसाब से लाभांश प्राप्त हो रहा था। इसलिए पंजाब नेशनल बैंक ने इनको अपना निदेशक रख लिया परंतु काम की अधिकता होने के कारण कुछ समय के बाद इन्होंने त्यागपत्र दे दिया। 24 कंपनियों के 75 प्रतिशत हिस्से सेठ चौधरी छाजूराम के थे और इनका करोड़ों रूपया बैंक में जमा था। याद रहे ये सेठ घनश्याम दास बिड़ला के घनिष्ट पारीवारिक मित्र थे और पीछे से राजस्थानी संबंध होने के कारण श्री बिड़ला के बच्चे इन्हेें नाना कहा करते थे।
    एक समय आ गया, जब सेठ छाजूराम की कलकत्ता में छह शानदार कोठियां थीं। इसके अलावा उन्होंने अलखपुरा व हांसी के पास शेखपुरा में भी दो शानदार महलनुमा कोठियां बनवाईं। गांव शेखपुरा, अलीपुर, कुम्हारों की ढ़ाणी, कागसर, मोठ, जामणी व अलखपुरा गांव में इनकी कई हजारों बीघा जमीन थी। पंजाब के खन्ना में रूई तथा मूंगफली का तेल निकालने के कारखाने थे। इन्होंने रोहतक में चौधरी छोटूराम के लिए नीली कोठी का निर्माण किया जो आज भी रोहतक के बीचों बीच उसी रंग में खड़ी है, जो वर्तमान में चौधरी वीरेंद्र सिंह डूमरखां के अधिकार में है। याद रहे, चौधरी छोटूराम को एफ.ए. के बाद शिक्षा दिलाने वाले चौधरी छाजूराम ही थे, जिसका संक्षेप में अर्थ है कि सेठ छाजूराम नहीं होते तो चौधरी छोटूराम दीनबंधु नहीं होते और यदि दीनबंधु नहीं होते तो आज किसानों के पास जमीन भी नहीं होती। यह भी याद रहे कि जब भारत में पहली बार सन् 1913 में रोल्स रायस कार आई तो चंद राजाओं को छोडक़र कलकत्ता में पहली कार उनके बड़े सुपुत्र सज्जन कुमार ही लाए थे, जिसकी कीमत उस समय एक लाख रूपए थी।
    सेठ छाजूराम का विवाह बाल्यावस्था में डोहका गांव जिला भिवानी में हुआ था लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इनकी पत्नी का देहांत हैजे की बीमारी के कारण हो गया। दूसरा विवाह सन 1890 में भिवानी जिले के ही बिलावल गांव में रांगी खानदान में हुआ, जो दोनों ही गांव सांगवान खाप में आते हैं। इनके तीन पुत्र हुए, जिसमें सबसे बड़े सज्जन कुमार थे, जिनका युवावस्था में ही स्वर्गवास हो गया। उसके बाद दो लडक़े महेंद्र कुमार व प्रदुम्र कुमार थे। उनकी बड़ी बेटी सावित्री देवी मेरठ निवासी डॉ. नौनिहाल से ब्याही गई थी। एक पुत्र और एक पुत्री बाल्यावस्था में ही ईश्वर को प्यारे हो गए थे।
    सेठ चौधरी छाजूराम की दान क्षमता उस समय भारत में अग्रणी थी। कलकत्ता में रविन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन विश्वविद्यालय से लाहौर के डीएवी कॉलेज तक उस समय ऐसी कोई संस्था नहीं थी, जिसमें सेठ छाजूराम ने दान न दिया हो। चाहे वह हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस हो, गुरूकुल कांगड़ी हो या फिर रोहतक या हिसार की जाट संस्थाएं। हिसार का वर्तमान जाट कॉलेज व सीएवी स्कूल आदि तो पूर्णत: उन्हीं द्वारा बनवाए गए। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेकों गौशालाएं और गुरूकुल बनवाए। महाराजा भरतपुर के आर्थिक संकट में इन्होंने दो लाख रूपए का अनुदान दिया तो प्रथम विश्वयुद्ध में गांधी जी के कहने पर इन्होंने अंग्रेजों के युद्ध फंड में एक लाख चालीस हजार रूपए का अनुदान दिया। ेउस समय के लगभग सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं को इन्होंने दान दिया था। महात्मा गांधी से लेकर पंडित मोतीलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, मदन मोहन मालवीय, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, राजगोपालाचार्य, कृपलानी, जितेंद्र मोहन सैन गुप्ता तथा श्रीमती नेली सेन गुप्ता आदि दान लेने वालों में शामिल थे। जब एक बार लाला लाजपत राय को कलकत्ता में पैसे की जरूरत पड़ी तो उन्होंने 200 रूपए की मांग सेठ चौधरी छाजूराम से की तो उन्होंने 200 रूपए की बजाय 2000 रूपए उदारतापूर्वक भेज दिए। इसके अतिेरिक्त कलकत्ता से लेकर पंजाब के बीच जब भी कोई काल पड़ा, सेठ जी ने दिल खोलकर पशुओं के चारे व इंसानों के अनाज के लिए कई बार योगदान देकर अनेकों जानें बचाईं। सेठ चौधरी छाजूराम की दान सूची बहुत बड़ी है, जिसको इस लेख में लिख पाना संभव नहीं है। लेेकिन सेठ चौधरी छाजूराम अक्सर कहा करते थे : मैं वह काम (व्यापार) कर रहा हूं, जो केभी किसी ने मेरी जाति में नहीं किया और जितना भी मैं दान देता हूं, ईश्वर मुझे उससे कई गुना बढ़ाकर लौटा देता है।
