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Thread: बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान

  1. #1

    बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान

    बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान
    - पूर्व कमांडेंट चौ.हवा सिंह सांगवान

    हे मेरे जाट भाई, मेरी दो बात मान ले - पहली, बोलना ले सीख - दूजी, दुश्मन को ले पहचान । यह बात दीनबन्धु चौधरी सर छोटूराम ने अपने जीवन में बार-बार दोहराई । ‘बोलना ले सीख’ उनका अभिप्राय था कि जाट कौम अपने अधिकार के लिए बोलना शुरू करे, गूंगा बनकर रहने से उसकी किसी समस्या का हल नहीं है । यदि हम अपने अधिकारों की मांग नहीं करते हैं तो आने वाली हमारी पीढ़ियां हमें कायर कहेंगी । विकास की दौड़ में गूंगी कोम हमेशा पिछड़ जाती हैं और दूसरे लोग उनके अधिकारों का जमकर अतिक्रमण करते हैं । इसलिए उनका कहना था कि हमें जहां भी मंच मिले अपनी आवाज को बुलन्द करके अपने अधिकारों के लिए हुंकार भरी होगी, गर्जना करके सत्ता और शोषक को बतला दें कि हम अपने अधिकारों के लिए जागरूक हैं । यदि हमारे अधिकारों का अतिक्रमण हुआ तो हम चुप रहने वाले नहीं हैं और हम अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना जानते हैं । संतोषी बने रहना विकास की दौड़ में सबसे बड़ी अड़चन है । इसलिए उन्होंने जाट कोम को संतोषी भाव को त्यागने का आह्वान किया था । उन्होंने अपनी इस नीति को बार-बार जाट गजट में दोहराया था ।


    दूसरी बात “अपने दुश्मन को ले पहचान” जब हम बोलना सीख गये तो साथ-साथ अपने दुश्मन की पहचान भी करनी होगी जो हमारे हितों और अधिकारों का हनन कर रहा है । हमें जानना होगा कि कौन वर्ग और जाति हमारा शोषण कर रही है । उनका यह भी कहना था कि दुश्मनों को भी जानना पड़ेगा जो धर्म के नाम पर हमारा आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक शोषण करके हमारी कौम में फूट डालना चाहते हैं । इसलिए उनका कहना था कि दुश्मन की पहचान करके ही उनसे निपटा जा सकेगा । ये दुश्मन हमारे चारों तरफ नजदीक रहकर हमारे हितों पर प्रहार करते रहते हैं, लेकिन हम बेखबर बने रहते हैं । इसलिए हमें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हमें बोलना सीखकर दुश्मन की पहचान करनी होगी । चौधरी छोटूराम अपने हर भाषण से पहले यह शेर अवश्य कहा करते थे - खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है


    चौधरी छोटूराम हमारे नेता ही नहीं थे बल्कि वे स्वयं एक विषय और संस्था थे । और इस विषय के बारे में हम जितना भी अध्ययन करते जायेंगे हम उतना ही इस विषय के उजियारे छोर की तरफ बढ़ते चले जायेंगे जो हमें अंधकार से मुक्त करता है । चौधरी छोटूराम रोहतक जिले की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे । जब सन् 1920 में कर्मचन्द गांधी ने अंग्रेजों के विरोध में अपना पहला आंदोलन असहयोग की घोषणा की तो उन्होंने तुरन्त कांग्रेस छोड़ दी । क्योंकि उन्होंने अपनी दूरदर्शिता से यह भांप लिया था कि जिस जाट किसान को वे कई सालों से दुश्मन की चुंगल से निकालने की योजना बना रहे हैं इस आन्दोलन के कारण वे सदा-सदा के लिए उनके चंगुल में फंस जायेंगे । क्योंकि वे जानते थे कि जब जाट किसान जमीन की मालगुजारी देना बन्द कर देगा तो ब्रिटिश सरकार उनकी जमीन को नीलाम कर देगी और उसे व्यापारी वर्ग खरीद लेगा । इसका उदाहरण उनके सामने 1857 के आन्दोलन का था जिसमें अंग्रेजों ने सैकड़ों जाटों गांवों को जमीन को नीलाम कर दिया था जो कभी वापिस नहीं मिली । देश के आजाद होने के बाद आज भी ऐसे उदाहरण हैं जिसमें सभी प्रयासों के बाद न तो जाटों को जमीन मिली और ना ही मुआवजा । जिसमें हरियाणा का रोहणात और दिल्ली का बाकरगढ़ आदि गांवों के उदाहरण दिये जा सकते हैं ।