    जहां तक भिवानी कस्बे का प्रश्र है, सेठ चौधरी छोजूराम ने वर्ष 1911 में पांच लाख रूपए की लागत से अपनी स्वर्गीय बेटी की यादगार में लेडी हैली हॉस्पीटल बनवाया, जिस जगह पर आज चौधरी बंसीलाल सामान्य अस्पताल खड़ा है। इसी के साथ-साथ उन्होंने भिवानी में एक गौशाला और एक प्राईमरी स्कूल का भी निर्माण करवाया था। आज उसी गौशाला की जमीन पर भिवानी के बीचों-बीच गौशाला मार्केट बनी हुई है और उसी गौशाला की यादगार का एक गेट शेष है, जिस पर सेठ चौधरी छाजूराम व उनके बेटे सज्जन कुमार का नाम अंकित है। जब सन् 1928 में भयंकर अकाल पड़ा तो भिवानी शहर की जनता पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रही थी। जिस पर भिवानी तहसील के तहसीलदार घासीराम, पंडित नेकीराम शर्मा और श्री श्रीदत्त वैद्य कलकत्ता में सेठ छाजूराम के पास पहुंचे और भिवानी की व्यथा बतलाई तो सेठ छाजूराम ने उनको पानी की व्यवस्था के लिए कुएं व बावडिय़ां बनवाने के लिए तीन लाख रूपए दिए। लेकिन आज अफसोस है कि उस महान दानदाता का हिसार को छोडक़र कहीं भी स्मारक व मूर्ति नहीं लगी।
    सेठ छाजूराम केवल दानदाता ही नहीं थे, वे एक महान देशभक्त भी थे। जब 17 दिसंबर, 1928 को भगतसिंह ने अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की गोली मारकर हत्या की तो वे दुर्गा भाभी व उनके पुत्र को साथ लेकर पुलिस की आंखों में धूल झोंकते हुए रेलगाड़ी द्वारा लाहौर से कलकत्ता पहुंचे और कलकत्ता के रेलवे स्टेशन से सीधे सेठ छाजूराम की कोठी पर पहुंचे, जहां सेठ साहब की धर्मपत्नी वीरांगना लक्ष्मीदेवी ने उनका स्वागत किया और एक सप्ताह तक अपने हाथ से बना हुआ खाना खिलाया। उसके बाद दुर्गा भाभी अपने बच्चे को लेकर कहीं और चली गई, लेकिन भगतसिंह लगभग ढ़ाई महीने तक उसी कोठी की ऊ परी मंजिल पर रहे, जो उस समय ऐसी कल्पना करना भी संभव नहीं था। इससे स्पष्ट है कि वे एक महान देशभक्त भी थे(पुस्तक अमर शहीद भगत सिंह, लेखक विष्णु प्रभाकर)। इसमें कोई भी अंदेशा नहीं कि जो पांच हजार रूपए नेताजी सुभाष ने चौधरी साहब से कलकत्ता में चंदे के तौर पर लिए थे, उनका इस्तेमाल उन्होंने भारत से जर्मनी तथा बाद में जर्मनी से जापान जाने के लिए किया अर्थात ये पैसा देश की आजादी के लिए खर्च किया, जो एक और महानतम योगदान था।
    याद रहे, सेठ चौधरी छाजूराम चौधरी छोटूराम के कहने पर संयुक्त पंजाब में सन् 1927 में एम.एल.सी भी रहे लेकिन उनका मन कभी राजनीति में नहीं लगा। यह विवरण देना भी उचित होगा कि घासीराम सन् 1927 से 1932 तक पांच साल तक भिवानी के तहसीलदार रहे। इन्हीं के काल में उस समय भिवानी में जितने भी कार्य हुए, सभी इन्हीं की देख-रेख में हुए थे, जिसके लिए बाद में घासीराम को राय बहादुर का खिताब दिया गया, जो वर्तमान में झज्जर जिले के छुडानी गांव से धनखड़ गौत्री जाट थे। वर्तमान में उनके एक पौत्र मेजर जनरल राजेश्वर सिंह मिजोरम में तैनात हैं। राय बहादुर चौधरी घासीराम धनखड़ जी की यादगार को भी चौधरी छाजूराम की प्रतिमा के साथ अंकित किया जाएगा।
    सेठ छाजूराम का जीवन पूर्णतया आदर्शवादी, निष्कलंक, पे्ररक और अति श्रेष्ठ था तथा उनके जीवन से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि :
    जननी जने तो भक्तजन, या दाता या शूर। नहीं तो जननी बांझ रहे, काहे गंवाए नूर।।
    इसीलिए इन महान आत्मा के द्वारा किए गए कार्यों व देशभक्ति को ध्यान में रखते हुए भिवानी शहर में राजीव गांधी महिला महाविद्यालय के निकट चौक का नाम इनके नाम पर रखकर वहां पर इनकी मूर्ति की स्थापना का फैसला अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति, हरियाणा द्वारा लिया गया, जिसके लिए सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं तथा निकट भविष्य में इनकी मूर्ति का अनावरण किया जाएगा।