    दूसरा, चौधरी साहब यह अच्छी तरह समझ चुके थे कि गांधी के आन्दोलन में केवल शोषण जातियां उदाहरण के लिए ब्राह्मण, बनिया और कायस्थ इकट्ठे हो गये थे जो जाट कौम के पुराने शोषक थे । इसलिए चौधरी छोटूराम ने अपने और अपनी कौम को इस आन्दोलन से दूर रखकर इसके विरोध में संयुक्त पंजाब में जमींदारा पार्टी का गठन किया और सही समय पर कौम के दुश्मन की पहचान की । चौ० छोटूराम ने अपने पूरे जीवन में अपनी कौम के फायदे का कभी कोई एक अवसर भी नहीं गंवाया । जब सन् 1928 में साईमन कमीशन भारत आया तो उसकी स्वागत कमेटी के अध्यक्ष बने जबकि कांग्रेस उनका विरोध कर रही थी । वे भली-भांति जानते थे साइमन कमीशन की रिपोर्ट से जाट कौम को दीर्घकालीन फायदे होने हैं और उनकी प्रगति में कोई बाधा नहीं आयेगी । इसी बात पर दुश्मनों के समाचार पत्रों ने चौ० छोटूराम को अंग्रेजों का पिट्ठू लिखना शुरू किया । लेकिन ये दुश्मन कैसे भूल गये थे कि इंग्लैण्ड का राजा जार्ज पंचम सन् 1911 में भारत आया तो उसकी स्वागत कमेटी के संयोजक पण्डित नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू ही थे । और जार्ज पंचम के स्वागत में आज का राष्ट्रीय गान जन-मन-गण रचा गया और गाया गया और इसके साथ-साथ मोतीलाल ने नारा लगाया लॉन्ग लिव अनार्की जिसका अर्थ था कि ब्रिटिश साम्राज्य हमेशा कायम रहे । याद रहे रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बहनोई इंग्लैण्ड में रहते थे । उन्होंने ही जार्ज के स्वागत में एक गान लिखने के लिए टैगोर को कहा था और बाद में रविन्द्रनाथ टैगोर को गीतान्जलि के लिए नोबल पुरस्कार मिला । उसका कारण परोक्ष रूप से यही गाना था । इसी गान को राष्ट्रीय गान बनाने के विरोध में संविधान सभा के 319 सदस्यों ने कड़ा विरोध किया लेकिन पण्डित नेहरू ने उनकी एक नहीं सुनी तो फिर पण्डित मोतीलाल और पण्डित जवाहर लाल नेहरू को अंग्रेजों का पिट्ठू क्यों नहीं बतलाया गया ? बाद में पण्डित टैगोर ने लाला कर्मचन्द गांधी को महात्मा की उपाधि दे दी तो लाला गांधी ने पण्डित जी को बदले में गुरुदेव की उपाधि देकर अपनी गुरु दक्षिणा चुकाई । इसी प्रकार जब गांधी ने नेहरू को देश का प्रधानमन्त्री बनाया तो नेहरू ने गांधी को पूरे राष्ट्र का ही पिता बना दिया ।


    वैसे इंग्लैण्ड के रक्षामन्त्री मि० क्रिप्स ने सन् 1948 में इंग्लैण्ड में ब्यान दिया हमने अपने व्यापार की सुरक्षा के लिए भारत पर 200 वर्ष तक राज किया और उसी व्यापार की सुरक्षा के हित में हम भारत की सत्ता अपने एजेंटों को दे आये । इससे स्पष्ट है कि अंग्रेजों के पिट्ठू और एजेन्ट कौन थे


    जब सन् 1947 में दूसरा विश्वयुद्ध आरम्भ हुआ तो चौ० छोटूराम ने जाटों को आह्वान किया कि वे सेना में भर्ती हो जाएं और इसी आह्वान पर लाखों जाट सेना में भर्ती हुये और जाटों ने रणक्षेत्र में अपनी बहादुरी को सिद्ध किया और वास्तविक क्षत्रिय कहलाये । चौ० छोटूराम का उद्देश्य था कि जाट सेना में जायेंगे तो अपने ग्रामीण माहौल से निकालकर दुनिया को देखेंगे जिससे उनको बहुत बड़ा अक्सपोजर मिलेगा और साथ-साथ जाटों की आर्थिक हालत में भी सुधार आयेगा । उनकी यह सोच सच साबित हुई जब जाट रणबांकुरों ने अपनी वीरता के बल पर भारतीयों को मिले 40 विक्टोरिया क्रास में से 10 विक्टोरिया क्रास जाटों के नाम थे । (एक गैर जाट रांघड़ जाति का चौथी जाट बटालियन से था ।) इन्हीं जाट सैनिकों के बच्चे बाद में जनरल और अन्य ऊंचे-ऊंचे पदों पर पहुंचे और यह प्रक्रिया आज तक जारी है ।


    याद रहे अहिंसा के पुजारी कर्मचन्द गांधी ने बाद में इसी युद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया । जबकि सभी जानते हैं कि युद्ध में हमेशा हिंसा होती है और युद्ध हिंसा के लिए ही लड़े जाते हैं । लेकिन फिर भी कर्मचन्द गांधी को अंग्रेजों का पिट्ठू न लिखकर अहिंसा का पुजारी कहा जाता है ।


    चौ० छोटूराम दुश्मन को पहचानने में तनिक भी विलम्ब नहीं करते थे । इसलिए वे कहा करते थे - गोरे अंग्रेजों से काले अंग्रेज बुरे साबित होंगे । और इसके लिए आज कोई प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है । धर्म के नाम पर हमारे दुश्मनों ने हमारे विरोध में जो प्रचार किया उसका मुंहतोड़ जवाब चौ० छोटूराम ने संयुक्त पंजाब के सन् 1936 के चुनावों में दिया जब जमींदारा पार्टी के 120 विधायक विजयी रहे कांग्रेस पार्टी मात्र 16 तथा जिन्ना मुस्लिम लीग के मात्र 2 विधायक ही जीत पाये । उनमें से भी एक जमींदारा पार्टी में चला गया और उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कर्मचन्द गांधी का असहयोग आन्दोलन केवल उच्च जातियों तथा शहरों तक ही सीमित था ।


    पंजाब में हमारे दुश्मनों के अखबार चौ० छोटूराम को हिटलर लिखते थे इसके उत्तर में चौ० साहब कहते थे वहां हिटलर तो होगा ही जहां यहूदी रहेंगे । यहूदी कौम संसार की एक बड़ी व्यापारी और शोषक कौम रही है । इसी कारण हिटलर ने उनकी तबाही की थी । साम्यवादी सिद्धान्त का जन्मदाता कार्लमार्क्स स्वयं एक यहूदी था जिनका उद्देश्य जमींदारों को उनकी जमीन से बेदखल करने तक ही सीमित था और कुछ नहीं । इसलिए हमें यह जानने का अधिकार है कि पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों ही जाट कौम के दुश्मन हैं और अनैतिक हैं । इसी कारण चौ० चरणसिंह ने सन् 1952 में नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में पण्डित नेहरू के सहकारी खेती प्रस्ताव का विरोध किया था और उसे पास नहीं होने दिया था । इसलिए जाट कौम का हित केवल छोटूरामवादी समाजवाद में है और यह सच्चा समाजवाद चौ० छोटूराम का था जिसे हमें अपनाना होगा ।