    -हवासिंह सांगवान, पूर्व कमांडेंट, सीआरपीएफ,
    अध्यक्ष, अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति, हरियाणा
    महज हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
    मेरी कोशिश हैं की यह सुरत बदलनी चाहिए |
    मेरे सिने में नहीं तो तेरे सिने में सही ,
    हो कहीं भी , लेकिन आग लगनी चाहिए ||

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    AbhikRana (June 11th, 2012), anilsangwan (May 22nd, 2012), bharti (June 10th, 2012), bishanleo2001 (May 24th, 2012), DrRajpalSingh (May 19th, 2012), jakharanil (May 20th, 2012), JSRana (May 26th, 2012), lrburdak (May 20th, 2012), Moar (May 20th, 2012), pradeepiisc (May 19th, 2012), ravinderjeet (May 19th, 2012), satyenderdeswal (May 21st, 2012), sukhbirhooda (May 20th, 2012), sunillathwal (June 16th, 2012), Sure (May 19th, 2012), vijaykajla1 (May 19th, 2012), vishalsunsunwal (May 24th, 2012)

  3. #2
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

  4. The Following 10 Users Say Thank You to RavinderSura For This Useful Post:

    AbhikRana (June 11th, 2012), anilsangwan (May 22nd, 2012), DrRajpalSingh (May 19th, 2012), JSRana (May 26th, 2012), lrburdak (May 20th, 2012), Moar (May 20th, 2012), ravinderjeet (May 19th, 2012), satyenderdeswal (May 21st, 2012), sjakhars (May 19th, 2012), sukhbirhooda (May 20th, 2012)

  5. #3
    Sir very motivated biography, I am going produce a bioraphiclai documantry on jat seth

  6. The Following 5 Users Say Thank You to deswaldeswal For This Useful Post:

    AbhikRana (June 11th, 2012), JSRana (May 26th, 2012), pradeepiisc (May 19th, 2012), satyenderdeswal (May 21st, 2012), sukhbirhooda (May 20th, 2012)

  7. #4
    Quote Originally Posted by deswaldeswal View Post
    Sir very motivated biography, I am going produce a bioraphiclai documantry on jat seth
    Please do not mind if I say English words are very quick to convey the opposite idea to what we intend to do if we slightly miss to choose the right word. So please check what you want to say and what you have written. Is it really a 'motivated' biography!

    No, it is motivational that is why you have been motivated to make film on him!