    वर्तमान में जाट कौम बोलना तो सीख रही है लेकिन मुद्दों से हटकर । क्योंकि जाट कौम चौ० छोटूराम के बाद कोमी मुद्दे बनाने में पूर्णतया असफल रही है । इसी कारण जाट कौम के अनेक दुश्मन भी पैदा हो गये जिनमें प्रमुख हैं - जिन्होंने अपने पाखण्डी ग्रन्थों में जाट कौम को शूद्र लिखा और फिर सन् 1932 में जाट कौम को लाहौर हाईकोर्ट से एक शूद्र जाति घोषित करवाया और साथ-साथ जाट कौम के इतिहास का अतिक्रमण जारी रखा और आज जाट कौम के आरक्षण का विरोध कर रहे हैं । दूसरा दुश्मन वो है जिनके पूर्वजों ने चौ० छोटूराम को काले झण्डे दिखाये और जाट कौम की एक बड़े भाग की नौकरियों पर कब्जा कर लिया और जाट कौम की संस्कृति का अतिक्रमण कर रहे हैं । तीसरा दुश्मन जो अनुसूचित जाति के कानून के तहत जाटों के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं ।


    यदि हमने अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त करना है तो दीनबन्धु चौ० छोटूराम को पुनः जीवित करना होगा, जिस प्रकार केवल 30 वर्षों में दलित जातियों ने डॉ० अम्बेडकर को जीवित कर दिया । जाट भाइयो, आओ और कौम को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाओ ।
    "कर्म हैं जिसका भगवान, कौम वतन पर हैं जो कुर्बान |
    पगड़ी का जो रखे मान सच्चे जाट की यह पहचान ||


    कुछ हमारे संग चले आये गे .कुछ देख के रंग ढंग चले आये गे .बाकी बचे होके तंग चले आये गे !

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    amankadian (June 23rd, 2012), Dagar25 (June 1st, 2012), pradeepiisc (May 27th, 2012), ravinderjeet (May 27th, 2012), rohittewatia (June 2nd, 2012), Sure (May 27th, 2012), vijaykajla1 (May 27th, 2012), vikasJAT (June 5th, 2012), ygulia (May 27th, 2012)

  3. #2
    Quote Originally Posted by RavinderSura View Post
    बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान
    - पूर्व कमांडेंट चौ.हवा सिंह सांगवान

    हे मेरे जाट भाई, मेरी दो बात मान ले - पहली, बोलना ले सीख - दूजी, दुश्मन को ले पहचान । यह बात दीनबन्धु चौधरी सर छोटूराम ने अपने जीवन में बार-बार दोहराई । ‘बोलना ले सीख’ उनका अभिप्राय था कि जाट कौम अपने अधिकार के लिए बोलना शुरू करे, गूंगा बनकर रहने से उसकी किसी समस्या का हल नहीं है । यदि हम अपने अधिकारों की मांग नहीं करते हैं तो आने वाली हमारी पीढ़ियां हमें कायर कहेंगी । विकास की दौड़ में गूंगी कोम हमेशा पिछड़ जाती हैं और दूसरे लोग उनके अधिकारों का जमकर अतिक्रमण करते हैं । इसलिए उनका कहना था कि हमें जहां भी मंच मिले अपनी आवाज को बुलन्द करके अपने अधिकारों के लिए हुंकार भरी होगी, गर्जना करके सत्ता और शोषक को बतला दें कि हम अपने अधिकारों के लिए जागरूक हैं । यदि हमारे अधिकारों का अतिक्रमण हुआ तो हम चुप रहने वाले नहीं हैं और हम अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना जानते हैं । संतोषी बने रहना विकास की दौड़ में सबसे बड़ी अड़चन है । इसलिए उन्होंने जाट कोम को संतोषी भाव को त्यागने का आह्वान किया था । उन्होंने अपनी इस नीति को बार-बार जाट गजट में दोहराया था ।


    दूसरी बात “अपने दुश्मन को ले पहचान” जब हम बोलना सीख गये तो साथ-साथ अपने दुश्मन की पहचान भी करनी होगी जो हमारे हितों और अधिकारों का हनन कर रहा है । हमें जानना होगा कि कौन वर्ग और जाति हमारा शोषण कर रही है । उनका यह भी कहना था कि दुश्मनों को भी जानना पड़ेगा जो धर्म के नाम पर हमारा आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक शोषण करके हमारी कौम में फूट डालना चाहते हैं । इसलिए उनका कहना था कि दुश्मन की पहचान करके ही उनसे निपटा जा सकेगा । ये दुश्मन हमारे चारों तरफ नजदीक रहकर हमारे हितों पर प्रहार करते रहते हैं, लेकिन हम बेखबर बने रहते हैं । इसलिए हमें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हमें बोलना सीखकर दुश्मन की पहचान करनी होगी । चौधरी छोटूराम अपने हर भाषण से पहले यह शेर अवश्य कहा करते थे - खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है


    चौधरी छोटूराम हमारे नेता ही नहीं थे बल्कि वे स्वयं एक विषय और संस्था थे । और इस विषय के बारे में हम जितना भी अध्ययन करते जायेंगे हम उतना ही इस विषय के उजियारे छोर की तरफ बढ़ते चले जायेंगे जो हमें अंधकार से मुक्त करता है । चौधरी छोटूराम रोहतक जिले की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे । जब सन् 1920 में कर्मचन्द गांधी ने अंग्रेजों के विरोध में अपना पहला आंदोलन असहयोग की घोषणा की तो उन्होंने तुरन्त कांग्रेस छोड़ दी । क्योंकि उन्होंने अपनी दूरदर्शिता से यह भांप लिया था कि जिस जाट किसान को वे कई सालों से दुश्मन की चुंगल से निकालने की योजना बना रहे हैं इस आन्दोलन के कारण वे सदा-सदा के लिए उनके चंगुल में फंस जायेंगे । क्योंकि वे जानते थे कि जब जाट किसान जमीन की मालगुजारी देना बन्द कर देगा तो ब्रिटिश सरकार उनकी जमीन को नीलाम कर देगी और उसे व्यापारी वर्ग खरीद लेगा । इसका उदाहरण उनके सामने 1857 के आन्दोलन का था जिसमें अंग्रेजों ने सैकड़ों जाटों गांवों को जमीन को नीलाम कर दिया था जो कभी वापिस नहीं मिली । देश के आजाद होने के बाद आज भी ऐसे उदाहरण हैं जिसमें सभी प्रयासों के बाद न तो जाटों को जमीन मिली और ना ही मुआवजा । जिसमें हरियाणा का रोहणात और दिल्ली का बाकरगढ़ आदि गांवों के उदाहरण दिये जा सकते हैं ।