    Then, 'biographiclai'?
    Thanks

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    anilsangwan (May 22nd, 2012), sukhbirhooda (June 3rd, 2012)

  9. #5
    Quote Originally Posted by RavinderSura View Post
    Friend,
    The sanction letter bears date of 10th August, 2011. Have the file at district level moved towards selection of suitable place for installation of the Portrait of Ch. Chhajjuram ji or not? If yes, what is the tentative programme!
    Regards,

  10. #6
    Quote Originally Posted by DrRajpalSingh View Post
    Friend,
    The sanction letter bears date of 10th August, 2011. Have the file at district level moved towards selection of suitable place for installation of the Portrait of Ch. Chhajjuram ji or not? If yes, what is the tentative programme!
    Regards,
    मूर्ति स्थापना के लिए कार्य लगभग पूरा हो चुका हैं और शायद अगले दो-चार दिन मे इसका अनावरण किया जाए |
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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    DrRajpalSingh (May 25th, 2012), Moar (June 10th, 2012), satyenderdeswal (May 24th, 2012), sukhbirhooda (June 3rd, 2012)

  12. #7
    Quote Originally Posted by raka View Post
    मूर्ति स्थापना के लिए कार्य लगभग पूरा हो चुका हैं और शायद अगले दो-चार दिन मे इसका अनावरण किया जाए |
    Thank you Sangwan Sahib and also accept our best wishes for a grand success of the proposed programme in honour of the rare and legendary great personality of the community.

    Regards

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    lrburdak (May 24th, 2012), Moar (June 10th, 2012), raka (May 24th, 2012), sukhbirhooda (June 3rd, 2012), vijaykajla1 (May 26th, 2012)

  14. #8
    छाजूराम प्रतिमा अनावरण 3 को
    चरखी दादरी : दानवीर सेठ शिरोमणि चौ.छाजूराम की प्रतिमा का अनावरण 3 जून को भिवानी के राजीव गाँधी राजकीय महिला महाविधालय के निकट किया जायेगा | यह जानकारी अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष एवं पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान ने दी | उन्होंने बताया की प्रतिमा अनावरण समारोह में प्रदेश के पूर्व सीएम मा. हुकम सिंह बतौर मुख्यातिथि उपस्थित होंगे तथा चौक का नामकरण चौ.छाजूराम के नाम पर करेंगे |
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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    DrRajpalSingh (June 3rd, 2012), JSRana (May 26th, 2012), Moar (June 10th, 2012), ravinderjeet (May 26th, 2012), sukhbirhooda (June 3rd, 2012), vijaykajla1 (May 26th, 2012)

  16. #9
    Quote Originally Posted by raka View Post
    छाजूराम प्रतिमा अनावरण 3 को
    चरखी दादरी : दानवीर सेठ शिरोमणि चौ.छाजूराम की प्रतिमा का अनावरण 3 जून को भिवानी के राजीव गाँधी राजकीय महिला महाविधालय के निकट किया जायेगा | यह जानकारी अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष एवं पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान ने दी | उन्होंने बताया की प्रतिमा अनावरण समारोह में प्रदेश के पूर्व सीएम मा. हुकम सिंह बतौर मुख्यातिथि उपस्थित होंगे तथा चौक का नामकरण चौ.छाजूराम के नाम पर करेंगे |

    it is great news congratulations to all concerned.

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    sukhbirhooda (June 4th, 2012)

  18. #10
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    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
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    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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  20. #11
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
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    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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    Moar (June 10th, 2012), vijaykajla1 (June 5th, 2012)

  22. #12
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
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    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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  24. #13
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
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    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
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    Moar (June 10th, 2012), vijaykajla1 (June 5th, 2012)

  26. #14
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
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    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
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  28. #15
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
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  30. #16
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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    Moar (June 10th, 2012), vijaykajla1 (June 5th, 2012)

  32. #17
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
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    Moar (June 10th, 2012), vijaykajla1 (June 5th, 2012)

  34. #18
    पूर्व मुख्यमंत्री चौ हुकम सिंह फ़ौगाट

    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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    DrRajpalSingh (June 6th, 2012), Moar (June 10th, 2012)

  36. #19
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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    DrRajpalSingh (June 6th, 2012), Moar (June 10th, 2012)

  38. #20
    Quote Originally Posted by raka View Post

    Congratulations for accomplishing the great task depicting philanthropist Jat's multidimensional contribution to the freedom movement and the nation building.

    Hope to hear about other equally encouraging news in the future and Thanks.

  39. The Following 3 Users Say Thank You to DrRajpalSingh For This Useful Post:

    Moar (June 10th, 2012), pradeepiisc (June 6th, 2012), raka (June 6th, 2012)

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