    दूसरा, चौधरी साहब यह अच्छी तरह समझ चुके थे कि गांधी के आन्दोलन में केवल शोषण जातियां उदाहरण के लिए ब्राह्मण, बनिया और कायस्थ इकट्ठे हो गये थे जो जाट कौम के पुराने शोषक थे । इसलिए चौधरी छोटूराम ने अपने और अपनी कौम को इस आन्दोलन से दूर रखकर इसके विरोध में संयुक्त पंजाब में जमींदारा पार्टी का गठन किया और सही समय पर कौम के दुश्मन की पहचान की । चौ० छोटूराम ने अपने पूरे जीवन में अपनी कौम के फायदे का कभी कोई एक अवसर भी नहीं गंवाया । जब सन् 1928 में साईमन कमीशन भारत आया तो उसकी स्वागत कमेटी के अध्यक्ष बने जबकि कांग्रेस उनका विरोध कर रही थी । वे भली-भांति जानते थे साइमन कमीशन की रिपोर्ट से जाट कौम को दीर्घकालीन फायदे होने हैं और उनकी प्रगति में कोई बाधा नहीं आयेगी । इसी बात पर दुश्मनों के समाचार पत्रों ने चौ० छोटूराम को अंग्रेजों का पिट्ठू लिखना शुरू किया । लेकिन ये दुश्मन कैसे भूल गये थे कि इंग्लैण्ड का राजा जार्ज पंचम सन् 1911 में भारत आया तो उसकी स्वागत कमेटी के संयोजक पण्डित नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू ही थे । और जार्ज पंचम के स्वागत में आज का राष्ट्रीय गान जन-मन-गण रचा गया और गाया गया और इसके साथ-साथ मोतीलाल ने नारा लगाया लॉन्ग लिव अनार्की जिसका अर्थ था कि ब्रिटिश साम्राज्य हमेशा कायम रहे । याद रहे रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बहनोई इंग्लैण्ड में रहते थे । उन्होंने ही जार्ज के स्वागत में एक गान लिखने के लिए टैगोर को कहा था और बाद में रविन्द्रनाथ टैगोर को गीतान्जलि के लिए नोबल पुरस्कार मिला । उसका कारण परोक्ष रूप से यही गाना था । इसी गान को राष्ट्रीय गान बनाने के विरोध में संविधान सभा के 319 सदस्यों ने कड़ा विरोध किया लेकिन पण्डित नेहरू ने उनकी एक नहीं सुनी तो फिर पण्डित मोतीलाल और पण्डित जवाहर लाल नेहरू को अंग्रेजों का पिट्ठू क्यों नहीं बतलाया गया ? बाद में पण्डित टैगोर ने लाला कर्मचन्द गांधी को महात्मा की उपाधि दे दी तो लाला गांधी ने पण्डित जी को बदले में गुरुदेव की उपाधि देकर अपनी गुरु दक्षिणा चुकाई । इसी प्रकार जब गांधी ने नेहरू को देश का प्रधानमन्त्री बनाया तो नेहरू ने गांधी को पूरे राष्ट्र का ही पिता बना दिया ।


    वैसे इंग्लैण्ड के रक्षामन्त्री मि० क्रिप्स ने सन् 1948 में इंग्लैण्ड में ब्यान दिया हमने अपने व्यापार की सुरक्षा के लिए भारत पर 200 वर्ष तक राज किया और उसी व्यापार की सुरक्षा के हित में हम भारत की सत्ता अपने एजेंटों को दे आये । इससे स्पष्ट है कि अंग्रेजों के पिट्ठू और एजेन्ट कौन थे


    जब सन् 1947 में दूसरा विश्वयुद्ध आरम्भ हुआ तो चौ० छोटूराम ने जाटों को आह्वान किया कि वे सेना में भर्ती हो जाएं और इसी आह्वान पर लाखों जाट सेना में भर्ती हुये और जाटों ने रणक्षेत्र में अपनी बहादुरी को सिद्ध किया और वास्तविक क्षत्रिय कहलाये । चौ० छोटूराम का उद्देश्य था कि जाट सेना में जायेंगे तो अपने ग्रामीण माहौल से निकालकर दुनिया को देखेंगे जिससे उनको बहुत बड़ा अक्सपोजर मिलेगा और साथ-साथ जाटों की आर्थिक हालत में भी सुधार आयेगा । उनकी यह सोच सच साबित हुई जब जाट रणबांकुरों ने अपनी वीरता के बल पर भारतीयों को मिले 40 विक्टोरिया क्रास में से 10 विक्टोरिया क्रास जाटों के नाम थे । (एक गैर जाट रांघड़ जाति का चौथी जाट बटालियन से था ।) इन्हीं जाट सैनिकों के बच्चे बाद में जनरल और अन्य ऊंचे-ऊंचे पदों पर पहुंचे और यह प्रक्रिया आज तक जारी है ।


    याद रहे अहिंसा के पुजारी कर्मचन्द गांधी ने बाद में इसी युद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया । जबकि सभी जानते हैं कि युद्ध में हमेशा हिंसा होती है और युद्ध हिंसा के लिए ही लड़े जाते हैं । लेकिन फिर भी कर्मचन्द गांधी को अंग्रेजों का पिट्ठू न लिखकर अहिंसा का पुजारी कहा जाता है ।


    चौ० छोटूराम दुश्मन को पहचानने में तनिक भी विलम्ब नहीं करते थे । इसलिए वे कहा करते थे - गोरे अंग्रेजों से काले अंग्रेज बुरे साबित होंगे । और इसके लिए आज कोई प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है । धर्म के नाम पर हमारे दुश्मनों ने हमारे विरोध में जो प्रचार किया उसका मुंहतोड़ जवाब चौ० छोटूराम ने संयुक्त पंजाब के सन् 1936 के चुनावों में दिया जब जमींदारा पार्टी के 120 विधायक विजयी रहे कांग्रेस पार्टी मात्र 16 तथा जिन्ना मुस्लिम लीग के मात्र 2 विधायक ही जीत पाये । उनमें से भी एक जमींदारा पार्टी में चला गया और उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कर्मचन्द गांधी का असहयोग आन्दोलन केवल उच्च जातियों तथा शहरों तक ही सीमित था ।


    पंजाब में हमारे दुश्मनों के अखबार चौ० छोटूराम को हिटलर लिखते थे इसके उत्तर में चौ० साहब कहते थे वहां हिटलर तो होगा ही जहां यहूदी रहेंगे । यहूदी कौम संसार की एक बड़ी व्यापारी और शोषक कौम रही है । इसी कारण हिटलर ने उनकी तबाही की थी । साम्यवादी सिद्धान्त का जन्मदाता कार्लमार्क्स स्वयं एक यहूदी था जिनका उद्देश्य जमींदारों को उनकी जमीन से बेदखल करने तक ही सीमित था और कुछ नहीं । इसलिए हमें यह जानने का अधिकार है कि पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों ही जाट कौम के दुश्मन हैं और अनैतिक हैं । इसी कारण चौ० चरणसिंह ने सन् 1952 में नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में पण्डित नेहरू के सहकारी खेती प्रस्ताव का विरोध किया था और उसे पास नहीं होने दिया था । इसलिए जाट कौम का हित केवल छोटूरामवादी समाजवाद में है और यह सच्चा समाजवाद चौ० छोटूराम का था जिसे हमें अपनाना होगा ।


    वर्तमान में जाट कौम बोलना तो सीख रही है लेकिन मुद्दों से हटकर । क्योंकि जाट कौम चौ० छोटूराम के बाद कोमी मुद्दे बनाने में पूर्णतया असफल रही है । इसी कारण जाट कौम के अनेक दुश्मन भी पैदा हो गये जिनमें प्रमुख हैं - जिन्होंने अपने पाखण्डी ग्रन्थों में जाट कौम को शूद्र लिखा और फिर सन् 1932 में जाट कौम को लाहौर हाईकोर्ट से एक शूद्र जाति घोषित करवाया और साथ-साथ जाट कौम के इतिहास का अतिक्रमण जारी रखा और आज जाट कौम के आरक्षण का विरोध कर रहे हैं । दूसरा दुश्मन वो है जिनके पूर्वजों ने चौ० छोटूराम को काले झण्डे दिखाये और जाट कौम की एक बड़े भाग की नौकरियों पर कब्जा कर लिया और जाट कौम की संस्कृति का अतिक्रमण कर रहे हैं । तीसरा दुश्मन जो अनुसूचित जाति के कानून के तहत जाटों के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं ।


    यदि हमने अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त करना है तो दीनबन्धु चौ० छोटूराम को पुनः जीवित करना होगा, जिस प्रकार केवल 30 वर्षों में दलित जातियों ने डॉ० अम्बेडकर को जीवित कर दिया । जाट भाइयो, आओ और कौम को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाओ ।


    Ravinder bhai bilkul sahi kaha commandant sahab ne



    jat hi jat ki madad karta hai

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